जीवन का अर्थ क्या है? What is the Meaning of Life?

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अधूरेपन का पूरा अर्थ है जीवन

जीवन का अर्थ

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जीवन का अर्थ तलाशते हुए पूरा जीवन बीत जाता है, लेकिन संपूर्ण परिभाषा नहीं मिलती। ऐसा क्यों होता है, इस सवाल का जवाब नहीं मिलता। वजह साफ है – हम जीवन को दैवीय स्वरुप में देखते-परखते हैं। हम जीवन की पड़ताल करते समय इसकी उदात्त, वृहद और जटिल संरचना को समझने की कोशिशें करते हैं और निष्कर्ष के विभिन्न पैमानों पर मापतौल करने में व्यस्त हो जाते हैं। इसके विपरीत सरलता के साथ जीवन की परतों की छानबीन करें तो यूं ही, यकायक, सामने आ जाएगा – जीवन का अर्थ।

ज़िंदगी के मायने हजार हैं। ऐसे ही इसके विविध रंग हैं। इसे समझने के अलग-अलग विचार और अंतर्दृष्टियां हैं, लेकिन ज़िंदगी इनके साथ-साथ, इन परिभाषाओं से एकदम अलग सामने आती है। जीवन इतना अर्थवान है कि इसके हर पहलू का अर्थ जुदा है और अपने आपमें संपूर्ण भी। गुणीजन बताते हैं कि अधूरा जीवन हमें प्रभावित नहीं करता। इससे अलग खास बात यह कि ज़िंदगी में अधूरेपन के अपने ही मायने हैं, जिसे समझने के लिए जरुरी है कि हम अर्थवत्ता की अपनी परिभाषा थोड़ी दुरुस्त कर लें, अपने ख्वाबों के पर कुछ समेटने की कोशिश कर लें।

बचपन के दिनों में लौटिए

बचपन के दिनों में लौटिए, याद कीजिए – पांच-छह साल की उम्र। उस वक्त गणित की दुरुह पहेलियां हल करने का कौशल नहीं था, लेकिन ज़िंदगी किस कदर आसान लगती थी। रिश्तों की छानबीन हम नहीं कर पाते थे, लेकिन हर संबंध अपने आपमें मुकम्मल था।

बच्चे क्या जानें, मामा-फूफा-बुआ-मासी जैसे तरह-तरह के रिश्तों की बनावट, लेकिन हर गोद में माता-पिता की ममता और गर्माहट तलाश लेते हैं। पारिवारिक रिश्ते ही क्यों – आस-पड़ोस के लोग, दूधवाले, हॉकर और वॉचमैन के साथ भी वैसे ही प्यार भरी रिश्तेदारी होती है उनकी। कहने को बड़े होकर ज़िंदगी, समाज, संबंधों और अस्तित्व की छानबीन हम करने लायक हो जाते हैं, लेकिन बचपन-सी निश्छलता और भावबोध कहीं गुम हो जाता है। है कि नहीं?

जीवन को समझने का प्रयास

ज़िंदगी को हम नए तर्जुमान देने की कोशिश अलग-अलग अंदाज में करते हैं। कोई घरेलू रहकर जीवन को समझने का प्रयास करता है तो कई लोग संन्यासी की राह पर आगे बढ़ जाते हैं। किसे, कहां, किस तरह ज़िंदगी मिली, उसका अर्थ पता चला – यह समझना उतना ही जटिल है, जीतनी ज़िंदगी और हां, जीवन की तरह ही यह बहुत सरल भी है। जीवन अपने आप में विकट पहेली है और इसका सारतत्व समझना बहुत सरल भी है। नारियल की खोज जीतनी कठिन है ज़िंदगी और उसके गुदे जैसी ही मीठी और रसभरी भी।

इस यात्रा में बहुत-से लोग संन्यास मार्ग अपनाने के बाद पुनः गृहस्थ बन गए हैं। कारण साफ है, संन्यास का मार्ग चुनते समय उनके मन में शंका थी। समर्पण संपूर्ण नहीं था। कहीं न कहीं संन्यासी होने का निश्चय करने वाले ऐसे लोगों ने सोचा होगा – यह पूरी तरह सही नहीं है। पूरा समर्पण हो तो लौटने का रास्ता नहीं बचता, क्योंकि एक पायदान तक पहुंचने के बाद निचली सीढ़ी वैसे ही हट जाती है। गृहस्थी में लौटने की वजह क्या थी। यही कि संन्यास में भी जीवन के मुकम्मल होने का एहसास नहीं मिला। अंतर्मन में यह विचार बना रह गया कि संन्यास के अलावा, संसार में भी जीवन को संपूर्ण बनाने की कोशिश की जा सकती है।

संपूर्णता क्या है?

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संपूर्णता क्या है? और किसी मायने में अगर हम संपूर्ण हो भी गए तो, क्या वह सच्चे अर्थ में संपूर्ण होना हुआ? एक अर्थ में बचपन उम्र की संपूर्ण अवस्था है और कैशोर्य भी। कुछ लोग मानते हैं कि वृद्धावस्था में व्यक्ति संपूर्ण होता है, क्योंकि तब उसके विचार गंभीर बन पाते हैं, लेकिन इसे क्या कहेंगे कि बुढ़ापे में मन चंचल हो जाता है और बचपन की ओर लौटने की ख्वाहिश पालने लगता है। कागज की किश्तियां पानी में तैराने और दादी की कहानियां फिर सुनने को आतुर हो उठता है। साफतौर पर वय का पुष्ट होना भी संपूर्णता नहीं है। फिर संपूर्णता क्या है। क्या यह एक भ्रम है? और अधूरा होना ही ध्रुवसत्य…?

हमने अपनी पूरी उम्र जी ली। ज़िंदगी का आखिरी लम्हा है और मन में इच्छा जन्म ले रही है – कुछ सांसें और मिल जातीं तो बचे काम पुरे कर लेते। यह भी छटपटाहट है। पूरी उम्र अधूरी लग रही है। मुकम्मल होने का भ्रम और उसकी तलाश किसलिए? जीवन में अक्सर बना रहता है एक अधूरापन, जो बार-बार उठकर टोकता है – यह वह राह नहीं, जिस पर चलना चाहा था और यह भी – जीवन मुकम्मल कहां हुआ है? मतलब यही कि अंततः कुछ न कुछ है, जो अधूरा लगना है, अधूरा रह जाना है, फिर अपूर्णता से परहेज क्यों?

कुदरत में कुछ भी संपूर्ण नहीं है

दुनिया में कुछ भी समूर्ण, यानिकी मुकम्मल नहीं है। महान ग़ज़लकार निदा फ़ाज़ली अपनी एक ग़ज़ल में कहते है,

“कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता

कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता “

कुदरत में ऐसा कुछ नहीं है, जो मुकम्मल हो। इसकी वजह ईश्वर नहीं है। ईश्वर ने सबको सब कुछ दिया है। बात गुणों की है, भौतिक संपत्ति की नहीं। व्यक्ति अपने कर्मों और परिवेश के अनुसार भौतिक सुख-समृद्धि या तो अर्जित कर पाता है या फिर विचलन का शिकार हो जाता है। ऐसे में कभी, कुछ मुकम्मल नहीं होता। कई बार सुख-संपत्ति अपार होती है, लेकिन मन वैरागी होना चाहता है। कही और, वैराग्य में संसार की ओर मुड़ने की इच्छा जन्म ले लेती है। असल मायने में सोच इसका कारण है। यह आप पर निर्भर करता है। इसके साथ ही यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि निराशा का गलियारा हमेशा अंधेरे से लबालब रहता है। इस सफर में रोशनी की एक किरण भी नहीं मिलती।

एक-दो उदाहरण देख लेते हैं। कभी सोचने बैठिए, हमने जीवन में क्या हासिल किया। पता लगेगा – ढेर सारी असफलताओं की लिस्ट आंखों के सामने आकर टंग गई है। यही नहीं, किसी को लेकर मन में दबी ईर्ष्या भी सिर उठाकर खड़ी हो जाएगी। हां, फलां ने तो वह मुकाम हासिल कर लिया और मैं हूं कि पीछे ही रह गया – जैसे भाव, लेकिन गौर करें कि हमें क्या-क्या मिला, कौन-सी उपलब्धियां हमारे हिस्से में आई तो आंखें खुली रह जाएंगी। चेहरे पर ख़ुशी छलकने लगेगी। तब लगेगा, ऐसा क्या है, जो अपने हिस्से नहीं आया है। स्वजनों का प्रेम, बेहतर रोजगार, सुंदर किताबें, खूबसूरत कुदरत – सब तो है अपने पास। बात वही फिर दोहरानी होगी की परिभाषा क्या है? हम जीवन के किस अर्थ की तलाश कर रहे हैं?

अंतमें…

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में ‘जीवन’ के अर्थ की जो बात की गई है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। अगर आप इस Article से प्रेरित हुए हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

दस महान लोग जिन्होंने दिखाया दुनिया को रास्ता 10 Great People Who Showed the Way to the World

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हम सबके जीवन में कभी न कभी महान लोगो (Great People) का प्रभाव पड़ा ही होता है। आज हम, विश्व फलक पर जिन महान लोगो का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है, उनके बारे में संक्षिप्त में जानेंगे। ये सब वे महान प्रतिभाए है, जिन्होंने दुनिया को जीवन जीने का सही रास्ता दिखाया।

1. कन्फ्यूसियस : लोकतांत्रिक शासन की हिमायत

कन्फ्यूसियस 551 ई.पू. 479 ई.पू 2 1024x538

“श्रेष्ठ व्यक्ति जो खोजता है, वह स्वयं में है। छोटा व्यक्ति जो खोजता है, वह दूसरों में है।”

कन्फ्यूसियस, चीन के बड़े विचारक और राजनीतिशास्त्र के प्रणेता थे। उन्होंने शासक और जनता के बीच संबंधों और राजनीति की आचारनीति व शुचिता पर इतनी खरी-खरी बातें कहीं कि तत्कालीन चीन का शासकवर्ग उनसे रुष्ट हो गया।

551 ईसा पूर्व से 479 ईसा पूर्व में वह पूर्वी दुनिया के महत्वपूर्ण दार्शनिक और विचारक थे। वह लोकतंत्र जैसी शासन पद्धति की हिमायत करते थे। कन्फ्यूसियस को उनके विचारों के कारण निर्वासित कर दिया गया। उनका जीवन शिष्यों के साथ चीन की यात्रा करते हुए बीता।

2. सुकरात : सत्य की अमरता के लिए मृत्यु का आलिंगन

सुकरात 470 ई.पू. 399 ई.पू 1024x538

“मजबूत दिमाग विचारों पर चर्चा करते हैं, औसत दिमाग घटनाओं पर चर्चा करते हैं और कमजोर दिमाग लोगों पर चर्चा करते हैं।”

महान दार्शनिक सुकरात (सॉक्रेटीस) का जन्म यूनान की रानी कहे जाने वाले अत्यंत सुंदर और समृद्ध नगर एथेंस में हुआ था। उनके पिता सोफ्रोनिस्कोस प्रस्तर खंडो की सजीव भाव-प्रवण मूर्तियां बनाने में सिद्धहस्त थे। उनकी माता का नाम फेनारत था।

सत्य के लिए उन्होंने विष का प्याला भी हंसते-हंसते पी लिया। मृत्यु का डर भी उनके इरादों को डगमगा नहीं पाया। सत्य को अपने आचरण में जीने वाले लोग इतिहास में सदा अमर रहे हैं और सुकरात भी उन्हीं में से एक थे।

यूनान के महान दार्शनिक सुकरात का जीवन उनके आदर्शों और सिद्धांतों का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने दार्शनिकता को जैसे फलक से उतारकर धरती पर ला स्थापित किया था। उनकी चेतना में इतनी सृजन क्षमता थी कि वह आगे दो पीढ़ियों तक अपनी धारा को चला सके।

सुकरात उस युग के नहीं, बल्कि किसी भी युग के सबसे महान व्यक्तियों की गितनी में आते हैं। अपने जीवन में सुकरात ने सत्य और ज्ञान के प्रचार का काम किया, लेकिन उससे भी ज्यादा काम उन्होंने अपनी मृत्यु के द्वारा किया। उनकी अंत्येष्टि के बाद यूनानवासियों ने उनकी मृत्यु पर पश्चाताप करना प्रारंभ कर दिया। अभियोगकर्ताओं का पूरे विश्व में बहिष्कार कर दिया गया और उनमें से दो ने तो आत्महत्या तक कर ली। यह निश्चित है कि यदि सुकरात को शहीद की मृत्यु न मिलती तो उनके उपदेशों को संसार ने इतनी गहराई से अनुभूत न किया होता।

महान दार्शनिक और महा ज्ञानी सुकरात के अंतिम शब्द थे – “मैं सत्य हूं और सत्य कभी नहीं मर सकता। तुम मर जाओगे, लेकिन मैं कभी नहीं मरुंगा।”

3. प्लेटो : महान सच की खोज

प्लेटो 428 ई.पू. 348 ई.पू 1024x538

चित्र साभार :ऑगस्टाइन अकादमी

चित्रकार : रैफेलो सैंज़ियो

यह प्रसिद्ध चित्र “एथेंस का स्कूल” में, बीच में दाईं ओर अरस्तू को समझौता करने के लिए हाथ बढ़ाते हुए, जबकि बाईं ओर प्लेटो अपनी तर्जनी उंगली आकाश की ओर उठाए हुए हैं।

“समझदार व्यक्ति इसीलिए बोलता है, क्योंकि उसके पास बोलने के लिए या दुसरो से बांटने के लिए कई अच्छी बाते होती है, लेकिन एक मुर्ख व्यक्ति इसीलिए बोलता है, क्योंकि उसे कुछ न कुछ बोलना होता है।”

प्लेटो सुकरात के शिष्य और अरस्तू के गुरु थे। उच्च शिक्षा देने के लिए दुनिया का पहला विद्यालय उन्होंने ही स्थापित किया – ‘द एकेडमी ऑफ एथेंस’। उनका बनाया ये स्कूल छठी शताब्दी तक जारी रहा। ज्ञान के सभी क्षेत्रों में वह शिक्षित थे।

सुकरात और अरस्तू की तरह वह महान सच की खोज में लगे रहे। वह मानते थे कि क्यूंकि आत्मा अमर है, इसलिए इसकी चेतना, चक्र के रुप में घूमती रहती है, इसलिए मानव कभी नया नहीं सीखता, वो बस अपने पिछले जन्मों में किए गए कार्यों को अचेतन में याद रखता है।

4. अरस्तू : तर्कशास्त्र का असर

अरस्तू 384 ई.पू. 322 ई.पू 1024x538

चित्र साभार :ऑगस्टाइन अकादमी

चित्रकार : रैफेलो सैंज़ियो

“दो चीजें अनंत हैं : ब्रह्मांड और मनुष्य की मूर्खता, ओर में ब्रह्मांड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता।”

अरस्तू महान यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य और महान सिकंदर के गुरु थे। दर्शनशास्त्र, भौतिकी, अध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र जैसे अनेक विषयो में वे पारंगत थे। वे पश्चिमी दर्शनशास्त्र के महान दार्शनिकों में से एक थे।

अरस्तू के विचारों ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला। पुनर्जागरण पर भी इसका असर दिखा। जीवविज्ञान में उन्होंने जो कुछ काम किया, उनकी उन संकल्पनाओं की पुष्टि 19वीं सदी में हुई। उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासंगिक हैं। अरस्तू की आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया।

5. आचार्य चाणक्य : कूटनीति के प्रकांड पंडित

आचार्य चाणक्य 370 ई.पू. 283 ई.पू 1024x538

“वन की अग्नि चंदन की लकड़ी को भी जला देती है, अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकती है।”

आचार्य चाणक्य ‘कौटिल्य’ नाम से भी विख्यात हैं। उनका मूल नाम ‘विष्णुगुप्त’ था। वे महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। उन्होंने नंदवंश का नाश करके चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। राजनीति और कूटनीति के वह प्रकांड विद्वान् थे।

राष्ट्रीय नीतियों, रणनीतियों तथा विदेश संबंधों पर लिखी गई ‘अर्थशास्त्र’ उनकी सर्वाधिक विख्यात पुस्तक है। प्रबंधन की द्रष्टि से एक राजा तथा प्रशासन की भूमिका तथा कर्तव्यों को यह पुस्तक स्पष्ट करती है। चाणक्य का दर्शन व्यावहारिक ज्ञान पर टिका है। आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया।

6. जॉन लॉक : व्यक्तिगत आजादी के हिमायती

जॉन लॉक ई.1632 ई.1704 1024x538

“समझ में सुधार के लिए दो छोरों पर काम करना चाहिए : पहला – ज्ञान की हमारी अपनी वृद्धि, दूसरा – हमें उस ज्ञान को दूसरों तक पहुँचाने में सक्षम बनाने के लिए।”

जॉन लॉक आधुनिक राजनीतिशास्त्र के सबसे महत्वपूर्ण विचारकों में से एक थे। उन्हें उदारवाद का जनक कहा जाता है। उन्होंने मानवीय विकास का सिद्धांत दिया।

अमेरिका के संविधान और स्वतंत्रता के घोषणापत्र पर उनके विचारों का स्पष्ट प्रभाव दिखा। वे व्यक्तिगत आज़ादी के हिमायती भी थे। उनका मानना था कि जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति का संरक्षण मनुष्य के बुनियादी अधिकार हैं।

7. डेविड ह्यूम : ज्ञान में विश्वास

डेविड ह्यूम ई.1711 ई.1776 1024x538

“जीवन का सबसे मधुर मार्ग सीखने के रास्तों से होकर जाता है, और जो कोई दूसरे के लिए रास्ता खोल सकता है, उसे अब तक मानव जाति के लिए परोपकारी माना जाना चाहिए।”

डेविड ह्यूम स्कॉटलैंड के महान दार्शनिक थे। उन्होंने एडिनबरा विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, किंतु वहां से उन्होंने कोई उपाधि नहीं ली। दर्शन के क्षेत्र में ज्ञान, सत्ता, नीति एवं धर्म के विषय में उनके विचार बहुत महत्त्व रखते हैं। ये भी कह सकते हैं कि उनके विचारों का प्रभाव आज के दर्शन पर बहुत है।

डेविड ह्यूम ज्ञान में विश्वास को अलग तरह से देखते थे। उनके अनुसार, हमारी ज्ञान शक्ति या बोध शक्ति की सीमा अनुभव की सीमा है। नैतिक निर्णय बुद्धि नहीं बनाती। बुद्धि तो केवल संबंधित तथ्यों का विश्लेषण भर कर देती है।

8. इमानुएल कांट : मनुष्यता के साथी

इमानुएल कांट ई.1724 ई.1804 1024x538

“जो जानवरों के प्रति क्रूर है, वह मनुष्यों के साथ भी कठोर व्यवहार करता है। हम जानवरों के साथ उसके व्यवहार से उस मनुष्य के हृदय का अंदाज़ा लगा सकते हैं।”

इमानुएल कांट जर्मन दार्शनिक, नीतिशास्त्री एवं वैज्ञानिक थे। वह अपने इस प्रचार से प्रसिद्ध हुए कि मनुष्य को ऐसे काम और बातें करनी चाहिए, जो मनुष्यता के लिए अच्छी हों। वे जर्मनी के पूर्वी प्रशा के कोनिगुजबर्ग में घोड़े का साधारण साज बनाने वाले के घर में जन्मे थे। ये जगह अब रुस में है।

इमानुएल कांट के घर का माहौल धार्मिक था, इसलिए उन पर काफी असर पड़ा। बाद में उन्होंने भौतिकशास्त्र, गणित और धर्मशास्त्र में उच्च शिक्षा ग्रहण की। उनका ज़्यादातर जीवन संघर्ष करते हुए साधारण स्थिति में बीता। उनके दर्शन में आध्यात्मिकता और धार्मिकता कूट-कूट कर भरी है। 1770 के बाद उनकी आर्थिक स्थिति और पद स्थिति सुधरने लगी। ‘शुद्ध बुद्धि की समीक्षा’ नामक उनका पुस्तक सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक कृति मानी जाती है, जिसे लिखने में उन्हें 12 साल लग गए।

9. कार्ल मार्क्स : शोषण के विरुद्ध

कार्ल मार्क्स ई.1818 ई.1883 1024x538

“इतिहास स्वयं को दोहराता है। पहले त्रासदी के रुप में, दूसरा प्रहसन के रुप में।”

कार्ल मार्क्स ने वो सिद्धांत गढ़े, जिन पर आधुनिक कम्युनिज़्म का जन्म हुआ। वह अनीश्वरवादी थे। वह काफी हद तक हेगेल के आदर्शवादी दर्शन से प्रभावित थे। मार्क्स जर्मनी में जन्मे थे, लेकिन अधिकांश जीवन इंग्लैंड में बीता।

उन्होंने कहा था कि दुनिया में दो ही वर्ग हैं – पूंजीपति और श्रमिक। हालांकि उनका मानना था कि पूंजीवाद ढह जाएगा और फिर सर्वहारा वर्ग दुनिया को चलाएगा। वर्ग संघर्ष में पूंजीवाद को घुटने टेकने होंगे।उन्हें आर्थिक समाजशास्त्र का प्रणेता माना जाता है। उनकी दो किताबें – कम्युनिस्ट मैनिफिस्टो और दास कैपिटल कई देशों में राजनीतिक क्रांति का प्रमुख औजार बनीं।

10. स्वामी विवेकानंद : युवाओं के प्रेरणास्त्रोत

स्वामी विवेकानंद ई.1863 ई.1902 1024x538

“जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है।”

स्वामी विवेकानंदजी वेदांत के विख्यात आध्यात्मिक गुरु एवं विश्वभर के युवाओं के प्रेरणास्त्रोत है। उनका जन्म ‘मकरसक्रांति’ के पवित्र दिन कलकत्ता में हुआ था। उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस थे।

गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के अवसान के बाद उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की और ब्रिटिश भारत में तत्कालीन स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया। बाद में उन्होंने अमेरिका के शिकागो में 1893 में आयोजित ‘विश्व धर्मपरिषद’ में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने 11 सितंबर, 1893 की दिन ‘विश्व धर्मपरिषद’ में अपना प्रसिद्ध संबोधन दिया था। उन्हें प्रमुख रुप से उनके संबोधन का आरंभ “अमेरिकी भाइयों एवं बहनों” के साथ करने के लिए जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

विवेकानंदजी ने सयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में ‘हिंदू दर्शन’ के सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। उनके जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रुप में मनाया जाता है।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में, ‘महान प्रतिभाओं’ के बारे में जो जानकारी दी गई है, इससे आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। अगर आपको ये Article अच्छा लगा हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

अतीत के श्रेष्ठ दस प्रेरक प्रसंग Best 10 Inspiring Events of the past Hindi

अतीत के श्रेष्ठ दस प्रेरक प्रसंग Best 10 Inspiring Events Of The Past Hindi 1024x538

अतीत में बने महान लोगों से जुड़े प्रसंग, हमारे जीवन में हमेंशा प्रेरणा का स्त्रोत बने रहते है।

1. सच कहने की हिम्मत

सच कहने की हिम्मत

स्वामी विवेकानंदजी बचपन से ही एक मेघावी छात्र थे और सभी उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे। जब वे साथी छात्रों को कुछ बात कहते तो सब मंत्रमुग्ध हो उन्हें सुनते।

एक दिन वे कक्षा में कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब मास्टर जी कक्षा में आए और पढ़ाना शुरु कर दिया। मास्टर जी ने अभी पढ़ाना शुरु ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी।

‘कौन बात कर रहा है?’ मास्टर जी ने तेज आवाज में पूछा, सभी ने विवेकानंदजी और उनके साथ बैठे छत्रों की तरफ इशारा कर दिया।

मास्टर जी तुरंत क्रोधित हो गए, उन्होंने तुरंत उन छोत्रों को बुलाया और पाठ से संबंधित एक प्रश्न पूछने लगे। जब कोई भी उत्तर न दे सका, तब अंत में मास्टर जी ने विवेकानंदजी से भी वही प्रश्न किया। पर नरेंद्र तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों, उन्होंने आसानी से उत्तर दे दिया। यह देख मास्टर जी को यकीन हो गया कि नरेंद्र पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बातचीत में लगे हुए थे। फिर क्या था। उन्होंने नरेंद्र को छोड़ सभी छात्रों को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी छात्र एक-एक कर बेंच पर खड़े होने लगे, नरेंद्र ने भी यही किया।

तब मास्टर जी बोले, ‘नरेंद्र, तुम बैठ जाओ।’

‘नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा, क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था।’

2. विरोध करने से नहीं डरना चाहिए

विरोध करने से नहीं डरना चाहिए

एक बार हेनरी थोरो ने किसी से कहा, ‘लोकतंत्र पर मेरी आस्था है, पर वोटों से चुने गए व्यक्ति स्वेच्छाचार करें, मैं यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। राजसंचालन उन व्यक्तियों के हाथ में होना चाहिए, जिसमें मनुष्य मात्र के कल्याण की भावना और कर्तव्य-परायणता विद्यमान हो और जो उसकी पूर्ति के लिए त्याग भी कर सकते हों।’

किसी ने उन्हें कहा, ‘यदि ऐसा न हुआ तो?’

उन्होंने कहा, ‘तो हम ऐसी राज्य सत्ता के साथ कभी सहयोग नहीं करेंगे, चाहे उसमें हमें कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पड़े।’

वे सविनय-असहयोग आंदोलन के प्रवर्तक थे। उनका कहना था, ‘अन्याय चाहे अपने घर में होता हो या बाहर, उसका विरोध करने से नहीं डरना चाहिए और कुछ न कर सके तो भी बुराई के साथ सहयोग तो करना ही नहीं चाहिए। बुराइयां चाहे राजनीतिक हों या सामाजिक, नैतिक हों या धार्मिक, जिस देश के नागरिक उनके विरुद्ध खड़े हो जाते हैं, सविनय-असहयोग से उसकी शक्ति कमज़ोर कर देते हैं।’

3. साधारण क्यों न रहूं?

साधारण क्यों न रहूं

हेनरी फ़ोर्ड संसार के सबसे धनी एवं विख्यात व्यक्तियों में से एक थे।

उनसे एक बार किसी ने पूछा, ‘आपकी गणना विश्व के प्रमुख धनपतियों में होती है, फिर भी आप इतने साधारण तरीके से क्यों रहते हैं?’

फ़ोर्ड ने जवाब दिया, ‘भाई, मैं जानता हूं कि मैं फ़ोर्ड हूं। तुम जानते हो कि मैं फ़ोर्ड हूं। सब जानते हैं कि मैं फ़ोर्ड हूं। मैं अगर महंगे कपड़े पहनूंगा, तब भी फ़ोर्ड ही रहूंगा और साधारण कपड़ों में भी। फिर बताओ, मैं साधारण क्यों न रहूं?’

फ़ोर्ड का जवाब सुनकर प्रश्नकर्ता निरुत्तर हो गया।

4. भाग्य क्या है?

भाग्य क्या है

महान वैज्ञानिक टॉमस आल्वा एडीसन अपना प्रयोग सफल हो जाने की ख़ुशी में अपने दोस्तों के साथ जश्न मना रहे थे। तभी एक पत्रकार ने उनसे पूछा, ‘क्या आपकी सफलता का कारण आपका भाग्य है?’

एडीसन ने मुस्कुराकर कहा, ‘भाग्य क्या है, एक औंस बुद्धि और एक टन परिश्रम।’

जब हम अपने असफल होने का दोष अपने दुर्भाग्य को देते हैं, तो हम यह भूल जाते हैं कि उसमें हमारे परिश्रम का आभाव कितना है?

5. आत्मा की ऊंचाई

आत्मा की ऊंचाई

एक बार एक व्यक्ति प्रख्यात दार्शनिक देकार्त को काफ़ी बुरा-भला कहने लगा। देकार्त चुपचाप उसकी बातों को सुनते रहे। अंत में वह देकार्त का कोई उत्तर न पाकर चला गया।

यह देखकर उनके एक मित्र ने कहा, ‘उस व्यक्ति ने तुम्हें क्या कुछ नहीं कह दिया और तुम चुपचाप सुनते रहे। तुम्हें बदला लेना चाहिए था, उसका व्यवहार तुम्हारे प्रति काफ़ी बुरा था।’

देकार्त मुस्कुराकर बोले, ‘जब कोई व्यक्ति मुझसे बुरा व्यवहार करता है तो मैं अपनी आत्मा को उस ऊंचाई पर ले जाता हूं, जहां कोई दुर्व्यवहार उसे छू नहीं सकता।

6. एडीसन और उनकी योजना

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महान वैज्ञानिक टॉमस आल्वा एडीसन के 55वें जन्मदिवस पर उनके सम्मान में एक प्रीतिभोज का आयोजन किया गया। समारोह में एक पत्रकार ने उनसे पूछा, ‘अब आगे के लिए आपकी क्या योजना है? आप क्या करना चाहेंगे?’

एडीसन ने उत्तर दिया, ’75 वर्ष की आयु तक मैं अपनी किसी वैज्ञानिक अनुसंधान में व्यस्त रहूंगा। 75 वर्ष की आयु में ब्रिज खेलना सीखूंगा। 80 वर्ष की आयु में महिलाओं के साथ बैठकर गप्पे लड़ाऊंगा और 85 वर्ष की आयु में गोल्फ खेलने का अभ्यास करना चाहूंगा।’

और 90 वर्ष की आयु में?’ अचानक एक महिला पत्रकार ने पूछा।

एडीसन ने तत्काल उत्तर दिया, ‘मैं केवल अगले 30 वर्ष के लिए ही योजना बनाने में विश्वास करता हूं।’

एडीसन का यह उत्तर सुन समारोह में एक चुप्पी छा गई और कुछ ही पल बाद ठहाका गूंजा।

7. सम्राट की सहायता

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बर्लिन के समीप पॉट्स डाम राजमहल की दीवार पर लगी एक बहुमूल्य घड़ी को एक आदमी उतारने की कोशिश कर रहा था, पर सीढ़ी पर पैर बार-बार फिसल जाते थे। इसलिए उतारने वाला अपने प्रयास में सफल नहीं हो पा रहा था।

इसी बीच सुबह हो गई। सम्राट फ्रेडरिक जगे और उस असफल प्रयास को कुछ देर देखते रहे फिर उस उतारने वाले के पास गए और पूछने लगे, ‘तुम कौन हो और यह सब क्या कर रहे हो?’

उतारने वाले ने साहस और धैर्य पूर्वक कहा, ‘मैं शाही घड़ीसाज़ हूं। मरम्मत के लिए यह घड़ी उतारनी है, पर सीढ़ी पर पैर जम ही नहीं पाते।’

सम्राट फ्रेडरिक ने स्वयं सीढ़ी पकड़ ली और उस व्यक्ति को घड़ी उतारने में सहायता की। उसने घड़ी उतारी, बग़ल में दबाई और चलता बना।

दूसरे दिन फ़रियाद हुई की दीवानख़ाने की क़ीमती घड़ी कोई चुरा ले गया। सम्राट को चोर के साहस और धैर्य पर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई। फ़रियाद के कागज के एक कोने में सम्राट फ्रेडरिक ने लिखा कि ‘वह चोर सम्राट की सहायता से अपना मनचाहा उपहार पाने में सफल हुआ।’

8. जवाब

जवाब

मशहूर फ्रेंच फिलॉसफर ब्लेज पास्कल के पास एक व्यक्ति आया और बोला, ‘अगर मेरे पास आप जैसा दिमाग हो, तो मैं एक बेहतर इंसान बन सकता हूं।’

पास्कल ने जवाब दिया, ‘तुम पहले एक बेहतर इंसान तो बनो, तुम्हारा दिमाग अपने आप मेरे जैसा हो जाएगा।’

9. कोई क्या कहेगा?

कोई क्या कहेगा

शहनाई के जादूगर उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां साहब, जिन्होंने शहनाई जैसे लोकवाद्य को शास्त्रीयता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जीवन के अंतिम क्षणों तक शहनाई वादन की साधना करते रहे।

उनकी अथक साधना व योगदान के फलस्वरुप भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। ‘भारत रत्न’ मिलने के बाद भी बिस्मिल्ला ख़ां साहब अत्यंत सादगी से रहते थे और आंगतुकों से एकदम साधारण कपड़ों में ही मिलने चले आते थे।

एक बार तो वे पुरानी व फटी हुई तहमद बांधे ही आंगतुकों आंगतुकों से मिलने चले आए। ये देखकर उनकी एक शिष्या को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने हिम्मत करके ख़ां साहब से कह ही दिया, ‘बाबा, आपको ‘भारत रत्न’ मिल चूका है और आप ऐसे मामूली से कपड़े पहने ही लोगों से मिलने चले आते हैं, ये हमें अच्छा नहीं लगता। अपनी तहमद तो देखिए, जो कई जगह से फट गई है।’

अपनी शिष्या के ऐतराज़ पर बिस्मिल्ला ख़ां साहब ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘बिटिया, ‘भारत रत्न’ हमें लुंगिया पर थोड़े ही मिला है, ये तो हमें शहनाई के कारण मिला है।’ ‘कोई क्या कहेगा?’ इसकी परवाह न कर।’ अपनी सादगी, संगीत के प्रति समर्पण व निरंतर अभ्यास (रियाज़ ) के कारण ही बिस्मिल्ला ख़ां साहब विश्व के महान शहनाई वादक बन सके, इसमें संदेह नहीं।

10. हम साथ-साथ हैं

हम साथ साथ हैं

एक उद्योगपति कारखाना चलाता था। उसके यहां हमेशा मालिक-मजदूर संघर्ष होता रहता था। जब वह इस समस्या से तंग आ गया, तब उसने हेनरी फ़ोर्ड से परामर्श करने तथा उनके अनुभव का लाभ उठाना चाहा।

वह फ़ोर्ड कंपनी के कारखाने में जा पहुंचा। उसने फ़ोर्ड को लंदन के कमरे में नहीं पाया। पूछने पर पता चला कि फ़ोर्ड आए तो हैं, लेकिन वे सादा कपड़े पहने मजदूरों के साथ परिश्रम कर रहे हैं। उसने फ़ोर्ड को अपने पास बुलवाया और कहा, ‘आप तो इस कारखाने के मालिक हैं। ये मजदूर आपके कर्मचारी हैं। इनसे इतना घुलना-मिलना ठीक नहीं। अगर इतना घुलेंगे-मिलेंगे तो अनुशासन कैसे रह पाएगा?

फ़ोर्ड मुस्कुराए और बोले, ‘मेरे यहां तो अनुशासन की समस्या ही नहीं। कभी मालिक-मजदूर विवाद नहीं होता। मेरे मजदूर मुझे अपने में से एक समझते हैं। मैं कभी स्वयं को मालिक और उन्हें मजदूर नहीं मानता। हम लोग साथ-साथ काम करते हैं, समस्याओं को मिलकर सुलझाते हैं। हम लोगों में बड़ी आत्मीयता है। फिर फ़ोर्ड ने पूछा, ‘आपका यहां आना कैसे हुआ?

उसे उद्योगपति ने उत्तर दिया, ‘मैं कुछ प्रश्न और समस्याएं लेकर आपके पास आया था, परंतु बिना पूछे ही उनका उत्तर मिल गया। मेरे सारे प्रश्नों का उत्तर आपकी सादगी, श्रम और आत्मीयता से मिल गया।’

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में, अतीत के श्रेष्ठ दस प्रेरक प्रसंग दिए गए है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देंगे। आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

डर को कैसे जीते? How to Overcome Fear in Hindi

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हम सबके अलग-अलग डर

हम सबका अपना डर(Fear) हैं, जो अलग-अलग मनोस्थितियों और परिस्थितियों से उपज सकते हैं। मृत्यु का डर, धन हानि का डर, अपयश का संकट जटिल डर हैं। इनका सामना करने के लिए बड़े साहस की जरुरत है, लेकिन इनसे भिड़ने से पहले छोटे-छोटे डरों से मुक्त होना होगा। कई बार डर हमारी इच्छाओं से पैदा होते हैं, कई बार बचपन की कुछ स्मृतियों से तो कई बार हमारी कमजोरियों से भी, लेकिन सबसे बड़ा सत्य यह है कि कभी न कभी हमारा डर हमारे सामने साक्षात आकर खड़ा हो जाता है।

बचपन का डर

कुछ भी नया करते समय सबसे पहले मन के अंदर से डर की आवाज़ उभरती है। यही मौका है कि उस पर काबिज होना सीख लें। यकीनन, जिन लोगों ने बड़े-बड़े लक्ष्यों को साधा है और आप जिन्हें मंत्रमुग्ध भाव से सराहते हैं, देखते हैं, वे सब के सब कभी न कभी अपने-अपने अभ्यास में असफल हुए होंगे, चोटिल हुए होंगे। वे हारे नहीं, डरे नहीं, इसलिए शीर्ष तक पहुंचे।

याद कीजिए – बचपन में साइकिल चलाना सीखते समय आप एक-दो बार सीट से जरुर गिरे होंगे। अगर उसी समय आप साइकिल चलाना सीखने से मना कर लेते तो अब तक साइकिल की सवारी केवल स्वप्न होती। गिरना और चोट खाना क्या है? बहुत छोटा-सा डर…एक बार इससे मुक्ति पा ली तो इसके आगे आप बाइक और फिर कार की ड्राइविंग भी सीखना चाहेंगे।

वेस्ली ऑट्रे की डर पर जीत

साल 2007 में जनवरी के दूसरे दिन दोपहर के 1 बजने वाले थे। न्यूयॉर्क के मैनहट्टन में एक सब-वे में खड़े वेस्ली ऑट्रे अपनी दो बच्चियों के साथ ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे और उसी वक्त एक युवा छात्र उनके सामने ही दौरा पड़ने से बेहोश होकर ट्रैक पर गिर पड़ा। वेस्ली उसे बचाने के लिए ट्रैक की ओर झुके ही थे कि ट्रेन की हेडलाइट उनके चेहरे पर पड़ी, उनके पास निर्णय लेने के लिए चंद सेकेंड भी नहीं थे… बस डर हार गया, वेस्ली ट्रैक पर उस युवक को बचाने कूद पड़े।

आपको पता है इसके बाद क्या हुआ? वेस्ली वहां से सकुशल निकले और डर के हारते ही वेस्ली और ज़िंदगी की जीत हुई। वेस्ली आज अमेरिका के राष्ट्रीय हीरो हैं, ‘टाइम मैगजीन’ ने उस साल उनको दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावशाली लोगों में रखा, लोग उन्हें सुपरमैन के नाम से जानते हैं। यह घटना शायद पहले भी कई बार डर पर जीत के लेखों और भाषणों में उद्धवत की गई होगी, पर इसे बताना इसलिए जरुरी है, क्योंकि यह सबसे सटीक और वास्तविक मिसालों में से है, जहां मानव अपने डर के आगे जाकर जीत को हासिल करता है।

मनोविज्ञान : डर का

डर का मनोविज्ञान बेहद साधारण है, एक बार अपने सबसे बड़े डर का भरपूर सामना किया जाए और उसके अगले ही क्षण से आपका डर जा चूका होता है। ये ठीक वैसे ही है, जैसे किसी सैनिक के सिर या कान के पास से कोई गोली सनसनाती निकल जाए। उस क्षण वह शायद जीवन के सबसे भयाक्रांत कर देने वाले अनुभव से होकर गुजरेगा, लेकिन उसके बाद वह दुनिया के सबसे साहसी लोगों में भी खड़ा हो सकता है।

भय, आपको भयभीत करता है, जब तक आप भयभीत होना नहीं छोड़ देते और इसलिए भय के हावी होने का प्रक्रम जीवन भर भी चल सकता है और जब आप चाहें, खत्म हो सकता है। जैसा कि पंचतंत्र में एक कथा में कहा गया है कि भय से तभी तक भयभीत हों, जब तक वह पास न आया हो, भय को आते देख, बिना शंका के उस पर प्रहार करो, ऐसा कि वह नष्ट हो जाए।

डर का सामना करें

कई बार डर हमारी इच्छाओं से पैदा होते हैं, कई बार बचपन की कुछ स्मृतियों से तो कई बार हमारी कमजोरियों से भी, लेकिन सबसे बड़ा सत्य यह है कि कभी न कभी हमारा डर हमारे सामने साक्षात आकर खड़ा हो जाता है, ऐसे में हमारे सामने दो ही विकल्प हैं।

पहला कि हम डर का सामना करें, या फिर उससे भाग खड़े हों। इसे मनोविज्ञान की भाषा में ‘लड़ो या भागो’ की परिस्थिति कहा जाता है और असल में यही निर्णय का क्षण होता है, जो आपके जीवन को या तो और अंधकार की ओर धकेल सकता है या फिर हमेशा के लिए बदल सकता है।

हालांकि, ओशो भय को और अलग नज़रिये से देखने की बात करते हैं। वो कहते हैं कि, दबाने से भय और उभरेगा, भय को समझने की जरुरत है। ‘भय को न मारा जा सकता है, न जीता जा सकता है, केवल समझा जा सकता है और केवल समझ ही रुपांतरण लाती है, बाकी कुछ नहीं। भय हमेशा किसी इच्छा के आसपास पनपता है। भय अधूरी इच्छाओं का प्रतिफल है।’

डर से मुक्ति का सबसे बड़ा उपाय

हालांकि सामान्य भाषा में कहें, डर का जो कारण होता है, वही डर का उपाय भी है। बात जीवन में डर का सामना करने की हो तो डर की आंखों में आंखें डालकर, उससे यह कह देना कि, मैं तुमसे नहीं डरता और यह ही है डर से मुक्ति का सबसे बड़ा उपाय।

पर यह हो कैसे? क्या यह वाकई इतना आसान है कि पूरे आत्मविश्वास के साथ कोई अपने डर पर काबू पाने के लिए तैयार हो जाए? नहीं, यह आसान नहीं है, क्योंकि यहीं पर आकर आत्मावलोकन और आत्मपरीक्षण की बारी आती है। आपको ये पता होना चाहिए कि आपको डर किस बात से है, अपने डर के बारे में पूरा ज्ञान ही उससे बचा पाएगा, जैसा की प्रख्यात दार्शनिक एमर्सन ने कहा था, “डर अज्ञानता से उपजता है।” इसलिए यह बेहद जरुरी है कि आप पहचानें कि आपके मन में बैठा भय क्या है, कैसे उपजा है और तभी आपको पता होगा कि इससे कैसे निपटना है।

डर : मानवता का सबसे बड़ा शत्रु

भय आपको केवल भयभीत ही नहीं करता है, यह आपको धीरे-धीरे अंदर से न सिर्फ खोखला करता है, बल्कि मूलभूत मानवता से भी दूर ले जाता है। डरा हुआ व्यक्ति हमेशा संदेह में रहता है, लोगों पर अविश्वास करता है, इस काम में वह न केवल धीरे-धीरे लोगों से दूर हो जाता है, बल्कि हमलावर व्यवहार का भी हो जाता है। विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि “साहस मानवता का सबसे बड़ा साथी है, जबकि भय मानवता का सबसे बड़ा शत्रु।”

क्या जीत हासिल करने के लिए भी डर से मुक्ति जरुरी है? बिल्कुल, क्योंकि डर आपको प्रयास से पहले ही निराश करता है, आपको संशय देता है कि सफलता मिलेगी या नहीं और इसीलिए कई बार हम कार्य प्रारंभ करने से पहले ही प्रयत्न छोड़ देते हैं। ‘नीतिशतक’ में भर्तृहरि कहते हैं, “नीच मनुष्य विध्नों के भय से कुछ शुरु नहीं करते, मध्यकोटि के लोग बाधा आने पर रुक जाते हैं, किंतु उत्तम कोटि के मनुष्य विघ्नों के बार-बार आने पर भी एक बार शुरु किए गए कार्य को नहीं छोड़ते।”

अपने डर को पहचानिए

इसमें कोई शंका नहीं कि सफलता के रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी बढ़ा डर है, जैसा कि मैरी मॉसिसे ने कहा था, “आप जब डर को अपने भरोसे से बड़ा बना लेते हैं, तो आप अपने सपनों का रास्ता रोक रहे होते हैं।” जाहिर है सपने सफलता की नींव बनाते हैं और सपनो का रास्ता रोक देना, सफलता की भ्रूण हत्या है। ऐसे में जरुरी है कि अपने डर को पहचानिए, उसको समझिए और फिर उसको निकाल फेंकिए अपने मन से। डर लगने पर उसको स्वीकार कीजिए, उसके खिलाफ लड़िए और उस क्षण तक लड़िए, जब तक कि डर चरम सीमा तक आए और बस वही क्षण होगा, जब डर की समाप्ति भी हो जाएगी। भय से होकर एक बार आप गुजर जाएंगे, फिर वो दोबारा लौट कर नहीं आएगा।

अंतमें…

कहिए डर को अलविदा 1024x538

असफलता का या किसी और बातों का डर हो, अपने मन से निकाल दीजिए। बारी है अगले चरण की। अब पूरे व्यक्तित्व को डर से मुक्त कीजिए। सोचिए – जो होगा, वह अच्छा होगा और अच्छा न भी हुआ तो फिर प्रयास करेंगे। निश्चित तौर पर तब आपका व्यक्तित्व इस्पात जैसा होगा। आप भयमुक्त बनेंगे और बड़े संकल्प भी साकार हो सकेंगे। आपकी राहें खुली-खुली, डर से अलग, मंजिल की तरफ साफ देखने वाली बनेंगी… तो बताइए जरा… आप कह रहे हैं न डर को अलविदा?

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में ‘डर’ को जीतने की जो बात की गई है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी, आपको डर का सामना करने की हिम्मत देगी। अगर आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

साहसी कैसे बने? How to be Courageous in Hindi

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एक आवाज बुलाती है…

साहसी होना हमेशा सहज, स्वाभाविक नहीं होता। इसके लिए कुछ अभ्यास करने पड़ते हैं। साहस की जरुरत हमेशा बड़े-बड़े कामों के लिए ही नहीं पड़ती। यह ज़िंदगी के बहुत मामूली और छोटे मसलों में ज्यादा काम आता है।

किसी देश के लोगों की निजी ज़िंदगियों के छोटे-छोटे साहस ही संघनित होकर, स्वरुप पाकर किसी बड़े साहस में अचानक अभिव्यक्त हो जाते हैं, प्रकट हो जाते हैं और हम उसकी आश्चर्यभरी व्याख्याऐं करते हैं। जबकि, वह साहस कहीं बाहर से नहीं आया था, उसके स्रोत हमसे ही फूटे थे।

आज का समय हमारे लिए कई संदेश लिए हुए है। इस संदेश की लिपि को हम किस तरह पढ़ते हैं, यह हम पर निर्भर है। यह युग, जीवन को समझने और उसे बदलने के लिए एक नए तरह के साहस की मांग कर रहा है। समय के पार से एक आवाज बुलाती है, शायद हम उसके अर्थ को समझेंगे…

साहस और सकारात्मकता

“बिना साहस के दूसरे नैतिक गुण अपने मायने खोने लगते हैं।” – विंस्टन चर्चिल

बहुत गहरा रिश्ता है साहस का सकारात्मकता से। ये सकारात्मकता ही तो थी कि कोपर्निकस, अरस्तु, सुकरात जैसे लोग बड़े उद्देश्य के लिए साहस का प्रदर्शन कर पाए। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं, ऐसे लोग हर युग में हुए हैं, लेकिन सकारात्मक दॄष्टिकोण लाते ही, नकारात्मक पहलू कमजोर दिखाई देते हैं। हम बड़े-बड़े साहस के काम कर गुजरते हैं। सकारात्मकता नैतिक साहस को बढ़ाती है। आमतौर पर युगों को बदलने वाले नायकों में ऐसे ही लक्षण देखने को मिलते हैं। प्लेटो ने कहा था कि, “साहस हमें डर से मुकाबला करना सिखाता है। साहस हम सभी के भीतर होता है, बस जरुरत है उसे बाहर लाने की।”

साहस की ओर सात कदम

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1. अपनी अंतरात्मा की सुनें

दुनिया के कुछ बहुत साहसी लोग इस श्रेणी में इसलिए शामिल हो पाए, क्योंकि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और आसपास घटित बातों को अनदेखा नहीं किया।

जब आप अपनी अंतरात्मा की राह पर चलते हैं तो, ये देखें कहीं अन्याय तो नहीं हो रहा। चाहे वो आपका कार्यस्थल हो या आपके शहर, गांव या देश में या फिर आपका व्यक्तिगत जीवन। किसी अन्याय के खिलाफ खड़े होना वाकई साहसपूर्ण होता है और साहस को बढ़ाता भी है।

2. भय महसूस करें तो इसे दूर करें

साहस का मतलब ये नहीं कि आप डर नहीं सकते। असली साहसी भी भय महसूस करता है, लेकिन जरुरत इस बात की होती है कि इसे कैसे दूर करें। ये आपकी ज़िंदगी में किसी भी रुप में हो सकता है। यहां तक कि अगर बॉस से वेतन वृद्धि के बारे में भी बात करनी हो और आपको लगता है कि आप इसके हकदार हैं तो साहस करें। कोई भी बात जो आपको भयभीत कर सकती है, नर्वस कर सकती है, उसे जरुर दूर करने की कोशिश करें।

3. कभी हिम्मत न हारें

जब आप वास्तव में सच्चे दिल से कुछ चाहते हैं और इसे पाना मुश्किल होता है तो इसे हासिल करने के लिए पूरे साहस और समर्पण से जुट जाएं। हो सकता है कि कई बार आपको लगे कि आप हार गए या लक्ष्य असंभव हो गया, लेकिन तब भी साहस बटोर कर फिर से जुट जाएं।

मान लीजिए कि आप अपनी नौकरी गंवा चुके हैं, काम नहीं मिल रहा तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। हो सकता है कि आपको लगे कि आपने जो कुछ हासिल किया, वो धीमे-धीमे बिखरने लगे तो आसान विकल्प यही है कि हार मान लीजिए और मान बैठिए कि ज़िंदगी आपके साथ साजिश कर रही है, लेकिन ऐसा करके आप खुद की हार को आमंत्रित करेंगे, बल्कि इसके उलट हर सुबह खुद को नए उत्साह से तैयार कीजिए। लग जाइए जॉब की तलाश में, आप खुद देखेंगे कि समय बदलने लगेगा। अगर आप दिमागी अवस्था में उत्साह और लगन बनाए रखेंगे और कभी हार नहीं मानने वाली स्थिति में होंगे तो तयशुदा तरीके से लक्ष्य तक पहुंचेंगे।

4. अनजाने को ग्रहण करें

हम अंधेरे से क्यों डरते हैं? शायद इसलिए, क्योंकि अंधेरे में कुछ दिखता नहीं, सबकुछ अपरिचित-सा लगता है। हमें अंधेरे से ज्यादा भय अनजाने का होता है। हम अनजानी बातों से डरते हैं। हम जिन नौकरियों को पसंद नहीं करते, वे भी करते रहते हैं, क्योंकि वे सुरक्षित और स्थायित्व वाली लगती हैं, इसी के चलते हम अपने सपनों को पूरा करने से डरते हैं। हकीकत में हम अपनी ज़िंदगी में बदलाव से पहले यथास्थितिवादी बने रहना चाहते है। हमें शायद ये नहीं मालूम कि अधिकतर महान आविष्कार इन्हीं अनजानी स्थितियों से और अपरिचित को ग्रहण करने के साहस से ही सामने आए हैं। अगर आप बदलाव को स्वीकार करते हैं, भले ये आपको शुरु में डराए, लेकिन आखिरकार ज्यादा संतुष्टि वाली और खुश ज़िंदगी की ओर ले जाता है। हो सकता है कि आप नौकरी नहीं छोड़ सकते हों, लेकिन नई बातों के लिए कोशिश तो कर सकते हैं।

5. सच्चा विश्वास

अगर आप किसी काम के लिए पूरी तरह समर्पित नहीं हैं, यानी जो कर रहे हैं, उस पर सौ फीसदी विश्वास नहीं करते, तो उस काम को करने का मतलब क्या है, ऐसे में आप सच्चे अर्थों में कभी सच्चा साहस नहीं जुटा पाएंगे। अगर आप पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं तो, आपका अधूरा साहस आपको नाकाम कर देगा। साहस को उस काम के लिए बचा के रखिए, जिसमें आपको वाकई भरोसा है, जो आपको सही लगता है। अगर ऐसा है तो, अपनी पूरी ऊर्जा और साहस के साथ उसमें लग जाइए, फिर देखिए कि वो होता कैसे नहीं है !

6. नहीं कहने वालों को अनदेखा करिए

इसका कोई मतलब नहीं है कि आपने अपनी ज़िंदगी में क्या चुना है, आप पढ़ना चाहते हैं या व्यवसाय करना चाहते हैं, या कुछ और। आपके चारों ओर ढेर सारे नकारात्मक लोग होंगे, जो आपको अपनी बातों से सहमत करने की कोशिश करेंगे कि आप अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाएंगे। अगर आप सच में वहां पहुंचना चाहते हैं, जहां तक पहुंचने का आपने इरादा बनाया है तो, आपको नकारात्मकता को रोकना होगा। हमेशा अच्छी सलाह लेने की कोशिश करें। याद रखें कि आप अपने भाग्य या नियति के निर्माता स्वयं होते हैं, अगर आप दूसरों को खुद पर प्रभाव डालने का मौका देंगे तो आप कभी वह प्राप्त नहीं कर पाएंगे, जो आप सच में करना चाहते हैं।

7. असफलता के लिए तैयार रहें

विंस्टन चर्चिल ने एक बार कहा था कि, “साहस के रास्ते में असफलताएँ भी आती हैं, बस उत्साह को बनाए रखना चाहिए।” उनकी नज़र में सफलता के रास्ते में एक असफलता जरुरी है, क्योंकि इसके बाद आप दोगुने उत्साह से अपनी कमियों को पहचान कर खड़े हो सकते हैं। साहस आपको अनुभव कराता है कि, असफलता का अर्थ केवल इतना भर है कि आप अपनी सफलता के एक कदम और नजदीक पहुंच गए हैं, इसलिए असफलता से कभी मत घबराइए और भय को आपकी हर कोशिश में बाधा डालने से रोकिए। अनुभव से सीखिए और हर बार नई रणनीति अपनाएं।

अंतमें…

“साहस वो सीढ़ी है, जिससे सभी दूसरे नैतिक गुण जुड़े रहते हैं।”क्लेयर बूथ ल्यूस

वर्तमान समय का सच तो यह है कि, हम खंडित व्यक्तित्व के लोग हैं। मनुष्य होने का साहस हमसे छिन गया है। वह साहस जो हिमयुगों में जीवित रहा, इतिहास की विराट उथल-पुथल के बीच जो बचा रहा। वह साहस, जिसने प्रकृति से विच्छिन्न हुए मनुष्य को अपना संसार रचने का ज्ञान दिया, सामर्थ्य दिया।

सभ्यता के इस इतिहास की एकमात्र समस्या यह है कि, मनुष्य फिर से अखंड कैसे हो। विभाजित व्यक्तित्व खुद को कैसे फिर से साबुत प्राप्त करे? वह साहस कहां से आए, जो प्रतिकूल समय में भी सलामत रहे? वह साहस, जो अपनी वृत्तियों से संघर्ष की प्रेरणा रहा है, जो राजदरबारों की सत्ता को भी ठुकराता रहा, जो राजमार्गों के एवज में पगडंडियां चुनता रहा, जो जीवन की राहों में फूल बन खिलता रहा, वह साहस कहां से आए?

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में ‘साहसी’ बनने की जो बात की गई है, वह पढ़कर आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा जरुर मिली होगी। अगर आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

स्टीव जॉब्स का श्रेष्ठ वक्तव्य कौनसा है? What is the Best Steve Jobs Speech in Hindi

स्टीव जॉब्स का श्रेष्ठ वक्तव्य कौनसा है What Is The Best Steve Jobs Speech In Hindi 1024x538

स्टीव जॉब्स :12 जून, 2005 को ‘स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय’ के दीक्षांत समारोह में ऐतिहासिक वक्तव्य देते हुए

सदैव शाकाहारी रहे स्टीव जॉब्स ने 12 जून, 2005 को ‘स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय’ के दीक्षांत समारोह में एक वक्तव्य दिया था। जिन्होंने इसे सुना या पढ़ा है, वो समझते हैं की यह तकनीकी गुरु का वक्तव्य नहीं, बल्कि किसी संत के प्रवचन का हिस्सा है।

दुनिया के सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालयों में से एक में आपके दीक्षांत समारोह में आज आपके साथ होना मेरे लिए सम्मान की बात है। सच कहूँ तो, मैंने कभी कॉलेज से स्नातक नहीं किया। और यह कॉलेज स्नातक के सबसे करीब पहुँचने का मेरा अब तक का सबसे बड़ा अनुभव है।

आज मैं आपको अपने जीवन की तीन कहानियाँ सुनाना चाहता हूँ। बस। कोई बड़ी बात नहीं। बस तीन कहानियाँ।

बिंदुओं को जोड़ना

स्टीव ने कहा था – “मैंने किसी महाविद्यालय से कोई उपाधि नहीं ली है। लेकिन ज़िंदगी की चंद कहानियां सुनाने जा रहा हूं। पहली कहानी है बिंदुओं को मिलाने के बारे में। पहले 6 महीने में ही मैंने कॉलेज छोड़ दिया था… इसके बाद ढेर सारे निर्णयों को बदलते हुए मैंने कैलीग्राफी की कक्षाएँ करने का निश्चय किया।”

स्टीव जॉब्स मानते थे कि वह उनकी ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट था। उन्होंने विभिन्न किस्म के अक्षरों के बीच की कम-ज्यादा जगह छोड़ने के बारे में सीखा। हालांकि इसमें से कुछ भी जीवन में काम आएगा, ऐसी उम्मीद उन्होंने नहीं की थी। दस साल बाद ऐसा कुछ हुआ, जिससे उन्हें पता चला – सीखा हुआ व्यर्थ नहीं जाता। स्टीव के शब्दों में – “पहला ‘मैकिंतोश’ बनाते वक्त मुझे याद आया और कैलीग्राफी से मिली शिक्षा को हमने ‘मैक’ में डाला। वह पहला कंप्यूटर था, जिसके अक्षर सुंदर थे। अगर मैंने कॉलेज नहीं छोड़ा होता तो मैक के पास विभिन्न चौड़ाई और दो अक्षरों के बीच अलग-अलग खाली जगह वाले फॉन्ट्स नहीं होते।”

जॉब्स की सोच की गंभीरता को महसूस कीजिए। उस अविस्मरणीय वक्तव्य में जॉब्स ने जोर देकर कहा था – “आप फिर से बिंदुओं को आगे की तरफ नहीं जोड़ सकते, आप उन्हें पीछे की ओर देखते हुए ही जोड़ सकते हैं। आपको अपनी शक्ति, भाग्य, जीवन, कर्म आदि पर विश्वास करना होगा। मेरी इस शैली ने मुझे कभी नीचा नहीं दिखाया है और इसी ने मेरा जीवन कुछ हटकर बनाया है।”

प्यार और काम

स्टीव जॉब्स एक और कहानी सुनाते थे – प्यार और नुकसान के बारे में। उनके ही शब्दों में – “मेरी एक खास कहानी है प्यार और नुकसान के बारे में। मैं भाग्यशाली था। मैंने शुरुआत में ही जान लिया था कि मुझे किससे प्यार है। 20 साल का था, जब मैंने अपने साथी के संग माता-पिता के गैरेज में ‘एप्पल’ की शुरुआत की और 30 साल का हुआ, तब मुझे वहां से निकाल दिया गया।”

स्टीव के लिए कितना पीड़ादायक रहा होगा कि उन्हें उसी कंपनी से निकाला जा रहा था, जिसे उन्होंने कायम किया था। वे एप्पल से प्यार करते थे, लेकिन टूटे नहीं। उन्होंने कुछ फिर से शुरु करने की ठानी। जॉब्स बताते थे कि – “मैंने उस समय भले ही महसूस नहीं किया था, लेकिन एप्पल से निकाल दिया जाना मेरी ज़िंदगी में घटी सबसे अच्छी घटना थी।”

उनके कंधो से एक सफल इंसान होने का बोझ हट चूका था। एक नई शुरुआत करने के लिए जरुरी मन की रचना हो रही थी। जॉब्स ने बताया कि – “इस घटना ने मुझे ज़िंदगी के सर्वाधिक क्रियाशील हिस्से में आने का अवसर दिया।” उन्हें इस बात का पूरा भरोसा था कि एप्पल से न निकाला गया होता तो जीवन में ऐसा बड़ा बदलाव न होता।

स्टीव जॉब्स ने कहा था कि – “इसे एक कड़वी दवाई समझा जा सकता है, लेकिन हम सब जानते हैं कि, ऐसी दवाई कभी-कभी मरीज के लिए सबसे ज्यादा जरुरी होती है। इसी वजह से मैं दॄढ़ और संयमी बन सका, यह सोच सका कि ज़िंदगी सिर पर एक ईंट का हमला करे तो भी भरोसा न छोड़े।

“मुझे भरोसा है कि इकलौती चीज, जो मुझे संघर्ष करने की प्रेरणा देती रही, वो था – मेरा अपने किए गए कार्य से प्यार। आपका सोचना कि जो काम मैं कर रहा हूं, वो सबसे बेहतर है। और एक सर्वोत्तम काम वह है, जिससे आप प्यार करते हैं। यदि आपको अपना प्यार नहीं मिला तो ढूंढ़ते रहें – ढूंढ़ते रहे। रुकें नहीं। वह आपको जब भी मिलेगा, आपका दिल उसे पहचान लेगा। एक अच्छे रिश्ते की तरह वह समय के साथ अच्छा, और अच्छा होता जाता है। तो ढूंढ़ते रहिए, कभी भी रुकिए नहीं।”

मृत्यु के बारे में

क्या कोई अपनी मौत के बारे में सोच सकता है? हम जीवन के समाप्त होने की चर्चा सुनकर ही कांप उठते हैं, लेकिन स्टीव जॉब्स हर दिन को अपने जीवन के अंतिम दिन की तरह ही देखते-सोचते थे। स्टीव ने बताया था – “मेरी एक खास कहानी है मौत के बारे में। जब मैं 17 साल का था, तब मैंने कहीं पढ़ा था -‘अगर आप हर दिन को ज़िंदगी के अंतिम दिन की तरह जीते हैं तो किसी दिन आप जरुर सच होंगे।’ इस बात ने मेरे मन पर गहरा असर डाला था और तब से अब तक हर सुबह मैंने आईने में खुद को देखा है और पूछा है -‘क्या आज मेरी ज़िंदगी का अंतिम दिन है? अगर हां तो आज मैं जो करने जा रहा हूं, वो मैं करना चाहूंगा या नहीं?’ कई दिनों तक इस सवाल का जवाब अगर नकारात्मक आया है तो मैं समझ जाता हूं कि कुछ परिवर्तन की जरुरत है।”

स्टीव जॉब्स मौत के विचार को सबसे अहम औजार मानते थे और यहीं चिंतन स्टीव के लिए सर्वाधिक शक्ति देने का जरिया था। वे कहते थे – “अपनी मृत्यु को याद रखना सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है, जिसने ज़िंदगी के हर बड़े चुनाव में मेरी मदद की है। तकरीबन सबकुछ – हर उम्मीद, गर्व या नाकामयाबी की शर्म का डर… मौत के सामने कुछ भी तो मायने नहीं रखता। अंत में बच जाता है सच, जो महत्वपूर्ण है। यह सच कि आप एक दिन मरने वाले हैं। इसे याद रखना, आपको कुछ भी खो देने के डर के जाल में फंसने से बचा लेता है।”

“सोचिए जरा, आपके पास खोने के लिए कुछ नहीं हैं। आप के पास अपने दिल की भावना का पालन नहीं करने के लिये कोई कारण नहीं हैं। आप कितने निश्छल, कितने सरल और उत्साही हो जाते हैं। आप चुनौतियां ले सकते हैं, उन पर खरे साबित हो सकते हैं।”

“मैं एक उदाहरण अपनी ज़िंदगी से ही बताना चाहूंगा। कुछ साल पहले कैंसर के बारे में पता चलते ही डॉक्टर ने बताया था कि मुझे 6 महीने से ज्यादा जीने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। उसने घर जाकर सब काम व्यवस्थित करने की सलाह दी थी। उनकी भाषा में इसका मतलब होता है – मृत्यु की तैयारी करो। ईश्वर की कृपा थी कि मैं ठीक हो गया। यह मृत्यु से मेरा सबसे नजदीकी साक्षात्कार था। इस अनुभव से गुजरने के बाद मैं ज्यादा विश्वास के साथ कह सकता हूं कि जब मौत उपयोगी हो, तब इसके करीब होने का विचार पूरी तरह से एक बौद्धिक विचार है।”

“सच तो ये है कि कोई भी मरना नहीं चाहता। जो स्वर्ग जाना चाहते हैं, वे भी वहां जाने से लिए मरना नहीं चाहते। हालांकि मौत एक ऐसी मंजिल है, जिस तक हर किसी को पहुंचना है। कोई बच नहीं पाया यही और ऐसा होना भी चाहिए, क्योंकि मौत ज़िंदगी का सबसे बड़ा आविष्कार है। वह जीवन का परिवर्तक है। मौत पुराने को हटाकर नए के लिये रास्ता तैयार करती है। आज आप नए हैं, लेकिन एक दिन – आज से ज्यादा दूर नहीं – जब आप बूढ़े हो जाएंगे और किनारे की तरफ कर दिए जाएंगे।”

विदाई का संदेश

जॉब्स कहते थे – “आपके पास समय कम है, इसलिए किसी और की ज़िंदगी जीने के लिए वक्त बर्बाद न करें। किसी और के विचारों के अनुसार जीने के जाल में न फंसें। किसी और की सोच का शोर आपकी अंतरात्मा की आवाज़ को दबा ना पाए। सबसे खास बात, आपके पास अपने दिल और अंतरात्मा के कहे का पालन करने का साहस होना चाहिए।”

अतीत की यादों में खोते हुए वे बताना नहीं भूलते थे – “एक अर्थपूर्ण प्रकाशन – ‘होल अर्थ कैटेलॉग’ मैं पढ़ता था। यह जब बंद हुआ, तब के अंतिम अंक में प्रकाशित हुआ था – भूखे रहो, मूर्ख रहो। यह विदाई का संदेश था। मैं युवाओं को यही संदेश देना चाहूंगा – भूखे रहो, जिज्ञासु रहो – नए ज्ञान के लिए।”

अंत में…

जॉब्स के बारे में यह जानना भी प्रेरणादायक है कि वे जोरदार जिद्दी थे, यानी ऐसे जुनूनी इंसान, जिसके लिए करो या मरो सूत्रवाक्य सबकुछ था। एक बार जो थान ली, फिर किसी की नहीं सुनी।

एक तरफ कैंसर जैसा शत्रु, दूसरी ओर लगातार तकनीकी संधान और विकास में जुटे स्टीव… जीवन के लिए जिद, मौत की सच्चाई को स्वीकार करने का साहस और इनके तुलनात्मक अध्ययन से संसार को अनमोल सौगातें देना… सच, स्टीव जॉब्स का व्यक्तित्व महज एक व्यवसायी, तकनीकी गुरु और संघर्षशील व्यक्ति का ही नहीं था। निश्चित्त मृत्यु को पहचानकर भी वे निष्क्रिय नहीं रहे, उन्होंने चिंतन और समझदारी की एक नई इबारत ही लिख डाली है, जो हर शख्स को जरुर पढ़नी चाहिए। हम तभी जान पाएंगे – मौत एक सत्य है और ज़िंदगी की नींव इसी सत्य के इर्द-गिर्द रहकर बुननी चाहिए। इमारत ज्यादा खूबसूरत बनेगी।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में ‘टेक जीनियस’ स्टीव जॉब्स के जीवन की जो जानकारी दी गई है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। अगर आप इस Article को पढ़कर प्रेरित हुए हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरूर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

सकारात्मकता जीने की कला है Positivity is the art of Living in Hindi

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भागम-भाग के इस युग में सकारात्मक होना एक कला है और इसी के माध्यम से मानव जीवन ने ऊंचाइयों को छुआ है। यह सकारात्मकता( Positivity) ही है, जिसने आम इंसानों को ऐतिहासिक पुरुषों के रुप में महानता प्रदान की है।

सकारात्मक होने का अर्थ

एक बार रवींद्रनाथ ठाकुर ने स्वामी विवेकानंदजी के बारे में कहा था, “भारत को जानना है तो विवेकानंद से बेहतर कोई नहीं, उनके यहां सब कुछ विधेयात्मक है।” 19वीं सदी के अंत में विश्वकवि ने भारत की एक महान प्रतिभा के बारे में यह कहा था। शायद रवींद्रनाथ कहना चाह रहे थे कि, विधेयात्मकता यानी कि सकारात्मक दॄष्टिकोण ही वह चीज थी, जो विवेकानंदजी को अपने समय के अन्य महान व्यक्तित्वों से अलग करती थी।

सारा का सारा परिवेश नकारात्मक था। एक गुलाम देश। धर्म और दर्शन कर्मकांड और रुढ़ियों में बदलकर रह गए थे। इस निराशा के बीच एक नई आशा संचरित की थी उन्होंने। ऐसा कैसे कर पाए वे? क्या वे कोई आसमानी प्रतिभा थे? या ऐसे धर्मपुरुष, जो किसी भी व्याख्या से परे दैवीय होते हैं? क्या उनके अस्तित्व की व्याख्या हमें हमारे आज के लिए कोई संदेश दे सकती है? शायद हां।

सकारात्मक होने का अर्थ ही है, सृजनात्मक होना। ज़िंदगी के प्रति सृजनात्मक दॄष्टिकोण रखना। सृजनात्मकता किसी कृति का सृजन, किसी रचना का निर्माण भर नहीं है। वह मन की एक स्थिति है। जिन्हें हम सृजन कहते हैं, चाहे वे कला के क्षेत्र के हों, या साहित्य के, दर्शन के क्षेत्र के हों या विचार के, वे तो दरअसल सृजनात्मक मन के प्रतिफल मात्र होते हैं। असली चीज सृजनात्मक मन का होना है।

एकाग्रता, तन्मयता, लगन, धैर्य, श्रम… आदि के जटिल संश्लेषण से एक सृजनात्मक मन का निर्माण होता है। जो भी चीज निर्मित है, वह बनाई जा सकती है। यानी सृजनात्मक मन भी निर्मित किया जा सकता है। यह मात्र आनुवंशिकी या पारिवारिक परिवेश का मामला नहीं है।

सकारात्मकता : एक शक्तिशाली भावना

“अपना दॄष्टिकोण बदलें और आप दुनिया बदल सकते हैं।”

सकारात्मकता एक बहुत ही शक्तिशाली भावना है, लेकिन यह ऐसी चीज़ नहीं है, जिसे आप तुरंत करने या महसूस करने का निर्णय कर लें। इसे आपकी आत्मा में बसने से पहले अक्सर पोषण और निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जब जीवन के अनुभव या यहाँ तक कि, आपका व्यक्तित्व भी स्वभाव से ही इंद्रधनुषी रंग-रुप में न हो, तो आपको इसे बदलने के लिए कुछ प्रयास करने होंगे और सफलता का रहस्य अपनी अपेक्षाओं के प्रति यथार्थवादी होना है।

आप अभी जो जीवन जी रहे हैं, वह वास्तविक जीवन है, यह कोई परीकथा नहीं है। आप सिंड्रेला या प्रिंस चार्मिंग नहीं हैं और आपका कद्दू रातोंरात पोर्श में नहीं बदल जाएगा। जीवन निःसंदेह आपके रास्ते में चुनौतियाँ और बाधाएँ लाएगा, जीवन ऐसे ही चलता है, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि, आप कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और क्या करते हैं।

क्या आप दुःखी होंगे और अपने कद्दू को बर्बाद होते देखेंगे, या आप एक स्वादिष्ट सूप बनाकर एक सकारात्मक अनुभव का निर्माण करेंगे? देखिए, आपके पास हमेशा एक विकल्प होता है और वह विकल्प केवल और केवल आपका है। आप अपने जीवन के प्रति कैसा दॄष्टिकोण रखते हैं, यह निर्णय आपको नकारात्मकता, दुःख और पतन की ओर ले जा सकता है, या यह आपको, चाहे कुछ भी हो जाए, खुशी और आनंद के मार्ग पर ले जा सकता है।

प्रसिद्ध कहानी

प्रसिद्ध कहानी है कि, एक राजा को ज्योतिषी ने बताया कि, महाराज ! आपके हाथों में चक्रवर्ती होने की रेखा नहीं है। ज्योतिषी की बात सुनते ही उन्होंने पूछा कि, वह रेखा हाथ के किस भाग में बनी होती है। ज्योतिषी के बताने के बाद, बहादुर और आत्मविश्वास से भरे हुए राजा ने तलवार से अपनी हथेलियों को चीरते हुए, उसी प्रकार की रेखा बना दी, जैसी कि ज्योतिषी ने बताई थी और पूछा कि, अब तो है न, रेखा मेरे हाथों में ! आगे चलकर वह राजा चक्रवर्ती सम्राट बना और अब जब हम इस बात को सुनते हैं तो बहुत प्रभावित होते हैं।

आज के समय में यह बहुत गंभीर समस्या है कि निराशा और अवसाद में डूबे हुए लोग, सकारात्मकता की तलाश में यहां-वहां फिर रहे हैं। ऐसे में बड़े पैमाने पर सकारात्मकता पढ़ाने वालों की जरुरत और भरमार है, पर इसमें से अधिकतर की सबसे बड़ी समस्या है कि, वे चीजों को सतही बनाकर पेश करते हैं।

यहां दी गई कहानी में सकारात्मकता यह है कि, राजा ने ज्योतिषी की भविष्यवाणी को चुनौती देते हुए, अपने शानदार प्रबंधन के चलते वह सब किया, जिसने उसे उस मुकाम तक पहुंचाया, जो ज्योतिषी के मुताबिक असंभव था।

सकारात्मकता का अर्थ

सकारात्मकता का अर्थ है – अपनी योग्यता और कार्य करने की क्षमता पर विश्वास। यदि आप किसी कार्य के लिए अयोग्य हों, तो आप उस कार्य को लेकर तब तक सकारात्मक नहीं हो सकते, जब तक कि आप उस काम को करने की योग्यता नहीं प्राप्त कर लेते। हां, यह बात जरुर है कि यदि आप किसी कार्य में अयोग्य हैं, तो अपने को कमजोर मान कर निराश या अवसाद में डूबने की जरुरत नहीं है। दुनिया में कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता है। दुनिया का कोई भी कार्य महान नहीं होता, बल्कि महान लोगों द्वारा किए गए कार्य महान बन जाते हैं।

किसी क्षेत्र में जानकारी का न होना कोई समस्या नहीं है। मूल बात यह है कि आप जो कर रहे हैं, उसको लेकर आपके मन में किस तरह की भावना है। उसे लेकर आपके मन में किस तरह की योजना है और आप अपने कार्य को लेकर कितना गंभीर हैं। सकारात्मकता का अर्थ है – चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में आंकना और सामर्थ्य व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जीवन जीना। यदि परिस्थितियां हमारे हित में नहीं हैं, तो उन्हें अपने हित में करने के लिए जूझना। दुनिया में ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसे इंसान न कर सके। दिल में कामों के प्रति जुनून और लगन होनी चाहिए।

सकारात्मकता आत्मविश्वास से ही आती है

सकारात्मकता आत्मविश्वास से ही आती है और उसमें इस बात का भी बोध होता है कि दुनिया बहुत महान है और यहां विविधताओं और योग्यताओं का भंडार है। जीतनी ज्यादा चाह है, उससे ज्यादा मेहनत करने की क्षमता ही हमें सकारात्मक बना सकती है।

राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या के माध्यम से गंगा को पृथ्वी पर आने के लिए मजबूर कर दिया था। कहते हैं कि, इससे पहले उनके कई पूर्वज कठोर तपस्या करते रहे। लगातार कई पीढ़ियों तक के कठोर श्रम के चलते वे गंगा को पृथ्वी पर ला सके। सच है कि आपके द्वारा किया गया कोई कार्य फल न दे, यह नामुमकिन है। सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप काम को कैसे करते हैं। माना कि आप बहुत अच्छे ड्राइवर हैं, पर क्या आप आँख बंद करके गाड़ी चला सकते हैं। जीवन भी ऐसा ही है। गाड़ी चलाने जैसा, कभी तेज चलता है तो कभी धीरे। कभी गाड़ी उबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरती है तो कभी बंद पड़ जाती है और उसे बनाने के लिए गैराज भेजना होता है।

महान लोगों की सीख

भगवान बुद्ध ने कहा है कि अंतिम सत्य कुछ नहीं, कुछ भी नहीं है, जो अजर-अमर हो। कुछ भी नहीं, जो बदला न जा सके। एक महान विद्वान ने कहा था कि, जब हम स्वार्थ से उठकर अपने समय को देखते हुए दूसरों के लिए कुछ करने को तैयार होते हैं, तो हम सकारात्मक हो जाते हैं।

एप्पल कंपनी के संस्थापक और ‘टेक जीनियस’ स्टीव जॉब्स के जीवन के बारे में जब हम पढ़ते है, तो जान पते है कि, एक तरफ कैंसर जैसा शत्रु, दूसरी ओर लगातार तकनीकी संधान और विकास में जुटे स्टीव… जीवन के लिए जिद, मौत की सच्चाई को स्वीकार करने का साहस और इनके तुलनात्मक अध्ययन से संसार को अनमोल सौगातें देना…

सचमें, स्टीव जॉब्स का व्यक्तित्व महज एक व्यवसायी, तकनीकी गुरु और संघर्षशील व्यक्ति का ही नहीं था। निश्चित्त मृत्यु को पहचानकर भी वे निष्क्रिय नहीं रहे, उन्होंने चिंतन और समझदारी की एक नई इबारत ही लिख डाली है, जो हर शख्स को जरुर पढ़नी चाहिए। लेकिन, ये सब वे कैसे कर पाए? ज़िन्दिगी के प्रति अपने सकारात्मक दॄष्टिकोण के कारण।

“अपने परिवार की एक बगीचे की तरह देखभाल कीजिए। उसे अपना समय, श्रम और कल्पनाऐं लगातार दीजिए, ताकि वह खूब फले-फूले।”

-जिम रॉन

अंतमें…

जब आप दुःखी हों तो अपने नीचे देखो और फिर सोचो कि आप सुखी हो या दुःखी। यहां देखने का नज़रिया महत्वपूर्ण होगा। नीचे देखते समय अपनी सुविधाओं को देखो और ऊपर देखते हुए उनके लिए किए गए श्रम को समझने का प्रयास करो।

अपने आस-पास मौजूद हर एक प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लीजिए। पंछी, पेड़, पौधें, छोटे-छोटे झरने और नदी जैसी प्रकृति से जूड़ी सभी चीजों को सकारात्मक दॄष्टिकोण से देखने का प्रयास करेंगे, तो आप स्वयं अनुभव करेंगे कि, सकारात्मकता हमारे जीवन को आनंद से, नई आशाओं से और ऊर्जा से भर देती है।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article में सकारात्मकता की जो बात की गई है, वह आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। अगर आपको ये Article से प्रेरणा मिली हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

सुख-दुःख दो किनारे हैं…Happiness and sadness are two sides…

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सुख-दुःख दो किनारे हैं…

आसमान में बैठे-बैठे, ‘जीवन’ नाम की एक गिलौरी चुभलाते हुए, नियति की दूरबीन लगाकर वह महान कलाकार दूर से ही देखता है अपनी गढ़ी हुई अद्भुत रचना। यह रचना है संसाररुपी नदी, जिसके सुख और दुःख, दो किनारे हैं और मनुष्य है नाविक। यह संसार एक नदी ही तो है। इसका उदगम तब हुआ, जब आसमान में बैठे उस कुम्हार के हाथ से मिट्टी का घड़ा गिरा और उसमें भरे पानी ने छलककर शक्ल ले ली शाश्वत नदी की। इस नदी के पानी का रंग है सफ़ेद। वही रंग, जो हमें हमेशा याद दिलाता रहता है कि इस रंग पर ही संसार के बाकी सब रंग चढ़े हैं, मिले हैं। कभी न सूखने वाली इस नदी में संघर्ष नाम की मछलियां रहती हैं। सामाजिक बंधनों के भंवर में एक बार जरुर पड़ता है मनुष्यरुपी नाविक और नदी के पानी में प्रेम का कमल खिलता है तो किनारों पर घृणा नाम की काई भी जम जाती है। इन सबके साथ नदी निरंतर बहती रहती है… एक लंबी यात्रा के लिए गतिशील।

मनुष्य जब समझ पाता है कि जीवन किस तरह गतिशील है, तब वह मन के किसी कोने में अपनी गुनगुनाहट को आवाज देना नहीं भूलता – “ओ नदिया चले, चले रे धारा।… चंदा चले, चले रे तारा, तुझको चलना होगा… तुझको चलना होगा।’ इस गीत के बोल धुन में सजकर बताते हैं ज़िंदगी का एक बड़ा सच। सत्य, जो हमें हमेशा प्रोत्साहित करता है आगे बढ़ने के लिए। आवाज देता है – हमेशा चलते रहने की खातिर। बिना रुके, बिना थमे, एक से दूसरे छोर तक मनुष्य को जीवन की नैया खेते रहना है। संघर्षों के आगे हार जाना मानव का धर्म नहीं है।

न नदी रुकी, न ज़िंदगी

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कौन हम-तुम?

दुःख और सुख होते रहे, होते रहेंगे

जानकर परिचय परस्पर हम किसे जाकर कहेंगे?

पूछता हूं, क्योंकि आगे जानता हूं, क्या बदा है

प्रेम जग का और केवल नाम तेरा, नाम मेरा

– “पूछ लूं मैं नाम तेरा !” : सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

दिन के कोलाहल में जलचर जीव खेलते-कूदते, डुबकियां लगते चारा ढूंढ़ते हैं नदी की गहराइयों में, उसी तरह संसार की नदी में सूरज की रोशनी के बीच मनुष्य चलता रहता है। हंसते-गाते, कभी ठोकरें खाते दाना-पानी की तलाश में। मन की, तन की भूख-प्यास मिटी और नदी की मछलियां व बाकि जीव छिप गए किसी पत्थर की ओट में, तभी नदी के पानी में चमका आकाश के किसी तारे का अक्श… इतना सा कुछ घटा पर नदी नहीं रुकी। मद्धम गति से कल-कल करती, कुदरत की लोरी सुनती आगे बढ़ती रही। न नदी रुकी, न ज़िंदगी।

कुछ नहीं होता सुख-दुःख

सुख और दुःख, दोनों ही उत्तेजनाएँ हैं। प्रीतिकर उत्तेजना को हम सुख और अप्रीतिकर उत्तेजना को दुःख का नाम देते हैं, पर आनंद दोनों से भिन्न हे – वह शांति की स्थिति है।

– ओशो

कोई परिभाषा नहीं है सुख और दुःख की। वस्तुतः खुशी और गम कुछ नहीं, ये हैं हमारा मन और विचार, जो अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग तरह से महसूस करते, सोचते और फिर अभिव्यक्ति देते हैं। बेहतर हालत में किए गए कार्य को हम मान लेते हैं आनंद और बुरी व कठिन परिस्थितियों में हुए कार्य-फल को नाम मिल जाता है पीड़ा का। ये दोनों ही एक-दूसरे से बड़ी नाजुक डोर से जुड़े हैं। यह एक जाल है, जो हमें संसार के भवसागर में गोते खिलाता रहता है। श्रीमदभागवत में कहा गया है -‘द’ दुःख है और ‘स’ सुख। जब तक ज़िंदगी की साइकिल चल रही है, तब तक ये गतिरोधक तो मिलते ही रहेंगे। इनके आने पर साइकिल की रफ़्तार भी कम होगी पर रुकेगी नहीं – इसका यकीन भी न छोड़िएगा।

ज़िंदगी गतिशील है, पर किसी संदेह से, दुःख के बोझ से ठहर जाए, व्याधिग्रस्त हो जाए तो मुरझा जाती है। ठीक वैसे ही, जैसे डाल से टूटा फल सड़ जाता है और मुरझा जाते हैं पौधे से अलग हुए फूल। ऐसे में जरुरी यह है कि जीवन एक बार रुक भी जाए तो उसे जगा लेने, नई ज़िंदगी की खुशी से भरपूर कर लेने की कोशिश कभी नहीं रुकनी चाहिए। सुख-दुःख के किनारों तक पहुंचने के क्रम में मनुष्य रुपी नाविक प्रतीक्षा का बोझ साथ लिए चलता है, वही जन्म देती है उत्तेजना और विभिन्न प्रतिक्रियाओं को। ये उत्तेजनाएं इतनी गहन होती हैं कि हम भूल जाते हैं – सुख-दुःख स्थायी नहीं, क्षणभंगुर हैं। स्थायी है – संतोष और खुश रहने की आदत, चलते रहने का स्वभाव, चाहे चिलचिलाती धूप हो या फिर खिले हों सूरजमुखी।

जीवन है चलता-फिरता एक खिलौना

इस धूप-छांव को महसूस करते हुए ‘ग़ज़ल-जीत’ जगजीत सिंह की आवाज में पिरोया एक गुनगुनाता समंदर अक्सर नहला जाता है – ‘जीवन क्या है… चलता-फिरता एक खिलौना है… दो आंखो में एक से हंसना, एक से रोना है…। मिट्टी का ये खिलौना इंसान भी तो हरदम चलता रहता है, कभी गम के समंदर में डूबकर, कभी खुशियों की रोशनी को आंखों में कैद करते हुए।

सुख-दुःख ज़िंदगी नाम के सिक्के के दो पहलू हैं। इस सिक्के से ही चलता उस व्यापारी का गोरखधंधा, जो दूर किसी अद्रश्य देश में रहता है, जिसका व्यापार हर कण में फैला है। ये सिक्का चलता रहता है हमेशा, इसकी फेस वैल्यू कभी कम नहीं होती। जैसा हमारे कर्मों का इन्वेस्टमेंट, वैसा ही नफा-नुकसान !

कई बार हम अपने जीवन के उतार-चढ़ावो को भाग्य मान लेते हैं। बेशक, ग्रह-नक्षत्रों का, भाग्य का अस्तित्व होता होगा। यह भी सही है कि ईंट और पत्थरों के नक्षत्र नहीं होते, मनुष्यों के सितारे जरुर बयान किए गए हैं और यह भी कहा गया है कि हमारे कर्म ही उन्हें दिशा देते हैं, लेकिन कर्म का यह बयान किस्मत से ज्यादा, हमारे आज से है।

प्रकृति के नियमों के प्रतिकूल जाना, यानी पीड़ा में खोना और कुदरत के संग-संग कदमताल करना, आनंद में डूबना ! यह अनुभूति भी हर इंसान के लिए अलग है। किसी के लिए दो वक्त भर पेट रोटी खाना ही आनंद है तो किसी के लिए विलासिता के नाम पर लाखों रुपए बर्बाद कर देना ! कहीं वेदना का अर्थ माथे पर खींची कुछ चिंताओं की रेखाएं हैं तो किसी दूसरे के लिए यह अंतस में कैद सदियों का दर्द है, जो बाहर नहीं निकल पाया।

ज़िंदगी की फिक्र को उड़ाना सीखो

जीवन की नदिया गतिशील है। इसके कभी न थमने का निराला अंदाज याद आता है, जब कभी सुनने को मिलता हे ‘हम दोनों’ का गीत – “मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया…।’ गीत के बोल ज़िंदगी के बेहद करीब ले जाते हैं और हमसे कहते हैं – ज़िंदगी ऐसी ही है। कभी न थमने वाली नदी… बहे चलो इसके साथ, इसकी धीमी और तेज लहरों का साथ निभाते हुए। इस नदिया में हजारों जीव-जंतु डुबकियां लगाते रहते हैं, पर सीप का मोती उसी को मिलता है, जो महासागर तक पहुंच पता हे, यानी उस जगह, जहां आनंद है। जीवन की गुत्थियां जहां पहुंचकर सुलझ जाती हैं। ज़िंदगी नाम का चूल्हा तो हरदम धधकता ही रहेगा, पर संतोष की रोटी कभी-कभार ही पकती है। दुःख न खट्टे अंगूर हैं और न ही सुख है मीठा आम। ये तो इमली की तरह हैं, इनका चटखारा लेने की हिम्मत बचाकर रखनी चाहिए। यह सब कुछ वैसे ही है, जैसे सर्दियों में ठंडी शिकंजी पीना और गर्मियों में गर्मागर्म कहवा की चुस्कियां लेना…।

गम आए, खुशी आए… सबका स्वागत!

कभी यूं ही स्याह रात में अपने कमरे के झरोखे से दिखती तारों की चादर देखकर मन में एक ख्याल आता है कि आखिर ये टिम-टिम करते तारे, जो रातभर सुख और दुःख के किस्से सुनाते रहते हैं, सुबह कहां गुम हो जाते हैं, कौन-से अनंत आकाश में जाकर मिल जाते हैं? ये सब जुगनुनूमा तारे सुबह के वक्त अपनी रोशनी का गुलदस्ता सूरज को भेंट करने जाते हैं तो हम क्यों मुरझा जाते हैं सुख-दुःख में बिंधकर?

तारों जैसे ही है हमारा जीवन भी। गम आए, खुशी आए – सबका स्वागत करते रहें। जब-जब ठहरे यह जीवन, एक बार फिर सारी हिम्मत जुटाकर इसे पुनर्जीवन देने की कोशिश करें। नदी सागर से मिली, एक नया रुप पा गई।

आइए, हम भी मिलें अपने संतोष से। उल्लास से। ईश्वर से। जगा लें खुद में, खुद के लिए विश्वास। यही भरोसा ही तो सबसे बड़ा है। यहीं आकर हर कष्ट, हर खुशी – सबको समतल आधार मिल जाता है। संतोष की धरती पर सब एक रंग हैं, एक जैसे खारे और एक जैसे मीठे !

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article द्वारा दी गयी सीख आपके जीवन में उपयोगी साबित होगी। अगर आपको ये Article उपयोगी हुआ हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरूर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

जी लो ज़िंदगी, पल ये जाने वाला है! Live you life, this moment is about to pass!

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जी लो ज़िंदगी, पल ये जाने वाला है!

हर दिन नया उपहार लेकर आता है, द्वार पर ठहरता है और प्रतीक्षा करने के बाद चला जाता है। अगर उसके स्वागत के लिए तुम तैयार हो तो वह उपहार प्रदान करता है, नहीं तो बहुमूल्य उपहार वापस लेकर चला जाता है। हमारा जीवन कुदरत का अनमोल तोहफा है। जिस तरह बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, वैसे ही एक-एक दिन से जीवन बनता है और हर दिन वरदान है, लेकिन हममें से अधिकांश लोग इसे वैसे ही बर्बाद कर देते हैं, जैसे गुजरा हुआ कल किया या आज के इन पलों को कर रहे हैं। उस आज को खोने का एहसास ताउम्र रहता है, क्योंकि जीवन के एक मोड़ पर जाकर समझ में आता है कि भविष्य की चिंता में उस सुनहरे पल को खो दिया, जो उपलब्धि बन सकता था।

ज़िंदगी की सच्चाई है आज

आज हमारे जीवन का सबसे बड़ा सच है। आज को नकार कर आने वाले दिनों की सुखद कल्पना नहीं की जा सकती। नोबेल पुरस्कार विजेता अल्फ्रेड नोबेल से कौन वाकिफ नहीं है। उन्होंने विज्ञान, साहित्य और कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वालों के लिए नोबेल फाउंडेशन की स्थापना की। इस फाउंडेशन की नींव की कहानी भी दिलचस्प है।

एक दिन अल्फ्रेड नोबेल अखबार पढ़ रहे थे। जैसे ही दूसरे पन्ने पर उनकी नज़र पड़ी, उन्होंने कुछ ऐसा पढ़ा, जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे। उस पन्ने पर उनकी तसवीर छपी थी और साथ ही उनके बारे में एक खबर भी, जिसने उन्हें अंदर तक हिलाकर रख दिया। खबर की हेडिंग थी – मौत के सौदागर की मौत। अपनी ही मौत का समाचार पढ़कर उनके होश उड़ गए। उनके मन में एक विचार आया। क्या उनके मरने के बाद दुनिया उन्हें मौत के सौदागर के रुप में जानेगी। वह भी सिर्फ इसलिए, क्योंकि उन्होंने डायनामाइट का आविष्कार किया था। उसी पल उन्होंने थान लिया कि वे कुछ ऐसा करेंगे, जिससे लोग उनकी अच्छाइयों को याद करें। अगले ही दिन उन्होंने अपनी संपत्ति के बड़े हिस्से से नोबेल फाउंडेशन की स्थापना की।

आज पूरी दुनिया में मानवतावादी मूल्यों के लिए उन्हें जाना जाता है। गलती से छपी एक खबर ने अल्फ्रेड नोबेल के पूरे जीवन को बदल दिया। उन्होंने महसूस किया कि यदि उस दिन उनकी ज़िंदगी का आखरी दिन होता तो शायद वे कुछ भी नहीं बदल पाते। उस एक पल में अल्फ्रेड नोबेल ने अपने भविष्य की नींव रख दी। अल्फ्रेड नोबेल को तो अपनी भूल सुधारने का मौका मिला, लेकिन हो सकता है यह अवसर सभी के जीवन में न आए।

वर्तमान ज्योतिर्मय है

मुठ्ठी से रेट की तरह फिसलते लम्हे भला किसके लिए ठहरे हैं? किसी की मौजूदगी हो या न हो – समय की चाल पर उसका कोई असर नहीं पड़ता। जिस क्षण में हम नहीं होते, वह खाली निकल जाता है। ऐसे लोग, जो भविष्य में जीते है, वे इस बात को जान ही नहीं पाते कि ज़िंदगी कब आई और कब चली गई। आज, इसी वक्त का ही जीवन है, जो बीत गया वह सपना है, भविष्य कल्पना है। सुखी वर्तमान से ही भविष्य स्वर्णिम बनता है, इस बात का अच्छी तरह स्मरण कर लें। बीता हुआ दिन हमारी सभी नादानियों, असफलताओं, आशाओं के उल्लास व निराशाओं के दर्द को समेटकर जा चुका है। कोई भी कीमत देकर हम उस गुजरे हुए पल को वापस नहीं पा सकते।

ओशो कहते हैं, ‘अतीत और भविष्य – दोनों का अस्तित्व नहीं है। भूतकाल बीत गया, उसकी कोई कीमत नहीं। वर्तमान को अच्छा बना रहे हैं तो भविष्य की नींव दाल रहे हैं। आज ही तुम्हारा भविष्य है। आज को संवारो, आज हंसो, आज को जियो।’

ऐसे लोग जो भूतकाल को याद करने में और भविष्य की चिंता करने में समय गंवाते है, उन्हें चाहिए कि वे अपने वर्तमान का सदुपयोग करें। हर दिन को व्यवस्थित ढंग से व्यतीत करें और भविष्य जानने की कोशिश न करें, क्योंकि वर्तमान आपके हाथ में है, इसलिए हर दिन का स्वागत उत्साह से करने की आदत दाल लें और हर लम्हे को इतना पी जाऐं, इतना निचोड़ लें कि उसमें से कुछ शेष ही न रह जाए।

देखा जाए तो बीता हुआ समय इतिहास बन जाता है, आने वाला कल अभी तक रहस्य है। हमारा है तो बस यही एक पल है। हम कोई भी काम करते है, वह आज में करते है। आज का काम आज किया जाए, यह सिर्फ कहावत नहीं है, पूरा जीवन दर्शन।

हर दिन एक नया अध्याय है

हर दिन एक नया अध्याय है और हर लम्हा एक कहानी कहता है – इस सच्चाई के साथ हर दिन कुछ उपलब्धि हांसिल करें और मंज़िल की और एक कदम बढ़ाए। आसान राह में भीड़ अधिक होती है। आप भीड़ का हिस्सा न बनें। नई राहें खोजें, नई राहें बनाऐं। नए रास्तों में नए दोस्त मिलेंगे, नई मंज़िले मिलेंगी और ज़िंदगी को पहचान मिलेगी। दोस्तों के साथ संगीत का आनंद उठाऐं और अपनी हंसी को खुलकर प्रदर्शित करने की कला सीखें।

याद रहे, खुशियां हमेंशा बूंदों की तरह बरसती है, नदियों की तरह नहीं आती। बूंदे बारिश में आती है, हर समय नहीं आती। ओस तो हर दिन आती है, पर आसमान से आती हुई ओस दिखाई नहीं देती, कुछ क्षणों के लिए ही सही, ओस होती है। ऐसे ही खुशियां भी दिखाई नहीं देती, लेकिन होती है और ओस की बूंदो की तरह होती है, इसलिए खुशियों के आने का द्वार हंमेशा खुला रखें।

याद रहे, ज़िंदगी के रंगमंच पर कभी रिहर्सल नहीं चलती – हर दिन एक नया और बढ़िया शो दें। यहाँ रिवाइंड नहीं होता, इसलिए अपना बेहतर शॉट दें और आज को सफल बनाऐ।

ज़िंदगी का आखिरी दिन है आज

स्टीव जॉब्स का मानना है कि, “अगर आप हर दिन को कुछ इस तरह से जीएं कि मानो वह आपका आखिरी दिन है तो एक दिन आप बिल्कुल सही जगह पर होंगे, क्योंकि आपने अपने आज को संवारकर अपने कल को बेहतर बनाने की नींव डाल ली है।”

आपने कभी इस बात की कल्पना की है कि यदि आज आपकी ज़िंदगी का आखिरी दिन हो तो आप क्या करेंगे? आप उस दिन को कैसे बिताएंगे। कभी सोचकर देखिए, आपको एहसास होगा कि उस एक दिन में आपने सदियां जी ली है। उस दिन का एक-एक क्षण आपने पूरी तरह से जिया है, क्योंकि कितना संग्रह कर लिया, इसकी कोई कीमत नहीं। कितने आनंद से कोई जी लिया, इसकी कीमत है।

आपने घास के पत्ते पर ओस की बूंद को कभी गौर से देखा है? अब ढलकी, तब ढलकी और देखते-देखते ही ढल जाएगी, हवा का जरा-सा झोंका काफी है। सूरज का निकलना भर होगा और वह भाप बन जाएगी। जरा-सा धक्का और गई, लेकिन जब होती है, तब तो मोतियों को भी ईर्ष्या होती है।

हमारे पास अब वह समय है, जो हमें चाहिए – उन बहुत से अवसरों के साथ, जहां हम साबित कर सके कि हम बहुत कुछ कर सकते है। आइए, आज का भरपूर संयोजन कर पूर्ण रुप से आंतरिक शक्तियां सहेजते हुए हम इसी पल को पूर्ण रुप से जी लें और सुखद भविष्य की कल्पना में खो जाए, ताकि बीते दिनों को कड़वाहट को आने वाली उज्ज्वल खुशियों की चाह मिटा सके।

याद रहे, ‘आने वाला कल जाने वाला है, हो सके तो इसमें ज़िंदगी बिता दो, पल जो ये जाने वाला है…।’

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article द्वारा दी गयी सीख आपके जीवन में उपयोगी साबित होगी। अगर आपको ये Article उपयोगी हुआ हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरूर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

हर बच्चा खास होता है Every child is a special

Har Baccha Khas Hai Every Child Is A Special 1 1024x538

हर बच्चा खास होता है

हर बच्चा अनोखा और खास होता है। हर बच्चा प्रतिभाशाली (Genius) होता है। स्पेन के महान चित्रकार पाब्लो पिकासो कहते है की, “हर बच्चा एक कलाकार होता है। समस्या यह है की बड़े होने के बाद भी वह कलाकार कैसे बना रहे!” यह एक और अद्भुत कहानी का परिचय मात्र है… कृपया आगे पढ़े

गिलियन के डॉक्टर

गिलियन सात साल की थी। वह कक्षा में लगातार बैठ नहीं पाती थी। उसका ध्यान भटकता रहता, वह अपने ख़यालों में खोई रहती। जो कुछ कक्षा में पढ़ाया जाता, वह उसे थोड़ा सा भी समझ नहीं आता था। शिक्षक उसकी चिंता करते, अनुशासन तोड़ने पर उसे डांटते, दंडित भी करते। लेकिन गिलियन एक जगह बैठ नहीं सकती थी।

जब वह घर आती, तो वहाँ भी उसका यही हाल था। इस बात पर उसकी माँ भी उसे डांटती, सजा देती। इस प्रकार, गिलियन न केवल स्कूल में ख़राब ग्रेड और सजा से परेशान थी, बल्कि वह घर पर भी परेशान ही थी।

एक दिन प्रिंसिपल ने गिलियन की माँ को स्कूल में बुलाया। माँ को अंदाजा था की गिलियन के बारे में कुछ बुरा सुनने को मिलेगा। गिलियन को बाहर एक कमरे में छोड़कर माँ प्रिंसिपल से मिलने जाती है। वहाँ पर प्रिंसिपल के साथ स्कूल के अन्य शिक्षक भी थे।

“वह सामान्य नहीं है,” प्रिंसिपल ने कहा।

“उसे शायद एक अच्छे डॉक्टर को दिखाने की जरुरत है। “

स्कूल के अन्य शिक्षक भी माँ को गिलियन की बीमारी के बारे में बताते है।

प्रिंसिपल और अन्य शिक्षकों की बातें सुनकर और उनकी सलाह मानकर गिलियन की माँ उसे डॉक्टर के पास ले गई। गिलियन की माँ ने उसकी बेचैनी और एकाग्रता की कमी के बारे में डॉक्टर को बताया। गिलियन की माँ की सारी बातें सुनने के बाद, डॉक्टर ने गिलियन से कहा की उसे उसकी माँ से कुछ देर अकेले में बात करनी है। डॉक्टर गिलियन से कहते है की वह जल्द ही वापस आएंगे, और जाते-जाते वे उस कमरें में रखे ‘रेडियो’ को चालू कर देते है, जिस पर मधुर संगीत बजने लगता है।

थोड़ी देर बाद, डॉक्टर गिलियन की माँ को साथ चलने को कहते है। वह गिलियन की माँ को उस कमरे के बाहर ले जाकर खड़ा कर देते है, जहाँ पर गिलियन थी। अब वे गिलियन की माँ को कमरे में झाँकने के लिए कहते है। कमरे के अंदर का दृश्य देखकर गिलियन की माँ अचंबित हो जाती है। उन्हें विश्वास नहीं होता। कमरे में गिलियन ‘रेडियो’ पर बज रहे मधुर संगीत पर सुंदर नृत्य कर रही थी।

जैसे ही कमरे रखे ‘रेडियो’ पर संगीत गूंज उठा, गिलियन तुरंत खड़ी हुई और वह नृत्य करने लगी। वह बेचैन नहीं हुई, वह नृत्य करने लगी – लय के साथ, आनंद के साथ, आत्मा के साथ।

डॉक्टर मुस्कुराते हुए गिलियन की माँ से कहते है, “गिलियन बीमार नहीं है, वह एक नर्तकी है! उसे नृत्य सिखाओ।” उन्होंने गिलियन की माँ को उसे नृत्य विद्यालय ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने गिलियन के शिक्षकों को भी उसे हिलने-डुलने देने के लिए कहाँ। और इसके बाद सबकुछ बदल गया।

गिलियन की माँ उसे एक डांस स्कूल में भेजती है। गिलियन ने नृत्य कक्षा जाना शुरु किया और वह खिल उठीं। जब गिलियन पहले दिन डांस कक्षा में भाग लेकर घर पहुँचती है, तो दौड़कर ख़ुशी से अपनी माँ के गले लग जाती है और अपनी माँ से कहती है, “माँ, इस स्कूल में सब बच्चे मेरे जैसे है, कोई एक जगह नहीं बैठ सकता।

ये कहानी है गिलियन की। एक खूबसूरत बच्ची, जिस पर उसके शिक्षकों ने भरोसा करना छोड़ दिया था। ये कहानी है अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कोरियोग्राफर ‘गिलियन लीन’ की। सालों बाद, गिलियन लीन दुनिया की सबसे प्रसिद्ध कोरियोग्राफरों में से एक बन गई – जिन्हें कैट्स और द फैंटम ऑफ़ द ओपेरा को जीवंत करने के लिए जाना जाता है।

Gillian Lynne Olivier Awards2013

गिलियन लीन ‘ओलिवियर अवार्ड्स (Olivier Awards)’ 2013

बच्चों की प्रतिभा को पहचाने

हर बच्चा खास होता है। उनमें कुछ न कुछ प्रतिभाएँ होती है, इसलिए हमारा यह कर्तव्य है की हम बच्चों की प्रतिभाओं और विशेष गुणों पर ध्यान दें। उन्हें अपने प्रतिभा का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करें। कुछ बच्चे खेलकूद और कलाओं जैसे की पेंटिंग, स्केचिंग, गायन, अभिनय, नृत्य आदि में अच्छे होते है। कुछ पढाई में अच्छे होते है, तो कुछ शैक्षणिक प्रदर्शन के मामले में किसी विशेष विषय में अच्छे होते है। इसलिए, बच्चों में कई प्रतिभाएँ, अनोखे गुण और विशेषता देखी जा सकती है।

हालाँकि बच्चों में अपनी खास प्रतिभाएँ होती है, फिर भी कुछ बच्चे पढाई में या अन्य क्षेत्र में पिछड़ जाते है। उन्हें पढ़ने, लिखने और सीखने में कठिनाई होती है। लेकिन, दूसरी और उनमें कुछ अन्य प्रतिभाएँ भी होती है। माता-पिता और शिक्षकों का काम यह है की, वे उनसे बात करें, उनका अवलोकन करें और उनके सर्वोत्तम गुणों को बाहर लाए।

हर बच्चा एक प्रतिभा होता है, अगर हम उसे ऐसा बनने दें। हमारा काम है उनमें से सर्वश्रेष्ठ बहार निकालें। सभी बच्चों को अपनी प्रतिभा के मुताबिक आगे बढ़ने देना चाहिए। बच्चों को अपने जीवन की राह खुद चुनने दो। उन्हें अपनी प्रतिभा के अनुसार अपना लक्ष्य चुनकर आगे बढ़ने दो। फिर देखिये, बच्चों की प्रतिभा कैसे खिल उठेगी।

दुनिया का हर बच्चा एक व्यापक जिज्ञासा प्रदर्शित करता है। बच्चे हर चीज़ में रुचि रखते है। अगर दुनिया के हर बच्चे को अपनी प्रतिभा के अनुसार आगे बढ़ने दिया जाए, तो दुनिया में बच्चों की जो भी समस्याएँ है, वो ज्यादातर खत्म हो जाएगी।

आइए, हम सब साथ मिलकर हर बच्चे में सर्वश्रेष्ठ का निर्माण करें। हम सभी बच्चों के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ करने की भावना रखें। तो चलो पहल करें और आगे बढ़ें !!! देश का भविष्य उज्वल और मुस्कुराता हुआ बनाएँ। क्योंकि, हर बच्चा खास होता है।

अंत में आपसे सिर्फ इतना कहना चाहेंगे की, अपने आसपास की ‘गिलियन’ को पहचानियें और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कीजिए।

इसी जानकारी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article द्वारा दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। अगर आपको ये Article उपयोगी हुआ हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरूर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

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