अतीत में बने महान लोगों से जुड़े प्रसंग, हमारे जीवन में हमेंशा प्रेरणा का स्त्रोत बने रहते है।
1. सच कहने की हिम्मत
स्वामी विवेकानंदजी बचपन से ही एक मेघावी छात्र थे और सभी उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे। जब वे साथी छात्रों को कुछ बात कहते तो सब मंत्रमुग्ध हो उन्हें सुनते।
एक दिन वे कक्षा में कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब मास्टर जी कक्षा में आए और पढ़ाना शुरु कर दिया। मास्टर जी ने अभी पढ़ाना शुरु ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी।
‘कौन बात कर रहा है?’ मास्टर जी ने तेज आवाज में पूछा, सभी ने विवेकानंदजी और उनके साथ बैठे छत्रों की तरफ इशारा कर दिया।
मास्टर जी तुरंत क्रोधित हो गए, उन्होंने तुरंत उन छोत्रों को बुलाया और पाठ से संबंधित एक प्रश्न पूछने लगे। जब कोई भी उत्तर न दे सका, तब अंत में मास्टर जी ने विवेकानंदजी से भी वही प्रश्न किया। पर नरेंद्र तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों, उन्होंने आसानी से उत्तर दे दिया। यह देख मास्टर जी को यकीन हो गया कि नरेंद्र पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बातचीत में लगे हुए थे। फिर क्या था। उन्होंने नरेंद्र को छोड़ सभी छात्रों को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी छात्र एक-एक कर बेंच पर खड़े होने लगे, नरेंद्र ने भी यही किया।
तब मास्टर जी बोले, ‘नरेंद्र, तुम बैठ जाओ।’
‘नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा, क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था।’
2. विरोध करने से नहीं डरना चाहिए

एक बार हेनरी थोरो ने किसी से कहा, ‘लोकतंत्र पर मेरी आस्था है, पर वोटों से चुने गए व्यक्ति स्वेच्छाचार करें, मैं यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। राजसंचालन उन व्यक्तियों के हाथ में होना चाहिए, जिसमें मनुष्य मात्र के कल्याण की भावना और कर्तव्य-परायणता विद्यमान हो और जो उसकी पूर्ति के लिए त्याग भी कर सकते हों।’
किसी ने उन्हें कहा, ‘यदि ऐसा न हुआ तो?’
उन्होंने कहा, ‘तो हम ऐसी राज्य सत्ता के साथ कभी सहयोग नहीं करेंगे, चाहे उसमें हमें कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पड़े।’
वे सविनय-असहयोग आंदोलन के प्रवर्तक थे। उनका कहना था, ‘अन्याय चाहे अपने घर में होता हो या बाहर, उसका विरोध करने से नहीं डरना चाहिए और कुछ न कर सके तो भी बुराई के साथ सहयोग तो करना ही नहीं चाहिए। बुराइयां चाहे राजनीतिक हों या सामाजिक, नैतिक हों या धार्मिक, जिस देश के नागरिक उनके विरुद्ध खड़े हो जाते हैं, सविनय-असहयोग से उसकी शक्ति कमज़ोर कर देते हैं।’
3. साधारण क्यों न रहूं?
हेनरी फ़ोर्ड संसार के सबसे धनी एवं विख्यात व्यक्तियों में से एक थे।
उनसे एक बार किसी ने पूछा, ‘आपकी गणना विश्व के प्रमुख धनपतियों में होती है, फिर भी आप इतने साधारण तरीके से क्यों रहते हैं?’
फ़ोर्ड ने जवाब दिया, ‘भाई, मैं जानता हूं कि मैं फ़ोर्ड हूं। तुम जानते हो कि मैं फ़ोर्ड हूं। सब जानते हैं कि मैं फ़ोर्ड हूं। मैं अगर महंगे कपड़े पहनूंगा, तब भी फ़ोर्ड ही रहूंगा और साधारण कपड़ों में भी। फिर बताओ, मैं साधारण क्यों न रहूं?’
फ़ोर्ड का जवाब सुनकर प्रश्नकर्ता निरुत्तर हो गया।
4. भाग्य क्या है?
महान वैज्ञानिक टॉमस आल्वा एडीसन अपना प्रयोग सफल हो जाने की ख़ुशी में अपने दोस्तों के साथ जश्न मना रहे थे। तभी एक पत्रकार ने उनसे पूछा, ‘क्या आपकी सफलता का कारण आपका भाग्य है?’
एडीसन ने मुस्कुराकर कहा, ‘भाग्य क्या है, एक औंस बुद्धि और एक टन परिश्रम।’
जब हम अपने असफल होने का दोष अपने दुर्भाग्य को देते हैं, तो हम यह भूल जाते हैं कि उसमें हमारे परिश्रम का आभाव कितना है?
5. आत्मा की ऊंचाई
एक बार एक व्यक्ति प्रख्यात दार्शनिक देकार्त को काफ़ी बुरा-भला कहने लगा। देकार्त चुपचाप उसकी बातों को सुनते रहे। अंत में वह देकार्त का कोई उत्तर न पाकर चला गया।
यह देखकर उनके एक मित्र ने कहा, ‘उस व्यक्ति ने तुम्हें क्या कुछ नहीं कह दिया और तुम चुपचाप सुनते रहे। तुम्हें बदला लेना चाहिए था, उसका व्यवहार तुम्हारे प्रति काफ़ी बुरा था।’
देकार्त मुस्कुराकर बोले, ‘जब कोई व्यक्ति मुझसे बुरा व्यवहार करता है तो मैं अपनी आत्मा को उस ऊंचाई पर ले जाता हूं, जहां कोई दुर्व्यवहार उसे छू नहीं सकता।
6. एडीसन और उनकी योजना
महान वैज्ञानिक टॉमस आल्वा एडीसन के 55वें जन्मदिवस पर उनके सम्मान में एक प्रीतिभोज का आयोजन किया गया। समारोह में एक पत्रकार ने उनसे पूछा, ‘अब आगे के लिए आपकी क्या योजना है? आप क्या करना चाहेंगे?’
एडीसन ने उत्तर दिया, ’75 वर्ष की आयु तक मैं अपनी किसी वैज्ञानिक अनुसंधान में व्यस्त रहूंगा। 75 वर्ष की आयु में ब्रिज खेलना सीखूंगा। 80 वर्ष की आयु में महिलाओं के साथ बैठकर गप्पे लड़ाऊंगा और 85 वर्ष की आयु में गोल्फ खेलने का अभ्यास करना चाहूंगा।’
और 90 वर्ष की आयु में?’ अचानक एक महिला पत्रकार ने पूछा।
एडीसन ने तत्काल उत्तर दिया, ‘मैं केवल अगले 30 वर्ष के लिए ही योजना बनाने में विश्वास करता हूं।’
एडीसन का यह उत्तर सुन समारोह में एक चुप्पी छा गई और कुछ ही पल बाद ठहाका गूंजा।
7. सम्राट की सहायता
बर्लिन के समीप पॉट्स डाम राजमहल की दीवार पर लगी एक बहुमूल्य घड़ी को एक आदमी उतारने की कोशिश कर रहा था, पर सीढ़ी पर पैर बार-बार फिसल जाते थे। इसलिए उतारने वाला अपने प्रयास में सफल नहीं हो पा रहा था।
इसी बीच सुबह हो गई। सम्राट फ्रेडरिक जगे और उस असफल प्रयास को कुछ देर देखते रहे फिर उस उतारने वाले के पास गए और पूछने लगे, ‘तुम कौन हो और यह सब क्या कर रहे हो?’
उतारने वाले ने साहस और धैर्य पूर्वक कहा, ‘मैं शाही घड़ीसाज़ हूं। मरम्मत के लिए यह घड़ी उतारनी है, पर सीढ़ी पर पैर जम ही नहीं पाते।’
सम्राट फ्रेडरिक ने स्वयं सीढ़ी पकड़ ली और उस व्यक्ति को घड़ी उतारने में सहायता की। उसने घड़ी उतारी, बग़ल में दबाई और चलता बना।
दूसरे दिन फ़रियाद हुई की दीवानख़ाने की क़ीमती घड़ी कोई चुरा ले गया। सम्राट को चोर के साहस और धैर्य पर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई। फ़रियाद के कागज के एक कोने में सम्राट फ्रेडरिक ने लिखा कि ‘वह चोर सम्राट की सहायता से अपना मनचाहा उपहार पाने में सफल हुआ।’
8. जवाब
मशहूर फ्रेंच फिलॉसफर ब्लेज पास्कल के पास एक व्यक्ति आया और बोला, ‘अगर मेरे पास आप जैसा दिमाग हो, तो मैं एक बेहतर इंसान बन सकता हूं।’
पास्कल ने जवाब दिया, ‘तुम पहले एक बेहतर इंसान तो बनो, तुम्हारा दिमाग अपने आप मेरे जैसा हो जाएगा।’
9. कोई क्या कहेगा?
शहनाई के जादूगर उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां साहब, जिन्होंने शहनाई जैसे लोकवाद्य को शास्त्रीयता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जीवन के अंतिम क्षणों तक शहनाई वादन की साधना करते रहे।
उनकी अथक साधना व योगदान के फलस्वरुप भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। ‘भारत रत्न’ मिलने के बाद भी बिस्मिल्ला ख़ां साहब अत्यंत सादगी से रहते थे और आंगतुकों से एकदम साधारण कपड़ों में ही मिलने चले आते थे।
एक बार तो वे पुरानी व फटी हुई तहमद बांधे ही आंगतुकों आंगतुकों से मिलने चले आए। ये देखकर उनकी एक शिष्या को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने हिम्मत करके ख़ां साहब से कह ही दिया, ‘बाबा, आपको ‘भारत रत्न’ मिल चूका है और आप ऐसे मामूली से कपड़े पहने ही लोगों से मिलने चले आते हैं, ये हमें अच्छा नहीं लगता। अपनी तहमद तो देखिए, जो कई जगह से फट गई है।’
अपनी शिष्या के ऐतराज़ पर बिस्मिल्ला ख़ां साहब ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘बिटिया, ‘भारत रत्न’ हमें लुंगिया पर थोड़े ही मिला है, ये तो हमें शहनाई के कारण मिला है।’ ‘कोई क्या कहेगा?’ इसकी परवाह न कर।’ अपनी सादगी, संगीत के प्रति समर्पण व निरंतर अभ्यास (रियाज़ ) के कारण ही बिस्मिल्ला ख़ां साहब विश्व के महान शहनाई वादक बन सके, इसमें संदेह नहीं।
10. हम साथ-साथ हैं
एक उद्योगपति कारखाना चलाता था। उसके यहां हमेशा मालिक-मजदूर संघर्ष होता रहता था। जब वह इस समस्या से तंग आ गया, तब उसने हेनरी फ़ोर्ड से परामर्श करने तथा उनके अनुभव का लाभ उठाना चाहा।
वह फ़ोर्ड कंपनी के कारखाने में जा पहुंचा। उसने फ़ोर्ड को लंदन के कमरे में नहीं पाया। पूछने पर पता चला कि फ़ोर्ड आए तो हैं, लेकिन वे सादा कपड़े पहने मजदूरों के साथ परिश्रम कर रहे हैं। उसने फ़ोर्ड को अपने पास बुलवाया और कहा, ‘आप तो इस कारखाने के मालिक हैं। ये मजदूर आपके कर्मचारी हैं। इनसे इतना घुलना-मिलना ठीक नहीं। अगर इतना घुलेंगे-मिलेंगे तो अनुशासन कैसे रह पाएगा?
फ़ोर्ड मुस्कुराए और बोले, ‘मेरे यहां तो अनुशासन की समस्या ही नहीं। कभी मालिक-मजदूर विवाद नहीं होता। मेरे मजदूर मुझे अपने में से एक समझते हैं। मैं कभी स्वयं को मालिक और उन्हें मजदूर नहीं मानता। हम लोग साथ-साथ काम करते हैं, समस्याओं को मिलकर सुलझाते हैं। हम लोगों में बड़ी आत्मीयता है। फिर फ़ोर्ड ने पूछा, ‘आपका यहां आना कैसे हुआ?
उसे उद्योगपति ने उत्तर दिया, ‘मैं कुछ प्रश्न और समस्याएं लेकर आपके पास आया था, परंतु बिना पूछे ही उनका उत्तर मिल गया। मेरे सारे प्रश्नों का उत्तर आपकी सादगी, श्रम और आत्मीयता से मिल गया।’
इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में, अतीत के श्रेष्ठ दस प्रेरक प्रसंग दिए गए है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देंगे। आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !










