
‘मिस्र के भव्य पिरामिड’ मृत राजाओं की समाधियों के साथ-साथ मनुष्य के कौशल के शिलालेख भी हैं। नील नदी के पश्चिमी किनारे पर आश्चर्य से अभिभूत कर देने वाले भव्य पिरामिड हजारों वर्ष से सिर उठाए खड़े हैं। इन्हें देखकर लगता है कि इनके निर्माण में तकनीकी कौशल और मानवीय श्रम के साथ-साथ आध्यात्मिक निष्ठा का योगदान रहा होगा।
पिरामिड निर्माण का स्वर्णिम युग
मिस्र में 2868 से 2613 ई.पू. तक का समय पिरामिड निर्माण-काल का स्वर्णिम युग रहा है। पिरामिड फ़ेराओं (राजा) और उनके उच्चाधिकारियों की मृत्युपरांत समाधि-स्थल के रूप में कल्पित किए गए थे। इस कल्पना का भी एक आधार था। मिस्र की राजधानी मेम्फीज़ के उत्तर में एक नगर था – मिस्री ‘ऑन नगर’ (जो बाद में यूनानी शब्द हेलियोलिस के नाम से प्रसिद्ध हुआ) जहां स्तंभ की पूजा होती थी। किंतु जब (3188 ई.पू. से) राजवंशों का शासन प्रारंभ हुआ, तब यहां सूर्य की उपासना होने लगी। इस मंदिर में ‘बेनबेन’ सबसे पवित्र वास्तु थी। यह पिरामिड की शक्ल का एक पत्थर था, जिस पर कहा जाता है कि, सूर्य ने स्वयं को फ़ीनिक्स के रुप में प्रकट किया था।
मिस्र राजशाही की नींव फ़ेराओं की अमरता की धरना पर टिकी थी और इससे उत्तर जीवन के धार्मिक विश्वास की पुष्टि होती थी। पिरामिड फ़ेराओं को गौरवान्वित ही नहीं करते थे अपितु, यह उसके लिए ऐसा आश्रय-स्थल मन जाता था जहां, वह दूसरी दुनिया में प्रवेश करने तक प्रतीक्षा कर सकता था। इस अंतराल में उसका शव सुरक्षित रहना आवश्यक था। अतः, मिस्रियों ने इस हेतु शव के लेपण करने की विधि में पूर्ण दक्षता प्राप्त कर ली थी। राजाओं के शवों के पास नौकरों तथा उन वस्तुओं को भी दफ़न कर दिया जाता था, जिसकी उसे जरुरत पड़ती थी।
पिरामिड कब बने थे और किसने बनवाए थे?
फिरौन खुफ़ू गीज़ा में पिरामिड बनवाने वाले पहले मिस्री राजा थे। उन्होंने लगभग 2550 ई.पू. में इस परियोजना की शुरुआत की थी। उनका बनाया हुआ महान पिरामिड गीज़ा का सबसे बड़ा पिरामिड है और मूल रुप से पठार से लगभग 481 फीट (147 मीटर ) ऊँचा था।
अब यह थोड़ा छोटा हो गया है, क्योंकि इसके आवरण के पत्थर अब मौजूद नहीं हैं। इसके अनुमानित 23 लाख पत्थर के ब्लॉकों में से प्रत्येक का औसत वजन 2.5 से 15 टन है।
खुफ़ू के पुत्र, खफ्रे ने लगभग 2520 ई.पू. गीज़ा में दूसरे घाटी पिरामिड का निर्माण कराया था। खफ्रे का पिरामिड अपने विशाल स्फिंक्स के कारण परिद्रश्य में विशिष्ठ रुप से दिखाई देता है, जो एक रहस्यमय चूना पत्थर का स्मारक है, जिसका शरीर शेर का और सिर एक फिरौन का है।

स्फिंक्स, गीज़ा पिरामिड, काहिरा, मिस्र के पास
स्फिंक्स, जो 1800 के दशक से पहले हजारों वर्षों तक रेत में दबा रहा और जिसका केवल सिर ही दिखाई देता था, संभवतः फ़राओ के मकबरे परिसर का प्रहरी है। हालांकि, इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि इसे उसी ने बनवाया था।
गीज़ा के पिरामिडों में से तीसरा पिरामिड पहले दो पिरामिडों से बहुत छोटा है – लगभग 218 फीट की ऊँचाई के साथ, उनकी आधी से भी कम। खफ्रे के पुत्र मेनकाउरे द्वारा लगभग 2490 ई.पू. में निर्मित। इस पिरामिड के विस्तृत परिसर में एक लंबे मार्ग से जुड़े दो अलग-अलग मंदिर और तीन अलग-अलग रानियों के पिरामिड शामिल हैं।
मेनकाउरे के कक्षों में गीज़ा की अनूठी अलंकरण सजावट और उनके समाधि कक्ष में ही एक गुंबददार छत है। फ़राओ का विस्तृत ताबूत 1838 में जिब्राल्टर के पास समुद्र में खो गया था।
गीजा का पिरामिड
यों तो मिस्र में चालीस पिरामिड हैं, जिन्हें ‘अहराम’ कहते हैं, परंतु प्राचीन संसार के सात आश्चर्यों में एकमात्र अस्तित्व में रह गया और आज भी भव्यता से विद्यमान ‘गीजा का पिरामिड’ है, जो सम्राट खुफ़ू ( 2545 -2520 ई.पू ) के शासन काल में उसी के लिए निर्मित किया गया था। यद्यपि इस काल से 200 वर्ष पूर्व निर्माण कार्य लिए धूप में पकी ईंटों का प्रयोग होने लगा था, परंतु स्थायित्व द्रष्टि से पिरामिड पत्थर के ही बनाए गए। 13 एकड़ भूमि पर फैला यह पिरामिड 482 फीट ऊँचा है। इसके प्रत्येक ओर का आधार 776 फीट है और यही इसकी चौड़ाई है। इसका कुल वजन 65 लाख टन आंका गया है। इसमें 20 लाख से अधिक शिलाखंड लगे हैं और प्रत्येक शिलाखंड का वजन ढाई टन है।
नेपोलियन ने कहा था कि, पिरामिड में लगे पत्थरों से फ्रांस के चारों ओर एक फीट चौड़ी और 10 फीट ऊँची दीवार खिंच सकती है। निर्माण कार्य अति विशाल और परिश्रम-साध्य था, तथापि इसे खुफ़ू के राज्यकाल में ही 23 वर्षों में बना लिया गया था, जबकि श्रमिक और कारीगर माल ढोने वाले पशुओं और पहिया-गाड़ी की सहायता के बिना काम को अंजाम देते थे। इतने पर भी पत्थर एक दूसरे पर इतनी सुघड़ता और सफ़ाई से रखे गए कि उनके बीच में एक काग़ज़ भी नहीं डाला जा सकता। वे वास्तव में अन्वेषक इंजीनियर थे।
कितने लोग लगे!
यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ( 490-430 ई.पू. ) ने मिस्र आकर गीजा के पिरामिड को देखा। स्थानीय गाइडों की लंबी-चौड़ी बातों के आधार पर उसने लिखा है कि, इस महान पिरामिड के निर्माण में एक लाख दास काम पर लगाए गए थे। वास्तविकता इसके विपरीत है। जैसे ही प्राचीन साम्राज्य सत्ता में आया, उसने पिरामिड बनाने की योजना शुरु की। भवन निर्माताओं और वास्तुविदों की नौकरशाही काम पर लग गई। खदानों में या निर्माण स्थलों पर काम करने के लिए प्रत्येक गांव से निर्धारित संख्या में श्रमिक आने लगे। ये सब स्वतंत्र नागरिक थे, दास नहीं।
एक समय में कुल चार हज़ार लोग काम पर लगाए जाते थे, जो 18-20 की टोली बनाकर काम करते थे। किसान श्रमिक नील नदी में बाढ़ आने के समय काम करते थे। युद्ध-बंदी भी काम पर लगाए जाते थे, परंतु उनके साथ दासों जैसा व्यवहार नहीं होता था। हां, यह जरुर है कि उनसे भारी काम कराए जाते थे। पुरातात्विक खोजों में पिरामिड के पास एक बैरक पाई गई है, जिसमें तीन से चार हज़ार लोग तक रह सकते थे।
काम की शुरुआत
खुफ़ू के वास्तुविदों ने अपने राजा के लिए विशाल पिरामिड – जो आज भी संसार में सबसे बड़ा प्रस्तर-निर्माण है – बनाने से पहले रेगिस्तान में उपयुक्त स्थान की तलाश की। इस खोज में उन्हें एक विशाल चट्टानी टीला मिला, जो रेगिस्तान की सतह से ऊपर था। सर्वेक्षकों ने उस स्थल को चिन्हित किया। पिरामिड का आधार एकदम वर्गाकार रखा। टीले के विषम छोर पर एक सीढ़ीनुमा चबूतरा बनाया गया, जिससे निर्माण में प्रयुक्त होने वाले शिलाखंड उस पर रखे जा सकें। चबूतरे को हमवार करने के लिए आधार के पास खाइयां खोद दी गई और उनमें, नालियों के माध्यम से पानी से भर दिया गया। इससे 13 एकड़ ज़मीन को समतल कर लिया गया। इस हेतु ज़मीन तब तक खोदी जाती, जब तक वह हमवार न हो जाए।
शिलाखंडो को खदान में ही विभिन्न चिन्हों से अंकित किया जाता। कुछ में गंतव्य लिखा होता और अन्य सूचनाएं लिखी होतीं। निर्माण स्थल पर शिलाखंड को जिधर से ऊपर उठाना होता, वहां लिखा होता, “इस ओर से ऊपर।’ कुछ लोग अपनी खदान टोली का नाम लिख देते। जैसे, ‘ओजस्वी टोली’ या ‘चिरस्थाई टोली।’ कठिन परिश्रम भी श्रमिकों का हास्यबोध कम नहीं कर पाता। कुछ लोग लिखते, ‘राजा ने कितनी दाल पी है !’
नील के किनारे से निर्माण स्थल तक, पत्थरों का रास्ता बनाया जाता। शिलाखंडों से लदी नाव आने पर उन्हें एक-एक कर उतार कर स्लेज पर रखकर निर्माण स्थल तक पहुंचाया जाता। वहां पत्थरों का एक सुद्रढ़ पाड़ बना होता, जो धरातल से ऊपर उठता चला जाता। इसी पर डालकर पत्थर खींचे जाते। नियत स्थान पर पहुंचने पर उन्हें बिछे हुए गारे पर खिसका दिया जाता।
पिरामिडों के भीतर क्या है?
यदि पिरामिडों ने प्राचीन मिस्र के निर्माण में योगदान दिया, तो उन्होंने इसे संरक्षित भी किया। गीज़ा हमें एक लंबे समय से लुप्त हो चुके संसार का अन्वेषण करने का अवसर प्रदान करता है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मिस्रविज्ञानि पीटर डेर मैनुएलियन कहते हैं, “कई लोग इस स्थल को आधुनिक अर्थों में केवल एक कब्रिस्तान मानते हैं, लेकिन यह उससे कहीं अधिक है। इन अलंकृत कब्रों में आपको प्राचीन मिस्र के जीवन के हर पहलू के अद्भुत द्रश्य देखने को मिलते हैं – इसलिए, यह केवल इस बारे में नहीं है कि, मिस्रवासी कैसे मरते थे, बल्कि इस बारे में भी है कि वे कैसे जीते थे।”
कब्रों की कला में प्राचीन किसानों को अपने खेतों में काम करते और पशुओं की देखभाल करते, मछली पकड़ते और पक्षियों का शिकार करते, बढ़ईगीरी करते, वेशभूषा पहनते और धार्मिक अनुष्ठान और दफन प्रथाओं का पालन करते हुए दर्शाया गया है।
शिलालेख और लेख मिस्र के व्याकरण और भाषा के शोध में भी सहायक होते हैं। डेर मैनुएलियन कहते हैं, “फिरौन सभ्यता के बारे में आप जिस भी विषय का अध्ययन करना चाहते हैं, वह गीज़ा की कब्रों की दीवारों पर उपलब्ध है।”
इनमें से कई अनूठे संसाधन गीज़ा प्रोजेक्ट में सभी के लिए मुफ्त में उपलब्ध हैं, जो दुनिया के अग्रणी संस्थानों से एकत्रित तस्वीरों, योजनाओं, रेखाचित्रों, पांडुलिपियों, वस्तु अभिलेखों और अभियान डायरियों का एक विशाल संग्रह है, जिसे गीज़ा से संबंधित सामग्री के लिए एक अविश्वसनीय ऑनलाइन भंडार में एक साथ इकठ्ठा किया गया है।
गीज़ा पिरामिड और उसके स्मारक : मान्यताएँ
पिरामिडों का निर्माण परलोक को ध्यान में रखकर किया गया था और ये इस बात का प्रतिक थे कि, फिरौन किस प्रकार स्वर्ग तक पहुँच सकता है। ये संभवतः उस मूल टीले का भी प्रतिक हैं, जो संसार की शुरुआत में समुद्र से उभरा था, ताकि राजा का भी उसी प्रकार पुनर्जन्म हो सके।
तीनों पिरामिडों को अद्भुत सटीकता के साथ दिशाओं के अनुरुप बनाया गया था, संभवतः तारों का उपयोग करके, या शरद, विषुव जैसे महत्वपूर्ण तिथियों पर छाया का मानचित्रण करके।
इस बात पर बहस जारी है कि, क्या पिरामिडों को महत्वपूर्ण तारों के साथ सटीक रुप से संरेखित किया गया था। ओरियन बेल्ट के साथ संरेखण के सिद्धांतों को विज्ञानिकों द्वारा खारिज कर दिया गया है, लेकिन परग्रही निर्माताओं में विश्वास करने वालों के बीच ये लोकप्रिय हैं। राजा के कक्ष से निकलने वाले रहस्यमय शाफ्ट महत्वपूर्ण तारों की ओर इशारा करते होंगे, या केवल ताजी हवा लाते होंगे।
मिस्रवासियों ने गीज़ा में स्मारकों की व्यवस्था के लिए सूर्य का उपयोग किया था। ग्रीष्म संक्रांति के दौरान, ग्रेट स्फिंक्स से देखने पर यह सम्राट खुफ़ू और खफ्रे के पिरामिडों के ठीक बीच में अस्त होता है।
नेपोलियन और पिरामिड
18वीं शताब्दी के अंत में जब नेपोलियन मिस्र पहुंचा, तो असके साथ सेना के अतिरिक्त 120 भूगर्भशास्त्री, पुरातत्ववेत्ता, इंजीनियर और विभिन्न विषयों के दक्ष लोग और अधिकारी आदि शामिल थे। वहां एक महत्वपूर्ण अभियान शुरु हुआ, जिसने ज्ञान की एक नई शाखा ‘इजिप्टोलॉजी’ को जन्म दिया। मिस्र के शिलालेख, वहां की वनस्पति, इतिहास, हर चीज़ का अध्ययन शुरु हुआ और एक अत्यंत पुरानी सभ्यता के विभिन्न पहलुओं पर पहली बार प्रकाश पड़ा।
19वीं शताब्दी में पुराविदों ने जब पिरामिडों का मानचित्रीकरण किया तो उसके बड़े आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए। इससे ‘पिरामिड इंच’ ऐसी मानक इकाई थी, जिसके प्रयोग से इतनी रहस्यमय सूक्ष्मता से पिरामिड बनाए गए थे। पिरामिड-विज्ञानियों ने यह सिद्धांत भी प्रस्तुत किया कि, पिरामिड ऐसे महान प्रस्तर-ग्रंथ हैं, जिसमें संसार का संपूर्ण इतिहास कूट-भाषा में लिखा है।
20वीं शताब्दी में यह धारणा प्रचलित होकर सर्वत्र व्याप्त हो गई कि, पिरामिड परग्रहवासियों द्वारा अपने विमानों पर लाए गए थे। तथापि इनके निर्माण की सच्ची कहानी कम प्रभावशाली नहीं है।
कुछ विशिष्ट शब्दों के अर्थ :
स्फिंक्स : एक पौराणिक जीव, जिसका शरीर शेर का और सिर मनुष्य का होता है। इसके पंख भी होते है, जो प्राचीन मिस्र और यूनानी पौराणिक कथाओं में पाया जाता है। यह शक्ति और रहस्य का प्रतिक है।
मिस्र के पिरामिडों के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQ on google
1. पृथ्वी पर कितने पिरामिड हैं?
विश्व भर में पिरामिड संरचनाएं लगभग हर जगह मौजूद हैं. . .। विश्व भर में हजारों पिरामिड हैं, जिनमें मिस्र में लगभग 118 पहचाने गए हैं और सूडान में इस से भी अधिक (लगभग 220-255 नूबियाई पिरामिड ) हैं, जो इसे सबसे अधिक पिरामिड वाला देश बनता है।
अमेरिका में इनकी कुल संख्या सबसे अधिक है। अकेले मध्य अमेरिका में एक हजार से अधिक पिरामिड हैं। वहीं, चीन, मैक्सिको और अन्य क्षेत्रों में भी कई पिरामिड हैं ,दबी हुई, अज्ञात या नष्ट हो चुकी संरचनाओं के कारण, सटीक संख्या बताना मुश्किल है।
2. मिस्र के पिरामिडों की खासियत क्या है?
गीज़ा के कई पिरामिड अब तक निर्मित सबसे विशाल संरचनाओं में गिने जाते हैं। खुफ़ू का पिरामिड मिस्र का सबसे विशाल पिरामिड है और प्राचीन विश्व के सात अजूबों में से आखिरी है, जो आज भी मौजूद है। हालांकि, यह लगभग 2,000 साल पुराना है।
3. पिरामिडों का निर्माण इतनी सटीकता से कैसे हुआ?
पिरामिडों को खगोलीय सटीकता के साथ डिज़ाइन किया गया था, जिसमें प्रत्येक भुजा एक मुख्य दिशा की ओर उन्मुख थी। आधार को समतल बनाने के लिए, जल से नालियाँ भरी गई और कोनों को समद्विभाजित कोणों का उपयोग करके पूरी तरह से संरेखित किया गया।
4. पिरामिडों में 43200 का क्या अर्थ है?
गीज़ा के महान पिरामिड के बारे में एक रोचक तथ्य : महान पिरामिड की परिधि को 43,200 से गुणा करने पर पृथ्वी की भूमध्यरेखीय परिधि प्राप्त होती है। इसलिए, इसके लिए पृथ्वी की भूमध्यरेखीय परिधि और ध्रुवीय त्रिज्या का सटीक ज्ञान आवश्यक रहा होगा।
इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ कि आपको इस Article पसंद आया हो। अगर आपको पसंद आया हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !
































































