हम सबके जीवन में कभी न कभी महान लोगो (Great People) का प्रभाव पड़ा ही होता है। आज हम, विश्व फलक पर जिन महान लोगो का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है, उनके बारे में संक्षिप्त में जानेंगे। ये सब वे महान प्रतिभाए है, जिन्होंने दुनिया को जीवन जीने का सही रास्ता दिखाया।
1. कन्फ्यूसियस : लोकतांत्रिक शासन की हिमायत
“श्रेष्ठ व्यक्ति जो खोजता है, वह स्वयं में है। छोटा व्यक्ति जो खोजता है, वह दूसरों में है।”
कन्फ्यूसियस, चीन के बड़े विचारक और राजनीतिशास्त्र के प्रणेता थे। उन्होंने शासक और जनता के बीच संबंधों और राजनीति की आचारनीति व शुचिता पर इतनी खरी-खरी बातें कहीं कि तत्कालीन चीन का शासकवर्ग उनसे रुष्ट हो गया।
551 ईसा पूर्व से 479 ईसा पूर्व में वह पूर्वी दुनिया के महत्वपूर्ण दार्शनिक और विचारक थे। वह लोकतंत्र जैसी शासन पद्धति की हिमायत करते थे। कन्फ्यूसियस को उनके विचारों के कारण निर्वासित कर दिया गया। उनका जीवन शिष्यों के साथ चीन की यात्रा करते हुए बीता।
2. सुकरात : सत्य की अमरता के लिए मृत्यु का आलिंगन
“मजबूत दिमाग विचारों पर चर्चा करते हैं, औसत दिमाग घटनाओं पर चर्चा करते हैं और कमजोर दिमाग लोगों पर चर्चा करते हैं।”
महान दार्शनिक सुकरात (सॉक्रेटीस) का जन्म यूनान की रानी कहे जाने वाले अत्यंत सुंदर और समृद्ध नगर एथेंस में हुआ था। उनके पिता सोफ्रोनिस्कोस प्रस्तर खंडो की सजीव भाव-प्रवण मूर्तियां बनाने में सिद्धहस्त थे। उनकी माता का नाम फेनारत था।
सत्य के लिए उन्होंने विष का प्याला भी हंसते-हंसते पी लिया। मृत्यु का डर भी उनके इरादों को डगमगा नहीं पाया। सत्य को अपने आचरण में जीने वाले लोग इतिहास में सदा अमर रहे हैं और सुकरात भी उन्हीं में से एक थे।
यूनान के महान दार्शनिक सुकरात का जीवन उनके आदर्शों और सिद्धांतों का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने दार्शनिकता को जैसे फलक से उतारकर धरती पर ला स्थापित किया था। उनकी चेतना में इतनी सृजन क्षमता थी कि वह आगे दो पीढ़ियों तक अपनी धारा को चला सके।
सुकरात उस युग के नहीं, बल्कि किसी भी युग के सबसे महान व्यक्तियों की गितनी में आते हैं। अपने जीवन में सुकरात ने सत्य और ज्ञान के प्रचार का काम किया, लेकिन उससे भी ज्यादा काम उन्होंने अपनी मृत्यु के द्वारा किया। उनकी अंत्येष्टि के बाद यूनानवासियों ने उनकी मृत्यु पर पश्चाताप करना प्रारंभ कर दिया। अभियोगकर्ताओं का पूरे विश्व में बहिष्कार कर दिया गया और उनमें से दो ने तो आत्महत्या तक कर ली। यह निश्चित है कि यदि सुकरात को शहीद की मृत्यु न मिलती तो उनके उपदेशों को संसार ने इतनी गहराई से अनुभूत न किया होता।
महान दार्शनिक और महा ज्ञानी सुकरात के अंतिम शब्द थे – “मैं सत्य हूं और सत्य कभी नहीं मर सकता। तुम मर जाओगे, लेकिन मैं कभी नहीं मरुंगा।”
3. प्लेटो : महान सच की खोज
चित्र साभार :ऑगस्टाइन अकादमी
चित्रकार : रैफेलो सैंज़ियो
यह प्रसिद्ध चित्र “एथेंस का स्कूल” में, बीच में दाईं ओर अरस्तू को समझौता करने के लिए हाथ बढ़ाते हुए, जबकि बाईं ओर प्लेटो अपनी तर्जनी उंगली आकाश की ओर उठाए हुए हैं।
“समझदार व्यक्ति इसीलिए बोलता है, क्योंकि उसके पास बोलने के लिए या दुसरो से बांटने के लिए कई अच्छी बाते होती है, लेकिन एक मुर्ख व्यक्ति इसीलिए बोलता है, क्योंकि उसे कुछ न कुछ बोलना होता है।”
प्लेटो सुकरात के शिष्य और अरस्तू के गुरु थे। उच्च शिक्षा देने के लिए दुनिया का पहला विद्यालय उन्होंने ही स्थापित किया – ‘द एकेडमी ऑफ एथेंस’। उनका बनाया ये स्कूल छठी शताब्दी तक जारी रहा। ज्ञान के सभी क्षेत्रों में वह शिक्षित थे।
सुकरात और अरस्तू की तरह वह महान सच की खोज में लगे रहे। वह मानते थे कि क्यूंकि आत्मा अमर है, इसलिए इसकी चेतना, चक्र के रुप में घूमती रहती है, इसलिए मानव कभी नया नहीं सीखता, वो बस अपने पिछले जन्मों में किए गए कार्यों को अचेतन में याद रखता है।
4. अरस्तू : तर्कशास्त्र का असर
चित्र साभार :ऑगस्टाइन अकादमी
चित्रकार : रैफेलो सैंज़ियो
“दो चीजें अनंत हैं : ब्रह्मांड और मनुष्य की मूर्खता, ओर में ब्रह्मांड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता।”
अरस्तू महान यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य और महान सिकंदर के गुरु थे। दर्शनशास्त्र, भौतिकी, अध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र जैसे अनेक विषयो में वे पारंगत थे। वे पश्चिमी दर्शनशास्त्र के महान दार्शनिकों में से एक थे।
अरस्तू के विचारों ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला। पुनर्जागरण पर भी इसका असर दिखा। जीवविज्ञान में उन्होंने जो कुछ काम किया, उनकी उन संकल्पनाओं की पुष्टि 19वीं सदी में हुई। उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासंगिक हैं। अरस्तू की आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया।
5. आचार्य चाणक्य : कूटनीति के प्रकांड पंडित
“वन की अग्नि चंदन की लकड़ी को भी जला देती है, अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकती है।”
आचार्य चाणक्य ‘कौटिल्य’ नाम से भी विख्यात हैं। उनका मूल नाम ‘विष्णुगुप्त’ था। वे महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। उन्होंने नंदवंश का नाश करके चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। राजनीति और कूटनीति के वह प्रकांड विद्वान् थे।
राष्ट्रीय नीतियों, रणनीतियों तथा विदेश संबंधों पर लिखी गई ‘अर्थशास्त्र’ उनकी सर्वाधिक विख्यात पुस्तक है। प्रबंधन की द्रष्टि से एक राजा तथा प्रशासन की भूमिका तथा कर्तव्यों को यह पुस्तक स्पष्ट करती है। चाणक्य का दर्शन व्यावहारिक ज्ञान पर टिका है। आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया।
6. जॉन लॉक : व्यक्तिगत आजादी के हिमायती
“समझ में सुधार के लिए दो छोरों पर काम करना चाहिए : पहला – ज्ञान की हमारी अपनी वृद्धि, दूसरा – हमें उस ज्ञान को दूसरों तक पहुँचाने में सक्षम बनाने के लिए।”
जॉन लॉक आधुनिक राजनीतिशास्त्र के सबसे महत्वपूर्ण विचारकों में से एक थे। उन्हें उदारवाद का जनक कहा जाता है। उन्होंने मानवीय विकास का सिद्धांत दिया।
अमेरिका के संविधान और स्वतंत्रता के घोषणापत्र पर उनके विचारों का स्पष्ट प्रभाव दिखा। वे व्यक्तिगत आज़ादी के हिमायती भी थे। उनका मानना था कि जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति का संरक्षण मनुष्य के बुनियादी अधिकार हैं।
7. डेविड ह्यूम : ज्ञान में विश्वास
“जीवन का सबसे मधुर मार्ग सीखने के रास्तों से होकर जाता है, और जो कोई दूसरे के लिए रास्ता खोल सकता है, उसे अब तक मानव जाति के लिए परोपकारी माना जाना चाहिए।”
डेविड ह्यूम स्कॉटलैंड के महान दार्शनिक थे। उन्होंने एडिनबरा विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, किंतु वहां से उन्होंने कोई उपाधि नहीं ली। दर्शन के क्षेत्र में ज्ञान, सत्ता, नीति एवं धर्म के विषय में उनके विचार बहुत महत्त्व रखते हैं। ये भी कह सकते हैं कि उनके विचारों का प्रभाव आज के दर्शन पर बहुत है।
डेविड ह्यूम ज्ञान में विश्वास को अलग तरह से देखते थे। उनके अनुसार, हमारी ज्ञान शक्ति या बोध शक्ति की सीमा अनुभव की सीमा है। नैतिक निर्णय बुद्धि नहीं बनाती। बुद्धि तो केवल संबंधित तथ्यों का विश्लेषण भर कर देती है।
8. इमानुएल कांट : मनुष्यता के साथी
“जो जानवरों के प्रति क्रूर है, वह मनुष्यों के साथ भी कठोर व्यवहार करता है। हम जानवरों के साथ उसके व्यवहार से उस मनुष्य के हृदय का अंदाज़ा लगा सकते हैं।”
इमानुएल कांट जर्मन दार्शनिक, नीतिशास्त्री एवं वैज्ञानिक थे। वह अपने इस प्रचार से प्रसिद्ध हुए कि मनुष्य को ऐसे काम और बातें करनी चाहिए, जो मनुष्यता के लिए अच्छी हों। वे जर्मनी के पूर्वी प्रशा के कोनिगुजबर्ग में घोड़े का साधारण साज बनाने वाले के घर में जन्मे थे। ये जगह अब रुस में है।
इमानुएल कांट के घर का माहौल धार्मिक था, इसलिए उन पर काफी असर पड़ा। बाद में उन्होंने भौतिकशास्त्र, गणित और धर्मशास्त्र में उच्च शिक्षा ग्रहण की। उनका ज़्यादातर जीवन संघर्ष करते हुए साधारण स्थिति में बीता। उनके दर्शन में आध्यात्मिकता और धार्मिकता कूट-कूट कर भरी है। 1770 के बाद उनकी आर्थिक स्थिति और पद स्थिति सुधरने लगी। ‘शुद्ध बुद्धि की समीक्षा’ नामक उनका पुस्तक सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक कृति मानी जाती है, जिसे लिखने में उन्हें 12 साल लग गए।
9. कार्ल मार्क्स : शोषण के विरुद्ध
“इतिहास स्वयं को दोहराता है। पहले त्रासदी के रुप में, दूसरा प्रहसन के रुप में।”
कार्ल मार्क्स ने वो सिद्धांत गढ़े, जिन पर आधुनिक कम्युनिज़्म का जन्म हुआ। वह अनीश्वरवादी थे। वह काफी हद तक हेगेल के आदर्शवादी दर्शन से प्रभावित थे। मार्क्स जर्मनी में जन्मे थे, लेकिन अधिकांश जीवन इंग्लैंड में बीता।
उन्होंने कहा था कि दुनिया में दो ही वर्ग हैं – पूंजीपति और श्रमिक। हालांकि उनका मानना था कि पूंजीवाद ढह जाएगा और फिर सर्वहारा वर्ग दुनिया को चलाएगा। वर्ग संघर्ष में पूंजीवाद को घुटने टेकने होंगे।उन्हें आर्थिक समाजशास्त्र का प्रणेता माना जाता है। उनकी दो किताबें – कम्युनिस्ट मैनिफिस्टो और दास कैपिटल कई देशों में राजनीतिक क्रांति का प्रमुख औजार बनीं।
10. स्वामी विवेकानंद : युवाओं के प्रेरणास्त्रोत
“जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है।”
स्वामी विवेकानंदजी वेदांत के विख्यात आध्यात्मिक गुरु एवं विश्वभर के युवाओं के प्रेरणास्त्रोत है। उनका जन्म ‘मकरसक्रांति’ के पवित्र दिन कलकत्ता में हुआ था। उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस थे।
गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के अवसान के बाद उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की और ब्रिटिश भारत में तत्कालीन स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया। बाद में उन्होंने अमेरिका के शिकागो में 1893 में आयोजित ‘विश्व धर्मपरिषद’ में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने 11 सितंबर, 1893 की दिन ‘विश्व धर्मपरिषद’ में अपना प्रसिद्ध संबोधन दिया था। उन्हें प्रमुख रुप से उनके संबोधन का आरंभ “अमेरिकी भाइयों एवं बहनों” के साथ करने के लिए जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
विवेकानंदजी ने सयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में ‘हिंदू दर्शन’ के सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। उनके जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रुप में मनाया जाता है।
इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में, ‘महान प्रतिभाओं’ के बारे में जो जानकारी दी गई है, इससे आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। अगर आपको ये Article अच्छा लगा हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !











