प्रेरक कहानियाँ बच्चों को सुलाने से पहले का सबसे अच्छे तरीकों में से एक है। ये हमारे तनाव को दूर करने के सबसे अच्छे तरीके में से एक है। ये न सिर्फ़ आपको सुकून के पल देती है, बल्कि आपके जीवन में सार्थक बदलाव भी लाती है।
इन प्रेरक कहानियों से आपको अनमोल सबक मिलेंगे, जो जीवन की चुनौतियों का सामना करने में आपकी मदद कर सकती है। यहाँ, जीवन के कुछ ऐसे मार्मिक सबक दिए गए है, जो आपके दिल को छू लेंगे और आपकी आत्मा को प्रेरित करेंगे।
(1). रेगिस्तान
एक बार दो मित्र साथ-साथ एक रेगिस्तान में चले जा रहे थे। रास्ते में दोनों में कुछ तू-तू, मैं-मैं हो गई। बहसबाज़ी में बात इतनी बढ़ गई कि उनमें से एक मित्र ने दूसरे के गाल पर जोर से झापड़ पड़ा उसे दुःख तो बहुत हुआ, किंतु उसने कुछ नहीं कहा। वह झुका और उसने वहां पड़े बालू पर लिख दिया, ‘आज मेरे सबसे निकटतम मित्र ने मुझे झापड़ मारा।’
दोनों मित्र आगे चलते रहे और उन्हें एक छोटा-सा पानी का तालाब दिखा और उन दोनों ने पानी में उतरकर नहाने का निर्णय कर लिया। जिस मित्र को झापड़ पड़ा था, वह दलदल में फंस गया और डूबने लगा, किंतु उसने मित्र ने उसे बचा लिया। जब वह बच गया तो बाहर आकर उसने एक पत्थर पर लिखा, ‘आज मेरे निकटतम मित्र ने मेरी जान बचाई।’ जिस मित्र ने उसे झापड़ मारा था और फिर उसकी जान बचाई थी, से न रहा गया और उसने पूछा, ‘जब मैंने तुम्हें मारा था तो तुमने बालू में लिखा और जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो तुमने पत्थर पर लिखा, ऐसा क्यों?’
इस पर दूसरे मित्र ने उत्तर दिया, ‘जब कोई हमारा दिल दुखाए तो हमें उस अनुभव के बारे में बालू में लिखना चाहिए, क्योंकि उस चीज़ को भुला देना ही अच्छा है, क्षमा रुपी वायु शीघ्र ही उसे मिटा देगा। किंतु जब कोई हमारे साथ कुछ अच्छा करे, हम पर उपकार करे तो हमें उस अनुभव को पत्थर पर लिख देना चाहिए, जिससे कि कोई भी जल्दी उसको मिटा न सके।’
(2). पायथागोरस
पायथागोरस एक छड़ी का उपयोग करके रेत पर अपने पायथागोरस प्रमेय का प्रदर्शन करते हुए।
यूनान के एक घर में एक ग़रीब लड़का लकड़ियों का गटठर बहुत कलात्मक ढंग से बना रहा था। तभी वहां से तत्वज्ञानी ‘डिमोक्रिट्स’ गुज़रा और लड़के के इस कौशल को देखकर बड़ा प्रभावित हुआ। उसने लड़के से पूछा – ‘क्या तुम ऐसा फिर से गटठर बना सकते हो’, लड़के ने उत्तर दिया, जी अवश्य और उसने पुनः वैसा ही गटठर बना दिया। डिमोक्रिट्स उसकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए और उसे अपना शिष्य बना लिया। उसे शिक्षित, प्रशिक्षित किया। यह लड़का बड़ा होकर प्रसिद्ध गणितज्ञ ‘पायथागोरस’ कहलाया।
(3). अब आप क्या खाएंगे?

स्वामी विवेकानंदजी के जीवन की यह एक घटना है। भ्रमण करने एवं प्रवचनों के बाद स्वामी विवेकानंदजी अपने निवास स्थान पर आराम करने के लिए लौटे हुए थे। उन दिनों वे अमेरिका में ठहरे हुए थे और अपने ही हाथों से भोजन बनाते थे।
एक दिन वे भोजन करने की तैयारी कर ही रहे थे की कुछ बच्चे उनके पास आकर खड़े हो गए। उनके अच्छे व्यवहार के कारण बहुत बच्चे उनके पास आते थे। वे सभी बच्चे भूखे मालूम पड़ रहे थे। स्वामीजी ने अपना सारा भोजन बच्चों में बांट दिया। वहीं पर एक महिला बैठी ये सब देख रही थी। उसने बड़े आश्चर्य से पूछा, “आपने अपनी सारी रोटियां तो इन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?”
स्वामीजी मुस्कुराते हुए बोले, “रोटी तो मात्र पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। यदि इस पेट न सही तो उनके पेट में ही सही। आख़िर वे सब भगवान के अंश ही तो है। देने का आनंद, पाने के आनंद से बहुत बड़ा है।” अपने बारे में सोचने से पहले दूसरों के बारे में सोचना ज़्यादा आनंददायी होता है।
(4). न्याय के लिए…

फ़ादर जोनाथन अपनी धर्मनिष्ठा और उदारता के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार उनके घर से चांदी का एक क़ीमती फूलदान ग़ायब हो गया। उनकी पत्नी कैरोलिन ने इसकी शिकायत करते हुए अपनी नौकरानी सामंथा पर शक जताया। फ़ादर जोनाथन ने सुनकर अनसुना कर दिया। पत्नी ने इस मामले को धर्म न्यायालय में ले जाने को कहा, फ़ादर जोनाथन धर्म न्यायालय में ले जाने के पक्ष में नहीं थे, पर पत्नी के दबाव के कारण उन्होंने अपना चोंगा उठाया और चर्च को जाने लगे। पत्नी ने कहा, “आप रहने दीजिए, मैं देख लूंगी !”
फ़ादर जोनाथन ने कहा, “माना कि तुम्हें हर चीज़ की जानकारी है और तुम वहां ढंग से वाद-विवाद भी कर लोगी, पर सामंथा तो अनपढ़ है, वे संभव से भी अति सरल अव्यावहारिक है, अतः में उसका पक्ष वहां रखूंगा। यदि वह दोषी है तो उसे दंड मिले, पर निर्दोष हुई तो मैं उसे छुड़ाने में कोई क़सर नहीं छोडूंगा।”
फ़ादर जोनाथन के इस कथन को सुनकर कैरोलिन को भी लगा कि सामंथा निर्दोष हो सकती है और केवल शंका के आधार पर उसे अपराधी मान लेना उचित नहीं है और उसने धर्म न्यायालय जाने का विचार बदल दिया।
(5). क़ीमत
एक व्यक्ति ने भगवान बुद्ध से पूछा, “जीवन का मूल्य क्या है?” बुद्ध ने उसे एक चमकता पत्थर दिया और कहा, “इसका मूल्य पता करके आ, लेकिन ध्यान रखना, इसको बेचना नहीं है।
वह आदमी बाज़ार में एक संतरे वाले के पास गया और उसे पत्थर दिखते हुए उसकी क़ीमत पूछी। संतरे वाला चमकीले पत्थर को देखकर बोला, “12 संतरे ले जा और यह मुझे दे दे।” आगे एक सब्जी वाले ने उस पत्थर की क़ीमत एक बोरी आलू लगाई। आगे एक सब्जी वाले ने उस पत्थर की क़ीमत एक बोरी आलू लगाई। इसके बाद वह एक सोना बेचने वाले के पास गया। उसे पत्थर दिखाया तो उसने झट कहा, “50 लाख में मुझे बेच दे।” उसने मना कर दिया तो सुनार बोला, “2 करोड़ में दे दे या बता इसकी क़ीमत, जो मांगेगा वह दूंगा तुझे।” उस आदमी ने सुनार से कहा, “मेरे गुरु ने इसे बेचने से मना किया है।”
आगे हीरे बेचने वाले एक जौहरी के पास गया। जौहरी ने जब उस बेशक़ीमती रुबी को देखा, तो पहले उसने रुबी के पास एक लाल कपड़ा बिछाया फिर, उस बेशक़ीमती रुबी की परिक्रमा लगाई, माथा टेका।
फिर जौहरी बोला, “कहां से लाया है ये बेशक़ीमती रुबी? सारी कायनात, सारी दुनिया को बेचकर भी इसकी क़ीमत नहीं लगाई जा सकती।” वह आदमी हैरान-परेशान सीधे बुद्ध के पास आया। उन्होंने पूरी कहानी सुनाई और बोला, “अब बताओ भगवान, मानवीय जीवन का मूल्य क्या है?”
बुद्ध बोले, “संतरे वाले ने इस पत्थर की क़ीमत 12 संतरे बताई, सब्जी वाले ने 1 बोरी आलू, सुनार ने 2 करोड़ और जौहरी ने इसे ‘बेशक़ीमती’ माना। ठीक यही स्थिति तुम्हारे जीवन की भी है। तू बेशक हीरा है, लेकिन ध्यान रखना कि सामने वाला तेरी क़ीमत अपनी क्षमता, अपनी जानकारी और अपनी समझ से ही लगाएगा। जीवन का मूल्य समझ आने के बाद उसने महात्मा बुद्ध को प्रणाम किया और चुपचाप वहां से चल दिया।
(6). प्रधानमंत्री पद मुझे नहीं चाहिए

चीन के महान दार्शनिक च्युआंग जू एक दिन नदी किनारे अपूर्व मस्ती में बैठे थे। तभी वहां से राजा, दरबारियों के साथ गुज़रे। उन्होंने च्युआंग जू को देखा और उसने बातचीत की। राजा उनके ज्ञान और विद्वता से बहुत प्रभावित हुए। महल पहुंचते ही राजा ने दूत भेज कर उनको निमंत्रण भिजवाया। च्युआंग जू राजमहल पहुंचे तो राजा ने उनका स्वागत करते हुए कहा, “मैं आपके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हूं। मुझे विश्वास है कि आप इस राज्य के लिए बड़े महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं, इसलिए मैं आपको इस राज्य के प्रधानमंत्री का पद देना चाहता हूं।”
च्युआंग जू दार्शनिक राजा की बात बड़े मनोयोग से सुन रहे थे। साथ ही राजा के कक्ष में इधर-उधर नज़र भी दौड़ा रहे थे। अचानक ही दार्शनिक की दॄष्टि राजा के कक्ष में मृत कछुए के कलेवर पर प पड़ी। दार्शनिक ने राजा से बड़ी विनम्रता से कहा, “मैं आपके प्रस्ताव के संबंध में हां या ना कहने से पहले आपसे कुछ पूछना चाहता हूं।” राजा ने प्रसन्नचित्त होकर कहा, “पूछिए।” दार्शनिक ने कहा, “आपके इस कक्ष में जो यह कछुए का कलेवर पड़ा है, अगर इसमें फिर से प्राणों का संचार हो जाए तो क्या यह कछुआ आपके इस सुसज्जित महल में रहना पसंद करेगा?” राजा ने कहा, “नहीं। यह तो पानी का जीव है, पानी में ही रहना चाहेगा।”
मुस्कुराकर च्युआंग जू ने कहा, “तो क्या मैं इस कछुए से भी ज़्यादा मूर्ख हूं, जो अपना आनंदपूर्ण, आज़ाद जीवन छोड़कर यहां आप के महल में परतंत्रता और ज़िम्मेदारियों के कांटे का ताज पहनकर जीने को तैयार हो जाऊंगा? बंधन में बांधने वाला यह प्रधानमंत्री पद मुझे नहीं चाहिए।” दार्शनिक के विचार सुनकर राजा ने दार्शनिक का अभिवादन करते हुए कहा, “आप विचारों से ही नहीं, आचरण से भी पूर्ण दार्शनिक है।”
(7). सुंदरता को जानो !
संगीतकार गार्ल्फ़्रड के पास उसकी एक शिष्या अपने मन की व्यथा कहने गई कि वह कुरुप होने के कारण संगीत मंच पर जाते ही यह सोचने लगती है कि दूसरी आकर्षक लड़कियों की तुलना में उसे दर्शक नापसंद करेंगे और हंसी उड़ाएंगे। यह विचार आते ही वह सकपका जाती है और गाने की जो तैयारी घर से करके ले जाती है, वह सब गड़बड़ा जाता है। घर पर वह मधुर गाती है, इतना मधुर जिसकी हर कोई प्रशंसा करे, पर मंच पर जाते ही न जाने उसे क्या हो जाता है कि हक्का-बक्का होकर वह अपनी सारी प्रतिभा गंवा बैठती है।
गार्ल्फ़्रड ने उसे एक बड़े शीशे के सामने खड़े होकर अपनी छवि देखते हुए गाने की सलाह दी और कहा, “वस्तुतः तुम कुरुप नहीं हो जैसा कि तुम्हें लगता है, बल्कि जब तुम भाव-विभोर होकर गाती हो, तब तुम्हारा आकर्षण बहुत बढ़ जाता है। तुम कुरुपता के बारे में मत सोचती रहो। स्वर की मधुरता और भाव-विभोर होने की मुख मुद्रा से उत्पन्न आकर्षण पर विचार करो। अपना आत्म-विश्वास जगाओ।
शिष्या ने यही किया और फ्रांस की प्रख्यात गायिका ‘मेरी बुडनाल्ड’ नाम से विख्यात हुई।
(8). धन्यवाद
दो राहगीर एक पहाड़ी के निकट झरने पर मिले। एक घोड़े पर सवार था और दूसरा पीठ पर सामान उठाए, पैदल ही अपने गांव जा रहा था। वे दोनों झरने के निकट सुस्ताने के लिए रुके। दोनों अजनबी थे,फिर भी एक-दूसरे से बातें करने लगे। “भला बताओ तो कि मैंने क्या सोचा और क्या फैसला किया है? अगर सही-सही बता दोगे तो यह घोड़ा तुम्हें दे दूंगा।” घुड़सवार ने दूसरे राहगीर से पूछा।
पैदल चलने वाले राहगीर ने जवाब दिया, “तुमने अपनी बीवी को तलाक देकर अपना गांव छोड़ने का फैसला किया है।” “घोड़ा ले लो! यह तुम्हारा हुआ।” “सचमुच… क्या तुमने यही फैसला किया था।” – दूसरे राहगीर ने पूछा। “नहीं!” घुड़सवार ने जवाब दिया। “फिर तुम अपना घोड़ा क्यों दे रहे हो?” “तुमने मुझे खूब बात सुझाई है। यह तुम्हारे सुझाव की कीमत है। तुम्हें बहुत-बहुत धन्यवाद।” उसने घोड़े की बाग उसे थमाते हुए जवाब दिया।
(9). बूढ़े की लाठी

एक दिन की बात है – किसी गांव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। एक दिन जब वह घर जा रहा था, तभी उसकी लाठी टूट गई। लचर दॄष्टि से उसने चारों ओर देखा, लेकिन आस-पास उसे कोई नज़र नहीं आया। निराश होकर वह पेड़ की छाया टेल बैठ गया और आने-जाने वालों से सहायता की पुकार करने लगा।
वह बहुत देर तक रास्ते पर बैठा रहा, लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। अंत में हार कर वह पेड़ के नीचे ही सो गया। हल्की बूंदाबांदी से उसकी आँख खुली। उसने देखा कि वर्षा से बचने के लिए किसी ने उस पर कोट डाल दिया है।
बूढ़ा व्यक्ति कोट को हैरानी से देख रहा था। मगर पास ही एक लड़के को देख उसने पूछा – “बेटा, क्या यह कोट तुमने ओढ़ाया है?” लड़का उसकी टूटी हुई लाठी को जोड़ने में लगा था। उसने स्वीकृति में सिर हिलाया।
“तुमने यह कोट मुझे क्यों ओढ़ाया। तुम खुद वर्षा से भीग रहे हो और मुझे अपना कोट ओढ़ा दिया?” वह बोला।
“तो क्या हुआ बाबा! तुम बुजुर्ग और बूढ़े हो। तुम भीग गए तो बीमार पड़ जाओगे। मेरे दादाजी भी अक्सर पानी में भीगकर बहुत बीमार पड़ जाते थे।”
बालक की बातें सुनकर बूढ़े व्यक्ति की आँखे भर आई। उसने आगे बढ़कर उस नन्हें फरिश्ते को गले से लगा लिया और उसके कंधे का सहारा लेकर उठ खड़ा हुआ और लड़के के साथ चल पड़ा।
(10). मातृभाषा
रोहित का नाम एक कॉन्वेंट स्कूल में लिखवाया गया। वह पहले दिन स्कूल गया और जब वापस आया तो खुश नहीं था। यह उसके चेहरे से साफ-साफ झलक रहा था। माँ ने उससे दुःख और उदासी का कारण पूछा तो वह सिसकियां और हिचकियां भरने लगा। माँ द्वारा बार-बार पूछे जाने पर वह रोते हुए बोला, “माँ, मैं उस स्कूल में नहीं जाऊंगा।”
माँ घबरा गई। उसके मन में अनेक शंकाएँ हिलोरें लेने लगी। वह व्याकुल-सी हो गई और मन-ही-मन सोचने लगी –
आखिर मेरा बेटा उस स्कूल में क्यों नहीं जाना चाहता? रोहित ने स्कूल न जाने की जो वजह बताई, वह चौंकाने वाली थी। वह फफकते हुए बोला, “माँ, वहां के लोग मेरी भाषा को अपमानित की दॄष्टि से देखते है और कहते है कि इस स्कूल में पढ़ना है तो इंग्लिश में ही बोलना है। ऐसा क्यों माँ? मैं अपनी मातृभाषा में क्यों नहीं बोल सकता। बोलो माँ!” माँ अवाक् थी।
इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article द्वारा दी गयी सीख आपके जीवन में उपयोगी साबित होगी। अगर आपको ये Article उपयोगी हुआ हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरूर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !






