विलुप्त माने जा रहे ‘शानदार विशालकाय कछुए’ के गैलापागोस में जीवित होने की पुष्टि
फर्नांडा, एकमात्र ज्ञात जीवित फर्नांडीना कछुआ, जो गैलापागोस द्वीपसमूह के फर्नांडीना द्वीप पर फिर से खोजा गया है, अब सांता क्रूज़ पर गैलापागोस राष्ट्रीय उद्यान के विशालकाय कछुआ प्रजनन केंद्र में रहता है। आनुवंशिकीविद ने पुष्टि की है की वह उसी प्रजाति से है जिस प्रजाति का एक कछुआ एक सदी से भी पहले द्वीप से एकत्र किया गया था, और ये दोनों आनुवंशिक रुप से अन्य सभी गैलापागोस कछुओं से अलग है।
“अब ऐसा लगता है की यह उन गिने-चुने कछुओं में से एक है जो एक सदी पहले जीवित थे।”
फर्नांडीना कछुओं के विलुप्त होने का कारण
फर्नांडीना कछुए के विलुप्त होने के लिए खोजकर्ता स्वयं ज़िम्मेदार थे। उन दिनों, जब समुद्री यात्राओं के दौरान भोजन की कमी होती थी, तो विशालकाय कछुओं को मारकर खा लिया जाता था। ‘डार्विन’ ने भी अपनी यात्राओं के दौरान इसी तरह का ‘भोजन’ किया था।
ऐतिहासिक कारण (18वीं-19वीं सदी)
- अतिशोषण : सदियों से नाविकों ने मांस और तेल के लिए कछुओं का बड़ी मात्रा में शिकार किया, जिससे लंबी यात्राओं के लिए हजारों कछुओं का शिकार किया गया।
आधुनिक कारण (20वीं-21वीं सदी)
- मानव द्वारा भोजन : सदियों से नाविकों, समुद्री लुटेरों और खोजकर्ताओ द्वारा भोजन के लिए खास करके कछुओं का ही शिकार किया जाता था। क्योंकि समुद्री यात्राओं के दौरान भोजन की कमी होती थी, तो विशालकाय कछुओं को मारकर खा लिया जाता था।
- मानव द्वारा लाई गई आक्रामक प्रजातियाँ : यहाँ पर मानव दवरा लाई गई कुछ आक्रामक प्रजातियाँ जैसे चूहे, सूअर और बकरियाँ भी कछुए के विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार है। ये सब आक्रामक प्रजातियाँ जो कछुओं के अंडों और बच्चों का शिकार करती है और भोजन एवं आवास के लिए प्रतिस्पर्धा करती है।
- कृषि और विकास : कृषि और विकास के कारण कछुओं के आवासों का विनाश और विखंडन भी कछुओं के विलुप्त होने का प्रमुख कारण है।
- अवैध शिकार : व्यापर के लिए अवैध शिकार भी कछुओं के विलुप्त होने का एक प्रमुख कारण है।
- आवास की कमी : जैसे-जैसे द्वीपों पर मानवों की संख्या बढ़ती चली गई, वैसे-वैसे कछुओं के आवासों को कृषि भूमि और शहरी विकास के लिए परिवर्तित कर दिया गया।
गैलापागोस द्वीपसमूह पर कछुओं का शिकार करते हुए
शोधकर्ताओं ने द्वीप के एक कछुए को मार डाला, हालांकि उसकी त्वचा और शरीर का अधिकांश भाग सुरक्षित रहा। लेकिन जो कछुआ मरा, वह वहाँ का आखरी निवासी था। छह-सात महीने की यात्रा के दौरान द्वीप पर इस प्रकार का कोई अन्य कछुआ नहीं देखा गया, इसलिए शोधकर्ताओं ने फर्नांडीना कछुए का नाम ‘विलुप्त’ लिख दिया।
फर्नांडीना द्वीप पर आखरी बार 1906 में देखे गऐ कछुए के खोल वाला एक शव
फर्नांडीना कछुआ, जो की ‘गैलापागोस विशालकाय (चेलोनोइडिस फैंटास्टिक्स) कछुआ’ या ‘शानदार विशालकाय कछुआ’ के नाम से भी जाना जाता है। एक सदी से भी ज़्यादा समय तक, केवल 1906 में एकत्रित किए गए इस एक नमूने से ही जाना जाता था।
फर्नांडीना कछुओं की कुछ रोचक जानकारी
- आयुष्य (जीवनकाल) : फर्नांडीना कछुए, जिसे ‘फर्नांडीना विशाल कछुआ’ या ‘शानदार विशाल कछुआ’ भी कहा जाता है, जिसका जीवनकाल लगभग अन्य गैलापागोस विशाल कछुओं के जितना ही होता है। ये जंगल में 100 से अधिक वर्षों तक और लगभग 200 वर्षों तक जीवित रह सकते है।
- विशेषता : ये कछुए भी अपनी धीमी चाल और चयापचय दर के कारण अपनी लंबी दीर्घायु के लिए जाने जाते है। इसी कारण उन्हें हजारों वर्षो से गैलापागोस परिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग भी बना दिया है।
- दुर्घायु कशेरुकी : फर्नांडीना कछुए, गैलापागोस कछुओं सहित, पृथ्वी पर सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले कशेरुकी जीवों में से एक है।
- पर्यावरण से प्रभावित : उनका जीवनकाल मुख्य रूप से आहार और पर्यावरण से प्रभावित होता है, जिसमें खास करके धीमी चयापचय दर उनकी दीर्घायु में योगदान देती है।
- प्रजाति : 2021 में आनुवंशिक परीक्षण में पुष्टि हुई है की, 2019 में फर्नांडीना द्वीप पर एकमात्र जीवित मिली मादा ‘फर्नांडा’ वास्तव में ‘चेलोनोइडिस फैंटास्टिक्स’ प्रजाति का सदस्य है, जो अन्य गैलापागोस कछुओं से आनुवंशिक रुप से अलग है।
- लंबाई : हालांकि फर्नांडा प्रजाति के कछुओं की विशिष्ट के माप उपलब्ध नहीं है, लेकिन फर्नांडीना विशालकाय कछुए (चेलोनोइडिस फैंटास्टिक्स) कछुआ’ या ‘शानदार विशालकाय कछुआ’ की लंबाई ज्ञात है।
- नर फर्नांडीना विशालकाय कछुए 87.6 सेमी (34.5 ईच) तक हो सकते है।
- मादा फर्नांडीना विशालकाय कछुए 50.7 सेमी (20 ईच) तक हो सकते है।
फर्नांडीना कछुआ – मादा फर्नांडा कछुआ जो 2019 में खोजी गई थी, इसके विकास से पता चलता है की यह मादा फर्नांडीना कछुआ अपने अलग-थलग और संसाधन विहीन वातावरण के कारण अपनी प्रजाति की एक सामान्य मादा से छोटी हो सकती है।
फर्नांडीना कछुओं के विलुप्त होने से लेकर वापस मिलने तक की कहानी
28 जून, 1905 गालापागोस द्वीपसमूह
अमेरिका में कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस की टीम ने सैन फ्रांसिस्को के तट से दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के तट से साढ़े पांच हजार किलोमीटर दूर स्थित गैलापागोस द्वीपसमूह तक एक अभियान शुरू किया। प्रकृतिवादी चार्ल्स डार्विन ने 1831-36 की अपनी यात्रा के दौरान गालापागोस द्वीप समूह के जीवों का अध्ययन किया था। किसी विशेष वातावरण में जीवित रहने वाले जीवों को अपने शरीर, आदतों और जीवनशैली को स्थानीय वातावरण के अनुसार ढालना पड़ता है।
चार्ल्स डार्विन ने गालापागोस की अपनी यात्रा के दौरान विकासवाद के रूप में ज्ञात प्रकृति के इस चमत्कार को समझा और फिर डार्विन ने 1859 में अपनी पुस्तक ‘ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीसिस’ में विकासवाद के सिद्धांत को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। यह विज्ञान के इतिहास की एक सर्वविदित घटना है।
करोड़ों सालों से अस्तित्व में रहे गालापागोस द्वीप समूह के 19 द्वीप डार्विन के सिद्धांत के बाद चर्चा में आए और शोधकर्ता वहाँ अध्ययन के लिए आने लगे। इस अध्ययन के उद्देश्य से कैलिफ़ोर्निया इंस्टिट्यूट के शोधकर्ता 1905 में गालापागोस पहुँचे। कई महीनों तक शोधकर्ताओं ने यहाँ यात्रा की, द्वीप के विभिन्न जीवों का अध्ययन किया और कुल 78 हजार प्राकृतिक नमूने एकत्र किए।
डार्विन के सिद्धांत के लागू होने के बाद, गालापागोस द्वीप समूह अपने ‘फिंच (एक प्रकार की चिड़िया)’ नाम के पक्षी और विशाल भूमि कछुओं (कछुए, समुद्री कछुए नहीं) के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हो गए। इस सिद्धांत को समझाने के लिए डार्विन ने उदाहरणों के माध्यम से बताया की प्रत्येक द्वीप पर पाए जाने वाले फिंच की चाचें द्वीप की आवश्यकताओं के अनुसार भिन्न होती हैं। जिन द्वीप पर पक्षियों को पेड़ों से भोजन प्राप्त करना पड़ता था, वहाँ उनकी चाचें लंबी थी, जबकि जिन द्वीपों पर पक्षियों को फलों से भोजन प्राप्त करना पड़ता था, वहाँ उनकी चाचें छोटी लेकिन मजबूत थी।
गालापागोस द्वीपसमूह पर कई अन्य जीव भी थे, लेकिन ये जीव विकास के सिद्धांत को समझने के लिए अधिक उपयोगी थे। इसलिए शोधकर्ताओं ली उनमें विशेष रूचि थी, जिनमें कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट के शोधकर्ता भी शामिल थे। शोधकर्ताओं ने विभिन्न द्वीपों पर कौन-कौन से जीव थे और उनकी संख्या कितनी थी, इसकी एक सूची बनाई। उसमें लिखा था की ‘फर्नांडीना कछुओं’ की संख्या शून्य थी। उस समय, 19 में से 14 द्वीपों पर कछुए थे और प्रत्येक प्रजाति को उस द्वीप के नाम से जाना जाता था, जैसे पिंटा द्वीप पर ‘पिंटा कछुआ’।
17 फ़रवरी, 2019 गालापागोस द्वीपसमूह का फर्नांडीना द्वीप
उस रविवार को, गालापागोस कंजर्वेंसी के रेंजर-शोधकर्ता लंबे समय के बाद इस ज्वालामुखी द्वीप पर शोध के लिए पहुँचे। चूँकि ज्वालामुखी सक्रिय था, इसलिए द्वीप पर स्थायी रूप से रहना संभव नहीं था। इसलिए, जब पृथ्वी की गहराई में शांति होती, तो शोधकर्ता द्वीप की मिट्टी का अन्वेषण करते। पाँच हज़ार फ़ीट उँचा यह ज्वालामुखी आखिरी बार जून, 2018 में सक्रिय हुआ था।
डॉ. वॉशिंगटन टापिआ और उनके साथ चार रेंजर-शोधकर्ता यह देखने की कोशिश कर रहे थे की आग बुझने के बाद क्या कोई नई हरियाली या जीवन सक्रिय हो गया है। डॉ. टापिआ गालापागोस विशाल कछुआ पुनःस्थापन पहल (जीटीआरआई) के निर्देशक थे।
जब शोधकर्ता खोजबीन कर रहे थे, तो उन्होंने कछुए के मल जैसी कोई चीज़ देखी। द्वीप पर एक सदी से कोई कछुआ नहीं था, तो यह मल कहाँ से आया? या लावा के ये ढेर मल जैसे लग रहे थे? 30 साल तक कछुओं पर अध्ययन करने के बाद, डॉ. टापिआ और उनके सहयोगियों ने आस-पास देखा और मल के कई अवशेष पाए। आगे जाँच करने पर उन्हें भूसे के ढेर के नीचे एक अनजान जगह पर एक बिस्तर मिला।
कछुए के वज़न से वहाँ की मिट्टी थोड़ी बैठ गई थी। पता चला की यहाँ एक कछुआ रहता था, जिस पर पिछले 113 सालों से किसी का ध्यान नहीं गया था! टीम ने इधर-उधर देखा और आखिरकार जेफरी मालेंगा नाम के एक रेंजर ने कछुए को देख लिया! शोधकर्ताओं को कुछ देर के लिए अपनी आखों पर यकीन ही नहीं हुआ। वह कहाँ बैठेगा? कछुए की एक प्रजाति का सदस्य, जिसे एक सदी से विलुप्त माना जा रहा था, उसकी आँखों के ठीक सामने था। यह प्राकृतिक विज्ञान के इतिहास की एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना थी, जो सन 2019 में घटी थी।
डॉ. वॉशिंगटन टापिआ और 2019 में खोजी गई मादा फर्नांडीना कछुआ ‘फर्नांडा’
डॉ. वॉशिंगटन टापिआ और उनके साथ चार रेंजर-शोधकर्ता
डॉ. वॉशिंगटन टापिआ और उनके साथ रेंजर-शोधकर्ता : मिली हुई मादा फर्नांडीना कछुआ ‘फर्नांडा’ का नाप लेते हुए
फर्नांडा – मादा फर्नांडीना कछुआ जो 2019 में खोजी गई।
गालापागोस द्वीपसमूह को प्रकृति का जीवंत संग्रहालय माना जाता है। फर्नांडीना द्वीप पर इस कछुए की खोज ने एक बार फिर इस द्वीप को शोधकर्ताओं के ध्यान में ला दिया है। 642 वर्ग किलोमीटर के फर्नांडीना द्वीप को पहली बार ब्रिटिश समुद्री डाकू एम्ब्रोस काउली ने सन 1684 में देखा था। 17 वीं शताब्दी में स्पेनियों ने इस पर नियंत्रण कर लिया और स्पेन के राजा फर्नांडो के सम्मान में इस द्वीप का नाम रखा। भूवैज्ञानिक दृष्टि से, यह द्वीप गालापागोस के अन्य द्वीपों की तुलना में युवा है, क्योंकि इसकी आयु 1 करोड़ वर्ष से भी कम है। गालापागोस समूह ज्वालामुखियों से बना है। फर्नांडीना एकमात्र ऐसा ज्ञात द्वीप है, जहाँ सक्रिय ज्वालामुखी पाया जाता है। ज्वालामुखी के सक्रिय होने पर द्वीप का आकार भी बदल जाता है। यहाँ केवल कुछ ही प्रजातियाँ रहती है, जैसे बड़े घोड़े जैसे इगुआना, कुछ समुद्री पक्षी और गालापागोस पेंगुइन। क्या अन्य प्रजातियाँ इस प्रचंड लपटों के बीच जीवित रह सकती है?
गालापागोस द्वीप समूह विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित हुए है, क्योंकि प्रत्येक द्वीप पर पाए जाने वाले जीव स्थानीय पर्यावरण के लिए अद्वितीय हैं। उँची घास वाले द्वीपों पर रहने वाले कछुओं (या अन्य जीवों) की चोंच लंबी होती हैं, जबकि कुछ की चोंच बहुत छोटी होती हे, क्योंकि उन्हें नीचे भोजन मिलता था। लाखों वर्षों से अलग-अलग द्वीपों पर रहने के कारण, प्रत्येक द्वीप के कछुए जैविक रूप से दूसरे द्वीप के कछुओं से भिन्न थे। ज्वालामुखी सक्रिय होने के कारण, खोजकर्ता यहाँ स्थायी रूप से नहीं रह सकते, वे आते-जाते रहते है। यहाँ तक की डार्विन भी अपनी 1831 की यात्रा के दौरान इस द्वीप पर नहीं गए थे। डार्विन, समूह के केवल 8 द्वीपों का ही दौरा कर पाए थे। अब जबकि इस द्वीप पर एक कछुआ पाया गया है, संभावना है की वहाँ कछुओं की संख्या ज़्यादा हो। इस द्वीप का पहले 1964 और 2009 में हवाई सर्वेक्षण किया जा चुका है। जब शोधकर्ताओंने 2013 में इस द्वीप का दोबारा दौरा किया, तो कछुआ तो नहीं दिखा, लेकिन कुछ प्रतीकात्मक प्रमाण ज़रूर मिले। अब, जब कछुआ सचमुच मिल गया है, तो शोधकर्ताओं के प्रयास सफल हो गए है। ज्वालामुखी अभी कुछ समय तक शांत रहने की संभावना है, इसलिए एक दूसरे अभियान की योजना बनाई जा रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके की क्या पाए गए कछुए के कोई भाई-बहन है। हो सकता है की कोई एक मिल जाए…
इस प्रकार का कछुआ 200 साल तक जीवित रह सकता है। इस कछुए ने अपने बचपन में प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध का अनुभव किया है। हालाँकि इस प्रकार के कछुओं का आकार बहुत बड़ा नहीं होता, लेकिन कुछ विशालकाय कछुए पाए गए है। इनका वजन साढ़े चार सौ किलोग्राम तक पहुँच सकता है।
अगर फर्नांडीना पर पाया गया कछुआ फिर से गायब हो गया, तो उसे ढूँढना मुश्किल हो जाएगा। एक तो सो साल तक ही देखा गया था! इस समूह का सांता क्रूज़ द्वीप पर चार्ल्स डार्विन अनुसंधान (सीडीआरएस) केंद्र, शोध केंद्र है, जहाँ से इस कछुए को लाया गया है। अब इसे विशेष देखभाल की ज़रूरत है। क्योंकि यह ग्रह पर उस प्रजाति का एकमात्र सदस्य है।
इस बिच, इन कछुओं के डीएनए को आगे के अध्ययन के लिए भेज दिया गया है। यहाँ पाए जाने वाले सभी कछुओं का डीएनए संरक्षित किया जाता है, ताकि अगर वे अब विलुप्त भी हो जाएँ, तो उनके वैज्ञानिक प्रजनन के विकल्प पर विचार किया जा सके। पाया गया कछुआ नर नहीं बल्कि मादा है और इसके अन्य विवरणों की जाँच अभी जारी है। यह कछुआ लगभग सौ साल पुराना है, क्योंकि 1906 में आखरी नर कछुए की मौत के बाद से इस द्वीप पर कोई भी बच्चा कछुआ पैदा नहीं हुआ है। यह कछुआ उस समय यहीं रहा होगा। लेकिन चूँकि यह द्वीप दुर्गम है, इसलिए अब तक यह शोधकर्ताओं के ध्यान में नहीं आया है।
द्वीप पर सभी कछुओं पर लगातार नज़र रखी जाती है ताकि उन्हें कोई नुकसान न पहुँचे। ज़रूरत पड़ने पर उन्हें विशालकाय कछुआ प्रजनन केंद्र लाया जाता है और जब उनकी संख्या बढ़ जाती है, तो उन्हें वापस द्वीप पर घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस कछुए की खोज ने यह उम्मीद भी जगाई है की गालापागोस कछुओं (या अन्य प्रजातियों) को बचाना असंभव नहीं है। हालाँकि, यह भी सच है की जब एक ही प्रजाति होगी, तो उसका वंश आगे नहीं बढ़ पाएगा। इस द्वीप पर पाया गया कछुआ, आखिरकार, प्रकृति का एक चमत्कार ही है।
हालांकि, साक्ष्य बताते हैं की, फर्नांडीना द्वीप के जंगलों में अभी भी कुछ अन्य कछुए मौजूद हो सकते है।
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