केएफसी का इतिहास KFC History

केएफसी की प्रेरणादायक कहानी the inspiring story of kfc in hindi

दुनियाभर में प्रसिद्ध और लोकप्रिय ब्रांड केएफसी (KFC) के बारे में हम सब जानते है। प्रस्तुत है : संघर्षों से सफलता तक : केएफसी(KFC) की प्रेरणादायक कहानी – केंटकी फ्राइड चिकन (केएफसी)

केएफसी(KFC) की प्रेरणादायक कहानी

जिस उम्र में ज़्यादातर लोग रिटायर होने के बारे में सोचते हैं, उस उम्र में ‘हारलैंड सैंडर्स’ एक पेट्रोल पंप की छोटी सी रसोई में, आटे और तेल से सने हुए, सड़क पर अनजान लोगों के लिए चिकन तल रहे थे।

उनके पास कोई आलीशान रेस्टोरेंट नहीं था, कोई बड़े निवेशक नहीं थे और न ही कोई सोशल मीडिया। बस सड़क के किनारे एक छोटी सी जगह, एक पुराना प्रेशर कुकर और जड़ी-बूटियों और मसालों का एक गुप्त मिश्रण, जिसे वे सालों से निखार रहे थे।

लोग पेट्रोल भरवाने के लिए रुकते थे… और चिकन के लिए ठहर जाते थे।

धीरे-धीरे बात फैलने लगी। ड्राइवर अपने दोस्तों को बताने लगे। परिवार वाले सिर्फ़ “उस पेट्रोल पंप के कुरकुरे चिकन” का स्वाद चखने के लिए रास्ते बदलने लगे। असफलताओं से भरे लंबे जीवन में पहली बार, सैंडर्स को लगा कि उन्हें कुछ सचमुच खास मिल गया है।

लेकिन, फिर विपत्ति आ गई।

एक नया राजमार्ग बन गया और गाड़ियाँ अब उनके पेट्रोल पंप के पास से नहीं गुजरती थीं। जगह नादार हो गई। 60 साल से अधिक उम्र में, उन्होंने लगभग सब कुछ खो दिया।

अधिकांश लोग हार मान लेते, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

सरकार से मिलने वाली छोटी मासिक सहायता और अटूट आशा से भरे दिल के साथ, हारलैंड सैंडर्स ने एक बार फिर कोशिश करने का फैसला किया। उन्होंने अपना सफेद सूट पहना, अपना प्रेशर कुकर और मसाला मिश्रण लिया और एक-एक रेस्तरां में घूमना शुरु कर दिया।

उनका प्रस्ताव सीधा-सादा था : “मैं आपके लिए यह चिकन पकाऊँगा। अगर आपके ग्राहकों को यह पसंद आता है, तो आप मुझे बेचे गए हर टुकड़े पर एक छोटा सा शुल्क देंगे।”

कई लोगों ने मना कर दिया। कुछ हँसे। कुछ ने तो इसे चखने से भी इनकार कर दिया।

लेकिन वह लगे रहे। उन्होंने कई रातें अपनी कार में बिताईं। उन्होंने छोटे-छोटे रसोई घरों में अपना चिकन दोबारा गर्म किया। उन्होंने सैकड़ों बार अपना प्रस्ताव दोहराया। उन्हें इतनी बार “ना” सुनने को मिला कि अधिकांश लोग यह मान लेते कि दुनिया सही है और वे गलत हैं।

आखिरकार, किसी ने “हाँ” कह दी।

फिर दूसरे ने। फिर तीसरे ने।

ये छोटे-छोटे ‘हाँ” के पल धीरे-धीरे एक ‘फ्रैंचाइज़ सिस्टम’ में बदल गए।

सफ़ेद दाढ़ी और काली टाई पहने गैस स्टेशन का रसोइआ “कर्नल सैंडर्स” बन गया। चिकन का छोटा सा विचार दुनिया भर में मशहूर ब्रांड बन गया : केंटकी फ्राइड चिकन – ‘केएफसी।’

वह जवान नहीं था। वह अमीर नहीं था। वह “परिपूर्ण” नहीं था। वह बस एक ऐसा व्यक्ति था, जिसने एक बंद रास्ते को अपनी कहानी का अंत नहीं बनने दिया।

केएफसी (KFC) की कहानी से सीखें :

1. दोबारा शुरुआत करने के लिए आपकी उम्र कभी भी “बहुत ज़्यादा” नहीं होती।

कर्नल सैंडर्स ने 65 साल की उम्र में केएफसी (KFC) की शुरुआत की।

2. असफलता एक प्रतिक्रिया है, अंतिम निर्णय नहीं।

पेट्रोल स्टेशन खोने से उन्हें एक बड़ा अवसर तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा।

3. आदर्श परिस्थितियों का इंतज़ार न करें।

आदर्श, यानिकी सही परिस्थितियों का इंतज़ार करने के बजाय, वर्तमान क्षण को “सही बनाएं।” अपूर्णता को स्वीकार करें और अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए निरंतर प्रयास करते रहें।

उन्होंने अपने पास जो कुछ था, उसी से शुरुआत की : एक रेसिपी, एक प्रेशर कुकर, एक कार और हिम्मत।

4. अस्वीकृति रास्ते का हिस्सा है।

आज आपको जो “नहीं” सुनने को मिलता है, वह आपके मूल्य को परिभाषित नहीं करता – यह केवल आपको गलत दरवाजों से दूर रखता है।

5. आपका विचार जटिल होना ज़रुरी नहीं है।

एक सरल, बेहतरीन उत्पाद – फ्राइड चिकन ने उनकी पूरी ज़िंदगी बदल दी।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ कि “केएफसी (KFC)” की कहानी से आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। अगर आप इस Article से प्रेरित हुए हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

सफलता का पीछा मत करो Don’t Chase Success

तितलियों का पीछा मत करो don't chase butterflies

तितलियों का पीछा मत करो Don’t Chase Butterflies

एक छोटे लड़के ने अपने दादाजी से पूछा,

“दादाजी, मैं एक सितारा बनना चाहता हूँ, मैं फिल्मों में काम करना चाहता हूँ। जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, तो मैं दुनिया देखना चाहता हूँ, शानदार गाड़ियाँ चलाना चाहता हूँ और काँच के घर में रहना चाहता हूँ। हाँ, मैं सचमुच सफल और महान बनना चाहता हूँ। तो मुझे बताइए, मैं अपने सभी लक्ष्यों का पीछा कैसे करु और उन्हें जल्दी कैसे पाउँ?”

दादाजी एक पल के लिए रुके, पीछे मुड़े और फिर उन्होंने एक फूल पर नाचती हुई एक विशाल और बहुत सुंदर तितली को देखा। उन्होंने तुरंत कहा :

“अरे वाह! कितनी शानदार तितली है! अब, जल्दी करो . . . जल्दी करो और इसका पीछा करो! इसे पकड़ना मत भूलना! इसे उड़ने मत दो! जल्दी करो!”

छोटा लड़का जल्दी से तितली की ओर दौड़ा, लेकिन जैसे ही उसने उसे पकड़ने की कोशिश की, तितली अचानक हवा में उड़ गई। वह उसका पीछा करता रहा, उसे पकड़ने की कोशिश करता रहा, लेकिन वह इतनी तेज़ी से उड़ रही थी कि उसे पकड़ना बहुत मुश्किल था। वह बगीचे के चारों ओर तब तक दौड़ता रहा, जब तक वह थक नहीं गया और तितली अब उसे दिखाई नहीं दे रही थी। हाँफते हुए, वह अपने दादाजी के पास लौटा और हांफते हुए बोला :

“दादाजी, मैं उसे पकड़ नहीं पाया! वह उड़ गई!”

दादाजी एक पल के लिए मुस्कुराए, फिर उन्होंने बच्चे का हाथ पकड़कर उसे बिठा दिया। उन्होंने बच्चे के शांत होने तक इंतजार किया, फिर धीरे से कहा :

“सुनो मेरे बेटे, मैं तुम्हें जीवन का एक अनमोल सबक सिखाता हूँ। अगर तुम अपना समय तितलियों के पीछे भागने में बिताओगे, तो वे उड़ जाएँगी। लेकिन, अगर तुम अपना समय एक सुंदर बगीचा बनाने में बिताओगे, तो तितलियाँ तुम्हारे पास खुद आएंगी।”

“देखिए, वह तितली आपके जीवन के लक्ष्यों की तरह है। सफलता की राह में, तत्कालिक लक्ष्यों की खोज में उलझ जाना आसान है, जो जीवन की क्षणभंगुर तितलियों की तरह हैं। लेकिन असली जादू तब होता है, जब हम कुछ ठोस बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे एक सुंदर बगीचा उगाना। तितली रुपी सफलता का लगातार पीछा करने के बजाय, अपनी ऊर्जा को सृजन में लगाएं। कुछ सार्थक बनाएं, चाहे वह कोई योजना हो, कोई कौशल हो या कोई रिश्ता हो। आपके द्वारा विकसित सुंदरता अवसरों, अनुभव और सफलता को आकर्षित करेगी।”

सीख :

“सफलता धैर्य और मेहनत का खेल है।

जब दूसरे लोग भाग्य का इंतजार करते हैं, तब सफल लोग :

“नए कौशल सीखते है,

शांति से तैयारी करते है,

जब कोई देख नहीं रहा हो, तब भी निरंतर तैयारी करते रहते है “

भाग्य एक बार दरवाज़ा खोल सकता है, लेकिन तैयारी हर दरवाज़ा खुला रखती है।

मेहनत करो।

धैर्य रखो।

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जीवन में हमेशा खुश कैसे रहे? How to always be happy in life?

जीवन में हमेशा खुश कैसे रहें how to always be happy in life

हम सब अपने जीवन में हमेशा खुश रहना चाहते है, लेकिन कोई न कोई कारणों से हम परेशान या दुःखी हो जाते है। ऐसे में, हमें प्रश्न होता है कि ‘जीवन में हमेशा खुश कैसे रहे?'(How to always be happy in life?) इस लेख में जीवन में हमेशा खुश रहने के कुछ उपाय बताए गए है।

1. हमेशा याद रखें कि इस धरती पर ऐसा कोई नहीं है, जिसके जीवन में परेशानियाँ न हों। आप अकेले नहीं हैं, जिनके जीवन में परेशानियाँ हैं।

2. चुनौतियाँ जीवन का हिस्सा हैं। केवल मृत व्यक्ति ही चुनौतियों से मुक्त होता है।

3. ऐसी कोई समस्या नहीं हैं, जिसका समाधान न हो। आप जिन कष्टों से गुजर रहे हैं, उनके समाधान अवश्य हैं।

4. आप अपने मन में अपनी छवि कैसे बनाते हैं, यह आपकी खुशी को प्रभावित कर सकता है। अपने आप को एक मूल्यवान और सुंदर व्यक्ति के रुप में देखें। आत्मसम्मान की कमी और हीन भावना से बचें।

5. लोग आपके बारे में क्या कहते हैं, इसकी परवाह न करें। कुछ लोग स्वार्थी होते हैं। वे सिर्फ़ आपको दुःखी करने के लिए कुछ भी कह देते हैं।

6. समझदार लोगों से दोस्ती करें, जो आपको खुश रखते हैं। ऐसे लोगों से दोस्ती न करें, जो आपका मजाक उड़ाते हैं या आपकी चुनौतियों पर हँसते हैं।

7. अपने खाली समय में पढ़ने, सीखने जैसे अपने पसंदीदा शौक में खुद को व्यस्त रखें।

8. किसी को भी धन और भौतिक चीजों से आपको डराने न दें। आज का गरीब व्यक्ति कल अमीर हो सकता है। परिवर्तन निरंतर है।

9. आज आप चाहे जिस भी परिस्थिति से गुजर रहे हों, हार न मानें। जब तक जीवन है, तब तक आशा है। कभी भी प्रयास करना बंद न करें। एक बार फिर कोशिश करें।

10. खूब प्रार्थना करें। निरंतर प्रार्थना करें। प्रार्थना एक उत्प्रेरक है जो आपके आर्शीवाद को समय पर आप तक पहुँचाने में मदद कर सकती है।

11. जो आप चाहते हैं, उसे पाने के लिए साहसी बनें। जीवन जोखिम से भरा है। यदि आप जोखिम नहीं लेंगे, तो आपकी अपने दिल की इच्छाएँ पूरी नहीं होगी।

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पढ़ने का सही उद्देश्य True purpose of reading

पढ़ने का सही उद्देश्य

पढ़ाई हमारे जीवन के लिए बहुत अहम् होती है। आज हम पढ़ने के सही उद्देश्य (Purpose) से जुड़ी हुई एक सुंदर कहानी से ये समझने का प्रयत्न करते है।

“पढ़ने का सही उद्देश्य”

“गुरुजी, मैंने बहुत सारी किताबें पढ़ी हैं… लेकिन मैं उनमें से ज़्यादातर भूल गया हूँ। तो फिर पढ़ने का क्या अर्थ है?”

यह एक जिज्ञासु छात्र का अपने गुरु से सवाल था। गुरु ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस चुपचाप उन्हें देखते रहे।

कुछ दिनों बाद, वे नदी के किनारे बैठे थे। अचानक गुरुजी ने कहा, “मुझे प्यास लगी है। मेरे लिए थोड़ा पानी लाओ… लेकिन ज़मीन पर पड़ी उस पुरानी छलनी से।”

छात्र उलझन में लग रहा था। यह एक निरर्थक अनुरोध था। कोई छेदों वाली छलनी में पानी कैसे ला सकता है?

लेकिन उसने तर्क-वितर्क करने की हिम्मत नहीं की।

उसने छलनी उठाई और कोशिश की। एक बार। दो बार। बार-बार…

उसने छलनी को अलग-अलग कोण से घुमाया। यहाँ तक कि उंगलियों से छेदों को ढकने की भी कोशिश की। कुछ भी काम नहीं आया। वह एक बूँद भी नहीं रोक पाया।

थका हुआ और निराश होकर, उसने छलनी गुरुजी के पैरों पर गिरा दी और बोला, “मुझे माफ़ करना। मैं असफल हो गया। यह असंभव था।”

गुरुजी ने उसे प्यार से देखा और कहा, “तुम असफल नहीं हुए। छलनी को देखो।”

छात्र ने नीचे देखा… और देखा कि, पुरानी, काली, गंदी छलनी अब साफ़ चमक रही थी। पानी, हालाँकि वह कभी रुकता नहीं था, उसे बार-बार धोता रहा था, जब तक कि वह चमकने नहीं लगी।

गुरुजी ने आगे कहा, “पढ़ने का यही अर्थ है। अगर आपको हर छोटी-बड़ी बात याद न हो, तो कोई बात नहीं। अगर ज्ञान छलनी से पानी की तरह फिसलता हुआ प्रतीत हो, तो भी कोई बात नहीं…

“क्योंकि जब आप पढ़ते हैं, तो आपका मन तरोताज़ा होता है।”

“आपकी आत्मा में नयापन आता है।”

“आपके विचारों में प्राणवायु का संचार होता है।”

“और भले ही आपको तुरंत इसका एहसास न हो, आप अंदर से बाहर तक बदल रहे होते हैं।”

पढ़ने का सही उद्देश्य यही है।

“अपनी याददाश्त भरने के लिए नहीं…

बल्कि अपनी आत्मा को शुद्ध और समृद्ध करने के लिए।”

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2,000 साल पुराने पेड़ की गहरी सलाह The deep advice of a 2,000 year old tree

2,000 साल पुराने पेड़ की गहरी सलाह the deep advice of a 2,000 year old tree

हमारे जीवन में हमें प्रकृति से बहोत सी सीख मिलती ही। जैसे कि हजारों सालों से खड़े ‘पेड़’, हमें संघर्ष के समय, धैर्य बनाए रखने की और हमेशा दूसरों का भला करने की सीख देते है।

“जिस प्रकार

पतझड़

के बाद पेड़ो पर नए पत्ते आते है,

उसी प्रकार जीवन में संघर्ष और

कठिनाइयों

के बाद ही अच्छे दिनों का आगमन होता है,

बस हमें धैर्य बनाए रखना होगा।”

पुराने पेड़ की गहरी सलाह

मैं एक विशाल पेड़ के रुप में जन्मा नहीं था। मैं कभी बस एक छोटा सा बीज था, जो सूखी, फटी हुई मिट्टी के एक टुकड़े पर पड़ा रहा था, जिसकी किसी को परवाह नहीं थी।

अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में, मैं ज़्यादा उँचा नहीं हुआ। मेरे पास कोई सुंदर छतरी नहीं थी, कोई ठंडी छाया नहीं थी, जिसके नीचे कोई आराम कर सके। कोई भी मेरी जड़ों को देखकर आश्चर्य चकित नहीं होता था।

लेकिन कई सालों तक, मैं एक काम करता रहा : मैंने चुपचाप अपनी जड़ें ज़मीन में गहराई तक गाड़ दी।

मैं आपको, एक ऐसे पेड़ के अनुभव से कुछ बातें बताना चाहता हूँ, जो 2,000 सालों के तूफानों से बच निकला है :

जब आपकी जड़ें अभी भी उथली हों, तो उँचा बढ़ने की कोशिश न करें।

जब आपकी जड़ें अभी भी उथली हों, तो उँचा बढ़ने की कोशिश न करें। मैंने कई छोटे पेड़ों को बहुत तेज़ी से बढ़ते देखा है, कुछ ही बरसातो के बाद मेरे ऊपर उँचे हो जाते हैं। लेकिन, पहले ही तूफ़ानों ने उन्हें गिरा दिया। जो चीज़ आपको हवा में खड़ा रखती है, वह दूसरों से उँचा होना नहीं है, बल्कि जड़ें इतनी गहरी होना है कि आप उड़ या गिर न सकें।

अपने “मौन विकास” के दौर का सम्मान करें।

अपने “मौन विकास” के दौर का सम्मान करें। कई साल ऐसे भी थे, जब ऐसा लग रहा था, कि मैं बिल्कुल भी आगे नहीं बढ़ रहा हूँ। ऊपरी तौर पर तो कुछ नहीं बदला, लेकिन ज़मीन के नीचे मेरी जड़े धीरे-धीरे फैल रही थीं। आप भी ऐसे ही हैं – ऐसे दौर आते हैं, जब कोई आपकी प्रगति नहीं देख पाता, लेकिन उन्हीं पलों में, अगर आप मेहनत करते रहें, अभ्यास करते रहें, अपना अनुशासन बनाए रखें, तो आप उन जगहों पर बढ़ रहे हैं, जो दूसरे नहीं देख सकते।

चमकती हुई सफलता से ईर्ष्या मत करो।

चमकती हुई सफलता से ईर्ष्या मत करो। मैंने ऐसे पेड़ देखे हैं, जो एक ही मौसम में पत्तों से लदे हो गए, और सिर्फ़ एक साल में ही प्रभावशाली हो गए। लेकिन, उनकी उम्र मेरी ज़िंदगी का एक छोटा सा अंश मात्र थी। जो जल्दी आता है, अक्सर जल्दी ही चला जाता है। जो वर्षों तक धैर्य और सहनशीलता बनाए रखता है, मजबूती से टीका रहता है, वह सैकड़ों, यहाँ तक कि, हज़ारों सालों तक मज़बूती से खड़ा रह सकता है।

अकेलापन कोई अभिशाप नहीं है।

अकेलापन कोई अभिशाप नहीं है, यह आपकी जड़ों को गहराई तक पहुँचाने के लिए ज़मीन है। ऐसे भी मौसम थे, जब मैं ठंडी हवा में अकेला खड़ा था, मेरे बगल में कोई और पेड़ नहीं था। इंसान इसे अकेलापन कहते हैं। मैं इसे धरती में गहराई तक जड़ें जमाने का समय कहता हूँ, ताकि बाद में, जब तूफ़ान आए, तब भी मैं गिर न जाऊं।

अगर आप मज़बूत जड़ें नहीं उगाना चाहते तो …

अगर आप मज़बूत जड़ें नहीं उगाना चाहते, तो मीठे फल की माँग मत करो। हर कोई फल पसंद करता है, लेकिन जड़ों के साथ धैर्य रखने वाले कम ही लोग होते हैं। हर कोई परिणाम पसंद करता है, लेकिन प्रक्रिया के साथ बने रहने वाले कम ही लोग होते हैं। लेकिन, मैं इसका जीता जागता सबूत हूँ : मज़बूत जड़ों के बिना कुछ भी ज़्यादा समय तक नहीं टिकता।

अगर आप ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं, जहाँ कोई आपके लिए ताली नहीं बजाता, कोई आपको पहचानता नहीं, तो मेरे ये शब्द याद रखें :

“धीमे होने से मत डरो, रुकने से डरो।”

“चुप रहने से मत डरो, अंदर से खाली होने से डरो।”

“एक दिन, जब तुम्हारी जड़ें काफी गहरी होंगी, तुम्हारा अनुभव काफी समृद्ध होगा, तुम्हारी आंतरिक शक्ति काफी प्रबल होंगी – तुम स्वाभाविक रुप से अपने ही खेत में एक “प्राचीन वृक्ष ” बन जाओगे।”

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में “प्राचीन वृक्ष “ द्वारा जो ‘गहरी सलाह’ हमें दी गई है, वह हम सबको आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। अगर आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

आइंस्टीन का अद्भूत जवाब Amazing answer of Einstein

आइंस्टीन का अद्भूत जवाब amazing answer of einstein

लोग ‘अल्बर्ट आइंस्टीन’ को न सिर्फ़ उनके बिखरे बालों और अद्भूत दिमाग़ के लिए, बल्कि उनके अनोखे पढ़ाने के अंदाज़ के लिए भी याद करते हैं।

एक साल, जब आइंस्टीन प्रोफ़ेसर थे, उन्होंने अपने सीनियर छात्रों को एक आखिरी परीक्षा दी। पेपर बाँटने के बाद, वे अपने सहायक के साथ कमरे से बाहर चले गए।

सहायक के हाथ में परीक्षा की एक अतिरिक्त कॉपी थी। उसने उसे जल्दी से पढ़ा और अचानक स्तब्ध रह गया।

“प्रोफ़ेसर,” उसने घबराते हुए कहा, “जरुर कोई गलती होगी. . . यह बिल्कुल वही परीक्षा है, जो आपने पिछले साल दी थी! सवाल एक जैसे हैं!”

उसे चिंता थी कि छात्र ठगा हुआ महसूस करेंगे। अगर परीक्षा वही होती, तो वे पुराने जवाबों का ही उपयोग कर सकते थे।

आइंस्टीन ने पेपर पर नज़र डाली, शांति से मुस्कुराए और जवाब दिया : “हाँ, आप सही कह रहे हैं। ये पिछले साल वाले ही सवाल हैं।”

अब सहायक सचमुच उलझन में पड़ गया।

“तो . . . अगर सवाल वहीं हैं, तो इस परीक्षा को दोबारा देने का क्या अर्थ है? छात्र तो पिछले साल के जवाब ही याद कर लेंगे।”

आइंस्टीन चलते-चलते रुक गए, उसकी तरफ देखा और धीरे से बोले : “सवाल वही हैं. . . लेकिन जवाब बदल गए हैं।”

इस प्रसंग से सीखें

1. दुनिया हमारी सोच से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बदलती है।

जो समाधान पिछले साल उपयोगी या कारगर रहा, वह आज व्यर्थ (अनुपयोगी) हो सकता है। तकनीक, बाज़ार और यहाँ तक कि, मानवीय व्यवहार भी विकसित होते रहते हैं।

  • “मैं कैसे सफल होऊं?” या “मैं कैसे अच्छा जीवन जीऊं?” जैसे सवाल सुनने में एक जैसे लगते हैं, लेकिन 1990 और 2025 में सही जवाब एक जैसे नहीं होंगे।

2. जवाब रटें नहीं, सोचना सीखें

अगर आप सिर्फ़ पुराने फॉर्मूले और पुराने तरीके ही सीखते रहेंगे, तो जब समय बदलेगा, तो आप खो जाएँगे।

  • असली शिक्षा जवाबों को एकत्रित करने के बारे में नहीं है, बल्कि अपने दिमाग़ को बेहतर सवाल पूछने और उसके हिसाब से ढलने के लिए प्रशिक्षित करने के बारे में है।

3. ज़िंदगी वही सवाल दोहराएगी, लेकिन ‘आपको’ जवाबों को अपडेट करना होगा।

“मुझे किस पर भरोसा करना चाहिए?”

“मुझे कौन सा रास्ता चुनना चाहिए?”

ये सवाल ज़िंदगी के अलग-अलग पड़ावों पर बार-बार आते हैं।

  • यदि आप हमेशा नई परिस्थितियों के लिए अपनी पुरानी मानसिकता का उपयोग करते हैं, तो आप अटके हुए महसूस करेंगे।

4. बुद्धिमान लोगों को भी खुद को अपडेट करना चाहिए।

आइंस्टीन का द्रष्टिकोण हमें याद दिलाता है : कोई भी उत्तर अंतिम नहीं होता।

आज आप जो मानते हैं, कल उसकी जगह कोई और समझदारी भरा विचार ले सकता है।

  • जिज्ञासु बने रहें, धैर्यवान बने रहे, अनुकूलनशील बने रहें और यह कहने के लिए तैयार रहे : “मैं बड़ा हो गया हूँ। अब मेरे जवाब अलग हैं।”

कभी-कभी, ज़िंदगी आपसे वही पुराने सवाल पूछती है।

लेकिन, अगर आप बड़े हो गए हैं, तो आपके जवाब एक जैसे नहीं होने चाहिए।

अल्बर्ट आइंस्टीन के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQ on google

1. अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म कब हुआ था ?

उत्तर : अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च, 1879 में हुआ था।

2. अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म कहाँ हुआ था?

उत्तर : अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म जर्मनी में वुटेमबर्ग के एक यहूदी परिवार में हुआ था।

3. अल्बर्ट आइंस्टीन का ‘आई-क्यू (IQ)’ कितना था?

उत्तर : अल्बर्ट आइंस्टीन का ‘आई-क्यू (IQ) 160’ था।

4. अल्बर्ट आइंस्टीन का आवास कौन-कौन से देश में रहा?

उत्तर : वे जर्मनी, इटली, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया (वर्तमान चेक गणराज्य), बेल्जियम और संयुक्त राज्यों में रहे।

5. अल्बर्ट आइंस्टीन को भौतिकी का ‘नोबेल पुरस्कार’ किस साल मिला?

उत्तर : अल्बर्ट आइंस्टीन को भौतिकी का ‘नोबेल पुरस्कार’ सन 1921 में मिला।

6. अल्बर्ट आइंस्टीन किस कारण प्रसिद्धि थे?

उत्तर : अल्बर्ट आइंस्टीन ‘सापेक्षता’ और ‘विशिष्ट आपेक्षिकता’ के कारण प्रसिद्ध थे।

7. अल्बर्ट आइंस्टीन ने कितने वैज्ञानिक शोध-पत्रों का प्रकाशन किया?

उत्तर : अल्बर्ट आइंस्टीन ने 300 से अधिक वैज्ञानिक शोध-पत्रों का प्रकाशन किया।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में विश्व के सबसे महान वैज्ञानिक “Genius” अल्बर्ट आइंस्टीन के जीवन की जो बात की गई है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। अगर आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

होंडा की अद्भूत बात The Amazing Thing About Honda

होंडा की अद्भूत बात the amazing thing about honda

एक ज़माने की बात है। जापान के हमामात्सु के एक छोटे से गाँव में, ‘सोइचिरो होंडा’ नाम का एक लड़का रहता था। उसका परिवार गरीब था। उसके पिता एक लोहार थे, जो साइकिलों की मरम्मत भी करते थे, और उसकी माँ कपड़ा बुनती थी।

जब भी कोई टूटी हुई साइकिल या गाड़ी उनके आँगन में आती, तो वह लड़का सब कुछ गिरा देता, उस पर चढ़ जाता और देखता रहता। उसे धातु की आवाज़ और इंजन के तेल की गंध बहुत पसंद थी।

स्कूल में, जब शिक्षक पाठ समझाने में व्यस्त रहते थे, कभी-कभी खिड़की के बाहर से किसी कार के इंजन की आवाज़ सुनाई देती थी और जब पूरी कक्षा बोर्ड पर नज़र गड़ाए रहती थी, तब सोइचिरो का ध्यान इंजन की आवाज़ पर टिका रहता था।

वह कभी कक्षा में अव्वल नहीं आता था, और न ही उसने किसी शानदार डिप्लोमा का सपना देखा था। बस एक चीज़, जिसे वह छूना चाहता था. . . वह था इंजन।

गाँव के लड़के से उत्साही मैकेनिक तक

15 साल की उम्र में, सोइचिरो एक कार रिपेयर गैराज में काम करने के लिए अपना गाँव छोड़कर टोक्यो चला गया।

वह दिन में काम करता और रात में देखता, रिंच के हर घुमाव और हर टूटे हुए इंजन से सीखता। वह कम सोता, जल्दी खाता और रिपेयर शॉप को अपना विश्वविद्यालय बना लेता।

सालों बाद, होंडा अपने गृहनगर लौट आया। अब वह गंदे हाथों से खेलने वाला बच्चा नहीं, बल्कि एक कुशल मैकेनिक बन चुका था।

उसने अपनी खुद की वर्कशॉप खोली, और उसके सीने में एक बड़ा सपना था : “मैं सिर्फ़ दूसरों की गाड़ियां ठीक नहीं करना चाहता। मैं अपने खुद के पुर्ज़े और इंजन बनाना चाहता हूँ।”

उसने कारों के लिए ‘पिस्टन रिंग’ बनाने वाली एक छोटी सी कंपनी शुरु की, और ‘टोयोटा’ के लिए एक सप्लायर बनने का सपना देखा।

3,000 पिस्टन रिंग और पहला ज़ोरदार थप्पड़

फिर वो बड़ा दिन आया। पिस्टन रिंगों का पहला बैच टोयोटा को भेजा गया। वह बेसब्री से उनके जवाब का इंतज़ार कर रहा था।

नतीजा : लगभग पूरी तरह से अस्वीकृति। लगभग 3,000 पिस्टन रिंगों में से, केवल कुछ दर्जन ही मानक पर खरी उतरीं।

कई लोगों के लिए, यही वह पल होता, जब वे आह भरते और कहते : “शायद मैं उतना प्रतिभाशाली नहीं हूँ।”

लेकिन, होंडा निराश नहीं हुआ। वह बड़े कारखानों में गया और देखा कि वे गुणवत्ता को कैसे नियंत्रित करते हैं। उसने एक तकनीकी स्कूल में पढ़ाई की, फिर अपनी वर्कशॉप में वापस गया और सब कुछ बिल्कुल नए सिरे से डिज़ाइन किया।

सालों बाद, टोयोटा ने आखिरकार हामी भर दी। होंडा की छोटी सी कंपनी आधिकारिक तौर पर पिस्टन सप्लायर बन गई।

वह पहली असफलता बस एक बहुत ही खराब प्रयास साबित हुआ – लेकिन उसके कारण उसने एक अच्छा खाका तैयार करना सीख लिया।

युद्ध, बम, भूकंप – सब कुछ तहस-नहस हो गया

फिर युद्ध छिड़ गया।

होंडा की फैक्ट्री पर सरकार और बड़ी कंपनियों का कब्ज़ा हो गया और उन पर नियंत्रण हो गया। धीरे-धीरे, उसने अपनी बनाई कंपनी पर से अपना नियंत्रण खो दिया।

फिर बम गिरे। उसका एक प्लांट नष्ट हो गया। जो बचा था, वह पूरी तरह से ठीक होने से पहले ही एक ज़ोरदार भूकंप की चपेट में आ गया, जिसने बची हुई फैक्ट्री को नष्ट कर दिया।

अगर कोई और होता, तो शायद आसमान की तरफ देखकर पूछता : “मैं इतना बदकिस्मत क्यों हूँ?”

होंडा ने एक अलग जवाब चुना। उसने कंपनी से जो कुछ भी उपयोग करने लायक बचा था, उसे टोयोटा को बेच दिया। थोड़ी सी रकम ले ली और चुपचाप खुद से कहा : “ठीक है। मैं फिर से शुरुआत करुँगा।”

साइकिलों पर कबाड़ के इंजन लगाना – एक महत्वपूर्ण मोड़

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होंडा ए-टाइप सहायक साइकिल इंजन

युद्ध के बाद, जापान पूरी तरह थक चुका था।

लोगों को आना-जाना था, काम पर जाना था, बाज़ार जाना था, ज़िंदा रहना था – लेकिन ईंधन की कमी थी। गाड़ियां महँगी थीं और हर कोई गरीब था। सड़कों पर ज़्यादातर साइकिलें थीं. . . और थके हुए चेहरे।

युद्ध के कबाड़ के ढेर के बीच, होंडा ने बेकार पड़े सैन्य रेडियो जनरेटरों के कुछ छोटे इंजन देखे। उसके दिमाग में एक साधारण सा विचार आया : “क्या होगा अगर, मैं इस इंजन को साइकिल पर लगा दूँ?”

वह और कुछ मज़दूर काम पर लग गए। उन्होंने साइकिल को काटा, वेल्ड किया, लगाया, एडजस्ट किया और टेस्ट किया। एक छोटा इंजन साइकिल के फ्रेम पर गरजने लगा।

मोटर चालित साइकिल का जन्म हुआ : बदसूरत, शोरगुल वाली और धूल भरी. . . लेकिन इसने लोगों को कम मेहनत में, ज़्यादा दूर, तेजी से सफ़र करने में मदद की – और सबसे ज़रुरी बात : यह सस्ती थी।

साइकिल को खरीदने के लिए लोगों की भीड़ होने लगी। छोटी सी वर्कशॉप उतनी तेज़ी से उत्पादन नहीं कर पा रही थी।

वहाँ से, होंडा ने एक छोटा तकनीकी अनुसंधान संस्थान स्थापित किया और 1948 में, आधिकारिक तौर पर ‘होंडा मोटर’ की स्थापना की। छोटी, सस्ती और टिकाऊ मोटरसाइकिलें पूरे जापान और फिर पूरी दुनिया में दिखाई देने लगीं।

इंजन से प्यार करने वाला इंसान और बिज़नेस से प्यार करने वाला दोस्त

होंडा तकनीकी रुप से प्रतिभाशाली तो थे, लेकिन उन्हें आंकड़ों, कागजी कार्यवाई या दीर्घकालिक रणनीति में महारत हासिल नहीं थी। उन्हें मीटिंग रुम में बैठने की बजाय, तेज़ रफ़्तार वाले इंजनों के बीच खड़े रहना ज़्यादा पसंद था।

सौभाग्य से, उनकी मुलाक़ात ‘टेको फुजिसावा’ से हुई – एक ऐसे व्यक्ति जो बाज़ार, वित्त और एक छोटी कंपनी को वैश्विक स्तर पर ले जाने की कला को अच्छी तरह समझते थे। उन्होंने हाथ मिलाया और साझेदार बन गए।

होंडा ने गुणवत्ता, उत्पाद और इंजीनियरिंग का काम संभाला। फुजिसावा ने रणनीति, धन और बाज़ार विस्तार का काम संभाला। इस जोड़ी से, एक छोटा सा ब्रांड, होंडा साम्राज्य में बदल गया – मोटरसाइकिल, कार, रेसिंग और बहुत कुछ।

लेकिन, अपने जीवन के अंतिम समय में भी, लोग सोइचिरो होंडा को सबसे पहले एक सच्चे “मैकेनिक” के रुप में याद करते थे : एक ऐसा व्यक्ति, जो हर छोटी-छोटी बात का ध्यान रखता था। एक हल्के से ढीले बोल्ट या इंजन की उस आवाज़ पर भी गुस्सा होने को तैयार रहता था, जो अभी तक “ठीक” नहीं हुई थी।

सोइचिरो होंडा के जीवन से सीख

1. असफलता आपको ख़त्म नहीं करती। असफलता के बाद आपका द्रष्टिकोण ही तय करता है, कि आप क्या बनेंगे।

2.आपको डिप्लोमा से शुरुआत करने की जरुरत नहीं है। आपको बस लगन और अंत तक सीखने की इच्छाशक्ति के साथ शुरुआत करनी होगी।

3. सही समय या अच्छे भाग्य का इंतज़ार करते मत बैठिए। देखिए कि समाज में क्या कमी है और आप उसे कैसे पूरा कर सकते हैं।

4. जानें कि आप किसमें अच्छे हैं और किसमें नहीं। फिर अपनी कमजोरियों को दूर करने के लिए सही लोगों को ढूँढ़िए।

5. अपने काम की हर छोटी-बड़ी बात का सम्मान कीजिए। “बहुत अच्छा” और “अच्छे” के बीच का फ़र्क छोटी-छोटी बातों में छिपा है।

6. अभी आप, “3,000 अस्वीकृत पिस्टन” या “बमों से तबाह हुई फैक्ट्री” के दौर में हो सकते हैं। लेकिन, जब तक आप हार नहीं मानते, आपकी कहानी. . . अभी अपने अंत तक नहीं पहुँची है।

कुछ विशिष्ट शब्दों के अर्थ :

मरम्मत : किसी टूटी-फूटी या बिगड़ी हुई वस्तु को सुधारना।

रिंच : नट, बोल्ट खोलने या ढीला करने का एक उपकरण।

पुर्ज़े : एक टुकड़ा या भाग। यह शब्द किसी वस्तु के एक भाग को संदर्भित करता है।

खाका : किसी वस्तु का ढाँचा, नक्शा या कच्ची रुपरेखा।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में दिग्गज मैकेनिक ‘सोइचिरो होंडा’ के जीवन की जो बात की गई है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। अगर आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

बर्कशायर हैथवे : वॉरेन बफेट की “सुनहरी भूल” Berkshire Hathaway : Warren Buffett’s “Golden Mistake”

वॉरेन बफेट warren buffett

1960 के दशक में, जब वॉरेन बफेट अभी भी एक युवा निवेशक थे और अपनी खुद की पार्टनरशिप चला रहे थे, तब उनकी नज़र एक पुराने, घिसे-पिटे नाम पर पड़ी : ‘बर्कशायर हैथवे।’

यह न्यू इंग्लैंड की एक कपड़ा कंपनी थी। कारोबार बहुत खराब चल रहा था, मिले बंद हो रही थी, मज़दूर अपनी नौकरियाँ खो रहे थे।

लेकिन बफेट का ध्यान कताई मशीनों ने नहीं, बल्कि आंकड़ों ने खींचा।

बर्कशायर के शेयर की कीमत इतनी गिर गई थी, कि कंपनी का बाजार मूल्य वास्तव में उसके पास पहले से मौजूद नकदी और संपत्तियों से भी कम था।

बफेट के “मूल्य निवेश’ वाले दिमाग में एक विचार आया:

“अगर मैं 50 सेंट में 1 डॉलर की संपत्ति खरीद सकता हूँ… तो यह बेकार नहीं, बल्कि एक अवसर है।”

इसलिए उन्होंने चुपचाप बर्कशायर के शेयर खरीदने शुरु कर दिए। धीरे-धीरे। धैर्यपूर्वक।

कुछ समय बाद, बर्कशायर के प्रबंधन – जिसका नेतृत्व सीबरी स्टैंटन कर रहे थे – ने फैसला किया कि वे बफेट को खेल से बाहर करना चाहते हैं। उन्होंने उनके शेयर वापस खरीदने की पेशकश की।

उन्होंने वॉरेन बफेट को एक कीमत बताई। बफेट मान गए।

लेकिन, जब आधिकारिक पत्र आया, तो उन्हें एहसास हुआ कि, वादे के मुकाबले कीमत कम कर दी गई थी। बहुत बड़ा अंतर नहीं। लेकिन उनके सिद्धांतों के खिलाफ जाने के लिए पर्याप्त था। उस पल, वॉरेन बफेट ने अपमानित महसूस किया। वे चिल्लाये नहीं। उन्होंने कोई हंगामा नहीं किया।

उन्होंने बस एक ऐसा फैसला लिया, जिसने उनकी बाकी ज़िंदगी बदल दी : “ठीक है। अगर तुम इसी तरह खेलना चाहते हो… तो मैं पूरी कंपनी खरीद लूँगा।”

एक छोटे से शेयरधारक से, बफेट शेयर जमा करते रहे। एक दिन, बर्कशायर हैथवे पर उनका नियंत्रण हो गया। लेकिन एक बार जब उन्होंने उस सपने को “अपना’ लिया, तो हकीकत ने उन्हें कड़ी टक्कर दी।

कपड़ा व्यवसाय दम तोड़ रहा था। मिलें पुरानी हो चुकी थीं। लागतें ऊँची थीं। विदेशी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही थी।

बफेट ने बर्कशायर के कपड़ा कारोबार को बचाने की कोशिश की। उन्होंने और पूँजी लगाई, दक्षता बढ़ाने की कोशिश की। जितना उन्होंने प्रयास किया, यह बात उतनी ही स्पष्ट होती गई : कुछ खेल सिर्फ़ और ज़्यादा कोशिश करने से नहीं जीते जा सकते।

वर्षों बाद, बफेट ने खुले तौर पर स्वीकार किया : बर्कशायर को खरीदना एक भावनात्मक भूल थी। उनके तर्क से ज़्यादा उनका अहंकार इसके पीछे था। लेकिन फ़र्क यह है : उन्होंने उस भूल को नहीं पकड़ा।

एक लुप्त होते उद्योग में और पैसा लगाने के बजाय, बफेट ने अलग तरह से सोचना शुरु किया : “अगर बर्कशायर एक टपकती हुई नाव है, तो शायद मैं इस ‘सार्वजनिक कंपनी के आवरण ‘ का उपयोग कुछ और बड़ा बनाने के लिए कर सकता हूँ।”

धीरे-धीरे, बर्कशायर हैथवे का कायाकल्प होने लगा।

1967 में, बफेट ने बर्कशायर का उपयोग करके, ‘नेशनल इन्डेम्निटी’ नामक एक छोटी बीमा कंपनी खरीदी।

उनके लिए, बीमा सिर्फ़ प्रीमियम और दावों तक सीमित नहीं था। यह एक ऐसी मशीन थी, जो “फ्लोट” पैदा करती थी – ग्राहकों द्वारा अग्रिम भुगतान किया गया पैसा, जिसे कंपनी लंबे समय तक अपने पास रख सकती थी और निवेश कर सकती थी।

बीमा बर्कशायर का वित्तीय केंद्र बन गया। उसी केंद्र से, नई शाखाएं विकसित होने लगी :

एक छोटा, लेकिन बेहद मुनाफ़े वाला कैंडी व्यवसाय : सीज़ कैंडीज़

एक बड़ी ऑटो बीमा कंपनी : GEICO

एक प्रमुख रेलमार्ग : BNSF रेलवे

अमेरिका भर में जाने-पहचाने नाम : डेयरी क्वीन, यूटिलिटीज़, ऊर्जा कंपनियाँ…

उसी समय, बर्कशायर चुपचाप सार्वजनिक कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी बना रहा था : कोका-कोला, अमेरिकन एक्सप्रेस, एप्पल, बैंक ऑफ अमेरिका और कई अन्य दिग्गज कंपनियाँ।

सौदा दर सौदा, कंपनी दर कंपनी, सब कुछ एक ही साधारण दर्शन पर चलता था : “हम शेयर नहीं खरीदते। हम व्यवसाय खरीदते हैं।”

कोई दिन-भर का कारोबार नहीं। कोई गर्म खबरों का पीछा नहीं।

बफेट ने बर्कशायर को पूँजी के साधन के रुप में उपयोग किया। दुनिया भर में उसे चलाकर ऐसे व्यवसाय खोजे, जिन्हें वह समझते थे, जिन पर भरोसा करते थे और जिन्हें वह दशकों तक बनाए रखने को तैयार थे।

मूल कपड़ा व्यवसाय धीरे-धीरे बंद हो गया। पुरानी मिलें बंद हो गईं। लेकिन, “बर्कशायर हैथवे” नामक उस कानूनी आवरण से एक नया निवेश साम्राज्य उभरा।

दशकों बाद, दुनिया ने पीछे मुड़कर देखा और महसूस किया :

वह लगभग मृतःपाय कपड़ा कंपनी सैकड़ों, अरबों डॉलर मूल्य का एक समूह बन गई थी, जिसका बाजार मूल्य तब एक ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक था। बर्कशायर के ‘क्लास ए शेयर’ अमेरिका के सबसे महंगे शेयर बन गए।

और वॉरेन बफेट, वो नौजवान, जो कभी बायबैक प्राइस पर गुस्सा हो जाता था, “ओमाहा का ओरेकल” बन गया।

अपने 90 के दशक में, वो पीछे मुड़कर मुस्कुराते हुए कह सकता था : भावुकता में बर्कशायर खरीदना एक गलती थी, लेकिन इसी गलती ने उसे अपने पूरे निवेश दर्शन को सबसे बड़े पैमाने पर व्यक्त करने का मंच दिया।

एक दम तोड़ती कपड़ा मिल से लेकर, एक विशाल निवेश मशीन तक, वॉरेन बफेट और बर्कशायर हैथवे की कहानी एक शांत अनुस्मारक है :

“गलतियाँ कहानी का अंत नहीं हैं। अगर आप उनका सामना करने की हिम्मत रखते हैं, दिशा बदलते हैं, जो बीत गया उसे छोड़ देते हैं और जो बचा है, उसका उपयोग भविष्य बनाने के लिए करते हैं…

तो कभी-कभी, कल के “सबसे बुरे” फैसले आपके जीवन के सबसे खूबसूरत मोड़ बन सकते हैं।”

वॉरेन बफेट के जीवन से सीख

  1. अपने अहंकार को ज़्यादा देर तक हावी न होने दें। अगर आप भावनात्मक गलतियों को स्वीकार करने और उन्हें सुधारने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें सुधारा जा सकता है।
  2. जब कोई बिज़नेस मॉडल स्पष्ट रुप से दम तोड़ रहा हो, तो सिर्फ़ पछतावे से बचने के लिए उसमें पैसा लगाते न रहें – सोचें कि आप जो बचा है उसका उपयोग कुछ नया बनाने के लिए कैसे कर सकते हैं।
  3. स्थायी धन एक भाग्यशाली सफलता से नहीं, बल्कि अनुशासन से आता है : यह जानना कि, आपके पास क्या है, और उसे लंबे समय तक संभाल कर रखना।
  4. किसी गलती का असली उपहार यह नहीं है कि आप कितना खोते हैं, बल्कि यह है कि, यह आपको खुद का एक ज़्यादा समझदार और मज़बूत संस्करण बनने के लिए कितना प्रेरित करती है।

कुछ विशिष्ट शब्दों के अर्थ :

फ्लोट” (Float) : ग्राहकों द्वारा अग्रिम भुगतान किया गया पैसा, जिसे कंपनी लंबे समय तक अपने पास रख सकती है और निवेश कर सकती है।

ओरेकल (Oracle) : परामर्श देने वाला व्यक्ति या विशिष्ट ज्ञान वाला व्यक्ति। भविष्यवक्ता।

“ओमाहा का ओरेकल (Oracle of Omaha)” : यह विश्व के सबसे दिग्गज निवेशक वॉरेन बफेट का उपनाम (Nickname) है, जो ओमाहा, नेब्रास्का के निवासी है। वे लाभदायक, दीर्घकालिक निवेशों की पहचान करने और उन्हें लागू करने की अपनी अद्भुत क्षमता के लिए जाने जाते हैं। यह उपाधि उनकी सफलता, उनके अनुशासित और धैर्यवान निवेश दर्शन, और इस तथ्य को दर्शाती है कि, उन्होंने वॉल स्ट्रीट के बजाय अपने गृहनगर (ओमाहा) से काम किया है।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में “ओमाहा का ओरेकल (Oracle of Omaha)”, दिग्गज निवेशक ‘वॉरेन बफेट’ के जीवन की जो बात की गई है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। अगर आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

स्व-विकास की श्रेष्ठ दैनिक आदतें कौन सी है? Which are the Best Daily Habits for Self-development

स्व विकास की श्रेष्ठ दैनिक आदतें कौन सी है which are the best daily habits for self development

ज़्यादातर लोग ज़िंदगी में बड़े होना चाहते हैं, लेकिन उन छोटी-छोटी आदतें (Habits) को करने से इनकार कर देते हैं, जिनसे बड़े नतीजे मुमकिन होते हैं। अगर आप रोज़ाना इन छोटी-छोटी आदतों (Habits) का अभ्यास करेंगे, तो 2026 तक आपको बिल्कुल अलग स्तर पर ले जाएगा।

धीरे-धीरे पढ़ें। ये छोटी-छोटी चीज़ें किस्मत बदल देती हैं।

1. अपने ध्यान भटकाने वाली चीज़ों के जागने से पहले उठ जाएँ।

  • सुबह का एक शांत घंटा आपको दिन के पाँच शोर भरे घंटो से ज़्यादा तरक्की देगा।
  • सुबह अनुशासन का निर्माण करती है।
  • अनुशासन सफलता का निर्माण करता है।

2. रोज़ाना कम से कम 10 पन्ने जरुर पढ़े, कोई बहाना नहीं।

  • 2026 से पहले, आप 10 – 12 किताबें पढ़ चुके होंगे।
  • किताबें आपको मार्गदर्शन देंगी, आपको सुधारेंगी, आपको शर्मिंदा करेंगी और आपमें बदलाव लाएंगी।
  • किताबें आपका पुनःनिर्माण करेंगी।
  • अज्ञानता बहुत महँगी होती है।

3. अपनी दैनिक प्राथमिकताएँ एक रात पहले लिख लें।

  • अपने दिन की शुरुआत आँख मूँदकर न करें।
  • 3 – 5 प्रमुख कार्य लिखें।
  • जब आपके दिन को दिशा मिलती है, तो आपके जीवन को गति मिलती है।

4. रोज़ाना कुछ बचत जरुर करें, चाहे वह छोटी ही क्यों न हो।

  • बचत राशि के बारे में नहीं है, यह आदत के बारे में है।
  • पैसे बचाने का अनुशासन (आदत ) आपके दिमाग को सीखाता है कि उसे और कैसे आकर्षित किया जाए।

5. हर दिन एक असुविधाजनक काम करें।

  • प्रस्ताव भेजें।
  • विषय-वस्तु तैयार करें।
  • कौशल सीखें।
  • न कहें।
  • पाठ्यक्रम शुरु करें।

असुविधा के पीछे विकास छिपा है।

6. स्क्रॉल करने के बजाय, ऑनलाइन सीखने में 30 मिनट बिताएँ।

  • एक नया कौशल।
  • एक नई रणनीति।
  • एक नया दृष्टिकोण

इंटरनेट आपको ऊपर उठा सकता है या बर्बाद कर सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसका उपयोग कैसे करते है।

7. हर रात, सोने से पहले पूरे दिन के बारे में चिंतन करें।

  • “आज मैंने ऐसा क्या किया, जिससे मैं अपने भविष्य के थोड़ा ओर करीब पहुँच गया?”

चिंतन ही अनुभव को ज्ञान में बदल देता है। ज्ञान ही जीवन को आसान बनाता है।

प्रिय पाठक,

आपका जीवन तब नहीं बदलता, जब आप जोर से चिल्लाते हैं, ‘मैं अमीर बनना चाहता हूं। “यह तब बदलता है, जब आप चुपचाप उन छोटी-छोटी आदतों को दोहराते हैं, जिन्हें बनाए रखने में ज़्यादातर लोग आलस करते हैं।

इन 7 छोटी-छोटी आदतों को रोज़ाना अपनाएँ, और 2026 तक आप उस मुकाम पर पहुँच जाएँगे, जहां आप पहुंचना चाहते है।

अगर आपको मेरी जानकारी उपयोगी लगे, तो “मैं सीख रहा हूँ” कमेंट करें और दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए शेयर जरुर करें। आइए, साथ मिलकर सीखें और आगे बढ़ें।

ईश्वर आपका भला करें ! धन्यवाद

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परिवार के पहले करोड़पति की सात बेहतरीन आदतें 7 Best Habits of the First Millionaire in the Family

परिवार के पहले करोड़पति की सात बेहतरीन आदतें 7 best habits of the first millionaire in the family

जीवन में करोड़पति बनना सब चाहते है। लेकिन, इसके लिए जो मेहनत, लगत और निरंतरता की जरुरत होती है, वो बहोत ही कम लोगो में देखने को मिलती है। हर परिवार में कोई न कोई होता है, जो परिवार को आर्थिक मुश्किलों में से बाहर निकालना चाहता है। आज हम ऐसे ही लोगो के बारे में बात करेंगे।

हर परिवार में दो तरह के लोग होते हैं :

  • वे, जो उसी गरीबी को दोहराते हैं, जिसमें वे पैदा हुए थे,
  • और वह व्यक्ति, जो तय करता है, “यह चक्र मेरे साथ खत्म होता है।”

अपने वंश में पहला करोड़पति बनना कोई जादू नहीं है। यह मानसिकता का पुनर्निर्माण है, एक संपूर्ण आतंरिक पुनर्रचना, जो आपको उन सभी से अलग बनाती है, जिनके साथ आप बड़े हुए हैं।

अगर आप भी वह व्यक्ति बनना चाहते हैं, तो इसे धीरे-धीरे पढ़े

1. वे उत्तरजीवी की तरह सोचना बंद कर देते हैं और सृजनकर्ता की तरह सोचना शुरु कर देते हैं।

ज़्यादातर गरीब परिवारों में लोग जीवित रहने के बारे में सोचते हैं :

  • “बस गुजारा करो,”
  • “बस गुजारा करो,”
  • “अच्छे की आशा करो।”

लेकिन परिवार का पहला करोड़पति सृजनकर्ता की भूमिका में आ जाता है :

  • “मैं क्या बना सकता हूँ?”
  • “मैं इसे कैसे बढ़ा सकता हूँ?”
  • “मैं इस कौशल को एक व्यवस्था में कैसे बदल सकता हूँ?”

अस्तित्व गरीबी को बनाए रखता है। सृजन उसे तोड़ता है।

2. वे अनुमति का इंतज़ार करना बंद कर देते हैं और खुद फ़ैसले लेना शुरु कर देते हैं।

औसत परिवारों में, लोग इंतज़ार करते हैं :

  • अवसरों का,
  • प्रेरणा का,
  • अनुमति का,
  • किसी के द्वारा उन्हें क्या करना है, यह सिखाने का

करोड़पति मानसिकता वाले लोग इंतज़ार नहीं करते।

  • वे आगे बढ़ते हैं।
  • वे अवसर पैदा करते हैं।
  • वे अपने जीवन की ज़िम्मेदारी लेते हैं।

प्रतीक्षा गरीबी है। कार्यान्वयन धन है।

3. वे भावनात्मक खर्च से दूर रहते हैं और वित्तीय अनुशासन अपनाते हैं।

परिवार का पहला करोड़पति बेहद सख्त हो जाता है। इसलिए नहीं कि वे कंजूस हैं, बल्कि इसलिए कि वे जानते हैं कि हर नाइरा एक सैनिक है।

  • वे तरक्की के लिए आनंद का त्याग करते हैं।
  • वे निवेश करते हैं, जबकि दूसरे प्रभावित करते हैं।
  • वे बचत करते हैं, जबकि दूसरे जश्न मानते हैं।

अनुशासन “बर्बादी” और “सफलता” के बीच का सेतु है।

4. वे रुतबे में नहीं, बल्कि हुनर में आक्रामक रुप से निवेश करते हैं।

आम लोग कपड़े, गैजेट, मनोरंजन की चीजें खरीदते हैं। पहला करोड़पति किताबें, कोर्स, मेंटरशिप, सिस्टम, टूल्स खरीदता है।

  • वे जानते हैं कि हुनर किसी भी निवेश से ज़्यादा तेज़ी से बढ़ता है।
  • वे जानते हैं कि, आज एक नया हुनर कल नए पैसे का मतलब है।
  • वे खुद को बेहतर बनाने के आदी हैं।

5. वे परिवार और दोस्तों से मान्यता पाना बंद कर देते हैं।

जब आप सबसे पहले आगे बढ़ते हैं, तो आपकी उन्नति लोगों को भ्रमित कर देगी। यह कुछ लोगों को डराएगी, दूसरों को नाराज़ करेगी और असुरक्षित लोगों को परेशान करेगी।

लेकिन, भविष्य का करोड़पति जल्दी सीख जाता है।

  • वे आत्मविश्वास के साथ अपने रास्ते पर चलते हैं, भले ही वे अकेले ही क्यों न चलें।

6. वे असहज निरंतरता का निर्माण करते हैं।

निरंतरता उनका कवच है।

  • वे तब अभ्यास करते हैं, जब दूसरे आराम करते हैं।
  • वे तब अध्ययन करते हैं, जब दूसरे सोते हैं।
  • वे तब सुधार करते हैं, जब दूसरे शिकायत करते हैं।
  • वे तब अभ्यास करते हैं, जब दूसरे टालमटोल करते हैं।

और क्योंकि वे रुकने से इनकार करते हैं, इसी कारण अंततः गरीबी उनका पीछा करना बंद कर देती है।

7. वे व्यक्तिगत रुप से नहीं, बल्कि पीढ़ीगत रुप से सोचते हैं।

आम लोग सोचते हैं,

  • “मैं इस महीने कैसे गुज़ारा कर सकता हूँ?”

लेकिन, पहला करोड़पति सोचता है, “मैं अपने पीढ़ी के अगले 50 साल कैसे बदल सकता हूँ?”

  • वे अपने आने वाले संतान के लिए योजनाएँ बनाते हैं।
  • वे उन आदतों को त्याग देते हैं, जिन आदतों ने पिछली पीढ़ियों को बर्बाद कर दिया।
  • वे वह बनाते हैं, जो दूसरों को विरासत में मिलेगा।

यह दीर्घकालिक मानसिकता पीढ़ीगत स्वतंत्रता का निर्माण करती है।

प्रिय पाठक, अपने परिवार में पहला करोड़पति बनना जीवनशैली में सुधार नहीं, बल्कि मानसिकता में बदलाव है।

  • तुम लोगों को नाराज़ करोगे।
  • तुम लोगों से आगे निकल जाओगे।
  • तुम लोगों को निराश करोगे।
  • तुम ऐसे रास्तों पर चलोगे, जिन्हें कोई और नहीं समझता।

लेकिन, जब यह चक्र टूटेगा, तो तुम्हारे अपने तुम्हें धन्यवाद देंगे। अगर तुम इस चक्र को तोड़ने वाले बनने के लिए तैयार हो, तो कमेंट मैं “मैं पहला हूँ” लिखो।

अगर आपको मेरी जानकारी उपयोगी लगे, तो “मैं सीख रहा हूँ” कमेंट करें और दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए शेयर जरुर करें। आइए, साथ मिलकर सीखें और आगे बढ़ें।

ईश्वर आपका भला करें ! धन्यवाद

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