मिस्र के पिरामिड कैसे बनाए गए थे? How were the Pyramids of Egyptian built?

मिस्र के पिरामिड कैसे बनाए गए थे how were the pyramids of egyptian built

 

‘मिस्र के भव्य पिरामिड’ मृत राजाओं की समाधियों के साथ-साथ मनुष्य के कौशल के शिलालेख भी हैं। नील नदी के पश्चिमी किनारे पर आश्चर्य से अभिभूत कर देने वाले भव्य पिरामिड हजारों वर्ष से सिर उठाए खड़े हैं। इन्हें देखकर लगता है कि इनके निर्माण में तकनीकी कौशल और मानवीय श्रम के साथ-साथ आध्यात्मिक निष्ठा का योगदान रहा होगा।

पिरामिड निर्माण का स्वर्णिम युग

मिस्र में 2868 से 2613 ई.पू. तक का समय पिरामिड निर्माण-काल का स्वर्णिम युग रहा है। पिरामिड फ़ेराओं (राजा) और उनके उच्चाधिकारियों की मृत्युपरांत समाधि-स्थल के रूप में कल्पित किए गए थे। इस कल्पना का भी एक आधार था। मिस्र की राजधानी मेम्फीज़ के उत्तर में एक नगर था – मिस्री ‘ऑन नगर’ (जो बाद में यूनानी शब्द हेलियोलिस के नाम से प्रसिद्ध हुआ) जहां स्तंभ की पूजा होती थी। किंतु जब (3188 ई.पू. से) राजवंशों का शासन प्रारंभ हुआ, तब यहां सूर्य की उपासना होने लगी। इस मंदिर में ‘बेनबेन’ सबसे पवित्र वास्तु थी। यह पिरामिड की शक्ल का एक पत्थर था, जिस पर कहा जाता है कि, सूर्य ने स्वयं को फ़ीनिक्स के रुप में प्रकट किया था।

मिस्र राजशाही की नींव फ़ेराओं की अमरता की धरना पर टिकी थी और इससे उत्तर जीवन के धार्मिक विश्वास की पुष्टि होती थी। पिरामिड फ़ेराओं को गौरवान्वित ही नहीं करते थे अपितु, यह उसके लिए ऐसा आश्रय-स्थल मन जाता था जहां, वह दूसरी दुनिया में प्रवेश करने तक प्रतीक्षा कर सकता था। इस अंतराल में उसका शव सुरक्षित रहना आवश्यक था। अतः, मिस्रियों ने इस हेतु शव के लेपण करने की विधि में पूर्ण दक्षता प्राप्त कर ली थी। राजाओं के शवों के पास नौकरों तथा उन वस्तुओं को भी दफ़न कर दिया जाता था, जिसकी उसे जरुरत पड़ती थी।

पिरामिड कब बने थे और किसने बनवाए थे?

फिरौन खुफ़ू गीज़ा में पिरामिड बनवाने वाले पहले मिस्री राजा थे। उन्होंने लगभग 2550 ई.पू. में इस परियोजना की शुरुआत की थी। उनका बनाया हुआ महान पिरामिड गीज़ा का सबसे बड़ा पिरामिड है और मूल रुप से पठार से लगभग 481 फीट (147 मीटर ) ऊँचा था।

अब यह थोड़ा छोटा हो गया है, क्योंकि इसके आवरण के पत्थर अब मौजूद नहीं हैं। इसके अनुमानित 23 लाख पत्थर के ब्लॉकों में से प्रत्येक का औसत वजन 2.5 से 15 टन है।

खुफ़ू के पुत्र, खफ्रे ने लगभग 2520 ई.पू. गीज़ा में दूसरे घाटी पिरामिड का निर्माण कराया था। खफ्रे का पिरामिड अपने विशाल स्फिंक्स के कारण परिद्रश्य में विशिष्ठ रुप से दिखाई देता है, जो एक रहस्यमय चूना पत्थर का स्मारक है, जिसका शरीर शेर का और सिर एक फिरौन का है।

स्फिंक्स sphinx

 

स्फिंक्स, गीज़ा पिरामिड, काहिरा, मिस्र के पास

स्फिंक्स, जो 1800 के दशक से पहले हजारों वर्षों तक रेत में दबा रहा और जिसका केवल सिर ही दिखाई देता था, संभवतः फ़राओ के मकबरे परिसर का प्रहरी है। हालांकि, इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि इसे उसी ने बनवाया था।

गीज़ा के पिरामिडों में से तीसरा पिरामिड पहले दो पिरामिडों से बहुत छोटा है – लगभग 218 फीट की ऊँचाई के साथ, उनकी आधी से भी कम। खफ्रे के पुत्र मेनकाउरे द्वारा लगभग 2490 ई.पू. में निर्मित। इस पिरामिड के विस्तृत परिसर में एक लंबे मार्ग से जुड़े दो अलग-अलग मंदिर और तीन अलग-अलग रानियों के पिरामिड शामिल हैं।

मेनकाउरे के कक्षों में गीज़ा की अनूठी अलंकरण सजावट और उनके समाधि कक्ष में ही एक गुंबददार छत है। फ़राओ का विस्तृत ताबूत 1838 में जिब्राल्टर के पास समुद्र में खो गया था।

गीजा का पिरामिड

यों तो मिस्र में चालीस पिरामिड हैं, जिन्हें ‘अहराम’ कहते हैं, परंतु प्राचीन संसार के सात आश्चर्यों में एकमात्र अस्तित्व में रह गया और आज भी भव्यता से विद्यमान ‘गीजा का पिरामिड’ है, जो सम्राट खुफ़ू ( 2545 -2520 ई.पू ) के शासन काल में उसी के लिए निर्मित किया गया था। यद्यपि इस काल से 200 वर्ष पूर्व निर्माण कार्य लिए धूप में पकी ईंटों का प्रयोग होने लगा था, परंतु स्थायित्व द्रष्टि से पिरामिड पत्थर के ही बनाए गए। 13 एकड़ भूमि पर फैला यह पिरामिड 482 फीट ऊँचा है। इसके प्रत्येक ओर का आधार 776 फीट है और यही इसकी चौड़ाई है। इसका कुल वजन 65 लाख टन आंका गया है। इसमें 20 लाख से अधिक शिलाखंड लगे हैं और प्रत्येक शिलाखंड का वजन ढाई टन है।

नेपोलियन ने कहा था कि, पिरामिड में लगे पत्थरों से फ्रांस के चारों ओर एक फीट चौड़ी और 10 फीट ऊँची दीवार खिंच सकती है। निर्माण कार्य अति विशाल और परिश्रम-साध्य था, तथापि इसे खुफ़ू के राज्यकाल में ही 23 वर्षों में बना लिया गया था, जबकि श्रमिक और कारीगर माल ढोने वाले पशुओं और पहिया-गाड़ी की सहायता के बिना काम को अंजाम देते थे। इतने पर भी पत्थर एक दूसरे पर इतनी सुघड़ता और सफ़ाई से रखे गए कि उनके बीच में एक काग़ज़ भी नहीं डाला जा सकता। वे वास्तव में अन्वेषक इंजीनियर थे।

कितने लोग लगे!

यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ( 490-430 ई.पू. ) ने मिस्र आकर गीजा के पिरामिड को देखा। स्थानीय गाइडों की लंबी-चौड़ी बातों के आधार पर उसने लिखा है कि, इस महान पिरामिड के निर्माण में एक लाख दास काम पर लगाए गए थे। वास्तविकता इसके विपरीत है। जैसे ही प्राचीन साम्राज्य सत्ता में आया, उसने पिरामिड बनाने की योजना शुरु की। भवन निर्माताओं और वास्तुविदों की नौकरशाही काम पर लग गई। खदानों में या निर्माण स्थलों पर काम करने के लिए प्रत्येक गांव से निर्धारित संख्या में श्रमिक आने लगे। ये सब स्वतंत्र नागरिक थे, दास नहीं।

एक समय में कुल चार हज़ार लोग काम पर लगाए जाते थे, जो 18-20 की टोली बनाकर काम करते थे। किसान श्रमिक नील नदी में बाढ़ आने के समय काम करते थे। युद्ध-बंदी भी काम पर लगाए जाते थे, परंतु उनके साथ दासों जैसा व्यवहार नहीं होता था। हां, यह जरुर है कि उनसे भारी काम कराए जाते थे। पुरातात्विक खोजों में पिरामिड के पास एक बैरक पाई गई है, जिसमें तीन से चार हज़ार लोग तक रह सकते थे।

काम की शुरुआत

खुफ़ू के वास्तुविदों ने अपने राजा के लिए विशाल पिरामिड – जो आज भी संसार में सबसे बड़ा प्रस्तर-निर्माण है – बनाने से पहले रेगिस्तान में उपयुक्त स्थान की तलाश की। इस खोज में उन्हें एक विशाल चट्टानी टीला मिला, जो रेगिस्तान की सतह से ऊपर था। सर्वेक्षकों ने उस स्थल को चिन्हित किया। पिरामिड का आधार एकदम वर्गाकार रखा। टीले के विषम छोर पर एक सीढ़ीनुमा चबूतरा बनाया गया, जिससे निर्माण में प्रयुक्त होने वाले शिलाखंड उस पर रखे जा सकें। चबूतरे को हमवार करने के लिए आधार के पास खाइयां खोद दी गई और उनमें, नालियों के माध्यम से पानी से भर दिया गया। इससे 13 एकड़ ज़मीन को समतल कर लिया गया। इस हेतु ज़मीन तब तक खोदी जाती, जब तक वह हमवार न हो जाए।

शिलाखंडो को खदान में ही विभिन्न चिन्हों से अंकित किया जाता। कुछ में गंतव्य लिखा होता और अन्य सूचनाएं लिखी होतीं। निर्माण स्थल पर शिलाखंड को जिधर से ऊपर उठाना होता, वहां लिखा होता, “इस ओर से ऊपर।’ कुछ लोग अपनी खदान टोली का नाम लिख देते। जैसे, ‘ओजस्वी टोली’ या ‘चिरस्थाई टोली।’ कठिन परिश्रम भी श्रमिकों का हास्यबोध कम नहीं कर पाता। कुछ लोग लिखते, ‘राजा ने कितनी दाल पी है !’

नील के किनारे से निर्माण स्थल तक, पत्थरों का रास्ता बनाया जाता। शिलाखंडों से लदी नाव आने पर उन्हें एक-एक कर उतार कर स्लेज पर रखकर निर्माण स्थल तक पहुंचाया जाता। वहां पत्थरों का एक सुद्रढ़ पाड़ बना होता, जो धरातल से ऊपर उठता चला जाता। इसी पर डालकर पत्थर खींचे जाते। नियत स्थान पर पहुंचने पर उन्हें बिछे हुए गारे पर खिसका दिया जाता।

पिरामिडों के भीतर क्या है?

यदि पिरामिडों ने प्राचीन मिस्र के निर्माण में योगदान दिया, तो उन्होंने इसे संरक्षित भी किया। गीज़ा हमें एक लंबे समय से लुप्त हो चुके संसार का अन्वेषण करने का अवसर प्रदान करता है।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मिस्रविज्ञानि पीटर डेर मैनुएलियन कहते हैं, “कई लोग इस स्थल को आधुनिक अर्थों में केवल एक कब्रिस्तान मानते हैं, लेकिन यह उससे कहीं अधिक है। इन अलंकृत कब्रों में आपको प्राचीन मिस्र के जीवन के हर पहलू के अद्भुत द्रश्य देखने को मिलते हैं – इसलिए, यह केवल इस बारे में नहीं है कि, मिस्रवासी कैसे मरते थे, बल्कि इस बारे में भी है कि वे कैसे जीते थे।”

कब्रों की कला में प्राचीन किसानों को अपने खेतों में काम करते और पशुओं की देखभाल करते, मछली पकड़ते और पक्षियों का शिकार करते, बढ़ईगीरी करते, वेशभूषा पहनते और धार्मिक अनुष्ठान और दफन प्रथाओं का पालन करते हुए दर्शाया गया है।

शिलालेख और लेख मिस्र के व्याकरण और भाषा के शोध में भी सहायक होते हैं। डेर मैनुएलियन कहते हैं, “फिरौन सभ्यता के बारे में आप जिस भी विषय का अध्ययन करना चाहते हैं, वह गीज़ा की कब्रों की दीवारों पर उपलब्ध है।”

इनमें से कई अनूठे संसाधन गीज़ा प्रोजेक्ट में सभी के लिए मुफ्त में उपलब्ध हैं, जो दुनिया के अग्रणी संस्थानों से एकत्रित तस्वीरों, योजनाओं, रेखाचित्रों, पांडुलिपियों, वस्तु अभिलेखों और अभियान डायरियों का एक विशाल संग्रह है, जिसे गीज़ा से संबंधित सामग्री के लिए एक अविश्वसनीय ऑनलाइन भंडार में एक साथ इकठ्ठा किया गया है।

गीज़ा पिरामिड और उसके स्मारक : मान्यताएँ

पिरामिडों का निर्माण परलोक को ध्यान में रखकर किया गया था और ये इस बात का प्रतिक थे कि, फिरौन किस प्रकार स्वर्ग तक पहुँच सकता है। ये संभवतः उस मूल टीले का भी प्रतिक हैं, जो संसार की शुरुआत में समुद्र से उभरा था, ताकि राजा का भी उसी प्रकार पुनर्जन्म हो सके।

तीनों पिरामिडों को अद्भुत सटीकता के साथ दिशाओं के अनुरुप बनाया गया था, संभवतः तारों का उपयोग करके, या शरद, विषुव जैसे महत्वपूर्ण तिथियों पर छाया का मानचित्रण करके।

इस बात पर बहस जारी है कि, क्या पिरामिडों को महत्वपूर्ण तारों के साथ सटीक रुप से संरेखित किया गया था। ओरियन बेल्ट के साथ संरेखण के सिद्धांतों को विज्ञानिकों द्वारा खारिज कर दिया गया है, लेकिन परग्रही निर्माताओं में विश्वास करने वालों के बीच ये लोकप्रिय हैं। राजा के कक्ष से निकलने वाले रहस्यमय शाफ्ट महत्वपूर्ण तारों की ओर इशारा करते होंगे, या केवल ताजी हवा लाते होंगे।

मिस्रवासियों ने गीज़ा में स्मारकों की व्यवस्था के लिए सूर्य का उपयोग किया था। ग्रीष्म संक्रांति के दौरान, ग्रेट स्फिंक्स से देखने पर यह सम्राट खुफ़ू और खफ्रे के पिरामिडों के ठीक बीच में अस्त होता है।

नेपोलियन और पिरामिड

18वीं शताब्दी के अंत में जब नेपोलियन मिस्र पहुंचा, तो असके साथ सेना के अतिरिक्त 120 भूगर्भशास्त्री, पुरातत्ववेत्ता, इंजीनियर और विभिन्न विषयों के दक्ष लोग और अधिकारी आदि शामिल थे। वहां एक महत्वपूर्ण अभियान शुरु हुआ, जिसने ज्ञान की एक नई शाखा ‘इजिप्टोलॉजी’ को जन्म दिया। मिस्र के शिलालेख, वहां की वनस्पति, इतिहास, हर चीज़ का अध्ययन शुरु हुआ और एक अत्यंत पुरानी सभ्यता के विभिन्न पहलुओं पर पहली बार प्रकाश पड़ा।

19वीं शताब्दी में पुराविदों ने जब पिरामिडों का मानचित्रीकरण किया तो उसके बड़े आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए। इससे ‘पिरामिड इंच’ ऐसी मानक इकाई थी, जिसके प्रयोग से इतनी रहस्यमय सूक्ष्मता से पिरामिड बनाए गए थे। पिरामिड-विज्ञानियों ने यह सिद्धांत भी प्रस्तुत किया कि, पिरामिड ऐसे महान प्रस्तर-ग्रंथ हैं, जिसमें संसार का संपूर्ण इतिहास कूट-भाषा में लिखा है।

20वीं शताब्दी में यह धारणा प्रचलित होकर सर्वत्र व्याप्त हो गई कि, पिरामिड परग्रहवासियों द्वारा अपने विमानों पर लाए गए थे। तथापि इनके निर्माण की सच्ची कहानी कम प्रभावशाली नहीं है।

कुछ विशिष्ट शब्दों के अर्थ :

स्फिंक्स : एक पौराणिक जीव, जिसका शरीर शेर का और सिर मनुष्य का होता है। इसके पंख भी होते है, जो प्राचीन मिस्र और यूनानी पौराणिक कथाओं में पाया जाता है। यह शक्ति और रहस्य का प्रतिक है।

मिस्र के पिरामिडों के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQ on google

1. पृथ्वी पर कितने पिरामिड हैं?

विश्व भर में पिरामिड संरचनाएं लगभग हर जगह मौजूद हैं. . .। विश्व भर में हजारों पिरामिड हैं, जिनमें मिस्र में लगभग 118 पहचाने गए हैं और सूडान में इस से भी अधिक (लगभग 220-255 नूबियाई पिरामिड ) हैं, जो इसे सबसे अधिक पिरामिड वाला देश बनता है।

अमेरिका में इनकी कुल संख्या सबसे अधिक है। अकेले मध्य अमेरिका में एक हजार से अधिक पिरामिड हैं। वहीं, चीन, मैक्सिको और अन्य क्षेत्रों में भी कई पिरामिड हैं ,दबी हुई, अज्ञात या नष्ट हो चुकी संरचनाओं के कारण, सटीक संख्या बताना मुश्किल है।

2. मिस्र के पिरामिडों की खासियत क्या है?

गीज़ा के कई पिरामिड अब तक निर्मित सबसे विशाल संरचनाओं में गिने जाते हैं। खुफ़ू का पिरामिड मिस्र का सबसे विशाल पिरामिड है और प्राचीन विश्व के सात अजूबों में से आखिरी है, जो आज भी मौजूद है। हालांकि, यह लगभग 2,000 साल पुराना है।

3. पिरामिडों का निर्माण इतनी सटीकता से कैसे हुआ?

पिरामिडों को खगोलीय सटीकता के साथ डिज़ाइन किया गया था, जिसमें प्रत्येक भुजा एक मुख्य दिशा की ओर उन्मुख थी। आधार को समतल बनाने के लिए, जल से नालियाँ भरी गई और कोनों को समद्विभाजित कोणों का उपयोग करके पूरी तरह से संरेखित किया गया।

4. पिरामिडों में 43200 का क्या अर्थ है?

गीज़ा के महान पिरामिड के बारे में एक रोचक तथ्य : महान पिरामिड की परिधि को 43,200 से गुणा करने पर पृथ्वी की भूमध्यरेखीय परिधि प्राप्त होती है। इसलिए, इसके लिए पृथ्वी की भूमध्यरेखीय परिधि और ध्रुवीय त्रिज्या का सटीक ज्ञान आवश्यक रहा होगा।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ कि आपको इस Article पसंद आया हो। अगर आपको पसंद आया हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

प्रकृति में नीला रंग दुर्लभ क्यों है? Why is the Blue So Rare in Nature?

प्रकृति में नीला रंग दुर्लभ क्यों है why is the blue so rare in nature

क्या आपने कभी गौर किया है कि, प्रकृति में नीला रंग कितना दुर्लभ और लगभग जादुई लगता है? आप अनंत आकाश और गहरे समुद्रों को नीले रंग में रंगा हुआ देख सकते हैं, फिर भी जब आप पौधों, पंछी, फूल, प्राणी या चट्टानों को देखते हैं, तो यह रंग आश्चर्यजनक रुप से दुर्लभ लगता है। लाल, हरे और पीले रंगों की तुलना में, प्रकृति में नीला रंग दिखना बहुत ही दुर्लभ होता है।

इसका कारण केवल रसायन विज्ञान में ही नहीं, बल्कि भौतिकी और विकासवाद में भी निहित है। एनआईएच (NIH) में प्रकाशित प्राकृतिक नीले रंगो पर एक वैज्ञानिक समीक्षा बताती है कि जीवित जीवों में वास्तविक नीले रंग लगभग अनुपस्थित होते हैं। प्रकृति में हम जिसे नीला रंग समझते हैं, उसका अधिकांश भाग संरचनात्मक रंग, सूक्ष्म व्यवस्थाओं से आता है, जो हमारी आँखों को धोखा देने के लिए प्रकाश को मोड़ते और बिखेरते हैं। ये नैनोस्केल पैटर्न सामान्य रंगो की तुलना में विकसित होने में कहीं अधिक कठिन हैं, यही कारण है कि नीला रंग इतना दुर्लभ बना हुआ है।

इस लेख में, हम यह जानेंगे कि प्रकृति में नीला रंग दुर्लभ क्यों है? यह पौधों, पंछी, फूल, प्राणी, चट्टानों और खनिजों में कहाँ दिखाई देता है, और इसके पीछे की विकासवादी और सांस्कृतिक कहानियाँ क्या हैं। इसे जानने से आपको हमारे आस-पास के दुर्लभ लेकिन आश्चर्यजनक नीले अजूबों की गहरी समझ मिलेगी।

प्रकृति में नीला रंग इतना दुर्लभ क्यों है?

प्रकृति में रंग आमतौर पर उन वर्णकों से आते हैं, जो कुछ तरंगदैर्ध्य को अवशोषित करते हैं और कुछ को परावर्तित करते हैं। लेकिन वास्तविक नीले वर्णक लगभग न के बराबर हैं। अधिकांश प्रजातियाँ ऐसे अणु उत्पन्न नहीं कर सकती, जो स्थिर नीले रंग को परावर्तित करते हैं। इसके बजाय, प्रकृति में नीला रंग अक्सर उन संरचनाओं पर निर्भर करता है, जो विशिष्ठ तरीकों से प्रकाश का प्रकीर्णन करती हैं। यही कारण है कि नीला रंग अन्य रंगो की तुलना में कम दिखाई देता है।

प्रकृति में संरचनात्मक नीले रंग का विज्ञान

morpho butterfly

मॉर्फो तितली

blue je butterfly

ब्लू जे तितली

संरचनात्मक नीला रंग तब उत्पन्न होता है, जब कोशिकाओं या शल्कों की सूक्ष्म व्यवस्था प्रकाश में बाधा डालती है। पक्षी, तितलियाँ और कुछ मछलियाँ इसी प्रभाव पर निर्भर करती हैं। उदाहरण के लिए, “मॉर्फो “ तितलियों के पंखों में परतदार शल्क होते हैं, जो नीले प्रकाश को परावर्तित करते हैं। जबकि “ब्लू जे” के पंख केराटिन नैनोस्ट्रक्चर के कारण प्रकाश को परावर्तित करते हैं। संरचनात्मक नीला रंग अक्सर प्रकाश के कोण के आधार पर इंद्रधनुषी या बदलते रंग उत्पन्न करता है।

पौधों और फूलों की प्रकृति में नीला रंग

सच्चे नीले फूल दुर्लभ हैं, जो सभी फूल वाले पौधों का 10% से भी कम हैं। कई “नीले” फूल बारीकी से देखने पर बैंगनी या लैवेंडर रंग के दिखाई देते हैं। कुछ पौधें, जैसे कोर्नफ्लावर या हाइड्रेंजिया, pH परिवर्तन या एल्युमीनियम जैसे धातु आयनों के साथ एंथोसायनिन वर्णकों में परिवर्तन करके नीला रंग उत्पन्न करते हैं। जहाँ, मनुष्य नीले रंग को दुर्लभ मानते हैं, वहीं मधुमक्खियों जैसे परागणकर्ता अपने द्रश्य स्पेक्ट्रम में इन फूलों को अधिक सामान्य रुप से देखते हैं।

प्राणियों की प्रकृति में नीला रंग

nessaea obrina

नेसिया ओब्रिनस तितली

peacok bird

मोर

nilkanth bird

नीलकंठ

प्राणियों में असली नीले रंग के वर्णक लगभग अज्ञात हैं। तितली “नेसिया ओब्रिनस” एक दुर्लभ अपवाद है। प्राणियों में अधिकांश नीला रंग संरचनात्मक रंग से आता है। मोर, नीलकंठ और नीलकंठ जैसे पक्षियों के पंखों की सूक्ष्म संरचनाएँ होती हैं, जो नीले प्रकाश को चुनिंदा रुप से परावर्तित करती हैं। मछलियों के शल्क और सरीसृपों की खाल भी संरचनात्मक परावर्तन के माध्यम से नीला रंग उत्पन्न करती हैं। हालांकि, स्तनधारियों में नीला रंग बहुत कम दिखाई देता है, चमकीला नीला फर प्राकृतिक रुप से नहीं पाया जाता है।

the blue poison dart frog

नीला जहरीला डार्ट मेढ़क

प्राणियों के लिए, तितलियों से लेकर मेंढकों और तोतों तक, किसी भी जीव में आंखों को चौंधिया देने वाला नीला रंग, ध्यान आकर्षित करने के लिए उपयोगी होता है। या तो अच्छे साथी को आकर्षित करने के लिए या शिकारियों से चेतावनी देने के लिए – जैसे कि नीला जहरीले डार्ट मेढ़क

खनिजों और पत्थरों में प्रकृति का नीला रंग

lapis lazuli

लैपिस लाजुली

azurite

अज़ूराइट

nilam

नीलम

लैपिस लाजुली, अज़ूराइट और नीलम जैसे खनिज अपनी क्रिस्टल संरचना और तांबे या एल्युमीनियम से बनी रासायनिक संरचना के कारण गहरा नीला रंग उत्पन्न करते हैं। इन नीले रंगों को ऐतिहासिक रुप से अल्ट्रामरीन रंगद्रव्य में पीसा जाता था, जो अत्यधिक मूल्यवान और महँगा होता था। खनिज नीले रंग, जैविक नीले रंगों की तुलना में अधिक विश्वसनीय होते हैं, क्योंकि उनकी रासायनिक संरचनाएँ स्थिर होती हैं और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर कम निर्भर होती हैं।

प्रकृति में नीला रंग कई कारणों से दुर्लभ है :

रासायनिक जटिलता : नीले रंगद्रव्यों का जैविक रुप से संश्लेषण कठिन होता है।

संरचनात्मक परिशुद्धता : नीले रंग को उचित रुप से परावर्तित करने के लिए नैनोसंरचनाओं का उच्च क्रम होना आवश्यक है।

द्रश्य प्रासंगिकता : कुछ प्रजातियों में जीवित रहने या प्रजनन के लिए नीला रंग कम महत्वपूर्ण हो सकता है।

ऊर्जा लागत : नीले रंग की संरचनाओं या रंगद्रव्यों को बनाए रखना चयापचय की द्रष्टि से चुनौतीपूर्ण होता है।

ये चुनौतियां बताती हैं कि, प्राकृतिक दुनिया में नीला रंग अन्य रंगों की तुलना में कम क्यों पाया जाता है।

प्रकृति में नीले रंग के प्रति मानव आकर्षण

चूँकि नीला रंग दुर्लभ है, इसलिए यह हमेशा से ही मूल्यवान और रहस्यमय रहा है। प्राचीन मानव ने स्थायी नीला रंग बनाने के लिए संघर्ष किया, जिससे यह रंग विलासिता, दिव्यता और दुर्लभता का प्रतिक बन गया। भाषा में “नीला” अक्सर लाल, हरे या काले रंग के बाद प्रकट हुआ। कला में अल्ट्रामरीन से लेकर नीले रंग के कपड़ों तक, हमारा सांस्कृतिक आकर्षण प्रकृति में नीले रंग की दुर्लभता को दर्शाता है।

प्रकृति में नीला रंग दुर्लभ, वैज्ञानिक रुप से आकर्षक और द्रष्टिगत रुप से मनमोहक है। इसकी कमी रासायनिक चुनौतियों और संरचनात्मक आवश्यकताओं के कारण होती है। लेकिन जब यह फूलों, पक्षियों, तितलियों या खनिजों में दिखाई देता है, तो यह खूबसूरती से उभर कर सामने आता है। प्रकृति में नीले रंग का प्रत्येक उदाहरण विकास, भौतिकी और रसायन विज्ञान के एक साथ मिलकर कुछ असाधारण बनाने का प्रमाण है।

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बांसुरी वाले की लोकप्रिय कहानी The Most Popular Story of the Flute Player

बांसुरी वाले की लोकप्रिय कहानी The Most Popular Story Of The Flute Player 1024x538

वह बांसुरी वाला

एक बांसुरी और उसकी धुन के पीछे चलते 130 बच्चे, जो जा रहे हैं किसी देश, पर उन्हें पता नहीं कहां… कोई रोक न सका, सब मौन निहारते रहे उन्हें गुजरता देख। संसार में सभी जगह बच्चों की पुस्तकों में यह कहानी मिलती है।

एक गांव हेमलिन के बाशिंदे बहुत दुःखी थे। वे शैतान चूहों की उस फौज से परेशान थे, जिसने उनके घरों में डेरा डाल रखा था। बिल्लियां भी उनके आतंक से भाग खड़ी हुई थीं। किसी भी तरह से खदेड़े नहीं जा सके थे।

एक दिन उस गांव में एक अजनबी आया, जो रंगीन कपड़े पहने था। हेमलिनवासियों की समस्या सुनकर उसने कहा कि वह चूहों को गांव से बाहर निकाल देगा पर इसके लिए उन्हें पैसे चुकाने होंगे। दुःखी गांव वाले कोई भी कीमत अदा करने को तैयार थे। ग्राम-प्रधान ने वादा किया कि चूहों से मुक्ति मिल जाने पर अजनबी को मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा।

आश्वस्त होने के बाद अजनबी ने अपनी पोशाक के भीतर रखी एक बांसुरी निकाली और बजाने लगा। थोड़ी देर बाद वह गांव के बाहर बहने वाली नदी की ओर चल दिया। यह देखकर गांव वालों के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा कि सारे चूहे मंत्रमुग्ध होकर अजनबी के पीछे चल दिए। अजनबी नदी के किनारे पर रुक गया और चूहे पानी में कूद-कूद कर डूब गए।

कुछ गांव वालों ने यह द्रश्य देखा और आकर ग्राम-प्रधान को यह बात बताई। तब तक अजनबी भी लौट आया और उसने अपना इनाम मांगा। प्रधान ने सोचा कि चूहे तो मर ही चुके हैं और अब लौटकर आ नहीं सकते, अतः उसने इनाम के नाम पर कुछ सिक्के अजनबी के हाथ पर रख दिए और उसे टरकाना चाहा। उसने देखा पूरा गांव प्रधान के पीछे था। अजनबी ने सिक्के नहीं लिए और क्रोध में आकर बांसुरी बजाने लगा और बजाते-बजाते एक अन्य गांव की ओर चल दिया। एक बार फिर लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि गांव के सभी बच्चे उसके पीछे चल दिए। गांव वाले इस घटना से इतने जड़ीभूत हो गए कि वे अपने बच्चों को रोकना तक भूल गए। जब उन्हें होश आया तो बच्चे जा चुके थे। वे फिर लौटकर कभी नहीं आए।

धीरे-धीरे यह लोक कथा पूरे यूरोप में प्रचलित हो गई और दादिया-नानिया और माताए सोते समय बच्चों को यह कहानी सुनाने लगीं। लोक कथाओं का अंत बहुधा सुखद होता है परंतु इस कथा में कृतघ्नता से उत्पन्न भयानक बदले की प्रवृत्ति के कारण दुःखद अंत है। परिकथा लेखकों, कवियों और लोक कथाकारों ने इस कहानी में नए रंग भर दिए, जिससे यह कहानी पूरे विश्वभर में प्रचलित हो गई।

सत्य की खोज

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फोटो साभार : लियोपोल्ड रोहरर

हैमेलन – न्यू टाउन हॉल के पास ‘पाइप पाइपर फाउंटेन’, 2015

जब यह पाया गया कि कथा में वर्णित घटनास्थल ‘हेमलिन’ (जर्मन में इसे, ‘हैमेलन’)’ भी लिखा जाता है। वास्तव में जर्मनी का एक गांव है, तो इतिहासकारों और अन्वेषकों ने इस कहानी में सत्य के कुछ अंश की खोज शुरु की। ये गांव लोअर सैक्सोनी में वेसर नदी के तट पर स्थित है। यह गांव ‘पाइप पाइपर’ (बांसुरी वाला) की लोक कथा से जुड़े होने के कारण प्रसिद्ध है।

खोज हेमलिन से ही प्रारंभ की गई। परंपरागत मौखिक साक्ष्यों से ज्ञात हुआ कि हेमलिन के चर्च की खिड़की के कांच पर एक बांसुरीवादक की छाया अंकित थी और उस पर लिखा था ‘वर्ष 1286 की 26 जून को हेमलिन में रंग-बिरंगे कपड़े पहने एक बांसुरीवादक आया था और 130 बच्चों को लेकर चला गया।’ कांच पर अंकित यह उध्दरण शीशे से तो मिट चुका था पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी गांववालों की स्मृति में बना रहा।

मौखिक साक्ष्य अन्वेषण का आधार हो सकता है, परंतु ऐतिहासिक सत्य नहीं। अतः दस्तावेजों की छानबीन शुरु हो गई। पाया गया कि हेमलिन गांव के अभिलेख 1351 ई. से ही रखे जाने प्रारंभ हुए थे। इनमें जो घोषणाएं, सूचनाएं आदि अंकित थीं, उनकी तिथि लिखते समय यह लिख दिया जाता था – ‘उन वर्षों के बाद जब हमारे बच्चे हमें छोड़कर चले गए।’ यह कुछ उसी तर्ज पर था जैसे किसी घटना का काल निर्धारण के लिए ‘ईसा पूर्व’ या ‘ईसवी सन’ लिखने की प्रथा अब सर्वस्वीकृत हो चुकी है।

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फोटो साभार : गूगल

हैमेलन – पौराणिक ‘पाइप पाइपर’ (बांसुरी वाला) का गांव

हैमेलन में मध्य मई से मध्य सितंबर तक एक कार्यक्रम देखने लायक होता है : हर रविवार दोपहर को ऐतिहासिक वेशभूषा पहने लगभग 80 कलाकारों द्वारा ‘पाइप पाइपर’ (बांसुरी वाला) की लोक कथा को एक खुले मंच पर प्रस्तुत किया जाता है।

बांसुरीवादक और चूहे

1450 के एक ग्रामीण अभिलेख में यह लिखा पाया गया कि एक युवक चांदी की बांसुरी बजाते हुए एक गांव में घूमता था। मध्ययुग में बांसुरीवादकों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था। उनके कपड़े बहुरंगी होते थे, जो उनके निचले तबके से सबंद्ध होने का प्रमाण थे। उस समय ऐसे ही कपड़े दरबारी मसखरों और भांडों द्वारा पहने जाते थे। इनके घुमंतू और उपद्रवी प्रकृति का होने के कारण आमजन इनके संपर्क में आने से बचते थे। 1476 में बुर्जवर्ग नामक स्थान पर हुए विद्रोह का नेतृत्व एक बांसुरीवादक ने किया था, यह तथ्य इतिहास सम्मत है।

16वीं शताब्दी तक चूहे इस कहानी का पात्र नहीं थे। इसी समय यूरोप में प्लेग फैला। प्लेग की महामारी चूहों के कारण फैली। अतः बांसुरीवादक का संबंध चूहों से जोड़ दिया गया। इस लोक कथा का प्रथम प्रकाशन 1556 में हुआ था, जिसमें बांसुरीवादक को चूहे पकड़ने वाला बताया गया। लेखक ग्रिम ने चूहों के निष्कासन को बच्चों के भाग्य के साथ जोड़ दिया।

बच्चे कहां गए

बच्चों के गुम हो जाने के संबंध में इतिहासकार एकमत नहीं हैं। कुछ इतिहासकारों का मत है कि हेमलिन गांव में प्लेग की बीमारी फैली थी, इस कारण वे बच्चे गांव से हटाए गए थे। अन्य विद्वानों का कहना है कि 1212 में संपन्न ‘बच्चों का धर्मयुद्ध’ में ये बच्चे एक पवित्र देश में ले जाए गए थे। उनमें से कई बच्चे गुलाम के रुप में बेच दिए गए और कई मर गए। परंतु यह कहानी इसलिए विश्वसनीय नहीं मानी जाती कि यह सिर्फ हेमलिन से ही क्यों जुड़ी है!

एक इतिहासकार ने एक नया सिद्धांत पेश किया है कि प्लेग फैलने के दौरान हेमलिन के अधिकांश लोगों को इस बात के लिए राजी कर लिया गया कि वे निकटस्थ नगर ब्रेन्डेनवर्ग के समीप जाकर आबाद हों। यह धारणा इस बात से पुष्ट होती है कि ब्रेन्डेनवर्ग में आज भी ऐसे परिवार हैं, जिनके कुलनाम वही हैं जो हेमलिन के निवासियों के थे। 13वीं शताब्दी में जर्मनी के नगरवासी ‘कस्बे के छोरे’ कहलाते थे। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सिर्फ बच्चे नहीं, पूरा एक समुदाय गांव से उखड़ कर शहर चला गया। ब्रेन्डेनवर्ग में भी एक किंवदंती प्रचलित हो गई कि बांसुरीवादक की तरह वहां भी पूर्वकाल में एक अजनबी सारंगीवाला आया था, जिसके मधुर संगीत ने वहां के बच्चों को मोहित कर लिया।

समझौता गमों से

26 जून, 1286 को 130 बच्चे गायब होने की दुःखद तिथि लोगों को भुलाए नहीं भूली। यह कोई भयानक घटना थी या कोई षड्यंत्र था? इसका स्पष्ट उत्तर इतिहासकारों के पास नहीं है। हेमलिन के लोग पीढ़ियों तक यह त्रासद घटना मन में संजोए रहे। उनकी द्रष्टि में बच्चों के लापता होने का दोषी वही बांसुरीवादक था, परंतु समय रुपी औषधि धीरे-धीरे सभी घावों को भर देती है। लोगों ने गमों से समझौता कर लिया और इस कहानी में आनंद ढूंढ़ लिया और कदाचित उस दुष्ट बांसुरीवादक को भी क्षमा कर दिया। इसका प्रमाण है कि हेमलिन में आज होटलों के नाम ‘बांसुरीवादक’ के नाम पर रखे जाने लगे हैं।

हमारे देश में लोक कथाओं का भंडार है। पता नहीं उनमें कितने खट्टे-मीठे यथार्थ छुपे है। फिलहाल, उनके पीछे छिपे ऐतिहासिक सत्य अन्वेषकों, इतिहासकारों की प्रतीक्षा में चुप सोए पड़े हैं।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article की ‘बांसुरी वाले की लोकप्रिय कहानी’ पढ़कर आपको अपने बचपन की याद आ गयी होगी। आपको ये Article की कहानी पसंद आई हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरुर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

खजाने, जो कभी नहीं मिले Treasures that have never been found in hindi

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खजाने, जो कभी नहीं मिले

खजाने, जो कभी नहीं मिले। सोने पर दुनिया सम्मोहित है। मध्यकाल में सोना कुसंगतियों और बुराईयों की जड़ भी रहा। इसके चलते दुनिया में लूटमार, युद्ध और लालची प्रवृत्तियों ने जन्म लिया। राजाओं से लेकर अपराधियों तक की नज़र अकूत सोने का खजाने इकट्ठा करने पर टीकी रही। बहुत से लोगों ने अपार सोना जोड़ा। दूसरों की नज़रों से दूर रखने के लिए युक्तियां कीं। उन्होंने खजानों को ऐसी जगह छिपाया कि न तो वे खुद इसका उपभोग कर पाए और न ही आने वाले सालों में भी कोई इस खजाने तक पहुंच पाया। हालांकि उनके ये खजाने हमेशा-हमेशा के लिए रहस्य-रोमांच और चर्चा का विषय बनकर रह गए।

कुछ खजाने हजारों साल पहले छिपाए गए तो कई चंद दशकों पहले – उन सबकी तलाश अब तक जारी है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि तमाम कोशिशों के बाद भी लोग उन तक नहीं पहुंच पाए। कुछ खजाने अब तक अभिशप्त हैं ! जो भी उनकी तलाश में गया या उनके पास तक पहुंचा, वो अकाल मृत्यु का शिकार बन गया।

ऐसे ही खजानों को लेकर ढेरों सवाल अब भी लोगों के सामने खड़े हैं – कौतूहल के रुप में, रहस्य के तौर पर और इतने सालों के बाद उनके न मिलने को लेकर। इनमें नाजियों की ऑस्ट्रिया के पर्वतों के बीच छिपाई गई अकूत सोने की संपत्ति और मशहूर समुद्री लुटेरों पर किसी अनजान टापू पर गाड़ दिया खजाना तो है ही, मिस्र के पिरामिडों में बिखरे सोने के असीमित और सैकड़ों साल पहले गायब कर दिए गए सोने के बहुमूल्य भंडार भी शामिल हैं।

सबसे पहले बात करते हैं उन सात रोमांचक खजानों के बारे में, जो पूरी दुनिया में सबसे अधिक चर्चित हैं और जिन तक कोई भी नहीं पहुंच पाया।

प्राचीन इजरायल का ईश्वर प्रदत्त ‘सोने का संदूक’

बाइबिल में कहा गया हैं कि प्राचीन इजरायल में सोने का एक ऐसा संदूक था, जो ईश्वर प्रदत्त था। कहा जाता है कि ये 44 इंच लंबा, 26 इंच चौड़ा और 26 इंच ऊंचा था। ये खास अकासिया लकड़ी का बना था, लेकिन इसके दोनों ओर शुद्ध सोना मढ़ा था। इसके पाए और इसे उठाने वाले दो स्तंभ खालिस सोने के थे। उनकी कारीगरी तो देखते ही बनती थी। संदूक के ऊपर पंख फड़फड़ाती, स्वर्ण निर्मित पक्षीनुमा दो देवदूतों की आकृतियां थी। ये बहुत पवित्र ही नहीं, बल्कि अमूल्य भी था।

नेबो पहाड़

नेबो पहाड़ फोटो साभार : विकिपीडिया

607 ईसापूर्व में ये जेरुसलम के सोलोमन मंदिर में रखा गया था, लेकिन बाद में बेबीलोन के लोगों ने न केवल मंदिर को नष्ट कर दिया, बल्कि इस संदूक को भी फेंक दिया। इजरायल के हिब्रुओं का उनसे जमकर संघर्ष हुआ। लाखों इजरायली मार डाले गए। शेष किसी तरह जान बचाकर भाग निकले। जब करीब सत्तर साल बाद इजरायली वापस लौटे तो बहुमूल्य संदूक गायब था। बताया जाता है कि हिब्रुओं ने इसे बेबीलोन के लोगों से बचाने के लिए मिस्र के करीब ‘नेबो पहाड़’ के करीब एक गुफा में छिपा दिया। जब वो लौटे तो ये संदूक नहीं मिला और अब तक रहस्य है कि संदूक कहां गया।

रुस के जार को तोहफे में दिया गया ‘ऐंबर रुम’

ऐंबर रुम

‘ऐंबर रुम’ फोटो साभार : ‘नोट्स फ्रॉम पोलैंड’

एक और वाकया रुस के जार को तोहफे में दिए गए ‘ऐंबर रुम’ का है, जो पूरी तरह सोने का बना हुआ था। इसकी पगीकारी तो लाजवाब थी, लेकिन इसके पैनल भी असाधारण तौर पर दर्शनीय थे। इसके साथ सोने, चांदी और हीरे के झूमर लटके हुए थे। ये ग्यारह फीट का रुम लकड़ी-सोने की चादर और महंगे कांच से बनाया गया था। इसमें महंगे रत्न जड़े हुए थे।

इसे प्रुसिया के राजा फैड्रिक प्रथम ने बनवाया था, लेकिन उन्होंने रुस के जार पीटर को 1716 में तोहफे में दे दिया। आज अगर ऐंबर रुम होता तो इसकी कीमत खरबों में होती।

जब एडोल्फ हिटलर की नाजी सेना ने रुस पर हमला किया तो ऐंबर रुम के केयरटेकर नर्वस हो गए। नाजियों ने इस पर कब्जा कर लिया और इसे कोनिसबर्ग के किले में रखा, लेकिन वहां से ये ऐसे गायब हुआ कि कभी नहीं दिखा। बाद में ऐसा ही ऐंबर रुम रुस के कैथरीन पैलेस में फिर से बनाने की कोशिश जरुर की गई।

समुद्री लुटेरा ‘ब्लैकबर्ड’ का खजाना

क़्वीन एन जहाज

‘क़्वीन एन’ जहाज की प्रतिकृति फोटो साभार : गूगल

अठारहवीं शताब्दी में एक कुख्यात समुद्री लुटेरा हुआ था – ब्लैकबर्ड। वो स्पेनिश था, लेकिन उसने मैक्सिको और दक्षिण अमेरिका को अपना क्षेत्र बनाकर न जाने कितनी लूट की। जहाजों को भी लूटा। लोग उसका नाम सुनते ही कांप जाते थे। आखिरकार, ब्रिटिश सेना के साथ एक भिड़ंत में वह मारा गया। उसका जहाज ‘क़्वीन एन’ डूब गया।

1999 के आसपास नार्थ कैरोलिना में उसके जहाज को समुद्री की तलहटी में खोज निकाला गया, लेकिन उसमें कुछ नहीं था। माना जाता है कि उसने अपना खजाना कई जगहों पर छिपाया था। ये जगहें कैरिबियन द्वीप,वर्जीनिया खाड़ी और केमैन आइलैंड हो सकती हैं, लेकिन किसी को आज तक उसका खजाना नहीं मिला।

समुद्री लुटेरा ‘जोस गास्पर’ का खजाना

इसी तरह एक और कुख्यात समुद्री लुटेरा था – जोस गास्पर, जिसे लोग गैस्प्रिला के नाम से भी जानते थे। वह बेहद क्रूर था। उसने भी बचपन में स्पेन छोड़ दिया था और फ्लोरिडा के पास बोका ग्रैंड में अपना ठिकाना बनाया था। इस जगह को आजकल ‘गैस्प्रिला आइलैंड’ के नाम से जाना जाता हैं। फिर उसने समुद्री जहाजों को लूटमार का निशाना बनाना शुरु किया।

गैस्प्रिला आइलैंड 1

‘गैस्प्रिला आइलैंड’ फोटो साभार : गूगल

1822 में उसके पास करीब 30 करोड़ डॉलर की संपत्ति थी। बताते है कि उसने अपनी सारी संपत्ति इसी द्वीप में कहीं गाड़ दी। यही नहीं, उसके गिरोह के कई लोगों ने भी अपने हिस्से को इसी आइलैंड में जगह-जगह इसी तरह छिपाया। बाद में एक अमेरिकी सेना के युद्धपोत पर हमला करते हुए वो फंस गया। उसे आत्महत्या करनी पड़ी। जहाज भी डूब गया। इस जहाज पर भी एक करोड़ डॉलर का खजाना था।

आज भी लोग इसे चार्लोट हार्बर में ढूंढ़ते हैं। फ्लोरिडा वो जगह है, जो सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दियों में न जाने कितने समुद्री लुटेरों का गढ़ था। इसी के आसपास न जाने कितने लुटेरों ने अपना खजाना छिपाया, इसमें से कुछ मिले और कुछ आज भी अबूझ पहेली बने हैं।

पेरु की राजधानी ‘लीमा’ की बेशकीमती चीजें और खजाना

1820 के आसपास पेरु में विद्रोह की स्थितियां थीं। बचाव के तहत पेरु की राजधानी लीमा के राजप्रतिनिधि ने शहर की सारी बेशकीमती वस्तुओं और खजाने को मेक्सिको भेजने का निर्णय किया। इस बेशकीमती सामान को ग्यारह जहाजों में भरा गया। जिस कैप्टन ‘विलियम थाम्पसन’ नाम के शख्स को इस पूरे अभियान का कमांडर बनाया गया, उसके बारे में शायद लीमा का राजप्रतिनिधि ज्यादा जनता नहीं था। विलियम थाम्पसन न केवल लुटेरा था, बल्कि उतना ही निर्दय भी था।

जब जहाजों का काफिला बीच रास्ते में पहुंचा, तो विलियम थाम्पसन के आदमियों ने लूटमार और कत्लेआम शुरु कर दिया। इसके बाद बेशकीमती खजाने से भरे जहाजों को हिंद महासागर में स्थित ‘कोकोज आइलैंड’ ले जाया गया। वहां उसके आदमियों ने जमीन खोदकर जहाजों का सामान छिपा दिया।

कोकोज आइलैंड 1

‘कोकोज आइलैंड’ फोटो साभार : ब्रिटानिका

बाद में विलियम थाम्पसन और उसके आदमियों को पकड़ लिया गया। विलियम थाम्पसन के आदमियों को फांसी पर लटकाया गया। केवल विलियम थाम्पसन को फांसी नहीं दी, इस शर्त पर कि वो राजसेना को छिपाए गए खजाने तक ले जाएगा। विलियम थाम्पसन उन्हें कोकोज द्वीप तक ले गया, लेकिन जंगलों में पहुंचते ही गायब हो गया। फिर न तो वो मिला और न ही खजाना। तब से यहां सैकड़ों खोज अभियान चल चुके हैं।

मिस्र के पिरामिडों’ के खजाने

तूतनखामेन का पिरामिड 2

‘तूतनखामेन’ का पिरामिड फोटो साभार : गूगल

मिस्र के पिरामिडों और उनके खजानों को लेकर तो न जाने कितने तरह के किस्से प्रचलन में हैं। क्योंकि इन पिरामिडों से अबतक सोने के कई आभूषण और बेशकीमती सामान मिल चूका है।

1922 में हावर्ड कार्टर नाम के एक खोजकर्ता ने मिस्र की घाटी में ‘तूतनखामेन’ के पिरामिड को खोज निकाला। जिस प्रकोष्ठ में इस राजा की ममी रखी हुई थी, उसके बराबर के प्रकोष्ठ में खजाने का अंबार लगा था। खजाने में इतने आभूषण और बेशकीमती सामान थे की हावर्ड कार्टर उसकी सूची बनाते तो कम से कम दस साल लग जाते। तब ये भी माना गया कि इन पिरामिडों में राजपरिवार के जितने लोगों की ममियां राखी हैं, सभी के साथ अलग-अलग खजाने भी होने चाहिए।

19वीं शताब्दी के आखिर में जब तक इन पिरामिडों में रखे गए अन्य फैरोन के बारे में पता चला, तब तक उनके चैंबर्स से खजाने गायब हो चुके थे। कुछ लोग इसे लुटेरों का काम मानते हैं तो कुछ लोगों का मानना है कि ये काम पुजारियों का है, जिन्होंने मिस्र की घाटी में अपने फैरोन्स को फिर से दफन किया और उन्हीं के साथ पिरामिड में रखे अकूत खजाने को वहां से हटा दिया।

वैसे, इस खजाने का रहस्यपूर्ण तरीके से गायब होना एक रहस्य ही है।

हिटलर की ‘नाजी सेना’ का खजाना

हिटलर के नाजी शासन के खजाने के बारे में बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं। वैसे, ये बात सही है कि 1946 में अमेरिकी गुप्तचरों को ऐसे दस्तावेज मिले थे, जिनमें ऑस्ट्रिया में कहीं छिपाए गए खजाने का जिक्र किया गया था।

इसमें खरबों के सोने और करोड़ों के हीरों का जिक्र था। इसके साथ-साथ प्रचुर मात्रा में डॉलर और स्विस फ्रांक भी थे। इस खजाने का आकलन तीन खरब 70 अरब डॉलर के खजाने के रुप में हुआ। माना जाता है कि इसे ऑस्ट्रिया की आल्प्स पहाड़ियों के बीच कहीं किसी गुफा में छिपाया गया था। 1959 के आसपास ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर इस खजाने की सघन खोज की, लेकिन ये नहीं मिल सका।

दुनियाभर में हजारों ऐसे खजाने हैं, जिनके बारे में ढेरों कहानियां तो प्रचलित हैं, उनके होने की संभावना भी है, लेकिन वो आज तक किसी के हाथ नहीं आए। उनकी खोज में जमाने से लोग लगे हुए हैं और शायद लगे भी रहेंगे। हो सकता है कि कुछ खजाने देर-सबेर मिल जाए, लेकिन बहुत से ऐसे होंगे जो किस्सों में ही रह जायेंगे, जिनके रहस्य पर से शायद ही कभी परदा उठ पाए।

भारत में कई प्राचीन किलों और राजमहलों के आसपास आज भी खजाना होने की कहानियां कही जाती हैं। खुदाई होने पर अक्सर छोटी मात्रा में खजाने मिले भी। 2011 जिस तरह तिरुवनंतपुरम के ‘पद्मनाभन मंदिर’ में एक लाख करोड़ का बेशकीमती खजाना मिला, उसके बाद ये मन जाने लगा है कि ऐसे खजाने देश में कई जगह हो सकते हैं।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article की खजानो से जुडी रोचक जानकारी पढ़कर आपको ख़ुशी हुई होगी। अगर आपको ये Article रोचक लगा हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरूर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

क्या है चलते पत्थरों का रहस्य What is the Secret of Moving Stones in hindi

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क्या ये जीवन से भरे है ?

पत्थर, अर्थात जीवन रहित। क्या इसे सच ही मान लिया जाए? उसे क्या कहेंगे, जब पत्थर चलने लगे, गाने लगे या रंग बदलने लगे। इसे प्रकृति की अद्भूत रचना कहें या देन, जिसके आगे वैज्ञानिक भी नहीं सोच पाते कि ऐसा कैसे और क्यों हो रहा है? क्या भूत-प्रेत जनित कार्य हैं या अलौकिक शक्ति या चमत्कार। संसार के बहुत से स्थानों पर ऐसे पत्थर, शिलाखंड या पहाड़ पाए जाते हैं, जिनको देखकर ऐसा लगता है कि मनो इनमें जीवन है और लगता है, जैसे परीकथाओं और पुराणों के उड़ने वाले पहाड़ आदि कपोल कल्पना नहीं, बल्कि लोगों के व्यक्तिगत अनुभव थे।

कितनी परिभाषाएँ हैं जीवन की झोली में। दिन-रात अपनी झोली भरते हुए भी अपरिभाषित है ये जीवन। कोई कहता है कि ये सपना है। कोई कहता है कि सच है, लेकिन रहस्यों से भीगती इस पोटली में कितना सच है, कितना झूठ, कौन जाने। ऐसे ही गाते, हिलते, चलते हैं कुछ पत्थर…

कैलिफ़ोर्निया की ‘डेथ वैली’

डेथ वैली Death Velly

कैलिफ़ोर्निया की ‘डेथ वैली’ में एक पत्थर अपने आप चलकर तीन मील दूर पहुंच जाती है। डेथ वैली का सबसे बड़ा “रहस्य” गतिशील पत्थर है, जो एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें चट्टानें रेगिस्तान की सतह पर बिना किसी बाहरी बल के निशान छोड़ते हुए सरकते है। वे कैसे गति करते हैं, इसका रहस्य ‘स्क्रिप्स इंस्टिट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी’ ने सुलझाया, जिसने उन्हें क्रियाशील अवस्था में देखा था। अन्य रहस्यों में इसके अत्यधिक तापमान, भूवैज्ञानिक चमत्कार, संभावित प्रेतवाधिक स्थान और असामान्य जीवाश्म और सुरंगें शामिल हैं।

ऑक्सफोर्ड शहर का ‘रोलराइट स्टोन’

रोलराइट स्टोन Rollright Stones 4

ऑक्सफोर्ड शहर का ‘रोलराइट स्टोन‘ साल में एक दिन नदी में पानी पीने जाता है और वापस प्यास बुझाकर आ जाता है। कोई उसे हटाने की कोशिश करता है तो उसे दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं। मैनोर के लार्ड तक भी यह चर्चा पहुंची। उन्होंने उसे हटाने का निश्चय किया, लेकिन पत्थर भी अड़ियल था। अनेक घोड़े तथा मजदुर उसे हटाने में लगे, तब कहीं खिसक पाया, लेकिन उस पत्थर के बहुत लार्ड साहब के घर पर ही अड्डा जमाकर बैठ गए। पादरी की सलाह से पत्थर को उसके मूल स्थान पर पहुंचाया गया, तब कही लार्ड साहब का प्रेतग्रस्त मकान शांत हुआ। आश्चर्य यह है कि तब पत्थर को पहुंचाने का काम केवल एक घोड़े ने ही कर दिया।

इंग्लैंड का ‘ग्रेड लेह’

इंग्लैंड के ‘ग्रेड लेह’ नामक स्थान पर एक विशाल पत्थर सड़क के किनारे आने-जाने वाले हर व्यक्ति को मुंह ऊंचा करके देखता है, पर न वहां से खिसकने का नाम लेता है और न किसी व्यक्ति ने उसे वहां से उठाने की हिम्मत की, क्योंकि गांव वालों की मान्यता है कि उस बड़े पत्थर के नीचे एक दुष्ट जादूगरनी की आत्मा दबी पड़ी है।

सड़क चौड़ी करने के अभियान में एक इंजीनियर ने गांव वालों की इच्छा के विरुद्ध उस पत्थर को हटवा दिया और उसके साथ ही गांव में भूतिया आतंक का सिलसिला प्रारंभ हो गया। गिरजाघर की घंटियां टनटन बजने लगती। भेड़-बकरियां अहाते से गायब हो जाती। और भी अनेक आफतों ने सिर उठा लिया तो गांव वालों ने 11 अक्टूबर, 1944 को एक बड़े समारोह के साथ उस पत्थर को उसी स्थान पर रख दिया और गांव से भूतिया आतंक भी समाप्त हो गया।

मेघालय का ‘शिलांग’

मेघालय के उत्तरी-पूर्वी शहर ‘शिलांग’ की हरी-भरी वादियों में कुछ पत्थर ऐसे हैं, जो तिल-तिल कर बढ़ते हैं। आमतौर पर पत्थर पर्वत घिसते हैं, पर ये तो बच्चों की तरह बढ़ते हैं। स्थानीय लोगों के कथनानुसार, ये पत्थर करीब आधा इंच एक साल में बढ़ जाते हैं।

कहा जाता है कि कई शताब्दी पूर्व एक व्यक्ति ज्ञान की खोज में मेघालय आया। जीवन की खोज में भटकते वह असम के ‘कामाख्या’ मंदिर में गया। वहां मंदिर के पुजारी से उसने अनेक तांत्रिक विद्याऐं सीखीं। उसमें एक विद्या पत्थरों की साधना भी थी। उस व्यक्ति ने एक ही आकर-प्रकार के काफी पत्थर एकत्रित किए और ध्यान करने बैठ गया। कई वर्ष की सतत साधना के बाद वह पत्थरों को वश में कर पाया और पत्थर उसकी इच्छा के अनुरुप चलने और कार्य करने लगे। साधक ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे सतत बढ़ते रहें, तब से वे निरंतर बढ़ रहे हैं।

स्कॉटलैंड का ‘डंकल’

स्कॉटलैंड के ‘डंकल’ नामक स्थान पर चौदह फुट लंबा, सात फुट चौड़ा तथा पांच फुट ऊंचा पत्थर तीन छोटे-छोटे आधारों पर इस तरह टिका है, जैसे कोई विशालकाय कछुआ विश्राम कर रहा हो। पुरातत्ववेत्ताओं का कहना है कि यह शिलाखंड बीस लाख वर्षो से इसी स्थिति में पड़ा है, जबकि इस काल खंड में आंधी-तूफान से अनगिनत पहाड़ ध्वस्त हो गए हैं।

फ्रांस का ‘एंडले फ्रांस’

‘एंडले फ्रांस’ फ्रांस का उत्तरी-पूर्वी गांव है। वहा एक ऐसा विशाल पत्थर है, जो छोटे-से आधार पर नाचने लट्टू की तरह खड़ा है। इसे देखने पर ऐसा लगता है, जैसे यह विधुतीय चुंबकीय शक्ति के प्रभाव से टिका हो। वैज्ञानिकों ने वहां ऐसी किसी बात की संभावना की सूक्ष्मता से जांच-परख की, पर वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके।

विचित्र बात तो यह है कि वह मौसम सबंधी भविष्यवाणी भी करता है। मौसम साफ रहेगा तो वह अपनी धुरी पर चुपचाप खड़ा रहेगा, किंतु यदि मौसम ख़राब होने वाला हो तो इसकी सूचना वह धीरे-धीरे हिल-डुल कर देता है। विशेषज्ञ इस बात से हैरान हैं कि इसमें गति कहां से आती है और इस स्थिति में उसका संतुलन क्यों नहीं बिगड़ता।

मध्यप्रदेश के मदन महल का ‘बैलेंसिंग रॉक’

बैलेंसिंग रॉक Madan Mahal Madhyapradesh

मध्यप्रदेश के ‘जबलपुर’ नगर के ऐतिहासिक ‘मदन महल’ के प्रांगण में एक के ऊपर एक रखी दो पत्थर है, जिन्हें देखकर हरवक़्त अंदेशा होता है कि ये कभी भी गिर जाएगी, पर ऊपर वाली चट्टान गिरती कभी नहीं है।

‘बैलेंसिंग रॉक’ के नाम से विख्यात इस चट्टान संतुलित भी नहीं राखी है और जरा से हवा के वेग से भी लगता है कि अब गिरी कि तब गिरी, लेकिन गिरती कभी नहीं है।

कुदरत के रहस्यों से भरी कुछ और जगहों की बातें

इंडोनेशिया का ‘ल्यूजर ज्वालामुखी’ :

इंडोनेशिया का ‘ल्यूजर ज्वालामुखी’ जब फूटता है तो आसपास के निवासियों को लखपति बना देता है। लावे के साथ-साथ हीरे, माणिक भी उगल देता है। वैज्ञानिक लाख परीक्षण करके भी पता नहीं लगा पाए कि अन्य ज्वालामुखियों से अलग इसमें ऐसी क्या रासायनिक क्रिया होती है, जो ज्वालामुखी हीरे, माणिक उगलता है।

रुस की रहस्यों से भरी जगहों की बातें :

  • रुस के ‘कैप्सियन सागर’ के तट पर ‘वाकू’ नामक गांव में एक देवालय के प्रांगण में भूमि से अनेक ज्योतियां निकलती है। इन स्थानों पर अग्नि कुंड भी बना दिए गए है। ये ज्योतियां प्रज्ज्वलित भी अपने आप होती है।
  • रुस के ‘सेंट्रल आराकुल मरुस्थल’ में जब जोर की हवाऐं चलती है तो चीखने-चिल्लाने की, रोने व् गाने की भिन्न-भिन्न ध्वनियां आती है।
  • ‘वाइकल झील’ के तट पर बालू से भांति-भांति के स्वर सुने जा सकते है।
  • ‘पुनीत नासिका’ नामक अंतरीप के पास जहां बालू के महीन कण है, वहां भेड़िए की रुक-रुककर शोर करने की आवाज आती है।
  • ‘तुराली’ नामक स्थान पर ‘एलेक’ भाषा में इस नाम का अर्थ गूंजती रेत है। तेज हवा चलने पर वायलिन सुनाई पड़ती है।

दुनिया की कुछ और जगहों की बातें :

  • जम्मू-कश्मीर में ‘बीज बोहरा’ के निकट एक पत्थर का भार लगभग पचास से साठ किलो तक का है। देखने में यह साधारण-सा पत्थर है, लेकिन इसे एक अंगुली का उपयोग करके उठाया जा सकता है।
  • इटली में ‘उस्सेला’ नामक एक विचित्र पर्वत है। वह सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय दिखाई देता है, शेष समय अद्रश्य रहता है। वैज्ञानिक इस रहस्य का पता नहीं लगा सके कि सूर्य की प्रखर रोशनी या पूर्णिमा की शीतल रोशनी में वह क्यों नहीं दिखाई पड़ता।
  • इटली के ही ‘मोदेना’ नामक स्थान के निकट एक ऐसा विचित्र पर्वत है, जो सदियों से धीरे-धीरे एक ही दिशा की ओर सरक रहा है। सरकते-सरकते वह 40 किलोमीटर दूर जा चुका है।
मोदेना पर्वत Modena Mountain Italy

  • कनाडा की ‘मोनेक्टन’ की एक पहाड़ी पर एक विशेष स्थान पर कोई गोल वस्तु, जैसे पहिया, तांगा गाड़ी आदि का इंजन आदि बंद कर दिया जाए तो वह स्वतः ही पहाड़ी के ऊपर चढ़ने लगती है और ऊपर एक विशेष स्थान पर जाकर स्वतः रुक जाती है। वैज्ञानिक शोध जारी है कि गोल वस्तु नीचे लुढ़कने के विपरीत ऊपर की ओर कैसे लुढ़कती है।
  • ब्रिटेन के उत्तरी ‘वेल्स प्रदेश’ के सागर तट पर बालू से गाने की धुन निकलती है। पत्थरों की तरह बालू भी अपने अस्तित्व का प्रमाण अनेकों ध्वनियां पैदा करके देती है। बालू के कण समान आकार के गोल हैं। हवा और पैरों के दबाव से हिलने पर इसमें से संगीतमय धुन निकलती है।
  • अमेरिका के ‘कैलिफोर्निया’ प्रांत में एक पहाड़ है जिसका नाम ‘माउंट डायकोले’ है। हर तीन महीने बाद, एक दिन ऐसा आता है, जब इस पहाड़ी की चोटी पर सूर्योदय के समय खड़े होने वाले व्यक्ति की छाया अप्रतिम रुप से बड़ी हो जाती है। यह छाया सामने, नीचे वाली भूमि पर दस मील लंबी हो जाती है और सामने के टीले पर पड़ती है।

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बरमुडा त्रिकोण का सच The truth about the Bermuda Triangle

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बरमुडा त्रिकोण

स्थान : 25 से 40 उत्तरी अक्षांश और 55 से 80 पश्चिमी देशांतर रेखाओं के बिच

क्षेत्रफल : 3 लाख 90 हज़ार किमी.

हमारे आधुनिक संचार-साधनों ने सूचित किया है की अटलांटिक सागर के नियामी, प्लूटो रिको और बरमुडा द्वीप के बीच त्रिकोण से गुज़रने वाले जहाज़ों या विमानों को कोई अद्रश्य सामुद्रिक शक्ति अपनी ओर खींच लेती है, फिर उनका पता नहीं चलता।

1964 में ‘आरगोसी’ नामक पत्रिका में प्रकाशित विसेंट एच. गडिस के एक लेख से जहाज़ों और विमानों के बरमुडा त्रिकोण ( Bermuda Triangle ) में ग़ायब होने की बात प्रकाश में आई। गडिस ने पहली बार ‘बरमुडा ट्रायंगल’ का नाम लिया और बताया की उड़ान फ़्लाइट-19 और अन्य ग़ायब हुए जहाज़ व विमान इसी क्षेत्र की आश्चर्यजनक घटनाओं के एक भाग थे। 2 वर्ष बाद ‘फ़ैट’ नामक पत्रिका में प्रकाशित जार्ज एक्स सेंड के लेख में पुष्टि की गई कि 5 बमवर्षक विमान (फ़्लाइट-19), जो प्रशिक्षण के लिए जा रहे थे, अचानक बरमुडा त्रिकोण से गुज़रते हुए ग़ायब हो गए।

फ़्लाइट-19 की बाद में भी चर्चा हुई, जिसमें कहा गया कि नियंत्रण कक्ष में विमान-चालक को यह कहते हुए सुना गया, ‘हम इस समय सफ़ेद पानी के ऊपर से गुज़र रहे है, कुछ ठीक नहीं लग रहा है, हम यह नहीं जानते कि इस समय हम कहां है, पानी सफ़ेद से हरा हो गया है।’ जार्ज सेंड ने पहली बार कहा कि उड़ान -19 के नष्ट होने में किसी अलौकिक शक्ति का हाथ है।

बरमुडा त्रिकोण से जुड़ी कुछ प्रमुख घटनाएँ

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पेट्रियाट : 31 दिसम्बर, 1812

अमेरिका के तत्कालीन उपराष्ट्रपति एरन बर की बेटी थियोडोसिया बर एल्सटन पेट्रियाट नामक विमान से 30 दिसम्बर को दक्षिण कैरोलीना से न्यू जर्सी के लिए निकली थी, लेकिन बीच में ही कहीं हमेशा के लिए ग़ायब हो गई।

मेरी सेलेस्टी : 4-5 दिसम्बर, 1872

इस जहाज़ को ‘भुतहा जहाज़’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस जहाज़ पर मौज़ूद सभी सवारियां उस समय लापता थीं, जब यह पुर्तगाल के समुद्री तट पर तैरता हुआ पाया गया। अच्छा मौसम, अनुभवी कर्मचारी होने के बावजूद यह घटना जहाज़ के साथ घटी।

युएसएस साइक्लोप्स : 4 मार्च, 1918

यह एक मालवाहक जहाज़ था, जिसने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी बेड़े को ईंधन की आपूर्ति की थी। यह जहाज़ 16 फ़रवरी, 1918 को रियो से 309 लोगों और प्रभूत मात्रा में माल लेकर बाल्टिमोर के लिए निकला। आश्चर्यजनक रुप से कैप्टन इसे बाल्टिमोर के स्थान पर 3 मार्च को बारबाडोस ले गया। 4 मार्च को जहाज़ जब बारबाडोस से बाल्टिमोर के लिए निकला तब से इसका कोई पता नहीं चला।

फ़्लाइट -19 : 5 दिसम्बर, 1945

बरमुडा त्रिकोण का सबसे चर्चित हादसा 1945 में हुआ। फ़्लाइट-19 में अमेरिकी नौसेना के पांच बम वर्षक विमान फ़्लोरिडा के नौसेना आधार (बेस) से उड़े तो थे पर कभी मंज़िल पर नहीं पहुंचे। ऐसा माना जाता है कि इन ग़ायब हुए विमानों को ढूढ़ने के लिए दो बचाव-यान भेजे गए जिनमें से एक वापस नहीं लौटा। लापता जहाज़ ने दुर्घटना से पहले नियंत्रण कक्ष को सूचित किया, ‘मुझे कोई भी दिशा समझ में नहीं आ रही है और हम एक आकर्षण शक्ति की ओर खिंचे चले जा रहे है…।’ इसके बाद आवाज आनी बंद हो गई। दोपहर 4:45 पर नियंत्रण कक्ष में अंतिम अधूरी आवाज़ सुनाई दी, ‘हमें इस समय अपने अड्डे से 225 मील उत्तर-पूर्व में होना चाहिए, ऐसा लगता है कि हम…।’ इसके बाद कुछ भी सुनाई नहीं दिया।

इन 5 बम वर्षकों का पता लगाने के लिए 13 व्यक्तियों से लैस मैरिनर फ़्लाइंग बोट भेजी गई। कुछ समय बाद वह बोट भी उसी तरह ग़ायब हो गई। बम वर्षकों की तरह इसका भी पता नहीं चला। फ़्लोरिडा तट के पास खड़े एक टैंकर ने एक विस्फ़ोट होते और समुद्र की सतह पर तेल फैलते देखा। उसने तलाश की पर कोई जीवित व्यक्ति नहीं मिला।

स्टार टाइगर और स्टार एरियल : 1948/1949

एजोरस से बरमुडा को उड़ान भरते हुए 30 जनवरी, 1948 को स्टार टाइगर और 17 जनवरी, 1949 को जमैका से किंग्सटन जाते हुए स्टार एरियल नामक विमान ग़ायब हो गया। दोनों यात्री विमान थे और उनका गंतव्य स्थान निकट ही था, जिससे विमान संचालन में मानवीय भूल होने पर भी वे गंतव्य स्थान तक पहुंच सकते थे। इनमें से एक तो त्रिकोण-क्षेत्र में प्रवेश करने से पूर्व ही ग़ायब हो चूका था।

केसी -135 स्टे टोटेकंर्स : 28 अगस्त 1962

28 अगस्त, 1962 को अमेरिकी वायु-सेना का केसी -135 विमानों का जोड़ा अटलांटिक सागर के ऊपर टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जानकारों का मानना है कि दोनों विमान टकराए और चकनाचूर हो गए। पर यह पाया गया कि उनके टकराने के स्थल 160 मील दूर थे। मलबे की खोज की गई पर उस जगह समुद्री कूड़ा और बहाने वाली लकड़ियां ख़तरे के निशान में उलझी हुई थीं।

कैसा है यह त्रिकोण !

25 से 40 उत्तरी अक्षांश और 55 से 80 पश्चिमी देशांतर रेखाओं के बीच स्थित 3 लाख 90 हज़ार किमी. क्षेत्रफल में फैला सागर बरमुडा ( या शैतान ) त्रिकोण के नाम से भी जाना जाता है।

यह क्षेत्र फ़्लोरिडा से शुरु होकर बरमुडा तक जाता है और फिर प्यूर्टो रिको को पार करता हुआ वापस फ़्लोरिडा से जाकर मिलता है और इस तरह यह एक त्रिकोण बनाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस क्षेत्र से जो भी जहाज़ या विमान गुजरता है वह यहीं कहीं ग़ायब हो जाता है। सबसे पहले कोलम्बस ने बरमुडा त्रिकोण में उठती हुई एक रोशनी देखी थी, जिसे उसने ‘आग की महान लपट’ कहा था।

शुरु-शुरु में इस क्षेत्र में हुई घटनाओं को मात्र संयोग समझा गया और इन पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया, लेकिन जब इन घटनाओं की संख्या बढ़ने लगी तो इसकी जांच-पड़ताल शुरु हो गई। आश्चर्यजनक बात यह थी कि इस क्षेत्र में नष्ट होने वाले विमानों या जहाज़ों का न तो मलबा मिलता, न ही अन्य कोई निशानी। इस कारण विभिन्न जांचो के नतीजे एक दूसरे से भिन्न होते। यथा – इस क्षेत्र का गुरुत्वाकर्षण और चुम्बकीय विस्थापन इतना अधिक है कि जहाज़ों और विमानों के रेडियो ख़राब हो जाते है और दिशासूचक यंत्र भ्रामक संकेत देने लगते है।

क्या कहते है वैज्ञानिक !

  • कुछ वैज्ञानिक बरमुडा त्रिकोण को एक चुम्बकीय क्षेत्र मानते है। उनका तर्क है कि ध्रुवों में होने वाले परिवर्तन से समुद्र में तेजी से चुम्बकीय लहरें उठती है, जिसके कारण दुर्घटनाएँ होती है।
  • एक मत यह है कि त्रिकोण की जल सतह पर गत 15 हज़ार वर्षों से मीथेन गैस जमा हो रही है। मीथेन द्वारा त्रिकोण में झागदार क्षेत्र बना देने से जलयान की गति शून्य हो जाती है। इसके अतिरिक्त उच्च घनत्व शक्ति होने के कारण मीथेन हवा में रासायनिक दबाव बनाता है, जिसके कारण चीजें उसकी ओर खिंचती है।
  • ऑस्ट्रेलिया में हुए एक शोध के अनुसार मीथेन का आवधिक उद्भेदन (जिन्हें कभी-कभी कीचड़ का ज्वालामुखी कहा जाता है) एक सीमित क्षेत्र में फेनिल जल पैदा कर सकता है, जिससे जहाज़ों की पर्याप्त तरण क्षमता समाप्त हो जाती है और वे बिना किसी पूर्व सूचना के तेज़ी से डूब जाते है। लेकिन, अमेरिकी स्त्रोतों के अनुसार गत 15 हज़ार वर्षों से मीथेन गैस के उद्भेदन का कोई वाक़या नहीं हुआ है।
  • कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि गल्फ़ स्ट्रीम की वजह से समुद्री सतह पर कीचड़ के बड़े-बड़े चक्रवात (साइक्लोन) बनते है, जो विमानों और भारी जहाज़ों तक को अपनी ओर खींच लेते है।
  • वैज्ञानिक यह भी मानते कि कई हज़ार वर्ष पहले बरमुडा त्रिकोण में एक धूमकेतु (कामेट) गिरकर नष्ट हो गया था, जो अपने संपर्क में आने वाली वस्तुओं को अपनी ओर खींच लेता है।
  • अमेरिकी नौसेना के सूत्रों के अनुसार बरमुडा जैसे कथित त्रिकोण का कोई अस्तित्व नहीं है। भौगोलिक नामों के अमेरिकी बोर्ड ने ‘बरमुडा त्रिकोण’ के नाम को मान्यता नहीं दी है।

लिखित प्रमाणों से संकेत मिलता है कि घटनाओं की ज़्यादातर संख्या वास्तविक नहीं है, वे ग़लत ढंग से पेश की गई है और लेखकों ने उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है।

2013 में ‘वर्ल्ड वाइड फंड नेचर’ द्वारा किए गए अध्ययन के बाद जहाज़ों के लिए दस ख़तरनाक स्थलों की सूची ज़ारी की गई थी, ‘जिसमें ‘बरमुडा त्रिकोण’ का नाम नहीं है।

ऐरिजोना विश्वविद्यालय के पुस्तकाध्यक्ष और ‘बरमुडा ट्राएंगल मिस्ट्री : सॉल्व’ के शोध लेखक लारेंस डेविड कुस्चे ने तर्क देते हुए कहा कि विसेन्ट एच. गडिस तथा अन्य परवर्ती लेखकों ( जान बैलेस स्पेंसर तथा चार्ल्स बर्लिट्ज ) के दावे अधिकांशतः अतिशयोक्तिपूर्ण, संदेहास्पद और असत्यापनीय है। कुस्चे के शोध में बर्लिट्ज के विवरणों और प्रारंभिक दुर्घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शियों आदि के कथनों में ग़लतियां और विसंगतियां पाई गई है। कुस्चे ने ऐसे प्रकरणों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है, जिसका उल्लेख किसी ने नहीं किया है।

उदाहरणार्थ बर्लिट्ज ने विश्व-भ्रमणकर्ता नाविक डोलाल्ड कोहस्ट के लापता होने को एक रहस्यमय घटना के रुप में चित्रित किया है, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। एक अन्य घटना में बर्लिट्ज एक अयस्क वाहक जहाज़ को एटलांटिक बंदरगाह से तीन दिन तक लापता बताता है, जबकि इसी नाम का जहाज़ प्रशांत महासागर के एक बंदरगाह से ग़ायब हुआ था।

कुस्चे का कहना है कि उन घटनाओं का बहुत बड़ा प्रतिशत, जिन्हें त्रिकोण में घटित होता दिखाया गया है, वास्तव में बाहर घटी थी। कुस्चे का जांच का तरीक़ा बड़ा साधारण था – वह वर्णित घटनाओं के संगत दिनों का अख़बार देखता और यह पता करता कि उन दिनों मौसम, जिसका उल्लेख घटनाओं के वर्णन में नहीं किया जाता, क्या असाधारण था।

कुस्चे के शोध के निष्कर्ष ये थे –

  • त्रिकोण में लापता हुए जहाज़ों और विमानों की घटनाऐं समुद्र में अन्यत्र हुई घटनाओं से समानुपात में अधिक नहीं थी।
  • उष्णकटिबंधीय तूफ़ानों वाले स्थानों में लापता होने की घटनाऐं अन्य भागों में हुई घटनाओं से असमान, असंभाव्य या रहस्यमयी थी।
  • लेखकों ने ऐसे तूफ़ानों का ज़िक्र किया है, लेकिन यह जिक्र नहीं किया है कि लापता होने की घटनाऐं जब हुई तब समुद्र शांत था।
  • चलताऊ शोध के आधार पर लापता यानों की संख्या में अतिशयोक्ति की गई। जैसे, एक नाव के लापता होने की सूचना तो दर्ज की गई, पर उसके वापस आने का संज्ञान नहीं लिया गया।
  • कुछ घटनाऐं जो घटी ही नहीं, उनका संज्ञान ले लिया गया, जैसे 1937 फ़्लोरिडा के डाइटोन तट से उड़े एक विमान की सैकड़ों प्रत्यक्षदर्शियों के सामने दुर्घटना में नष्ट होने का जिक्र तो है, पर स्थानीय अखबारों में इस घटना का कोई जिक्र नहीं है।
  • बरमुडा त्रिकोण की दंतकथा एक कृत्रिम रहस्य कथा है, जिसे लेखकों ने जाने-अनजाने चर्चित कर दिया।

नया शोध

अब बरमुडा त्रिकोण की गुत्थी सलझा लेने का वैज्ञानिकों ने दावा किया है। मौसम विशेषज्ञ डॉ. रैंडी सेखेनी के अनुसार इस क्षेत्र के ऊपर बन रहे षटकोणीय बादलों में विस्फोट की वजह से ही इसे पार करना असंभव सिद्ध हो रहा है। ये बदल आसमान में हवाई बम का रुप ले लेते है और इसमें विस्फोट से 273 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से हवा चलने लगती है। ये हवाऐं चक्रवाती तूफ़ान से ज़्यादा शक्तिशाली है। इतनी तेज़ हवा में किसी भी विमान या जहाज़ का बच पाना मुश्किल हो जाता है।

वैज्ञानिकों ने रडार सेटेलाइट के ज़रिए पाया कि बरमुडा त्रिकोण के ऊपर 32 से 80 किमी. तक चौड़ाई वाले बादल मौज़ूद है। ये बादल उत्तरी अटलांटिक महासागर के ऊपर 5 लाख वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैले हुए है।

बरमुडा त्रिकोण के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQ on Bermuda Triangle

प्रश्न 1. बरमुडा त्रिकोण ( Bermuda Triangle ) किस महासागर में स्थित है?

उत्तर : बरमुडा त्रिकोण अटलांटिक महासागर में स्थित है, जो उत्तरी अटलांटिक महासागर के पश्चिमी भाग में एक क्षेत्र है।

प्रश्न 2. बरमुडा त्रिकोण ( Bermuda Triangle ) की सीमाएँ किसके बीच है?

उत्तर : बरमुडा त्रिकोण की सीमाएँ फ़्लोरिडा, बरमुडा और प्यूर्टो रिको के बीच है।

इसी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article द्वारा दी गयी सीख आपके जीवन में उपयोगी साबित होगी। अगर आपको ये Article उपयोगी हुआ हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरूर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

फर्नांडीना कछुआ Farnandina tortoise in hindi

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विलुप्त माने जा रहे ‘शानदार विशालकाय कछुए’ के गैलापागोस में जीवित होने की पुष्टि

फर्नांडा, एकमात्र ज्ञात जीवित फर्नांडीना कछुआ, जो गैलापागोस द्वीपसमूह के फर्नांडीना द्वीप पर फिर से खोजा गया है, अब सांता क्रूज़ पर गैलापागोस राष्ट्रीय उद्यान के विशालकाय कछुआ प्रजनन केंद्र में रहता है। आनुवंशिकीविद ने पुष्टि की है की वह उसी प्रजाति से है जिस प्रजाति का एक कछुआ एक सदी से भी पहले द्वीप से एकत्र किया गया था, और ये दोनों आनुवंशिक रुप से अन्य सभी गैलापागोस कछुओं से अलग है।

“अब ऐसा लगता है की यह उन गिने-चुने कछुओं में से एक है जो एक सदी पहले जीवित थे।”

फर्नांडीना कछुओं के विलुप्त होने का कारण

फर्नांडीना कछुए के विलुप्त होने के लिए खोजकर्ता स्वयं ज़िम्मेदार थे। उन दिनों, जब समुद्री यात्राओं के दौरान भोजन की कमी होती थी, तो विशालकाय कछुओं को मारकर खा लिया जाता था। ‘डार्विन’ ने भी अपनी यात्राओं के दौरान इसी तरह का ‘भोजन’ किया था।

ऐतिहासिक कारण (18वीं-19वीं सदी)

  • अतिशोषण : सदियों से नाविकों ने मांस और तेल के लिए कछुओं का बड़ी मात्रा में शिकार किया, जिससे लंबी यात्राओं के लिए हजारों कछुओं का शिकार किया गया।

आधुनिक कारण (20वीं-21वीं सदी)

  • मानव द्वारा भोजन : सदियों से नाविकों, समुद्री लुटेरों और खोजकर्ताओ द्वारा भोजन के लिए खास करके कछुओं का ही शिकार किया जाता था। क्योंकि समुद्री यात्राओं के दौरान भोजन की कमी होती थी, तो विशालकाय कछुओं को मारकर खा लिया जाता था।
  • मानव द्वारा लाई गई आक्रामक प्रजातियाँ : यहाँ पर मानव दवरा लाई गई कुछ आक्रामक प्रजातियाँ जैसे चूहे, सूअर और बकरियाँ भी कछुए के विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार है। ये सब आक्रामक प्रजातियाँ जो कछुओं के अंडों और बच्चों का शिकार करती है और भोजन एवं आवास के लिए प्रतिस्पर्धा करती है।
  • कृषि और विकास : कृषि और विकास के कारण कछुओं के आवासों का विनाश और विखंडन भी कछुओं के विलुप्त होने का प्रमुख कारण है।
  • अवैध शिकार : व्यापर के लिए अवैध शिकार भी कछुओं के विलुप्त होने का एक प्रमुख कारण है।
  • आवास की कमी : जैसे-जैसे द्वीपों पर मानवों की संख्या बढ़ती चली गई, वैसे-वैसे कछुओं के आवासों को कृषि भूमि और शहरी विकास के लिए परिवर्तित कर दिया गया।
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गैलापागोस द्वीपसमूह पर कछुओं का शिकार करते हुए

शोधकर्ताओं ने द्वीप के एक कछुए को मार डाला, हालांकि उसकी त्वचा और शरीर का अधिकांश भाग सुरक्षित रहा। लेकिन जो कछुआ मरा, वह वहाँ का आखरी निवासी था। छह-सात महीने की यात्रा के दौरान द्वीप पर इस प्रकार का कोई अन्य कछुआ नहीं देखा गया, इसलिए शोधकर्ताओं ने फर्नांडीना कछुए का नाम ‘विलुप्त’ लिख दिया।

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फर्नांडीना द्वीप पर आखरी बार 1906 में देखे गऐ कछुए के खोल वाला एक शव

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फर्नांडीना कछुआ, जो की ‘गैलापागोस विशालकाय (चेलोनोइडिस फैंटास्टिक्स) कछुआ’ या ‘शानदार विशालकाय कछुआ’ के नाम से भी जाना जाता है। एक सदी से भी ज़्यादा समय तक, केवल 1906 में एकत्रित किए गए इस एक नमूने से ही जाना जाता था।

फर्नांडीना कछुओं की कुछ रोचक जानकारी

  • आयुष्य (जीवनकाल) : फर्नांडीना कछुए, जिसे ‘फर्नांडीना विशाल कछुआ’ या ‘शानदार विशाल कछुआ’ भी कहा जाता है, जिसका जीवनकाल लगभग अन्य गैलापागोस विशाल कछुओं के जितना ही होता है। ये जंगल में 100 से अधिक वर्षों तक और लगभग 200 वर्षों तक जीवित रह सकते है।
  • विशेषता : ये कछुए भी अपनी धीमी चाल और चयापचय दर के कारण अपनी लंबी दीर्घायु के लिए जाने जाते है। इसी कारण उन्हें हजारों वर्षो से गैलापागोस परिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग भी बना दिया है।
  • दुर्घायु कशेरुकी : फर्नांडीना कछुए, गैलापागोस कछुओं सहित, पृथ्वी पर सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले कशेरुकी जीवों में से एक है।
  • पर्यावरण से प्रभावित : उनका जीवनकाल मुख्य रूप से आहार और पर्यावरण से प्रभावित होता है, जिसमें खास करके धीमी चयापचय दर उनकी दीर्घायु में योगदान देती है।
  • प्रजाति : 2021 में आनुवंशिक परीक्षण में पुष्टि हुई है की, 2019 में फर्नांडीना द्वीप पर एकमात्र जीवित मिली मादा ‘फर्नांडा’ वास्तव में ‘चेलोनोइडिस फैंटास्टिक्स’ प्रजाति का सदस्य है, जो अन्य गैलापागोस कछुओं से आनुवंशिक रुप से अलग है।
  • लंबाई : हालांकि फर्नांडा प्रजाति के कछुओं की विशिष्ट के माप उपलब्ध नहीं है, लेकिन फर्नांडीना विशालकाय कछुए (चेलोनोइडिस फैंटास्टिक्स) कछुआ’ या ‘शानदार विशालकाय कछुआ’ की लंबाई ज्ञात है।
  • नर फर्नांडीना विशालकाय कछुए 87.6 सेमी (34.5 ईच) तक हो सकते है।
  • मादा फर्नांडीना विशालकाय कछुए 50.7 सेमी (20 ईच) तक हो सकते है।

फर्नांडीना कछुआ – मादा फर्नांडा कछुआ जो 2019 में खोजी गई थी, इसके विकास से पता चलता है की यह मादा फर्नांडीना कछुआ अपने अलग-थलग और संसाधन विहीन वातावरण के कारण अपनी प्रजाति की एक सामान्य मादा से छोटी हो सकती है।

फर्नांडीना कछुओं के विलुप्त होने से लेकर वापस मिलने तक की कहानी

28 जून, 1905 गालापागोस द्वीपसमूह

अमेरिका में कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस की टीम ने सैन फ्रांसिस्को के तट से दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के तट से साढ़े पांच हजार किलोमीटर दूर स्थित गैलापागोस द्वीपसमूह तक एक अभियान शुरू किया। प्रकृतिवादी चार्ल्स डार्विन ने 1831-36 की अपनी यात्रा के दौरान गालापागोस द्वीप समूह के जीवों का अध्ययन किया था। किसी विशेष वातावरण में जीवित रहने वाले जीवों को अपने शरीर, आदतों और जीवनशैली को स्थानीय वातावरण के अनुसार ढालना पड़ता है।

चार्ल्स डार्विन ने गालापागोस की अपनी यात्रा के दौरान विकासवाद के रूप में ज्ञात प्रकृति के इस चमत्कार को समझा और फिर डार्विन ने 1859 में अपनी पुस्तक ‘ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीसिस’ में विकासवाद के सिद्धांत को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। यह विज्ञान के इतिहास की एक सर्वविदित घटना है।

करोड़ों सालों से अस्तित्व में रहे गालापागोस द्वीप समूह के 19 द्वीप डार्विन के सिद्धांत के बाद चर्चा में आए और शोधकर्ता वहाँ अध्ययन के लिए आने लगे। इस अध्ययन के उद्देश्य से कैलिफ़ोर्निया इंस्टिट्यूट के शोधकर्ता 1905 में गालापागोस पहुँचे। कई महीनों तक शोधकर्ताओं ने यहाँ यात्रा की, द्वीप के विभिन्न जीवों का अध्ययन किया और कुल 78 हजार प्राकृतिक नमूने एकत्र किए।

डार्विन के सिद्धांत के लागू होने के बाद, गालापागोस द्वीप समूह अपने ‘फिंच (एक प्रकार की चिड़िया)’ नाम के पक्षी और विशाल भूमि कछुओं (कछुए, समुद्री कछुए नहीं) के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हो गए। इस सिद्धांत को समझाने के लिए डार्विन ने उदाहरणों के माध्यम से बताया की प्रत्येक द्वीप पर पाए जाने वाले फिंच की चाचें द्वीप की आवश्यकताओं के अनुसार भिन्न होती हैं। जिन द्वीप पर पक्षियों को पेड़ों से भोजन प्राप्त करना पड़ता था, वहाँ उनकी चाचें लंबी थी, जबकि जिन द्वीपों पर पक्षियों को फलों से भोजन प्राप्त करना पड़ता था, वहाँ उनकी चाचें छोटी लेकिन मजबूत थी।

गालापागोस द्वीपसमूह पर कई अन्य जीव भी थे, लेकिन ये जीव विकास के सिद्धांत को समझने के लिए अधिक उपयोगी थे। इसलिए शोधकर्ताओं ली उनमें विशेष रूचि थी, जिनमें कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट के शोधकर्ता भी शामिल थे। शोधकर्ताओं ने विभिन्न द्वीपों पर कौन-कौन से जीव थे और उनकी संख्या कितनी थी, इसकी एक सूची बनाई। उसमें लिखा था की ‘फर्नांडीना कछुओं’ की संख्या शून्य थी। उस समय, 19 में से 14 द्वीपों पर कछुए थे और प्रत्येक प्रजाति को उस द्वीप के नाम से जाना जाता था, जैसे पिंटा द्वीप पर ‘पिंटा कछुआ’।

17 फ़रवरी, 2019 गालापागोस द्वीपसमूह का फर्नांडीना द्वीप

उस रविवार को, गालापागोस कंजर्वेंसी के रेंजर-शोधकर्ता लंबे समय के बाद इस ज्वालामुखी द्वीप पर शोध के लिए पहुँचे। चूँकि ज्वालामुखी सक्रिय था, इसलिए द्वीप पर स्थायी रूप से रहना संभव नहीं था। इसलिए, जब पृथ्वी की गहराई में शांति होती, तो शोधकर्ता द्वीप की मिट्टी का अन्वेषण करते। पाँच हज़ार फ़ीट उँचा यह ज्वालामुखी आखिरी बार जून, 2018 में सक्रिय हुआ था।

डॉ. वॉशिंगटन टापिआ और उनके साथ चार रेंजर-शोधकर्ता यह देखने की कोशिश कर रहे थे की आग बुझने के बाद क्या कोई नई हरियाली या जीवन सक्रिय हो गया है। डॉ. टापिआ गालापागोस विशाल कछुआ पुनःस्थापन पहल (जीटीआरआई) के निर्देशक थे।

जब शोधकर्ता खोजबीन कर रहे थे, तो उन्होंने कछुए के मल जैसी कोई चीज़ देखी। द्वीप पर एक सदी से कोई कछुआ नहीं था, तो यह मल कहाँ से आया? या लावा के ये ढेर मल जैसे लग रहे थे? 30 साल तक कछुओं पर अध्ययन करने के बाद, डॉ. टापिआ और उनके सहयोगियों ने आस-पास देखा और मल के कई अवशेष पाए। आगे जाँच करने पर उन्हें भूसे के ढेर के नीचे एक अनजान जगह पर एक बिस्तर मिला।

कछुए के वज़न से वहाँ की मिट्टी थोड़ी बैठ गई थी। पता चला की यहाँ एक कछुआ रहता था, जिस पर पिछले 113 सालों से किसी का ध्यान नहीं गया था! टीम ने इधर-उधर देखा और आखिरकार जेफरी मालेंगा नाम के एक रेंजर ने कछुए को देख लिया! शोधकर्ताओं को कुछ देर के लिए अपनी आखों पर यकीन ही नहीं हुआ। वह कहाँ बैठेगा? कछुए की एक प्रजाति का सदस्य, जिसे एक सदी से विलुप्त माना जा रहा था, उसकी आँखों के ठीक सामने था। यह प्राकृतिक विज्ञान के इतिहास की एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना थी, जो सन 2019 में घटी थी।

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डॉ. वॉशिंगटन टापिआ और 2019 में खोजी गई मादा फर्नांडीना कछुआ ‘फर्नांडा’

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डॉ. वॉशिंगटन टापिआ और उनके साथ चार रेंजर-शोधकर्ता

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डॉ. वॉशिंगटन टापिआ और उनके साथ रेंजर-शोधकर्ता : मिली हुई मादा फर्नांडीना कछुआ ‘फर्नांडा’ का नाप लेते हुए

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फर्नांडा – मादा फर्नांडीना कछुआ जो 2019 में खोजी गई।

गालापागोस द्वीपसमूह को प्रकृति का जीवंत संग्रहालय माना जाता है। फर्नांडीना द्वीप पर इस कछुए की खोज ने एक बार फिर इस द्वीप को शोधकर्ताओं के ध्यान में ला दिया है। 642 वर्ग किलोमीटर के फर्नांडीना द्वीप को पहली बार ब्रिटिश समुद्री डाकू एम्ब्रोस काउली ने सन 1684 में देखा था। 17 वीं शताब्दी में स्पेनियों ने इस पर नियंत्रण कर लिया और स्पेन के राजा फर्नांडो के सम्मान में इस द्वीप का नाम रखा। भूवैज्ञानिक दृष्टि से, यह द्वीप गालापागोस के अन्य द्वीपों की तुलना में युवा है, क्योंकि इसकी आयु 1 करोड़ वर्ष से भी कम है। गालापागोस समूह ज्वालामुखियों से बना है। फर्नांडीना एकमात्र ऐसा ज्ञात द्वीप है, जहाँ सक्रिय ज्वालामुखी पाया जाता है। ज्वालामुखी के सक्रिय होने पर द्वीप का आकार भी बदल जाता है। यहाँ केवल कुछ ही प्रजातियाँ रहती है, जैसे बड़े घोड़े जैसे इगुआना, कुछ समुद्री पक्षी और गालापागोस पेंगुइन। क्या अन्य प्रजातियाँ इस प्रचंड लपटों के बीच जीवित रह सकती है?

गालापागोस द्वीप समूह विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित हुए है, क्योंकि प्रत्येक द्वीप पर पाए जाने वाले जीव स्थानीय पर्यावरण के लिए अद्वितीय हैं। उँची घास वाले द्वीपों पर रहने वाले कछुओं (या अन्य जीवों) की चोंच लंबी होती हैं, जबकि कुछ की चोंच बहुत छोटी होती हे, क्योंकि उन्हें नीचे भोजन मिलता था। लाखों वर्षों से अलग-अलग द्वीपों पर रहने के कारण, प्रत्येक द्वीप के कछुए जैविक रूप से दूसरे द्वीप के कछुओं से भिन्न थे। ज्वालामुखी सक्रिय होने के कारण, खोजकर्ता यहाँ स्थायी रूप से नहीं रह सकते, वे आते-जाते रहते है। यहाँ तक की डार्विन भी अपनी 1831 की यात्रा के दौरान इस द्वीप पर नहीं गए थे। डार्विन, समूह के केवल 8 द्वीपों का ही दौरा कर पाए थे। अब जबकि इस द्वीप पर एक कछुआ पाया गया है, संभावना है की वहाँ कछुओं की संख्या ज़्यादा हो। इस द्वीप का पहले 1964 और 2009 में हवाई सर्वेक्षण किया जा चुका है। जब शोधकर्ताओंने 2013 में इस द्वीप का दोबारा दौरा किया, तो कछुआ तो नहीं दिखा, लेकिन कुछ प्रतीकात्मक प्रमाण ज़रूर मिले। अब, जब कछुआ सचमुच मिल गया है, तो शोधकर्ताओं के प्रयास सफल हो गए है। ज्वालामुखी अभी कुछ समय तक शांत रहने की संभावना है, इसलिए एक दूसरे अभियान की योजना बनाई जा रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके की क्या पाए गए कछुए के कोई भाई-बहन है। हो सकता है की कोई एक मिल जाए…

इस प्रकार का कछुआ 200 साल तक जीवित रह सकता है। इस कछुए ने अपने बचपन में प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध का अनुभव किया है। हालाँकि इस प्रकार के कछुओं का आकार बहुत बड़ा नहीं होता, लेकिन कुछ विशालकाय कछुए पाए गए है। इनका वजन साढ़े चार सौ किलोग्राम तक पहुँच सकता है।

अगर फर्नांडीना पर पाया गया कछुआ फिर से गायब हो गया, तो उसे ढूँढना मुश्किल हो जाएगा। एक तो सो साल तक ही देखा गया था! इस समूह का सांता क्रूज़ द्वीप पर चार्ल्स डार्विन अनुसंधान (सीडीआरएस) केंद्र, शोध केंद्र है, जहाँ से इस कछुए को लाया गया है। अब इसे विशेष देखभाल की ज़रूरत है। क्योंकि यह ग्रह पर उस प्रजाति का एकमात्र सदस्य है।

इस बिच, इन कछुओं के डीएनए को आगे के अध्ययन के लिए भेज दिया गया है। यहाँ पाए जाने वाले सभी कछुओं का डीएनए संरक्षित किया जाता है, ताकि अगर वे अब विलुप्त भी हो जाएँ, तो उनके वैज्ञानिक प्रजनन के विकल्प पर विचार किया जा सके। पाया गया कछुआ नर नहीं बल्कि मादा है और इसके अन्य विवरणों की जाँच अभी जारी है। यह कछुआ लगभग सौ साल पुराना है, क्योंकि 1906 में आखरी नर कछुए की मौत के बाद से इस द्वीप पर कोई भी बच्चा कछुआ पैदा नहीं हुआ है। यह कछुआ उस समय यहीं रहा होगा। लेकिन चूँकि यह द्वीप दुर्गम है, इसलिए अब तक यह शोधकर्ताओं के ध्यान में नहीं आया है।

द्वीप पर सभी कछुओं पर लगातार नज़र रखी जाती है ताकि उन्हें कोई नुकसान न पहुँचे। ज़रूरत पड़ने पर उन्हें विशालकाय कछुआ प्रजनन केंद्र लाया जाता है और जब उनकी संख्या बढ़ जाती है, तो उन्हें वापस द्वीप पर घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस कछुए की खोज ने यह उम्मीद भी जगाई है की गालापागोस कछुओं (या अन्य प्रजातियों) को बचाना असंभव नहीं है। हालाँकि, यह भी सच है की जब एक ही प्रजाति होगी, तो उसका वंश आगे नहीं बढ़ पाएगा। इस द्वीप पर पाया गया कछुआ, आखिरकार, प्रकृति का एक चमत्कार ही है।

हालांकि, साक्ष्य बताते हैं की, फर्नांडीना द्वीप के जंगलों में अभी भी कुछ अन्य कछुए मौजूद हो सकते है।

इसी जानकारी के साथ हम इस Article को यही पूरा करते हैं। आशा करता हूँ की इस Article द्वारा दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। अगर आपको ये Article उपयोगी हुआ हो, तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ यह जानकारी जरूर साझा करें एवं नई-नई जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट articletree.in को अवश्य विजिट करें। हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद !

गैलापागोस द्वीपसमूह Galapagos archipelago in hindi

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गैलापागोस द्वीपसमूह

गैलापागोस द्वीपसमूह, पूर्वी प्रशांत महासागर का एक द्वीपसमूह है, जो प्रशासनिक रूप से इक्वाडोर का एक प्रांत है। द्वीप के महत्त्व को समझते हुए, यूनेस्को ने 1971 में इसे ‘प्राकृतिक विश्व धरोहर’ घोषित किया।

क्षेत्रफल : 8010 वर्ग किमी या 3,090 मील

अधिकतम उँचाई : 1,707 मीटर या 5,600 फीट

मानव जन संख्या : 33,042 (2020)

वस्ती गिचता : 3 व्यक्ति/किलोमीटर

इतिहास

खोज और नामकरण

1535 : बिशप टॉमस डी बर्लगा

पनामा के बिशप टॉमस डी बर्लगा ने गैलापागोस द्वीपसमूह की खोज तब की, जब उनका जहाज पेरू की यात्रा के दौरान रास्ते से भटक गया था। बार्लगा ने इसका नाम “लास एनकांटाडास (द एनचांटेड)” रखा। वे विशालकाय कछुओं को देखकर आश्चर्यचकित रह गए, जिससे इस द्वीपों को उनका स्थायी स्पेनिश नाम “गैलापागोस” मिला।

भूविज्ञान

गालापागोस द्वीपसमूह को प्रकृति का जीवंत संग्रहालय माना जाता है। गालापागोस समूह ज्वालामुखियों से बना है। गैलापागोस द्वीपसमूह का कुल भूमि क्षेत्रफल 8010 वर्ग किमी है, जो 59,500 वर्ग किमी समुद्र में फैला हुआ है। गैलापागोस में 13 बड़े द्वीप है, जिनका क्षेत्रफल 14 से 4,588 वर्ग किमी तक है। जबकि 6 छोटे द्वीप और भूमध्य रेखा के पार इक्वाडोर की मुख्य भूमि से 1000 किमी पश्चिम में स्थित कई छोटे टापू और चट्टानें शामिल है।

गैलापागोस द्वीपसमूह के प्रमुख 19 द्वीप

13 प्रमुख द्वीप

  • इसाबेला द्वीप
  • सांता क्रूज़ द्वीप
  • फर्नांडीना द्वीप
  • सैंटियागो द्वीप
  • सैन क्रिस्टोबल द्वीप
  • फ्लोरियाना द्वीप
  • मार्चेना द्वीप
  • एस्पनोला द्वीप
  • पिंटा द्वीप
  • पिनजोन द्वीप
  • जेनोवेसा द्वीप
  • सांता फ़े द्वीप
  • उत्तर सेमुर द्वीप

6 छोटे द्वीप

  • बाल्ट्रा द्वीप
  • बार्टोलोम द्वीप
  • डार्विन द्वीप
  • प्लाजा द्वीप
  • रबीदा द्वीप
  • वुल्फ द्वीप

1).इसाबेला द्वीप (गैलापागोस)

इसाबेला द्वीप मुख्य रूप से दो अलग-अलग स्थानों को संदर्भित करता है : एक इसाबेल द्वीप (गैलापागोस) इक्वाडोर का सबसे बड़ा और सबसे सक्रिय ज्वालामुखी द्वीप है, जो गैलापागोस द्वीपसमूह का हिस्सा है और अपने विशाल कछुओं और ज्वालामुखीयों के लिए जाना जाता है; और दूसरा इसाबेल द्वीप (सोलोमन द्वीप समूह), जो सोलोमन द्वीप के प्रोविंस में स्थित एक द्वीप है और अपनी पारंपरिक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है।

  • भौगोलिक स्थिति : यह गैलापागोस द्वीप समूह का सबसे बड़ा द्वीप है और इक्वाडोर में स्थित है।
  • भूविज्ञान : यह छह सक्रिय ज्वालामुखियों से मिलकर बना है, और यह ग्रह पर सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों में से एक है।
  • वन्यजीव : इस द्वीप पर विशालकाय कछुओं और अन्य अद्वितीय जीवों की कई प्रजातियाँ पाई जाती है, और यह एक महत्वपूर्ण संरक्षण केंद्र है।
  • पर्यटन : यह गैलापागोस के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है, जहाँ पर्यटक द्वीपों का भ्रमण कर सकते है।

2).सांता क्रूज़ द्वीप

गैलापागोस का सांता क्रूज़ द्वीप इक्वाडोर का सबसे अधिक आबादी वाला द्वीप है।

  • भौगोलिक स्थिति : यह गैलापागोस द्वीपसमूह में स्थित है, जो प्रशांत महासागर में है और इक्वाडोर का हिस्सा है।
  • मुख्य विशेषताएँ : यह गैलापागोस का सबसे अधिक आबादी वाला और दूसरा सबसे बड़ा द्वीप है। यहाँ चार्ल्स डार्विन अनुसंधान केंद्र है, जहाँ कछुओं को पाला जाता है और उनके संवर्धन एवं संरक्षण पर काम होता है। यह द्वीप अपने उँचे इलाकों, लावा सुरंगों और कछुओं की बड़ी आबादी के लिए प्रसिद्ध है।

3).फर्नांडीना द्वीप

ये गैलापागोस के सभी द्वीपों में तीसरा सबसे बड़ा और सबसे युवा है। यह दस लाख वर्ष से भी कम पुराना है।

  • भौगोलिक स्थिति : फर्नांडीना गैलापागोस द्वीपसमूह का सबसे पश्चिमी द्वीप है
  • भूविज्ञान : यह ज्वालामुखीय रूप से सबसे अधिक सक्रिय है और गैलापागोस द्वीप समूह के निर्माण वाले हॉटस्पॉट के केंद्र में स्थित है।
  • वन्यजीव : फर्नांडीना द्वीप कई प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास के रूप में कार्य करता है। जैसे की, समुद्री इगुआना, उड़ने में असमर्थ जलकाग, गैलापागोस पेंगुइन, लावा छिपकलियाँ, गैलापागोस हॉक और गैलापागोस समुद्री शेरों सहित अनोखे जीवों का घर है।
  • पर्यटन : पुंटा एस्पिनोसा पर्यटक स्थल दो प्रमुख आकर्षण प्रदान करता है – छोटे प्रायद्वीप के चारों ओर छोटी पैदल यात्रा और एक बड़े लावा प्रवाह के किनारे तक अंतर्देशीय लंबी पैदल यात्रा। तट के किनारे के मुख्य आकर्षण में समुद्री इगुआना और उड़ने में असमर्थ जलकाग शामिल है। अन्य आकर्षणों में पेंगुइन, समुद्री शेर, सैली लाइटफुट केकड़े और कभी-कभी गैलापागोस हॉक्स एवं भूमि इगुआना भी शामिल है। यह द्वीप उड़ने में असमर्थ जलकाग और गैलापागोस पेंगुइन, समुद्री घोड़े, समुद्री इगुआना, समुद्री कछुए, शार्क और किरणों की विभिन्न प्रजातियों को देखने के लिए अच्छे स्थल है।

4).सैंटियागो द्वीप

इस द्वीप को ‘जेम्स द्वीप’ या ‘सैन साल्वाडोर द्वीप’ के नाम से भी जाना जाता है।

  • भौगोलिक स्थिति : यह गैलापागोस के मध्य में स्थित है और सांता क्रूज़ के उत्तर-पश्चिम में है।
  • भूविज्ञान : यह दो ओवरलैपिंग ज्वालामुखियों से बना है।
  • वन्यजीव : यह समुद्री गोह, जलसिंह (फर सील), विभिन्न प्रकार के कछुए, राजहंस, डॉल्फिन और हांगर जैसे जीवों का घर है। यहाँ पर विविध पक्षी की प्रजातियाँ पाई जाती है।
  • इतिहास : यह समुद्री लुटेरों के लिए पड़ाव था और बाद में यहाँ नमक की खानों का भी उपयोग किया गया था।
  • संरक्षण : यहाँ सुअरों का उन्मूलनीकरण अभियान सफल रहा।
  • पर्यटन : द्वीप पर विशेष रूप से प्यूर्टो एगास में आप लावा तटरेखा और गैलापागोस फर सील को देख सकते है।

5).सैन क्रिस्टोबल द्वीप

प्यूर्टो बाकेरिज़ो मोरेनो, गैलापागोस प्रांत की राजधानी के रूप में, द्वीप का मुख्य शहरी और आर्थिक केंद्र है।

  • भौगोलिक स्थिति : यह द्वीप प्रशांत महासागर में गैलापागोस द्वीपसमूह का भाग है।
  • भूविज्ञान : यह द्वीप तीन-चार विलुप्त ज्वालामुखियों से बना है, जो इसे गैलापागोस के सबसे पुराने द्वीपों में से एक बनता है।
  • इस द्वीप जुन्को नामक एक छोटी सी झील है, जो गैलापागोस द्वीपसमूह में ताजे पानी का एकमात्र स्थायी स्रोत है।
  • इस द्वीप का नाम अंग्रेजी समुद्री लुटेरों ने विलियम पिट, प्रथम अर्ल ऑफ चैथम के सम्मान में चैथम रखा था।
  • आबादी और अर्थव्यवस्था : यह द्वीपसमूह का सबसे उपजाऊ द्वीप है।
  • इस द्वीप पर चीनी, कॉफी, मक्का, पशुधन और मछली जैसे उत्पादों के निर्यात के लिए एक केंद्र भी है।
  • खास बात : 1835 में चार्ल्स डार्विन सैन क्रिस्टोबल पहुंचे और यहाँ के आंकड़े संकलित किए, जो उनकी पुस्तक “ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीसिस” में शामिल किए गए।

6).फ्लोरियाना द्वीप

यह द्वीप एक छोटा, ऐतिहासिक है। ये अपने रोचक मानवीय इतिहास और अनूठे वन्यजीवों के लिए जाना जाता है। इसे “डेविल्स क्राउन (Devil’s Crown)” नाम के पानी के नीचे के ज्वालामुखी शंकु के लिए भी जाना जाता है, जहाँ प्रवाल पाए जाते है। ये द्वीप गैलापागोस के सबसे शुरुआती निवासियों का घर भी था।

  • भौगोलिक स्थिति :
  • भूविज्ञान : इस द्वीप पर ज्वालामुखीय गड्डे के बजाय राख के जमाव और लावा प्रवाह के स्पष्ट प्रमाण मौजूद है, जिनमें तट पर स्कोरिया शंकु और तट से दूर टफ ऐश शंकु शामिल है।
  • वन्यजीव : यह द्वीप प्रतिष्ठित प्रजातियों का घर है, जिनमें फ्लोरियाना मॉकिंगबर्ड, गैलापागोस के रेसर स्नेक और फ्लोरियाना विशाल कछुआ शामिल है, हालांकि आक्रामक प्रजातियों के कारण ये सब खतरे में है।

7).मार्चेना द्वीप

इस द्वीप का नाम स्पेनिश भिक्षु फ्रे एंटोनयो मर्चेना के नाम रखा गया है, जो इस द्वीप के पहले आंगतुक में से एक थे।

  • भौगोलिक स्थिति : यह द्वीप उत्तरी द्वीपों में सबसे बड़ा है।
  • भूविज्ञान : इसमें एक सक्रिय ज्वालामुखी और एक प्राचीन ज्वालामुखी गड्डा है। इस द्वीप में एक सक्रिय ज्वालामुखी है और 1991 में इसमें कम से कम 100 वर्षों में पहला विस्फोट हुआ था।
  • वन्यजीव : इस द्वीप पर समुद्री शेर और गैलापागोस बाज़ पाए जाते है। यहाँ पर मर्चेना लावा छिपकली का घर है, जो एक स्थानिक प्रजाति है।
  • पर्यटन : इस द्वीप पर प्रवासीओ के लिए सीधे किनारे पर जाना मना है, इसलिए यह गैलापागोस के सबसे कम ज्ञात स्थलों में से एक है। यहाँ पर आमतौर पर समुद्री जीवन का अनुभव करने के लिए आस-पास के क्षेत्रों में आयोजित पर्यटन के समय पर्यटक गोताखोरी करते है।

8).एस्पनोला द्वीप

यह द्वीप अपनी अद्वितीय वन्यजीव विविधता, खास करके समुद्री इगुआना और वेव्ड अल्बास्ट्रॉस के लिए जाना जाता है, जो यहाँ घोंसला बनाते है।

  • भौगोलिक स्थिति : एस्पनोला गैलापागोस द्वीप समूह के सबसे दक्षिणी भाग में प्रशांत महासागर में स्थित है।
  • भूविज्ञान : यह द्वीप समूह का सबसे पुराना द्वीप है, इसके कारण यह महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक और जैविक इतिहास को दर्शाता है। इस द्वीप की आयु लगभग 4 से 4.5 मिलियन वर्ष है।
  • वन्यजीव : यह द्वीप वेव्ड अल्बास्ट्रॉस के लिए एकमात्र घोंसला बनाने का क्षेत्र है। यहां एस्पेनोला मॉकिंगबर्ड, एस्पेनोला लावा छिपकली और लाल व हरे रंग के समुद्री इगुआना जैसी प्रजातियां भी पाई जाती है।
  • पर्यटन : यहां के पर्यटन स्थलों में पुंटा सुआरेज़ (Punta Suarez) और गार्डनर बे (Gardner Bay) प्रमुख है, जो क्रमशः वन्यजीव अवलोकन और स्नॉर्कलिंग जैसी सेवाएँ प्रदान करते है।

9).पिंटा द्वीप

इस द्वीप का नाम क्रिस्टोफर कोलंबस के जहाज ‘पिंटा’ के नाम पर रखा गया है।

  • भौगोलिक स्थिति : ये द्वीप इक्वाडोर से पश्चिम में पूर्वी प्रशांत महासागर में स्थित है।
  • भूविज्ञान : यह एक निर्जन और सक्रिय ढाल ज्वालामुखी है।
  • वन्यजीव : यहाँ समुद्री इगुआना, स्वैलो-टेल्ड गैलापागोस हॉक और फर सील जैसी प्रजातियाँ देखी जा सकती है।

10).पिनजोन द्वीप

यह द्वीप उप-प्रजाति चेलोनोइडिस डंकेनेंसिस (गैलापागोस कछुओं) और गैलापागोस समुद्री सिंहो का घर है।

  • भौगोलिक स्थिति : ये द्वीप इक्वाडोर के पूर्वी प्रशांत महासागर में स्थित है।
  • भूविज्ञान : ये द्वीप शुष्क होने के बजाय आतंरिक रूप से ऊँचा है,जहाँ घना कोहरा पाया जाता है।
  • वन्यजीव : यह गैलापागोस कछुओं और गैलापागोस समुद्री सिंहो का निवास स्थान है।
  • पर्यटन : यह पर पर्यटन सुविधाएँ नहीं है और पर्यटन के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है।

11).जेनोवेसा द्वीप

इस द्वीप को ‘टावर आइलैंड’ भी कहा जाता है और इसे ‘पक्षी द्वीप’ भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ समुद्री पक्षियों की बहुत ज्यादा आवन-जावन पाई जाती है।

  • भौगोलिक स्थिति : यह द्वीप पूर्वी प्रशांत महासागर में गैलापागोस द्वीपसमूह का भाग है।
  • भूविज्ञान : ये द्वीप एक शील्ड ज्वालामुखी है, जिसके एक तरफ़ ढहने से ‘डार्विन खाड़ी’ बनी है।
  • वन्यजीव : यहाँ लाल पैर वाले बूबी और फ्रिगेटबर्ड ज़्यादा पाए जाते है। अन्य जीवो में यहाँ शॉर्ट-ईयर्ड उल्लू और अलग-अलग प्रजातियों के फिंच और विभिन्न प्रकार की मछलियाँ और शार्क पाई जाती है।
  • पर्यटन : पर्यटक यहाँ पक्षियों को देखने और डार्विन खाड़ी में स्नोर्कलिंग का अनुभव करने आते है।

12).सांता फ़े द्वीप

इस द्वीप को ‘बैरिंगटन द्वीप’ के नाम से भी जाना जाता है। यह गैलापागोस द्वीप समूह का एक छोटा द्वीप है। यह द्वीप अपनी स्थानिक प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध है।

  • भौगोलिक स्थिति : ये द्वीप गैलापागोस द्वीप समूह के मध्य-पूर्व में स्थित है।
  • भूविज्ञान : भूवैज्ञानिक रूप से ये द्वीप गैलापागोस द्वीपसमूह के सबसे पुराने ज्वालामुखियों में से एक होने के कारण, यह द्वीप अपनी प्राचीनता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • वन्यजीव : यहाँ पर सांता फ़े भूमि इगुआना (Conolophus pallidus) पाई जाती है, जो धरती पर और कहीं नहीं मिलती है।
  • पर्यटन : इस द्वीप पर पर्यटकों के लिए बैरिंगटन खाड़ी के पास, चट्टान की चोटियों से द्वीप के सुंदर दृश्य या समुद्री तट पर काँटेदार नाशपाती के पौधे और इगुआना देख सकते है।

13).उत्तर सेमुर द्वीप

यह द्वीप गैलापागोस द्वीपसमूह में एक छोटा, समतल और शुष्क द्वीप है।

  • भौगोलिक स्थिति : यह द्वीप समूह में स्थित बाल्ट्रा द्वीप के पास है।
  • भूविज्ञान : इस द्वीप का निर्माण पनडुब्बी लावा के ऊपर उठने से हुआ था।
  • वन्यजीव : यह द्वीप अलग-अलग समुद्री पक्षियों और समुद्री जीवों के लिए प्रसिद्ध है।
  • पर्यटन : इस छोटे से द्वीप पर एक पगदंडी है जो यहाँ के जीवों की बस्तियों से होकर गुजरती है।

14).बाल्ट्रा द्वीप

ये द्वीप गैलापागोस द्वीपसमूह का प्रवेश द्वार मन जाता है, क्योंकि यहाँ एक मुख्य हवाई अड्डा स्थित है। ये द्वीप साऊथ सीमोर के नाम से भी जाना जाता है।

  • भौगोलिक स्थिति : ये गैलापागोस द्वीपसमूह के केंद्र में स्थित है और सांता क्रूज़ द्वीप से इटाबाका चैनल से अलग होता है।
  • भूविज्ञान : यह एक शुष्क, उबड़-खाबड़ क्षेत्र है और इसमें खारे पानी की झाँड़िया, कैक्टस और पैलो सेंटो जैसे पेड़ है।
  • वन्यजीव : यहाँ पर स्थलीय इगुआना देखे जा सकते है।
  • पर्यटन : यहाँ द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त अमेरिकी सेना द्वारा उपयोग किए गए हवाई अड्डे के रूप में बाल्ट्रा द्वीप का इतिहास है और अब यह पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।

15).बार्टोलोम द्वीप

यह गैलापागोस द्वीपसमूह का एक छोटा और निर्जन द्वीप है। यह द्वीप चार्ल्स डार्विन के जहाज ‘एचएमएस बीगल’ के लेफ्टिनेंट, सर बर्थोलोम्यू जेम्स सुलिवन के नाम पर रखा गया है।

  • भौगोलिक स्थिति : यह द्वीप सैंटियागो द्वीप के पास है और निर्जन द्वीप है, यानी यहाँ मानव बस्तियाँ नहीं है।
  • भूविज्ञान : ये द्वीप एक ज्वालामुखी द्वीप है।
  • वन्यजीव : यहाँ गैलापागोस पेंगुइन, बगुले और गैलापागोस हॉक्स जैसे पक्षी देखे जा सकते है।
  • पर्यटन : यह पर पर्यटन के लिए सांता क्रूज़ से एक दिन का टूर बुक करके बार्टोलोम द्वीप जा सकते है। इसके आलावा या पर की द्वीपों का क्रूज़ लेते समय भी बार्टोलोम द्वीप पर रुक सकते है।

16).डार्विन द्वीप

इस छोटे से द्वीप का नाम महान प्रकृतिवादी ‘चार्ल्स डार्विन’ के नाम पर रखा गया है। इस द्वीप की पहली स्थलीय यात्रा 1964 में एक हेलीकॉप्टर की सहायता से हुई थी।

  • भौगोलिक स्थिति : ये द्वीप गैलापागोस द्वीपसमूह के सबसे उत्तरी द्वीप है। यह द्वीप इसाबेल द्वीप से लगभग 160 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
  • भूविज्ञान : इस द्वीप के असाधारण पानी के निचे का जीवन एक महत्पूर्ण कारण है की गैलापागोस को दुनिया के सात पानी के नीचे के आश्चर्यो में से एक मन जाता है।
  • वन्यजीव : डार्विन द्वीप पर केवल समुद्री पक्षी ही रहते है। यहाँ हैमरहेड शार्क के बड़े समूह देखना बहुत ही अद्भुत होता है।
  • पर्यटन : इस छोटे से द्वीप पर कोई स्थलीय पर्यटन स्थल नहीं है।

17).प्लाजा द्वीप

ये बहोत ही छोटा द्वीप है, लेकिन अपने छोटे आकार के बावजूद, यह द्वीप अपनी विविध प्रकारकी वनस्पतियों के लिए जाना जाता है।

  • भौगोलिक स्थिति : प्लाजा द्वीप, सांता क्रूज़ द्वीप के पूर्व में स्थित है एक छोटा सा द्वीप है।
  • भूविज्ञान : यह द्वीप समुद्र तल से ऊपर बना है, जिससे ऊपरी किनारे से सुंदर दृश्य देखा जा सकता है।
  • वन्यजीव : यहाँ पर थल इगुआनाओं की और समुद्री इगुआनाओं की भरमार है। इसके अलावा स्वैलो-टेल्ड, ओडुबोन शीयरवाटर, नीले पैर वाले बूबी और फ्रिगेट जैसे पक्षी भी देख सकते है।
  • पर्यटन : ये द्वीप पक्षी-दर्शन और अद्भुत वनस्पतियों के लिए लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। द्वीप के चारों और पगदंडियाँ है।

18).रबीदा द्वीप

इस द्वीप को ‘जर्विस द्वीप’ के नाम से भी जाना जाता है।

  • भौगोलिक स्थिति : ये द्वीप इक्वडोर के पास पूर्वी प्रशांत महासागर में स्थित है।
  • भूविज्ञान : यह ज्वालामुखीय लाल समुद्री तट वाला द्वीप है। लाल रंग की रेत लौह ऑक्साइड के उच्च घनत्व के कारण है।
  • वन्यजीव : यहाँ पर समुद्री शेर, पेलिकन, नील पैरो वाली बूबी,नाज़्का बूबी और फ्लेमिंगो जैसे जीव पाए जाते है।
  • पर्यटन : रबीदा द्वीप पर पर्यटक बहोत ही कम आते है, जिससे यहाँ बहोत शांति और एकांत का अनुभव होता है।

19).वुल्फ द्वीप

ये गैलापागोस द्वीपसमूह का एक छोटा सा और निर्जन ज्वालामुखी द्वीप है। इस द्वीप का नाम जर्मन भूविज्ञानी ‘थियोडोर वुल्फ’ के नाम पर रखा गया है।

  • भौगोलिक स्थिति : ये उत्तरी गैलापागोस द्वीपसमूह में, डार्विन द्वीप से लगभग 40 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
  • भूविज्ञान : ये द्वीप एक विलुप्त समुद्री ज्वालामुखी का अवशेष है।
  • वन्यजीव : यह पर हैमर शार्क, व्हेल शार्क और अन्य समुद्री जीव देखने को मिलते है। यहाँ पर प्रख्यात ‘वैम्पायर फिंच’ भी देख सकते है।
  • पर्यटन : ये द्वीप गैलापागोस राष्ट्रीय उद्यान द्वारा संरक्षित है और पर्यटन के लिए बंध है। लेकिन ये गोताखोरी के लिए लोकप्रिय स्थल है।

संरक्षण चुनौतियाँ

  • आक्रामक प्रजातियाँ : गैलापागोस द्वीपसमूह पर मजबूत सुरक्षा उपाय करने के बावजूद यहाँ के देशी पौधें, प्राणी और स्थलीय पक्षी के विलुप्त होने का जोखिम है। यहाँ पर रह रही जंगली बिल्लियाँ और चूहे जैसी आक्रामक प्रजातियाँ देशी पौधों और प्राणीओ को नष्ट कर रही है। इसी कारण द्वीपसमूह के लगभग 50% स्थलीय पक्षी विलुप्त होन के खतरे में है।
  • ज़्यादा मछली पकड़ना : गैलापागोस द्वीपसमूह का जल क्षेत्र राष्ट्रिय एवं अंतर्राष्ट्रीय, दोनों ही प्रकार के जहाजों द्वारा अवैध मछली पकड़ने से प्रभावित है, इसी कारण स्थानीय मछलियां और शार्क जैसी प्रवासी समुद्री प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
  • प्रदूषण : इस द्वीपसमूह पर आने वाले पर्यटकों की संख्या बहोत ज़्यादा है, जिससे प्रदूषण एक बड़ी समस्या है।
  • जलवायु परिवर्तन : जलवायु परिवर्तन के कारण विवध प्रकार के तूफानों के बढ़ने की संभावना है, जो गैलापागोस द्वीपसमूह के वन्यजीवों के लिए विनाश का कारण बन सकता है। इस द्वीपसमूह की स्वस्थ रहे इसकी अब सावधानी रखनी होगी।

पर्यटक स्थल

  • सांता क्रूज़ (इंडीफैटिगेबल) द्वीप पर स्थित ‘चार्ल्स डार्विन अनुसंधान केंद्र’, जो की वैज्ञानिक अध्ययनों को बढ़ावा देता है और गैलापागोस की स्थानीय वनस्पतियों और जीवों की रक्षा करता है। पर्यटकों को इसकी मुलाक़ात अवश्य करनी चाहिए।
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विशालकाय कछुआ प्रजनन केंद्र, सांता क्रूज़ द्वीप, गैलापागोस

चार्ल्स डार्विन अनुसंधान (सीडीआरएस) केंद्र, सांता क्रूज़ द्वीप, गैलापागोस

चार्ल्स डार्विन अनुसंधान (सीडीआरएस) केंद्र की स्थापना सन 1964 में, गैलापागोस द्वीपसमूह के प्रमुख द्वीपों में से एक, सांता क्रूज़ द्वीप की गई थी।

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गैलापागोस द्वीपसमूह के 15 प्रतिष्ठित जीव

  • गैलापागोस विशाल कछुआ :

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  • अमेरिकी फ्लेमिंगो :

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  • उड़ने में असमर्थ जलकाग :

Flightless Cormorants

  • नील पैरों वाली बूबी :

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  • फ्रिगेटबर्ड : महान और शानदार :

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  • वेव्ड अल्बास्ट्रॉस :

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  • लाल पैरों वाली बूबी :

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  • नाज़्का बूबी :

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  • गैलापागोस पेंगुइन :

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  • गैलापागोस हॉक :

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  • गैलापागोस समुद्री शेर :

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  • गैलापागोस फर सील :

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  • गैलापागोस स्थलीय इगुआना :

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  • समुद्री इगुआना :

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  • सांता फ़े भूमि इगुआना :

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चार्ल्स डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत

करोड़ों सालों से अस्तित्व में रहे गालापागोस द्वीप समूह के 19 द्वीप डार्विन के सिद्धांत के बाद चर्चा में आए और शोधकर्ता वहाँ अध्ययन के लिए आने लगे।

गैलापागोस द्वीप समूह विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित हुए है, क्योंकि प्रत्येक द्वीप पर पाए जाने वाले जीव स्थानीय पर्यावरण के लिए अद्वितीय हैं। उँची घास वाले द्वीपों पर रहने वाले कछुओं (या अन्य जीवों) की चोंच लंबी होती हैं, जबकि कुछ की चोंच बहुत छोटी होती हे, क्योंकि उन्हें नीचे भोजन मिलता था। लाखों वर्षों से अलग-अलग द्वीपों पर रहने के कारण, प्रत्येक द्वीप के कछुए जैविक रूप से दूसरे द्वीप के कछुओं से भिन्न थे।

प्रकृतिवादी चार्ल्स डार्विन ने 1831-36 की अपनी यात्रा के दौरान गालापागोस द्वीप समूह के जीवों का अध्ययन किया था। किसी विशेष वातावरण में जीवित रहने वाले जीवों को अपने शरीर, आदतों और जीवनशैली को स्थानीय वातावरण के अनुसार ढालना पड़ता है। चार्ल्स डार्विन ने गालापागोस की अपनी यात्रा के दौरान विकासवाद के रूप में ज्ञात प्रकृति के इस चमत्कार को समझा और फिर डार्विन ने 1859 में अपनी पुस्तक ‘ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीसिस’ में विकासवाद के सिद्धांत को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। यह विज्ञान के इतिहास की एक सर्वविदित घटना है।

डार्विन के सिद्धांत के लागू होने के बाद, गालापागोस द्वीप समूह अपने ‘फिंच (एक प्रकार की चिड़िया)’ नाम के पक्षी और विशाल भूमि कछुओं (कछुए, समुद्री कछुए नहीं) के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हो गए। इस सिद्धांत को समझाने के लिए डार्विन ने उदाहरणों के माध्यम से बताया की प्रत्येक द्वीप पर पाए जाने वाले फिंच की चाचें द्वीप की आवश्यकताओं के अनुसार भिन्न होती हैं। जिन द्वीप पर पक्षियों को पेड़ों से भोजन प्राप्त करना पड़ता था, वहाँ उनकी चाचें लंबी थी, जबकि जिन द्वीपों पर पक्षियों को फलों से भोजन प्राप्त करना पड़ता था, वहाँ उनकी चाचें छोटी लेकिन मजबूत थी।

गैलापागोस में कछुओं की कुल 15 प्रजातियाँ पाई गई है, जिनमें से 12 आज भी पाई जाती है। इस द्वीप समूह में कभी 2 लाख से ज़्यादा कछुए थे, लेकिन अब भोजन और तेल के लिए उनका अंधाधुंध शिकार किया जा रहा है। अब शिकार तो बंद हो गया है, लेकिन आज कछुए, इस द्वीप समूह के केवल 6 द्वीपों पर ही पाए जाते है। 1959 में ‘गालापागोस राष्ट्रीय उद्यान’ की स्थापना के बाद, इकवाडोर सरकार ने यहाँ पर्यटन का विकास किया है। अपने विकासवादी इतिहास के कारण, यह द्वीप समूह साहसिक यात्रियों के बीच बेहद लोकप्रिय है। इसलिए, दुनियाभर से पर्यटक यहाँ आते रहते है। दूसरी और, शोधकर्ता भी सक्रिय है। निरंतर प्रयासों के कारण इन सभी प्रकार के कछुओं की आबादी बढ़कर 7000 हो गई है।

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फर्नांडीना द्वीप Farnandina island in hindi

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फर्नांडीना द्वीप

फर्नांडीना द्वीप गैलापागोस द्वीपसमूह के 19 द्वीपों में से एक है। गैलापागोस द्वीपसमूह, पूर्वी प्रशांत महासागर का एक द्वीप समूह है, जो प्रशासनिक रूप से इक्वाडोर के क्षेत्र में आता है।

क्षेत्रफल : 642 किमी या 248 मील

अधिकतम उँचाई : 1476 मीटर या 4842 फीट

मानव जन संख्या : 0

इतिहास

नामो का इतिहास

फर्नांडीना द्वीप को अपने इतिहास में कई नामों से जाना जाता रहा है।

स्पेनिश नाम

प्रारंभिक स्पेनिश खोजकर्ता इसे कभी-कभी “इस्ला डे प्लाटा (सिल्वर आइलैंड)” भी कहते थे।

1684 : एम्ब्रोस काउली

ब्रिटिश समुद्री डाकू एम्ब्रोस काउली ने पहली बार 1684 में एक नौवहन चार्ट पर इस द्वीप का उल्लेख किया था। उन्होंने 17वीं शताब्दी के एक प्रमुख अंग्रेज नौसैनिक कमांडर, ‘सर जॉन नारबोरो’ के सम्मान में इसका नाम “नारबोरो द्वीप” रखा था। हालाँकि पूरे गैलापागोस द्वीपसमूह की खोज इससे पहले ही हो चुकी थी।

आधुनिक नाम

1825 में अमेरिकी खोजकर्ता कैप्टेन बेंजामिन मोरेल ने क्रिस्टोफर कोलंबस की यात्राओं के प्रायोजकों में से एक, आरागॉन के राजा फर्डिनेंड द्वितीय के सम्मान में इस द्वीप का नाम बदलकर “फर्नांडीना” कर दिया।

642 वर्ग किलोमीटर के फर्नांडीना द्वीप को पहली बार ब्रिटिश समुद्री डाकू एम्ब्रोस काउली ने सन 1684 में देखा था। 17 वीं शताब्दी में स्पेनियों ने इस पर नियंत्रण कर लिया और स्पेन के राजा फर्नांडो के सम्मान में इस द्वीप का नाम रखा। भूवैज्ञानिक दृष्टि से, यह द्वीप गालापागोस के अन्य द्वीपों की तुलना में युवा है, क्योंकि इसकी आयु 1 करोड़ वर्ष से भी कम है।

फर्नांडीना एकमात्र ऐसा ज्ञात द्वीप है, जहाँ सक्रिय ज्वालामुखी पाया जाता है। ज्वालामुखी के सक्रिय होने पर द्वीप का आकार भी बदल जाता है। यह द्वीप गैलापागोस द्वीप समूह में सबसे युवा और सबसे अधिक ज्वालामुखीय रूप से सक्रिय द्वीपों में से एक है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो इसके प्राचीन परिदृश्य और अद्वितीय जैव विविधता को आकार देती रहती है।

फर्नांडीना द्वीप ज्वालामुखी विस्फोटों की अपनी निरंतर श्रृंखला के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। द्वीपसमूह के कई शुरुआती आंगतुकों ने परिदृश्य में नाटकीय परिवर्तनों, धुआँ उगलते गड्ढों और वास्तविक विस्फोटों पर टिप्पणी की थी। इनमें से सबसे प्रसिद्ध वर्णन न्यूयॉर्क स्थित स्कूनर टार्टर के कप्तान बेंजामिन मोरेल द्वारा 1825 में हुए एक भयंकर विस्फोट का है। एक अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना 1906 में कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस अभियान के रोबो बेक द्वारा फर्नांडीना पर पाए गए एकमात्र विशालकाय कछुए की खोज और संग्रह थी।

भूविज्ञान

फर्नांडीना गैलापागोस द्वीपसमूह का सबसे पश्चिमी द्वीप है, जो सभी द्वीपों में तीसरा सबसे बड़ा और सबसे युवा है। यह दस लाख वर्ष से भी कम पुराना है। यह ज्वालामुखीय रूप से सबसे अधिक सक्रिय है और गैलापागोस द्वीप समूह के निर्माण वाले हॉटस्पॉट के केंद्र में स्थित है।

ला कुम्ब्रे ज्वालामुखी हवाई द्वीप समूह में पाए जाने वाले ज्वालामुखी के समान एक ढाल ज्वालामुखी है। इसका शिखर ‘काल्डेरा’ लगभग 6.5 किमी चौडा है। 1968 में एक विस्फोटक विस्फोट के दौरान, काल्डेरा लगभग 350 मीटर नीचे गिरकर ढह गया था।काल्डेरा के उत्तरी तल पर बिच-बिच में एक छोटी झील बनी रही है, जिसका आकार, सीमाएँ और स्थिति विस्फोटों के दौरान समय-समय पर बदलती रही है। हाल ही में काल्डेरा और ज्वालामुखी की बाहरी ढलानों, दोनों पर विस्फोट हुए है,जिनमें से कुछ समुद्र तक पहुँच गए है।

गैलापागोस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना के बाद से, फर्नांडीना द्वीप पर 13 विस्फोट दर्ज किए गए है, जिनमें से कुछ कई दिनों तक चले। सबसे हालिया विस्फोट मई 2005 और अप्रैल 2009 में हुए थे।

आज

फर्नांडीना, गैलापागोस ज्वालामुखियों में सबसे सक्रिय और सबसे प्राचीन है। द्वीप के उत्तर-पूर्वी किनारे पर एक पर्यटक स्थल को छोड़कर, यह द्वीप अपनी प्राचीन अवस्था में बना हुआ है। यहाँ पर स्थलीय इगुआना की एक बड़ी आबादी है, जो काल्डेरा के किनारे और उसकी गहराई दोनों में घोंसला बनाती है।

पश्चिम से द्वीप समूह पर आने वाली क्रॉमवेल धारा के ठंडे, ऊपर उठते पानी के कारण, जहाँ यह सतह पर आ जाती है। फर्नांडीना और पश्चिमी इसाबेल के आसपास का पानी द्वीपसमूह का सबसे समृद्ध जल है। ये ठंडे पानी उड़ने में असमर्थ जलकागों और गैलापागोस पेंगुइन दोनों के लिए भी उत्कृष्ट आवास प्रदान करते है।

संरक्षण चुनौतियाँ

यहाँ स्थानिक चावल चूहों की दो प्रजातियाँ पाई जाती है। काले या नॉर्वे चूहों के आने के बाद, अन्य द्वीपों पर चावल चूहों की अधिकांश पप्रजातियाँ विलुप्त हो गई है। फर्नांडीना और जेनोवेसा ही ऐसे बड़े द्वीप हैं, जहाँ कभी स्तनधारी नहीं आए।

वनस्पतियों और जीवों के लिए सबसे बड़ा खतरा भविष्य में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आने की संभावना है। द्वीप पर एक भी पर्यटक स्थल संभावित आगमन को सीमित करने में मदद करता है। हालाँकि, 1990 के दशक में समुद्री ककड़ी मत्स्य पालन यानिकि कानूनी और अवैध दोनों के चरम के दौरान फर्नांडीना में स्थानीय मछुआरों के कई अवैध शिविर देखे गए थे। प्राचीन पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, नए प्रवेश, विशेष रूप से चूहों का पता लगाने के लिए समय-समय पर निगरानी की जानी चाहिए।

पर्यटक स्थल : पुंटा एस्पिनोसा

यह पर्यटक स्थल दो प्रमुख आकर्षण प्रदान करता है – छोटे प्रायद्वीप के चारों ओर छोटी पैदल यात्रा और एक बड़े लावा प्रवाह के किनारे तक अंतर्देशीय लंबी पैदल यात्रा।

अपने पूरे इतिहास में भूगर्भीय गतिविधि के परिणाम स्वरुप यह बिंदु कई बार ऊपर और नीचे उठा है, आखरी ज्ञात गतिविधि 1975 में हुई थी, जब इसे लगभग 40 सेमी ऊपर प्रवाल और लाल मैंग्रोव उजागर हो गए थे।

तट के किनारे के मुख्य आकर्षण में समुद्री इगुआना और उड़ने में असमर्थ जलकाग शामिल है। अन्य आकर्षणों में पेंगुइन, समुद्री शेर, सैली लाइटफुट केकड़े और कभी-कभी गैलापागोस हॉक्स एवं भूमि इगुआना भी शामिल है।

पुंटा एस्पिनोसा लावा कैक्टस देखने के लिए भी सबसे अच्छी जगहों में से एक है। यह युवा लावा पर उगने वाली पहली प्रजातियों में से एक है और बहुत कम पानी में भी जीवित रह सकता है। अंतर्देशीय मार्ग मुख्यतः पहोहो लावा क्षेत्र से होकर गुजरता है, लेकिन यह लावा की एक विशाल दीवार पर समाप्त होता है।

फर्नांडीना में दो गोताखोरी स्थल भी है। पहला पुंटा एस्पिनोसा में भूमि स्थल के निकट है और दूसरा दक्षिण में पुंटा मैगल में है। दोनों ही उड़ने में असमर्थ जलकाग और गैलापागोस पेंगुइन, समुद्री घोड़े, समुद्री इगुआना, समुद्री कछुए, शार्क और किरणों की विभिन्न प्रजातियों को देखने के लिए अच्छे स्थल है।

फर्नांडीना द्वीप के प्रतिष्ठित जीव

फर्नांडीना द्वीप कई प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास के रूप में कार्य करता है। जैसे की, समुद्री इगुआना, उड़ने में असमर्थ जलकाग, गैलापागोस पेंगुइन, लावा छिपकलियाँ, गैलापागोस हॉक और गैलापागोस समुद्री शेरों सहित अनोखे जीवों का घर है।

समुद्री जीव

  • समुद्री इगुआना : ये अनोखा सरीसृप दुनिया में एकमात्र समुद्री छिपकलियाँ है और तट पर बड़ी बस्तियों में देखी जा सकती है। ये काले लावा चट्टानों पर इकट्ठा होती है। ये साल के शुरुआती दिनों में यहाँ घोंसला बनाते है और जून के आसपास इनके बच्चे निकलते है। उस समय, घोंसलों के क्षेत्र में आमतौर पर साप देखे जाते है।
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  • उड़ने में असमर्थ जलकाग : ये पक्षी उड़ नहीं सकते, लेकिन ये उत्कृष्ट तैराक होते है, जो फर्नांडीना द्वीप की एक प्रमुख प्रजाति है। ये अपनी उड़ने की क्षमता खो चुके है।
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  • गैलापागोस पेंगुइन : दुनिया में सबसे उत्तर में पाए जाने वाले पेंगुइन, ये द्वीप पर आने वाले पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है। ये दुनिया की सबसे उत्तरीय पेंगुइन प्रजातियाँ है और पर्यटकों के सबसे पसंदीदा भी है।
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  • गैलापागोस समुद्री शेर : समुद्री शेर समुद्र तटों और चट्टानी तटों पर प्रचुर मात्रा में पाए जा सकते है। इन चंचल जानवरों को खास करके किनारे पर धूप सेंकते या ज्वारीय कुंडो में खेलते देखा जाता है।
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  • गैलापागोस फर सील : ये समुद्री शेरों की तुलना में अधिक छिपने में आसान होते है। ये खास करके चट्टानी सतहों को पसंद करते है और इस क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाए जाते है।
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स्थलीय जीव

  • गैलापागोस स्थलीय इगुआना : बड़े, पीले इगुआना जो ज्वालामुखी के किनारे से काल्डेरा तल पर घोंसला बनाने के लिए यात्रा करते है।
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  • लावा छिपकलियाँ : गैलापागोस में सात प्रकार की लावा छिपकलियाँ पाई जाती है। ये सभी प्रकार की छिपकलियाँ गैलापागोस द्वीप समूह के सभी प्रमुख द्वीपों पर पाई जाती है। छोटी, फुर्तीली छिपकलियाँ जो द्वीप के ज्वालामुखीय वातावरण में पनपती है।
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  • सैली लाइटफुट केकड़े : इनका शरीर चपटा होता है, जिससे ये छोटी-छोटी चट्टानों की दरारों में छिप सकते है।

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  • राइस रैट : फर्नांडीना द्वीप की एक विशिष्ठ स्थानिक प्रजाति
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  • फर्नांडीना का विशाल कछुआ : इस द्वीप पर 2019 में फर्नांडा नामक एक जीवित फर्नांडीना विशालकाय कछुए की असाधारण पुनर्खोज भी हुई है। एक ऐसी प्रजाति, जिसे पहले एक सदी से भी ज़्यादा समय से विलुप्त माना जाता था। इस प्रजाति का एक नर कछुआ आखरी बार 1906 में देखा गया था।
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फर्नान्डा – मादा फर्नांडीना कछुआ जो 2019 में खोजी गई।

पक्षी

  • नील पैरों वाली बूबी : ये नृत्यों में उपयोग होने वाले अपने चमकीले नील पैरों के लिए प्रसिद्ध है।
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  • गैलापागोस फिंच : छोटे पक्षी, जिनमें डार्विन फिंच और कैक्टस फिंच शामिल है।
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  • ग्रेट ब्लू हेरॉन : पानी में शिकार करने वाले जलचर पक्षी।
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  • छोटे कानों वाला उल्लू : एक निशाचर शिकारी।
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  • गैलापागोस हॉक : द्वीप का एक प्रमुख शिकारी
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