वह बांसुरी वाला
एक बांसुरी और उसकी धुन के पीछे चलते 130 बच्चे, जो जा रहे हैं किसी देश, पर उन्हें पता नहीं कहां… कोई रोक न सका, सब मौन निहारते रहे उन्हें गुजरता देख। संसार में सभी जगह बच्चों की पुस्तकों में यह कहानी मिलती है।
एक गांव हेमलिन के बाशिंदे बहुत दुःखी थे। वे शैतान चूहों की उस फौज से परेशान थे, जिसने उनके घरों में डेरा डाल रखा था। बिल्लियां भी उनके आतंक से भाग खड़ी हुई थीं। किसी भी तरह से खदेड़े नहीं जा सके थे।
एक दिन उस गांव में एक अजनबी आया, जो रंगीन कपड़े पहने था। हेमलिनवासियों की समस्या सुनकर उसने कहा कि वह चूहों को गांव से बाहर निकाल देगा पर इसके लिए उन्हें पैसे चुकाने होंगे। दुःखी गांव वाले कोई भी कीमत अदा करने को तैयार थे। ग्राम-प्रधान ने वादा किया कि चूहों से मुक्ति मिल जाने पर अजनबी को मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा।
आश्वस्त होने के बाद अजनबी ने अपनी पोशाक के भीतर रखी एक बांसुरी निकाली और बजाने लगा। थोड़ी देर बाद वह गांव के बाहर बहने वाली नदी की ओर चल दिया। यह देखकर गांव वालों के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा कि सारे चूहे मंत्रमुग्ध होकर अजनबी के पीछे चल दिए। अजनबी नदी के किनारे पर रुक गया और चूहे पानी में कूद-कूद कर डूब गए।
कुछ गांव वालों ने यह द्रश्य देखा और आकर ग्राम-प्रधान को यह बात बताई। तब तक अजनबी भी लौट आया और उसने अपना इनाम मांगा। प्रधान ने सोचा कि चूहे तो मर ही चुके हैं और अब लौटकर आ नहीं सकते, अतः उसने इनाम के नाम पर कुछ सिक्के अजनबी के हाथ पर रख दिए और उसे टरकाना चाहा। उसने देखा पूरा गांव प्रधान के पीछे था। अजनबी ने सिक्के नहीं लिए और क्रोध में आकर बांसुरी बजाने लगा और बजाते-बजाते एक अन्य गांव की ओर चल दिया। एक बार फिर लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि गांव के सभी बच्चे उसके पीछे चल दिए। गांव वाले इस घटना से इतने जड़ीभूत हो गए कि वे अपने बच्चों को रोकना तक भूल गए। जब उन्हें होश आया तो बच्चे जा चुके थे। वे फिर लौटकर कभी नहीं आए।
धीरे-धीरे यह लोक कथा पूरे यूरोप में प्रचलित हो गई और दादिया-नानिया और माताए सोते समय बच्चों को यह कहानी सुनाने लगीं। लोक कथाओं का अंत बहुधा सुखद होता है परंतु इस कथा में कृतघ्नता से उत्पन्न भयानक बदले की प्रवृत्ति के कारण दुःखद अंत है। परिकथा लेखकों, कवियों और लोक कथाकारों ने इस कहानी में नए रंग भर दिए, जिससे यह कहानी पूरे विश्वभर में प्रचलित हो गई।
सत्य की खोज
फोटो साभार : लियोपोल्ड रोहरर
हैमेलन – न्यू टाउन हॉल के पास ‘पाइप पाइपर फाउंटेन’, 2015
जब यह पाया गया कि कथा में वर्णित घटनास्थल ‘हेमलिन’ (जर्मन में इसे, ‘हैमेलन’)’ भी लिखा जाता है। वास्तव में जर्मनी का एक गांव है, तो इतिहासकारों और अन्वेषकों ने इस कहानी में सत्य के कुछ अंश की खोज शुरु की। ये गांव लोअर सैक्सोनी में वेसर नदी के तट पर स्थित है। यह गांव ‘पाइप पाइपर’ (बांसुरी वाला) की लोक कथा से जुड़े होने के कारण प्रसिद्ध है।
खोज हेमलिन से ही प्रारंभ की गई। परंपरागत मौखिक साक्ष्यों से ज्ञात हुआ कि हेमलिन के चर्च की खिड़की के कांच पर एक बांसुरीवादक की छाया अंकित थी और उस पर लिखा था ‘वर्ष 1286 की 26 जून को हेमलिन में रंग-बिरंगे कपड़े पहने एक बांसुरीवादक आया था और 130 बच्चों को लेकर चला गया।’ कांच पर अंकित यह उध्दरण शीशे से तो मिट चुका था पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी गांववालों की स्मृति में बना रहा।
मौखिक साक्ष्य अन्वेषण का आधार हो सकता है, परंतु ऐतिहासिक सत्य नहीं। अतः दस्तावेजों की छानबीन शुरु हो गई। पाया गया कि हेमलिन गांव के अभिलेख 1351 ई. से ही रखे जाने प्रारंभ हुए थे। इनमें जो घोषणाएं, सूचनाएं आदि अंकित थीं, उनकी तिथि लिखते समय यह लिख दिया जाता था – ‘उन वर्षों के बाद जब हमारे बच्चे हमें छोड़कर चले गए।’ यह कुछ उसी तर्ज पर था जैसे किसी घटना का काल निर्धारण के लिए ‘ईसा पूर्व’ या ‘ईसवी सन’ लिखने की प्रथा अब सर्वस्वीकृत हो चुकी है।

फोटो साभार : गूगल
हैमेलन – पौराणिक ‘पाइप पाइपर’ (बांसुरी वाला) का गांव
हैमेलन में मध्य मई से मध्य सितंबर तक एक कार्यक्रम देखने लायक होता है : हर रविवार दोपहर को ऐतिहासिक वेशभूषा पहने लगभग 80 कलाकारों द्वारा ‘पाइप पाइपर’ (बांसुरी वाला) की लोक कथा को एक खुले मंच पर प्रस्तुत किया जाता है।
बांसुरीवादक और चूहे
1450 के एक ग्रामीण अभिलेख में यह लिखा पाया गया कि एक युवक चांदी की बांसुरी बजाते हुए एक गांव में घूमता था। मध्ययुग में बांसुरीवादकों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था। उनके कपड़े बहुरंगी होते थे, जो उनके निचले तबके से सबंद्ध होने का प्रमाण थे। उस समय ऐसे ही कपड़े दरबारी मसखरों और भांडों द्वारा पहने जाते थे। इनके घुमंतू और उपद्रवी प्रकृति का होने के कारण आमजन इनके संपर्क में आने से बचते थे। 1476 में बुर्जवर्ग नामक स्थान पर हुए विद्रोह का नेतृत्व एक बांसुरीवादक ने किया था, यह तथ्य इतिहास सम्मत है।
16वीं शताब्दी तक चूहे इस कहानी का पात्र नहीं थे। इसी समय यूरोप में प्लेग फैला। प्लेग की महामारी चूहों के कारण फैली। अतः बांसुरीवादक का संबंध चूहों से जोड़ दिया गया। इस लोक कथा का प्रथम प्रकाशन 1556 में हुआ था, जिसमें बांसुरीवादक को चूहे पकड़ने वाला बताया गया। लेखक ग्रिम ने चूहों के निष्कासन को बच्चों के भाग्य के साथ जोड़ दिया।
बच्चे कहां गए
बच्चों के गुम हो जाने के संबंध में इतिहासकार एकमत नहीं हैं। कुछ इतिहासकारों का मत है कि हेमलिन गांव में प्लेग की बीमारी फैली थी, इस कारण वे बच्चे गांव से हटाए गए थे। अन्य विद्वानों का कहना है कि 1212 में संपन्न ‘बच्चों का धर्मयुद्ध’ में ये बच्चे एक पवित्र देश में ले जाए गए थे। उनमें से कई बच्चे गुलाम के रुप में बेच दिए गए और कई मर गए। परंतु यह कहानी इसलिए विश्वसनीय नहीं मानी जाती कि यह सिर्फ हेमलिन से ही क्यों जुड़ी है!
एक इतिहासकार ने एक नया सिद्धांत पेश किया है कि प्लेग फैलने के दौरान हेमलिन के अधिकांश लोगों को इस बात के लिए राजी कर लिया गया कि वे निकटस्थ नगर ब्रेन्डेनवर्ग के समीप जाकर आबाद हों। यह धारणा इस बात से पुष्ट होती है कि ब्रेन्डेनवर्ग में आज भी ऐसे परिवार हैं, जिनके कुलनाम वही हैं जो हेमलिन के निवासियों के थे। 13वीं शताब्दी में जर्मनी के नगरवासी ‘कस्बे के छोरे’ कहलाते थे। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सिर्फ बच्चे नहीं, पूरा एक समुदाय गांव से उखड़ कर शहर चला गया। ब्रेन्डेनवर्ग में भी एक किंवदंती प्रचलित हो गई कि बांसुरीवादक की तरह वहां भी पूर्वकाल में एक अजनबी सारंगीवाला आया था, जिसके मधुर संगीत ने वहां के बच्चों को मोहित कर लिया।
समझौता गमों से
26 जून, 1286 को 130 बच्चे गायब होने की दुःखद तिथि लोगों को भुलाए नहीं भूली। यह कोई भयानक घटना थी या कोई षड्यंत्र था? इसका स्पष्ट उत्तर इतिहासकारों के पास नहीं है। हेमलिन के लोग पीढ़ियों तक यह त्रासद घटना मन में संजोए रहे। उनकी द्रष्टि में बच्चों के लापता होने का दोषी वही बांसुरीवादक था, परंतु समय रुपी औषधि धीरे-धीरे सभी घावों को भर देती है। लोगों ने गमों से समझौता कर लिया और इस कहानी में आनंद ढूंढ़ लिया और कदाचित उस दुष्ट बांसुरीवादक को भी क्षमा कर दिया। इसका प्रमाण है कि हेमलिन में आज होटलों के नाम ‘बांसुरीवादक’ के नाम पर रखे जाने लगे हैं।
हमारे देश में लोक कथाओं का भंडार है। पता नहीं उनमें कितने खट्टे-मीठे यथार्थ छुपे है। फिलहाल, उनके पीछे छिपे ऐतिहासिक सत्य अन्वेषकों, इतिहासकारों की प्रतीक्षा में चुप सोए पड़े हैं।
इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article की ‘बांसुरी वाले की लोकप्रिय कहानी’ पढ़कर आपको अपने बचपन की याद आ गयी होगी। आपको ये Article की कहानी पसंद आई हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !


