एक ज़माने की बात है। जापान के हमामात्सु के एक छोटे से गाँव में, ‘सोइचिरो होंडा’ नाम का एक लड़का रहता था। उसका परिवार गरीब था। उसके पिता एक लोहार थे, जो साइकिलों की मरम्मत भी करते थे, और उसकी माँ कपड़ा बुनती थी।
जब भी कोई टूटी हुई साइकिल या गाड़ी उनके आँगन में आती, तो वह लड़का सब कुछ गिरा देता, उस पर चढ़ जाता और देखता रहता। उसे धातु की आवाज़ और इंजन के तेल की गंध बहुत पसंद थी।
स्कूल में, जब शिक्षक पाठ समझाने में व्यस्त रहते थे, कभी-कभी खिड़की के बाहर से किसी कार के इंजन की आवाज़ सुनाई देती थी और जब पूरी कक्षा बोर्ड पर नज़र गड़ाए रहती थी, तब सोइचिरो का ध्यान इंजन की आवाज़ पर टिका रहता था।
वह कभी कक्षा में अव्वल नहीं आता था, और न ही उसने किसी शानदार डिप्लोमा का सपना देखा था। बस एक चीज़, जिसे वह छूना चाहता था. . . वह था इंजन।
गाँव के लड़के से उत्साही मैकेनिक तक
15 साल की उम्र में, सोइचिरो एक कार रिपेयर गैराज में काम करने के लिए अपना गाँव छोड़कर टोक्यो चला गया।
वह दिन में काम करता और रात में देखता, रिंच के हर घुमाव और हर टूटे हुए इंजन से सीखता। वह कम सोता, जल्दी खाता और रिपेयर शॉप को अपना विश्वविद्यालय बना लेता।
सालों बाद, होंडा अपने गृहनगर लौट आया। अब वह गंदे हाथों से खेलने वाला बच्चा नहीं, बल्कि एक कुशल मैकेनिक बन चुका था।
उसने अपनी खुद की वर्कशॉप खोली, और उसके सीने में एक बड़ा सपना था : “मैं सिर्फ़ दूसरों की गाड़ियां ठीक नहीं करना चाहता। मैं अपने खुद के पुर्ज़े और इंजन बनाना चाहता हूँ।”
उसने कारों के लिए ‘पिस्टन रिंग’ बनाने वाली एक छोटी सी कंपनी शुरु की, और ‘टोयोटा’ के लिए एक सप्लायर बनने का सपना देखा।
3,000 पिस्टन रिंग और पहला ज़ोरदार थप्पड़
फिर वो बड़ा दिन आया। पिस्टन रिंगों का पहला बैच टोयोटा को भेजा गया। वह बेसब्री से उनके जवाब का इंतज़ार कर रहा था।
नतीजा : लगभग पूरी तरह से अस्वीकृति। लगभग 3,000 पिस्टन रिंगों में से, केवल कुछ दर्जन ही मानक पर खरी उतरीं।
कई लोगों के लिए, यही वह पल होता, जब वे आह भरते और कहते : “शायद मैं उतना प्रतिभाशाली नहीं हूँ।”
लेकिन, होंडा निराश नहीं हुआ। वह बड़े कारखानों में गया और देखा कि वे गुणवत्ता को कैसे नियंत्रित करते हैं। उसने एक तकनीकी स्कूल में पढ़ाई की, फिर अपनी वर्कशॉप में वापस गया और सब कुछ बिल्कुल नए सिरे से डिज़ाइन किया।
सालों बाद, टोयोटा ने आखिरकार हामी भर दी। होंडा की छोटी सी कंपनी आधिकारिक तौर पर पिस्टन सप्लायर बन गई।
वह पहली असफलता बस एक बहुत ही खराब प्रयास साबित हुआ – लेकिन उसके कारण उसने एक अच्छा खाका तैयार करना सीख लिया।
युद्ध, बम, भूकंप – सब कुछ तहस-नहस हो गया
फिर युद्ध छिड़ गया।
होंडा की फैक्ट्री पर सरकार और बड़ी कंपनियों का कब्ज़ा हो गया और उन पर नियंत्रण हो गया। धीरे-धीरे, उसने अपनी बनाई कंपनी पर से अपना नियंत्रण खो दिया।
फिर बम गिरे। उसका एक प्लांट नष्ट हो गया। जो बचा था, वह पूरी तरह से ठीक होने से पहले ही एक ज़ोरदार भूकंप की चपेट में आ गया, जिसने बची हुई फैक्ट्री को नष्ट कर दिया।
अगर कोई और होता, तो शायद आसमान की तरफ देखकर पूछता : “मैं इतना बदकिस्मत क्यों हूँ?”
होंडा ने एक अलग जवाब चुना। उसने कंपनी से जो कुछ भी उपयोग करने लायक बचा था, उसे टोयोटा को बेच दिया। थोड़ी सी रकम ले ली और चुपचाप खुद से कहा : “ठीक है। मैं फिर से शुरुआत करुँगा।”
साइकिलों पर कबाड़ के इंजन लगाना – एक महत्वपूर्ण मोड़
होंडा ए-टाइप सहायक साइकिल इंजन
युद्ध के बाद, जापान पूरी तरह थक चुका था।
लोगों को आना-जाना था, काम पर जाना था, बाज़ार जाना था, ज़िंदा रहना था – लेकिन ईंधन की कमी थी। गाड़ियां महँगी थीं और हर कोई गरीब था। सड़कों पर ज़्यादातर साइकिलें थीं. . . और थके हुए चेहरे।
युद्ध के कबाड़ के ढेर के बीच, होंडा ने बेकार पड़े सैन्य रेडियो जनरेटरों के कुछ छोटे इंजन देखे। उसके दिमाग में एक साधारण सा विचार आया : “क्या होगा अगर, मैं इस इंजन को साइकिल पर लगा दूँ?”
वह और कुछ मज़दूर काम पर लग गए। उन्होंने साइकिल को काटा, वेल्ड किया, लगाया, एडजस्ट किया और टेस्ट किया। एक छोटा इंजन साइकिल के फ्रेम पर गरजने लगा।
मोटर चालित साइकिल का जन्म हुआ : बदसूरत, शोरगुल वाली और धूल भरी. . . लेकिन इसने लोगों को कम मेहनत में, ज़्यादा दूर, तेजी से सफ़र करने में मदद की – और सबसे ज़रुरी बात : यह सस्ती थी।
साइकिल को खरीदने के लिए लोगों की भीड़ होने लगी। छोटी सी वर्कशॉप उतनी तेज़ी से उत्पादन नहीं कर पा रही थी।
वहाँ से, होंडा ने एक छोटा तकनीकी अनुसंधान संस्थान स्थापित किया और 1948 में, आधिकारिक तौर पर ‘होंडा मोटर’ की स्थापना की। छोटी, सस्ती और टिकाऊ मोटरसाइकिलें पूरे जापान और फिर पूरी दुनिया में दिखाई देने लगीं।
इंजन से प्यार करने वाला इंसान और बिज़नेस से प्यार करने वाला दोस्त
होंडा तकनीकी रुप से प्रतिभाशाली तो थे, लेकिन उन्हें आंकड़ों, कागजी कार्यवाई या दीर्घकालिक रणनीति में महारत हासिल नहीं थी। उन्हें मीटिंग रुम में बैठने की बजाय, तेज़ रफ़्तार वाले इंजनों के बीच खड़े रहना ज़्यादा पसंद था।
सौभाग्य से, उनकी मुलाक़ात ‘टेको फुजिसावा’ से हुई – एक ऐसे व्यक्ति जो बाज़ार, वित्त और एक छोटी कंपनी को वैश्विक स्तर पर ले जाने की कला को अच्छी तरह समझते थे। उन्होंने हाथ मिलाया और साझेदार बन गए।
होंडा ने गुणवत्ता, उत्पाद और इंजीनियरिंग का काम संभाला। फुजिसावा ने रणनीति, धन और बाज़ार विस्तार का काम संभाला। इस जोड़ी से, एक छोटा सा ब्रांड, होंडा साम्राज्य में बदल गया – मोटरसाइकिल, कार, रेसिंग और बहुत कुछ।
लेकिन, अपने जीवन के अंतिम समय में भी, लोग सोइचिरो होंडा को सबसे पहले एक सच्चे “मैकेनिक” के रुप में याद करते थे : एक ऐसा व्यक्ति, जो हर छोटी-छोटी बात का ध्यान रखता था। एक हल्के से ढीले बोल्ट या इंजन की उस आवाज़ पर भी गुस्सा होने को तैयार रहता था, जो अभी तक “ठीक” नहीं हुई थी।
सोइचिरो होंडा के जीवन से सीख
1. असफलता आपको ख़त्म नहीं करती। असफलता के बाद आपका द्रष्टिकोण ही तय करता है, कि आप क्या बनेंगे।
2.आपको डिप्लोमा से शुरुआत करने की जरुरत नहीं है। आपको बस लगन और अंत तक सीखने की इच्छाशक्ति के साथ शुरुआत करनी होगी।
3. सही समय या अच्छे भाग्य का इंतज़ार करते मत बैठिए। देखिए कि समाज में क्या कमी है और आप उसे कैसे पूरा कर सकते हैं।
4. जानें कि आप किसमें अच्छे हैं और किसमें नहीं। फिर अपनी कमजोरियों को दूर करने के लिए सही लोगों को ढूँढ़िए।
5. अपने काम की हर छोटी-बड़ी बात का सम्मान कीजिए। “बहुत अच्छा” और “अच्छे” के बीच का फ़र्क छोटी-छोटी बातों में छिपा है।
6. अभी आप, “3,000 अस्वीकृत पिस्टन” या “बमों से तबाह हुई फैक्ट्री” के दौर में हो सकते हैं। लेकिन, जब तक आप हार नहीं मानते, आपकी कहानी. . . अभी अपने अंत तक नहीं पहुँची है।
कुछ विशिष्ट शब्दों के अर्थ :
मरम्मत : किसी टूटी-फूटी या बिगड़ी हुई वस्तु को सुधारना।
रिंच : नट, बोल्ट खोलने या ढीला करने का एक उपकरण।
पुर्ज़े : एक टुकड़ा या भाग। यह शब्द किसी वस्तु के एक भाग को संदर्भित करता है।
खाका : किसी वस्तु का ढाँचा, नक्शा या कच्ची रुपरेखा।
इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में दिग्गज मैकेनिक ‘सोइचिरो होंडा’ के जीवन की जो बात की गई है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। अगर आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !


