हम सबके अलग-अलग डर
हम सबका अपना डर(Fear) हैं, जो अलग-अलग मनोस्थितियों और परिस्थितियों से उपज सकते हैं। मृत्यु का डर, धन हानि का डर, अपयश का संकट जटिल डर हैं। इनका सामना करने के लिए बड़े साहस की जरुरत है, लेकिन इनसे भिड़ने से पहले छोटे-छोटे डरों से मुक्त होना होगा। कई बार डर हमारी इच्छाओं से पैदा होते हैं, कई बार बचपन की कुछ स्मृतियों से तो कई बार हमारी कमजोरियों से भी, लेकिन सबसे बड़ा सत्य यह है कि कभी न कभी हमारा डर हमारे सामने साक्षात आकर खड़ा हो जाता है।
बचपन का डर
कुछ भी नया करते समय सबसे पहले मन के अंदर से डर की आवाज़ उभरती है। यही मौका है कि उस पर काबिज होना सीख लें। यकीनन, जिन लोगों ने बड़े-बड़े लक्ष्यों को साधा है और आप जिन्हें मंत्रमुग्ध भाव से सराहते हैं, देखते हैं, वे सब के सब कभी न कभी अपने-अपने अभ्यास में असफल हुए होंगे, चोटिल हुए होंगे। वे हारे नहीं, डरे नहीं, इसलिए शीर्ष तक पहुंचे।
याद कीजिए – बचपन में साइकिल चलाना सीखते समय आप एक-दो बार सीट से जरुर गिरे होंगे। अगर उसी समय आप साइकिल चलाना सीखने से मना कर लेते तो अब तक साइकिल की सवारी केवल स्वप्न होती। गिरना और चोट खाना क्या है? बहुत छोटा-सा डर…एक बार इससे मुक्ति पा ली तो इसके आगे आप बाइक और फिर कार की ड्राइविंग भी सीखना चाहेंगे।
वेस्ली ऑट्रे की डर पर जीत
साल 2007 में जनवरी के दूसरे दिन दोपहर के 1 बजने वाले थे। न्यूयॉर्क के मैनहट्टन में एक सब-वे में खड़े वेस्ली ऑट्रे अपनी दो बच्चियों के साथ ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे और उसी वक्त एक युवा छात्र उनके सामने ही दौरा पड़ने से बेहोश होकर ट्रैक पर गिर पड़ा। वेस्ली उसे बचाने के लिए ट्रैक की ओर झुके ही थे कि ट्रेन की हेडलाइट उनके चेहरे पर पड़ी, उनके पास निर्णय लेने के लिए चंद सेकेंड भी नहीं थे… बस डर हार गया, वेस्ली ट्रैक पर उस युवक को बचाने कूद पड़े।
आपको पता है इसके बाद क्या हुआ? वेस्ली वहां से सकुशल निकले और डर के हारते ही वेस्ली और ज़िंदगी की जीत हुई। वेस्ली आज अमेरिका के राष्ट्रीय हीरो हैं, ‘टाइम मैगजीन’ ने उस साल उनको दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावशाली लोगों में रखा, लोग उन्हें सुपरमैन के नाम से जानते हैं। यह घटना शायद पहले भी कई बार डर पर जीत के लेखों और भाषणों में उद्धवत की गई होगी, पर इसे बताना इसलिए जरुरी है, क्योंकि यह सबसे सटीक और वास्तविक मिसालों में से है, जहां मानव अपने डर के आगे जाकर जीत को हासिल करता है।
मनोविज्ञान : डर का
डर का मनोविज्ञान बेहद साधारण है, एक बार अपने सबसे बड़े डर का भरपूर सामना किया जाए और उसके अगले ही क्षण से आपका डर जा चूका होता है। ये ठीक वैसे ही है, जैसे किसी सैनिक के सिर या कान के पास से कोई गोली सनसनाती निकल जाए। उस क्षण वह शायद जीवन के सबसे भयाक्रांत कर देने वाले अनुभव से होकर गुजरेगा, लेकिन उसके बाद वह दुनिया के सबसे साहसी लोगों में भी खड़ा हो सकता है।
भय, आपको भयभीत करता है, जब तक आप भयभीत होना नहीं छोड़ देते और इसलिए भय के हावी होने का प्रक्रम जीवन भर भी चल सकता है और जब आप चाहें, खत्म हो सकता है। जैसा कि पंचतंत्र में एक कथा में कहा गया है कि भय से तभी तक भयभीत हों, जब तक वह पास न आया हो, भय को आते देख, बिना शंका के उस पर प्रहार करो, ऐसा कि वह नष्ट हो जाए।
डर का सामना करें
कई बार डर हमारी इच्छाओं से पैदा होते हैं, कई बार बचपन की कुछ स्मृतियों से तो कई बार हमारी कमजोरियों से भी, लेकिन सबसे बड़ा सत्य यह है कि कभी न कभी हमारा डर हमारे सामने साक्षात आकर खड़ा हो जाता है, ऐसे में हमारे सामने दो ही विकल्प हैं।
पहला कि हम डर का सामना करें, या फिर उससे भाग खड़े हों। इसे मनोविज्ञान की भाषा में ‘लड़ो या भागो’ की परिस्थिति कहा जाता है और असल में यही निर्णय का क्षण होता है, जो आपके जीवन को या तो और अंधकार की ओर धकेल सकता है या फिर हमेशा के लिए बदल सकता है।
हालांकि, ओशो भय को और अलग नज़रिये से देखने की बात करते हैं। वो कहते हैं कि, दबाने से भय और उभरेगा, भय को समझने की जरुरत है। ‘भय को न मारा जा सकता है, न जीता जा सकता है, केवल समझा जा सकता है और केवल समझ ही रुपांतरण लाती है, बाकी कुछ नहीं। भय हमेशा किसी इच्छा के आसपास पनपता है। भय अधूरी इच्छाओं का प्रतिफल है।’
डर से मुक्ति का सबसे बड़ा उपाय
हालांकि सामान्य भाषा में कहें, डर का जो कारण होता है, वही डर का उपाय भी है। बात जीवन में डर का सामना करने की हो तो डर की आंखों में आंखें डालकर, उससे यह कह देना कि, मैं तुमसे नहीं डरता और यह ही है डर से मुक्ति का सबसे बड़ा उपाय।
पर यह हो कैसे? क्या यह वाकई इतना आसान है कि पूरे आत्मविश्वास के साथ कोई अपने डर पर काबू पाने के लिए तैयार हो जाए? नहीं, यह आसान नहीं है, क्योंकि यहीं पर आकर आत्मावलोकन और आत्मपरीक्षण की बारी आती है। आपको ये पता होना चाहिए कि आपको डर किस बात से है, अपने डर के बारे में पूरा ज्ञान ही उससे बचा पाएगा, जैसा की प्रख्यात दार्शनिक एमर्सन ने कहा था, “डर अज्ञानता से उपजता है।” इसलिए यह बेहद जरुरी है कि आप पहचानें कि आपके मन में बैठा भय क्या है, कैसे उपजा है और तभी आपको पता होगा कि इससे कैसे निपटना है।
डर : मानवता का सबसे बड़ा शत्रु
भय आपको केवल भयभीत ही नहीं करता है, यह आपको धीरे-धीरे अंदर से न सिर्फ खोखला करता है, बल्कि मूलभूत मानवता से भी दूर ले जाता है। डरा हुआ व्यक्ति हमेशा संदेह में रहता है, लोगों पर अविश्वास करता है, इस काम में वह न केवल धीरे-धीरे लोगों से दूर हो जाता है, बल्कि हमलावर व्यवहार का भी हो जाता है। विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि “साहस मानवता का सबसे बड़ा साथी है, जबकि भय मानवता का सबसे बड़ा शत्रु।”
क्या जीत हासिल करने के लिए भी डर से मुक्ति जरुरी है? बिल्कुल, क्योंकि डर आपको प्रयास से पहले ही निराश करता है, आपको संशय देता है कि सफलता मिलेगी या नहीं और इसीलिए कई बार हम कार्य प्रारंभ करने से पहले ही प्रयत्न छोड़ देते हैं। ‘नीतिशतक’ में भर्तृहरि कहते हैं, “नीच मनुष्य विध्नों के भय से कुछ शुरु नहीं करते, मध्यकोटि के लोग बाधा आने पर रुक जाते हैं, किंतु उत्तम कोटि के मनुष्य विघ्नों के बार-बार आने पर भी एक बार शुरु किए गए कार्य को नहीं छोड़ते।”
अपने डर को पहचानिए
इसमें कोई शंका नहीं कि सफलता के रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी बढ़ा डर है, जैसा कि मैरी मॉसिसे ने कहा था, “आप जब डर को अपने भरोसे से बड़ा बना लेते हैं, तो आप अपने सपनों का रास्ता रोक रहे होते हैं।” जाहिर है सपने सफलता की नींव बनाते हैं और सपनो का रास्ता रोक देना, सफलता की भ्रूण हत्या है। ऐसे में जरुरी है कि अपने डर को पहचानिए, उसको समझिए और फिर उसको निकाल फेंकिए अपने मन से। डर लगने पर उसको स्वीकार कीजिए, उसके खिलाफ लड़िए और उस क्षण तक लड़िए, जब तक कि डर चरम सीमा तक आए और बस वही क्षण होगा, जब डर की समाप्ति भी हो जाएगी। भय से होकर एक बार आप गुजर जाएंगे, फिर वो दोबारा लौट कर नहीं आएगा।
अंतमें…
असफलता का या किसी और बातों का डर हो, अपने मन से निकाल दीजिए। बारी है अगले चरण की। अब पूरे व्यक्तित्व को डर से मुक्त कीजिए। सोचिए – जो होगा, वह अच्छा होगा और अच्छा न भी हुआ तो फिर प्रयास करेंगे। निश्चित तौर पर तब आपका व्यक्तित्व इस्पात जैसा होगा। आप भयमुक्त बनेंगे और बड़े संकल्प भी साकार हो सकेंगे। आपकी राहें खुली-खुली, डर से अलग, मंजिल की तरफ साफ देखने वाली बनेंगी… तो बताइए जरा… आप कह रहे हैं न डर को अलविदा?
इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में ‘डर’ को जीतने की जो बात की गई है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी, आपको डर का सामना करने की हिम्मत देगी। अगर आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !


